ड्रेसिंग टेबल के सामने खड़ी होते ही विधि ने ध्यान से अपना चेहरा देखा…..अरे आज तो उसके चेहरे की झाइयाँ कुछ ज्यादा ही गहरी दिखाई दे रहीं थीं…….ओह मैंने तो ध्यान ही नहीं दिया……या शायद समय ही नहीं मिला ध्यान देने का…..! ये चेहरे पर झुर्रियां भी पड़ने लगी…. क्या मेरा ” बुढ़ापा ” आने लगा…?
नहीं नहीं अभी नहीं …अभी तो मैंने अच्छे से जीना शुरु भी नहीं किया है …. शादी , बच्चे और न जाने क्या-क्या सोचते सोचते विधि कब अतीत की स्मृतियों में खो गई पता ही नहीं चला…..!!!
वो काॅलेज के दिन भी क्या दिन थे……मौज-मस्ती , अल्हड़ता , उमंग- तरंग, , सुनहरे सपने सब कुछ तो था विधि के पास…I जब भी शादी के सपने देखती अपने को रानी के रूप मे ही पाती….!! पर कहते हैं ना समय से पहले और भाग्य से ज्यादा कभी नहीं मिलता…..बिल्कुल यही विधि के साथ भी हुआ….I
मध्यमवर्गीय परिवार में विधि की शादी हो गई….I स्वभाव से शांत , शर्मीले और माता पिता के आदर्श पुत्र वैभव के रूप मे पति मिले विधि को…..I
शुरू – शुरू में सब कुछ ठीक-ठाक चलता रहा ….. पर धीरे-धीरे विधि को आभास होने लगा परिवार के अन्य सदस्य जेठ, देवर अपने निजी स्वार्थ के लिए अपने द्वारा कमाए पैसे स्वयं रखते थे ताकि भविष्य में काम आ सके …I पर वैभव अपना पूरा आय घर पर ही व्यय कर देते थे….I विधि ने घर की एकता और वैभव के स्वभाव को देखते हुए इस विषय पर कभी भी वैभव से बात नहीं की…..घर की शांति भंग ना हो इसलिए मौन रहना ही बेहतर समझा….!!
इस कहानी को भी पढ़ें:
प्रतिभा की धनी विधि ने शादी के बाद हमेशा ही समझौता किया…..चूँकि वैभव सीधे सादे थे और कभी भी पारिवारिक मामले में खुलकर अपना पक्ष नहीं रखते थे… हर समय बड़ों के हाँ में हाँ मिलाकर अपना संपूर्ण योगदान देना ही सीखा था… इतना करने के बावजूद भी कई बार पारिवारिक उपेक्षा भी झेलना पड़ा था विधि को…. कहते हैं ना सीधे मर्द की बीवी को बहुत कुछ झेलना पड़ता है वही हाल विधि का था….!!!
परिवार बढ़ने के साथ साथ संयुक्त परिवार ने एकाकी परिवार का रूप ले लिया….I अब विधि वैभव और उनके दो बच्चे साथ में रहते थे .. अति संतोष भी परेशानी का कारण बन जाता है ठीक यही हुआ विधि के साथ…..I उसे घूमने फिरने, मौज-मस्ती का शौक तो शुरू से ही था….पर कभी वैभव से कहने की हिम्मत नहीं हुई…..या समझिए कभी वैभव ने सुनना ही नहीं चाहा….!!!
वैभव के पास मोटर साइकिल थी….और वैभव के दोनों भाइयों के पास कार थी….I जब भी कहीं बाहर जाना होता…….पहले मौसम देखना देखना पड़ता था……कहीं बारिश तो नहीं हो रही है….? या तेज धूप तो नहीं है…..? कहीं जाने पर सब चार चक्के की गाड़ी से उतरते…..तो विधि मोटरसाइकिल से उतरती….I उस समय उसे लगता…..” काश ” ….हमारे पास भी चार चक्के की गाड़ी होती…!! कहीं ना कहीं विधि के दिल मे एक कसक सी रह जाती….खैर…!!!
एक दिन विधि और वैभव “सावन के महीने ” में अपने मोटरसाइकिल से मौसम साफ देखकर दूर घूमने निकल गये…..I
मोटरसाइकिल में पीछे बैठी… विधि के उमंगों ने अचानक अंगड़ाई ली…….और पहली बार एहसास हुआ…. जो हमारे पास है उसका आनंद ना उठा कर जो नहीं है उसके लिए अफसोस करना और आज के आनंद से भी वंचित रहना …कहां की बुद्धिमानी है ….अरे भाई जो मजा बाईक की सवारी में अपने प्यार ( जीवन साथी ) के साथ है……वो मजा….डब्ल्यू . बी. एम…..में भी नहीं…..! और मोटरसाईकिल में पीछे बैठी विधि ये सोचने लगी…….
काश…..! आज बरसात हो जाये…..खूब पानी गिरे और मैं और वैभव भीगते हुए मस्ती भरे माहौल का आनंद उठाए…I
भगवान ने उनकी सुन ली……..रिमझिम- रिमझिम बरसात में…….बाईक की सवारी…….वैभव का साथ…….विधि ने रोमांटिक होते हुए वैभव के कमर में हाथ डालकर फिल्मी अंदाज में गाना शुरू किया…. ” आया……..सावन ……झूम के……”
विधि के इस बदले रूप को महसूस करते हुए वैभव ने कहा… क्या बात है विधि …तुमने तो गाना वाना शुरू कर दिया …..वैभव के और नजदीक आते हुए विधि ने कहा….
इस कहानी को भी पढ़ें:
हाँ वैभव….. सुबह तक ड्रेसिंग टेबल के सामने चेहरे की झुर्रियां व झाइयां बहुत परेशान कर रही थी ….मेरा बुढापा मुझे सता रहा था… पर अब यही बुढ़ापा बेफिक्री से मुझे आनंदित कर रहा है….!
रिटायरमेंट और बच्चों के सेटल होने के बाद बुढ़ापे का भी अपना अलग ही आनंद है…. हर उम्र की अपनी एक विशेषता होती है और हमें उस विशेषता को लपक कर पकड़ लेना चाहिए …..कहीं ऐसा ना हो कि हर उम्र की खूबियों को हम अनुभव ही ना कर पाए…।
यदि हम , काश ये.. काश वो… काश ऐसा …काश वैसा ….को थोड़ी देर के लिए खुद से दूर कर दे ना वैभव ….तो बस उसी समय से आनंद की सुखद अनुभूति शुरू हो जाती है…।
अब समझ में आया जो बीत गया उसके लिए क्या पछताना जो है उसे तो जी ले….
कौन कहता है कि हमारा बुढ़ापा आ गया है….हम बुढ़ापे में और जवान हो गए हैं वैभव… अपने दोनों हाथों से चेहरे को छुपाते हुए शरमा कर विधि ने सिर झुका लिया…!
( स्वरचित ,मौलिक ,सर्वाधिकार सुरक्षित , अप्रकाशित रचना )
साप्ताहिक विषय
# बुढ़ापा
संध्या त्रिपाठी