बालकनी में डला झूला और उस पर बैठी माही, हर सुबह की तरह आज भी बालकनी में बैठे बैठे अख़बार पढ़ रही थी और आने जाने वाले लोगों को देखकर उसे जो ख़ुशी महसूस होती थी , उसी ख़ुशी को आज भी महसूस कर रही थी। उसे अच्छा लगता था ऐसे सुबह सुबह सोसाइटी के बच्चों को स्कूल जाते देखना , अखबार और दूधवाले का सोसाइटी में आना , बुज़ुर्गों का पार्क में सैर करना , हालंकि माही खुद काफी अंतर्मुखी स्वभाव की थी और लोगों के साथ भी ज़्यादा व्यवाहिरिक नहीं थी, हमेशा बस अपने काम से बाहर जाती और सीधा घर आकर अपने काम में लग जाती। जिसकी वजह से सभी उसे घमंडी समझने लग गए थे ,लेकिन माही घमंडी नहीं थी , वो बस हालातों के चलते अंतर्मुखी हो गई थी।
आज माही के सामने वाले फ्लैट में एक परिवार रहने आया , उस परिवार में पति पत्नी और उनके तीन बच्चे , जिनमे दो लड़के और एक लड़की थी। लड़की सबसे छोटी थी। इस परिवार का शायद यहाँ ट्रांसफर हुआ था , पति नौकरी करता था और पत्नी घर संभालती थी , तीनों बच्चे पढ़ रहे थे। उस परिवार की महिला का नाम सुजाता था।
इस परिवार के बारे में इतनी जानकारी भी माही को तब लगी जब सुजाता माही से दूध वाले का नंबर लेने उसके फ्लैट पर आई।
माही ने सुजाता की नए घर को सजाने सँवारने से लेकर कूड़ा वाला दूध वाला अख़बार वाला सब्ज़ी वाला सबसे जान पहचान करा दी , सुजाता और माही एक तरह से अच्छे दोस्त बन गए। हालाँकि सारे सोसाइटी वालों के साथ साथ माही खुद भी हैरान थी कि उसके जैसे अंतर्मुखी औरत कैसे किसी से इतना जुड़ सकती है लेकिन माही को ये दोस्ती बहुत सुकून दे रही थी क्योंकि उसे सुनने वाला कोई मिल गया था।आमने सामने फ्लैट होने के वजह से माही और सुजाता एक दूसरे के फ्लैट पर आती जाती रहती , इन कुछ दिनों में माही उस परिवार से पूरी तरह घुल मिल गई , बच्चे भी माही को “मासी” कहकर पुकारने लगे। सुजाता ने कई बार माही से उसकी शादी को लेकर पूछा लेकिन माही ने हर बार टाल दिया , माही का दिल न दुःख जाये यही सोचकर सुजाता ने भी फिर ज़्यादा पूछना बंद कर दिया। इस तरह कुछ महीने बीत गए , दोनों की दोस्ती और गहरी होती गई।
लेकिन इन सबके बीच माही ने इस परिवार में एक अजीब सी बात नोटिस की और सुजाता से इस बारे में बात करने की सोची। माही ने देखा कि सुजाता के घर में अक्सर उसकी 10 वर्षीय बेटे शीना के साथ कहीं न कहीं भेदभाव किया जाता है, उसके दोनों बेटे जहाँ बहुत बड़े स्कूल में पढ़ रहे थे , वही शीना को छोटे से स्कूल में डाला गया था ,, दोनों बेटे जहाँ स्कूल बस से स्कूल जाते थे , वही शीना पैदल ही स्कूल जाती थी। बेटे स्पोर्ट्स अकेडमी जाते थे लेकिन शीना को घर में ही रहना होता था। हालाँकि शीना के साथ किसी तरह की मार पिटाई तो नहीं की जाती थी लेकिन उसके ऊपर खर्च नहीं किया जाता था न ही उसके भविष्य को सुधारने के लिए कोई प्लानिंग की गई थी।
ये सब देखकर माही ने सुजाता से बात करने की सोची क्योंकि शीना के साथ हो रहे भेदभाव को वो देख नहीं पा रही थी , और उसे ख़त्म करने के लिए आज उसने अपने नासूर हो चुके ज़ख्मों को एक बार फिर से कुरेदने का निश्चय किया, जिन ज़ख्मों को वो ढक चुकी थी एक बार फिर उन्हीं ज़ख्मों को खोलने की सोची , क्योंकि माही अब शीना को दूसरी माही बनाते नहीं देखना चाहती थी।
इसलिए उसने सुजाता से बात करने और उसे समझाने की सोची लेकिन कुछ इस तरह कि सुजाता को बात भी समझ आ जाये और उसे ऐसा भी न लगे कि माही उसके घर में दखलंदाज़ी कर रही है।
माही ने सुजाता को फ़ोन किया और कहा कि शाम में फ्री होकर आ जाओ , साथ बैठकर चाय पीते हैं , सुजाता शाम को माही के पास आई तो देखा माही अपनी डायरी के पन्नों को पढ़ रही थी, और उसकी आँखों में आंसू थे । सुजाता ने माही से पूछा अरे ! माही क्या हुआ , तुम रो क्यों रही हो ? और क्या लिखा है इस डायरी में , बताओ न???
सुजाता के सवाल पर माही ने कोई जवाब नहीं दिया और बोली , “अरे सुजाता, तुम आ गई , मैं तुम्हारा ही इंतज़ार कर रही थी। रुको मैं चाय बनाकर लाती हूँ। माही अपने आंसू पोछते हुए रसोई की तरफ चली गई और अपनी डायरी साथ ले गई। सुजाता को ये अजीब तो लगा लेकिन वो चाय पीकर घर आ गई। अगले दिन से सुजाता ने नोटिस किया कि माही उससे बात नहीं कर रही। न ही उसे दिख रही है। पूछने पर माही ने बहाना लगा दिया कि तबियत ठीक नहीं है।
जब काफी दिन गुज़र गए और माही सुजाता से दूर होती चली गई तो अब सुजाता को उसकी कमी खेलने लगी , उससे बात करने के लिए बैचैन होने लगी , लेकिन माही की तरफ से उसे कोई रिस्पांस ही नहीं मिल रहा था।
सुजाता ने ये बात अपने पति से भी बताई तो उसके पति ने भी उसे माही के घर जाकर मामले का पता करने को कहा। उसके पति ने कहा देखो सुजाता, माही अकेले रहती है , हो सकता है उसे कोई दिक्कत हो , तुम उसकी एकमात्र सहेली हो और वो तुम्हारी , उसने शिफ्टंग के वक़्त हमारी बहुत मदद की है। तो तुम्हारा भी फ़र्ज़ बनता है कि तुम उसकी परेशानी जानकर उसकी मदद करो।
अगले दिन जैसे ही सुजाता घर के कामों से फ्री हुई , उसने जाकर माही के घर की बेल बजाई , दरवाज़ा किसी लड़के ने खोला , जिसे देखकर पहले तो सुजाता हैरान यह गई , फिर उसने थड़े रोब से उस लड़के से पूछा कि “इस फ्लैट की मालकिन माही कहाँ है, और तुम कौन हो , तुम्हें पहले तो कभी नहीं देखा “. लड़का बोला “माही दीदी तो कही और चली गई हैं और ये फ्लैट मुझे रेंट पर दे गई हैं।
रेंट पर दे गई और खुद कहीं और चली गई ,लेकिन क्यों और कब??? सुजाता ने उस लड़के से पूछा तो लड़के ने जवाब दिया कि कल ही गई हैं , क्यों गई हैं वो मुझे नहीं पता , हाँ लेकिन आपके लिए एक डायरी छोड़ गई हैं , दीदी ने मुझसे कहा था कि आप उन्हें मिलने ज़रूर आएँगी तब आपको उनकी ये डायरी दे दूँ।
सुजाता ने झट से डायरी अपने हाथों में ली और तेज़ क़दमों से अपने फ्लैट की तरफ बढ़ने लगी।
घर आकर सोफे पर बैठकर सुजाता ने वो डायरी पढ़नी शुरू की, जैसे जैसे सुजाता वो डायरी पढ़ रही थी, उसकी आँखों के सामने जाना पहचाना घर उसमें रहने वाले लोग आते जा रहे थे.
डायरी पढ़ने के बाद सुजाता निढाल होकर सोफे पर बैठ जाती है , उसके हाथ से डायरी छूट जाती है जिसमें से एक पत्र उसको नीचे गिरा हुआ दिखता है , सुजाता उस खत को उठाकर पढ़ना शुरू करती है, जिसमें लिखा था “सुजाता, तुमने डायरी पढ़ ही ली होगी , तुम हमेशा से मुझसे मेरे परिवार मेरी शादी का पूछती थी न, तो उम्मीद करती हूँ की तुम्हें तुम्हारे सारे सवालों के जवाब मिल चुके होंगे , अब सुजाता तुम ही बताओ , जिस घर में मेरे जैसी एक दूसरी माही पल रही है , उस घर से मैं कैसे जुड़ी रह सकती हूँ , मेरे ज़ख़्म फिर से हरे हुए हैं , इसलिए मैं न सिर्फ तुम्हें बल्कि इस शहर को भी छोड़कर जा रही हूँ , किसी ऐसी जगह जहाँ अब दोबारा से मेरे ज़खम हरे न हो , तुम्हारी सहेली “माही “.
सुजाता की आँखों से झर्र झर्र आंसू बहने लगे, उसने तुरंत पति को फ़ोन करके बुलाया और माही की डायरी दिखाई। पति देव ने पढ़ना शुरू किया। …
मैं माही , मां बाप की एकलौती बेटी और तीन भाइयों की एकलौती बहन, , आज उम्र के 39 वे साल में अकेली एकदम अकेली। वजह , क्योंकि माँ बाप ने मुझे हमेशा एक बोझ समझा , कमतर समझा। माँ को अक्सर कहते सुना कि चौथा भी बेटा हो जाता तो हमारी अर्थी के लिए चार कंधे पूरे हो जाते , लेकिन चौथी लड़की हो गई , अब पहले इसे पढ़ाओ फिर इसका दान दहेज़ इकठा करो ,और फिर सारी ज़िंदगी इसके ससुराल वालों के आगे हाथ जोड़े खड़े रहो।
घर में भाइयों के लिए बेड और गद्दे थे वही मेरे लिए एक फोल्डिंग और एक पुरानी चादर तकिया, भाइयों के लाड लड़ाए जाते और मैं कोने में सुबकती रहती। कभी कभी पापा तो थोड़ा बहुत प्यार जता भी देते थे लेकिन मेरी अपनी सगी माँ के मुंह से कभी एक प्यार का शब्द नहीं सुना।
भाइयों के लिए सारी सुख सुविधाएँ थी लेकिन मेरे लिए सिर्फ लड़की होने के ताने। मैं जब कभी इस अन्याय का विरोध करती तो भाइयों द्वारा पीटी जाती क्योंकि मां के मेरे प्रति रवैये को देख देखकर भाइयों के दिलों में भी अपनी एकलौती बहन के लिए कोई प्यार नहीं पनपा।
मैं पढ़ने में अच्छी थी तो स्कॉलरशिप मिलती गई और अपने बलबूते मैं कॉमर्स विषय में मास्टर्स हो गई , पढ़ाई को लेकर पिता जी का साथ मिला था, और Scholarship,वर्ना शायद पढाई भी रोक दी जाती।
अब घर में मेरी शादी को लेकर बातें होने लगी, हालाँकि मैं पहले जॉब करके अपने पैरों पर खड़े होना चाहती थी लेकिन मां ने फिर अपने बेटों की शादी की दुहाई दी कि तू जाएगी तभी बेटों की शादी होगी , हमारे यहाँ ऐसे ही होता है
मैंने भी ये सोचकर हाँ कर दी , कि शादी के बाद पति को मनाकर जॉब कर लुंगी और सबसे बड़ी बात। इन तानों से पीछा छूट जायेगा , मेरा घर होगा , मेरा परिवार होगा , अपनी मर्ज़ी से जियूँगी।
पापा कुछ रिश्ते लाये लेकिन मां ने हर रिश्ते को ये कह कर मना कर दिया कि अमीर परिवार है ,सास ससुर हैं ननद हैं , बहुत कुछ देना पड़ेगा
जब मां को, अपनी सगी मां को पापा से ये कहते सुना कि इतना कहाँ से देंगे , कोई अकेला सा लड़का देख लो. जिसे कुछ देना न पड़े , सस्ते में काम निपट जाये ,इसे सब दे देंगे तो बेटों का हिस्सा कम हो जायेगा , फिर तीज त्यौहार , बच्चा होने पर बस देते रहो ,,कब तक देते रहेंगे.
जो भी कोई मिले, जैसा भी मिले गरीब सा जिसे कुछ देना न पड़े, ऐसा लड़का ढूंढो। इसकी किस्मत में हुआ तो शादी के बाद सब हो जायेगा , नहीं हुआ तो दान दहेज़ देने के बाद भी डूब जायेगा।
अपनी सगी माँ के मुंह से ये शब्द सुनने के बाद शरीर से आत्मा बाहर निकलती महसूस हुई , दिल के हज़ार टुकड़े हुए , तभी एक फैसला लिया ,,
माँ के नाम एक चिठ्ठी लिखी जिसमें लिखा कि “माँ , आपको मेरी शादी की चिंता करने की ज़रूरत नहीं है , चाहे आप कितने भी गरीब घर में मेरी शादी कराओ, जहाँ आपको कुछ देना न पड़े लेकिन फिर भी थोड़ा खर्च तो आपका होगा ही , अगर मैं तीज त्यौहार में आपके घर न आई तो रिश्तेदार,ससुरवाले,मोहल्ला, पड़ोस सब मुझे ताने माँरेंगे और अगर आई तो तीज त्यौहार में चाहे कितना भी कम दो पर आपका खर्च फिर भी होगा, बच्चा होने में भी यही सब होगा , इस सब में ससुराल पक्ष से मुझे ताने सुनने को मिलेंगे और घर आई तो आपसे। … माँ आपने एक सगी माँ होने के नाते आज तक मुझे बेटी समझकर प्यार नहीं दिया , मैं चाहती हूँ आप सौ बरस और जिएं लेकिन आपके अनुसार मैंने लड़की के रूप में जन्म लेकर आपकी अर्थी का चौथा कंधा आपसे छीन लिया , लेकिन मां आप ने भी एक लड़की के रूप में ही जन्म लिया था , आपके प्रिय बेटों की बहुएँ भी किसी के घर बेटी के रूप में ही जन्मी हैं। लेकिन आपको सिर्फ मेरा बेटी होना मेरा गुनाह लगता है ,भले से आपने मुझे कभी कुछ नहीं दिया लेकिन आपकी बेटी होने के नाते आज मैं आपको कुछ देना चाहती हूँ , माँ , मैं आज आपको अपनी शादी के फ़र्ज़ से आज़ाद करती हूँ , ताकि आपका थोड़ा बहुत भी होने वाला खर्चा बचे , मैं घर से भाग नहीं रही , मैं जा रही हूँ आपको आज़ाद करके , आपके फ़र्ज़ से, कही नौकरी करुँगी और जीवन यापन करूंगी , पहली बार आखिर में बस इतना मांगूगी कि अगर आपके घर पोती हुई तो उन्हें दूसरी माही न बनाना “
आपकी अपनी बेटी जिसे आपने कभी अपना नहीं समझा
माही।
आखिर के पन्नों पर माही ने लिखा कि घर छोड़ने के बाद उसने हज़ारों मील दूर इस शहर में नौकरी कर ली, अपना घर बनाया लेकिन बसाया नहीं , टूटे दिल के रस्ते भी बंज़र हो गए थे तो कोई दिल में आया ही नहीं जिसके साथ घर बसाने की सोचती।
सालों तक घरवालों की कोई जानकारी नहीं मिली न उसने जानकारी हासिल करनी चाही ,कुछ साल पहले एक रिश्तेदार से अचानक इसी शहर में मुलाक़ात हो गई जिनसे पता चला कि अपनी अर्थी के चौथे कंधे का हर वक़्त विलाप करने वाली माँ को उसके अंतिम समय में उनके बेटों के तीन कंधे भी नसीब नहीं हुए , क्योंकि तीनों बेटे अपनी अपनी पत्नियों को लेकर विदेशों में बस चुके थे और माँ बाप को वृद्धाश्रम छोड़ दिया था जहाँ उन्होंने अपनी अंतिम सांस ली।
सुजाता के पति डायरी पढ़कर स्तब्ध रह गए , उसके बाद उन्होंने सुजाता के नाम माही की चिठ्ठी को भी पढ़ा और सुजाता से कहा कि इस डायरी में जिस घर की परछाई हमें नज़र आ रही है वो घर किसी और का नहीं बल्कि हमारा खुद का है , हम अपनी शीना के साथ वो ही सब कर रहे हैं जो माही के घरवालों ने उसके साथ किया , इसलिए शीना ने लिखा है कि वो अब दूसरी माही बनते नहीं देख सकती , उसके ज़ख़्म हरे होते नहीं देख सकती , इलसिए यहां से जा रही है।माही की मां तो फिर भी पुराने ज़माने की थी लेकिन हम तो आज के पढ़े लिखे नौकरी पेशा लोग हैं , हम कैसे अपने बेटे बेटी में फर्क कर बैठे। हमें अपनी गलती सुधारनी ही होगी।
सुजाता और उसके पति अब समझ चुके थे कि उन्हें कैसे अपनी गलती सुधारनी है , शीना को उन्होंने गोद में उठाया , उसकी ज़रूरत का हर सामान उसे दिला कर लाये , एक बड़े स्कूल में उसके भी एडमिशन की बात की और उसे डांस का शौक था तो उसे डांस अकेडमी भेजना शुरू किया। लेकिन कही न कही माही की कमी उन्हें खलती रही और वो सोचते रहे कि काश माही आ जाये और देखे कि उन्होंने अपनी गलती सुधार ली है
कुछ दिन गुज़र गए, एक दिन सुजाता के घर की डोर बेल बजी, सुजाता ने दरवाज़ा खोला तो उसे यक़ीन नहीं हुआ कि सामने माही खड़ी थी। सुजाता झट से माही के गले लग गई और रोते रोते कहने लगी कि तुम्हारी सीख से हमने अपनी गलती सुधार ली, फिर क्यों तुमने हमें सज़ा दी, क्यों गई हमें छोड़कर।
इस पर माही हंसने लगी और बोली कि मैं कही नहीं गई थी, यही थी इसी फ्लैट में। बस तुम पर नज़र रखे हुए थी, कि तुम शीना को लेकर सम्भले कि नहीं , अपने फ्लैट की खिड़की से तुम्हें सोसाइटी में देखा करती थी , तुम लोगों का शीना के प्रति ख़त्म होता भेदभाव और बढ़ता प्यार देखकर खुश होती थी , अब जब लगा सब सही हो गया तो आ गई सामने।
लेकिन अपने ही फ्लैट में रहकर तुम किसी को नज़र कैसे नहीं आई और वो लड़का कौन है जो फ्लैट में रह रहा है , सुजाता ने हैरानी से पूछा ??
अरे वो लड़का मेरे ऑफिस में जॉब करता है , मुझे तुम सबसे छुपना था , लेकिन घर बाहर के कई ज़रूरी काम होते हैं , जिनकी वजह से उस लड़के को घर पर रख लिया था ताकि मेरे काम भी न रुके, तुम पर नज़र भी बनाये रहूं और किसी को इसलिए भी नज़र नहीं आई क्योंकि अंतर्मुखी हूँ तो किसी से ज़्यादा मेलमिलाप है नहीं , तो कोई दिक्कत नहीं हुई छुपने में और बीमारी का कहकर ऑफिस न जाकर वर्क फ्रॉम होम कर रही थी , माही बोली।
ये सुनकर सुजाता जहाँ हैरान रह गई वही उसने उनकी आँखें खोलने के लिए माही का धन्यवाद् भी किया और उसे गले से लगा लिया, सुजाता ने माही से माफी मांगी और कहा कि हम पढ़े-लिखे होने के बाद भी भूल गए थे कि बेटियां बेटों से भी ज्यादा अपनी होती है और बेटियां शादी के बाद भी माँ बाप का उतना ही ख्याल करती हैं जितना शादी से पहले करती हैं, बेटियों को भी बराबर सम्मान और प्यार की जरूरत होती है।।
सुजाता के मुँह से ये सब सुनकर अब माही को भी सुकून था कि एक माही को पैदा करने को लेकर जहाँ उसकी सगी माँ हमेशा उसे अपराधबोध महसूस कराती रही , वही आज उसने दूसरी माही को पैदा होने से बचा लिया , शीना , शीना ही रही।
आज माही और सुजाता एक साथ कह उठी,
*दाता, अगले जन्म मोहे बिटिया ही किजो*।।।
शनाया