बेआवाज लाठी – रीटा मक्कड़

इकलौते बेटे को ब्याह कर  सुमित्रा काकी बड़े चाव से बहु ले कर आई।इतनी खुश थी आज कि जैसे सारी खुशियाँ एक ही बार में समेट लेगी। बड़ी देखभाल कर छाँट कर लड़की चुनी। जो बेटे की तरह ऊंची लम्बी हो , सुंदर भी लगे और खानदानी भी हो।

सारी जिंदगी लोगों के कपड़े सिलकर बेटे को पाला ,पढ़ा लिखा कर काबिल बनाया। पति को तो बहुत पहले ही खो चुकी थी।

पति के होते भी कभी आराम और सुख नही मिला और ना ही उसके जाने के बाद। क्योंकि जब तक वो था तो उसने ज़िन्दगी दूभर कर रखी थी। जो कमाता सब शराब में उड़ा देता।

 ऊपर से गाली गलौच, मार पीट भी करता।

और जब चला गया तब अपनी और बेटे की ज़िंदगी को पटरी पर लाने के लिए उसने क्या क्या पापड़ नही बेले।

आज बहु को देखकर खुशी से उसके पैर जमीन पर नही पड़ रहे थे।

लेकिन बहु शायद थोड़े ऊंचे घर की थी। सास के लाड प्यार का उसने नजायज फायदा उठाना शुरू कर दिया। सब काम सास से करवाती और खुद को महारानी समझती।


सुमित्रा काकी घर के और बाहर के सभी काम करती  और बहू बस अपने फोन में ओर टीवी में मशगूल रहती और बिस्तर पर बैठी बस हुकुम चलाती रहती।

बेटा सब कुछ देखते हुए भी अनजान बना रहता।

सुमित्रा काकी घर की शांति के लिए  या शायद इकलौते बेटे को खो देने के डर से चुपचाप सब काम करती रहती। वो बेचारी तो घर की नोकरानी बन कर रह गयी थी।

इसी तरह करते करते सुमित्रा काकी के बेटे की शादी को पांच साल हो गए।लेकिन बहु की गोद नही भरी। बहु ने बहुत डॉक्टरों का इलाज किया। लेकिन कोई फायदा नही हुआ।

हर मंदिर गुरुद्वारे में जा कर माथा टेका, प्रार्थना की और औलाद के लिए मन्नतें मांगी।

कहते हैं ना कि उस ऊपर वाले से डरना चाहिए, उसकी लाठी में आवाज  नही होती है।

ऐसी बहु जिसके अत्यचार सुमित्रा काकी इतने साल चुपचाप सहती रही, कभी उफ्फ तक नही की।

आखिरकार  सात साल बाद भगवान ने  उसे भी एक बेटा दे ही दिया। शायद उसके किये कर्मों का हिसाब जो करना था उस ऊपरवाले ने…!!

मौलिक एवम स्वलिखित

रीटा मक्कड़

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