क्या बुढ़ापा ऐसा भी होता है – निशा जैन: Moral Stories in Hindi

आज घर में एक तरफ जहां सब घर की लाडली बेटी की शादी में व्यस्त थे वहीं दूसरी तरफ घर की मुखिया जानकी जी अपने कमरे में बैठी अपने भाग्य को कोस रही थी और आंसू बहा रही थी यही सोचकर कि ऐसी जिंदगी देने से तो अच्छा है भगवान उठा ले। तभी उनके पति शंभू दयाल जी कमरे में आते है और अपनी रोती हुई पत्नी से रोने का कारण पूछते है

अरे क्या हुआ मेरे घर की लक्ष्मी को, क्यों रो रही हो?

अपने आप पर रो रही हूं, कब तक मैं ऐसे दूसरों के भरोसे अपनी जिंदगी जिऊंगी, न मैं अपने आप बैठ सकती ना उठ सकती, अपना कोई भी तो काम नही कर सकती मैं  आपकी जिंदगी और नरक कर रखी है मैने 

इस बुढ़ापे में आपसे अपनी सेवा करवा के कितना पाप अपने सिर चढ़ा रही हूं पता नही कौनसे नरक में जगह मिलेगी मरने के बाद, हे भगवान मुझे मौत दे दे ताकि और सब लोग तो सुखी रह सकें लक्ष्मी जी ने रोते रोते बोलती जा रही थीं

अरे ऐसा क्यों कहती है भागवान, तू चली गई तो मेरा क्या होगा,इस बुढ़ापे में हम दोनो ही तो एक दूसरे का सहारा है ,हंस बोल लेते हैं दोनो, तेरे बहाने ही मैं भी अपना समय काट लेता हूं नही तो है ही कौन यहां हमारी सुध लेने वाला

बोलते बोलते गला भारी हो गया शंभू दयाल जी का।

            ऐसा कभी सोचा नही था कि हमारा बुढ़ापा ऐसा होगा, जब भी अपने अतीत को याद करता हूं तो विश्वास ही नहीं होता कि कभी इतना खुशहाल परिवार भी था मेरा वो आगे बोले

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            जानकी जी ने बात आगे बढ़ाई  और  बोली कभी सोचा भी नही था की 10,10लोगों का खाना रोज बनाने वाली मैं अपना खाना ही अपने हाथों से खानें की मोहताज हो जाऊंगी एक दिन, कितना काम किया है इस शरीर ने , तन मन दोनो से अपने परिवार की सेवा की मैने और आज मैं ही अपनी सेवा आपसे करवाऊंगी ऐसा कभी सपने में भी नही सोचा था , बोलते बोलते रो पड़ी वो।

            किसी के आने की आहट से दोनो लगभग चुप से हो गए तभी उनके बहु के वहां काम करने वाली बाई बबिता कमरे में आई और बोली

            अम्मा जी आज घर के सब लोग मैरिज होम गए हैं क्या पता कोई आपको वहां से खाना लेकर आए या ना आये तो मैं आप दोनो का खाना सुबह ही बना जा रही हूं शाम के लिए भी। बाबूजी और आप खा लेना

            

            हमारे बहु बेटे से ज्यादा तो ये हमारा ध्यान रखती है, भगवान करे इसको हमारी उमर भी लग जाए दोनो ने उसको मन ही मन ढेरों आशीर्वाद दिए।

            बबिता जानकी जी की केयर टेकर थी जो उनका पूरा ख्याल रखती थी वो बात अलग थी कि  इसके बदले शंभू दयाल जी अच्छी खासी कीमत अदा करते थे पर फिर भी उनके तीनों बहु बेटे उनसे सीधे मुंह बात तक नहीं करते थे ।कभी उनके पास हंस  बैठकर प्यार के दो बोल तक नही बोलते थे।

            चलिए पहले आपका परिचय करवाती  हूं शंभू दयाल जी और उनके परिवार से

            शंभू दयाल जी स्कूल के हेडमास्टर थे। गुजरात  के एक कस्बे में ही उनका पुश्तैनी घर और नौकरी थी जबकि उनकी पत्नी एक कुशल गृहिणी थी।और  उनकी गिनती समाज के प्रतिष्ठित लोगों में होती थी। सब लोग प्यार से उन्हें मास्टर जी कहते थे

            शंभू दयाल जी का  भरा पूरा परिवार है उनके तीन बेटे और तीन  बहुएं हैं। सबसे बड़ा बेटा बहू सरकारी नौकरी( पशु चिकित्सा) में हैं , अच्छी खासी तनख्वाह है दोनो की , कोई कमी नही 

            वहीं दूसरा बेटा इंजिनियर और बहु आंगनवाड़ी में सुपरवाइजर है

            तीसरा बेटा कॉलेज में प्रोफेसर और बहु सरकारी अध्यापिका 

            सब अपने बच्चों और परिवार के साथ रहते है 

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            कुल मिलाकर सारे बेटे बहु अपने मां बाप से अलग रहकर अपनी अलग ही दुनिया बसाए हुए हैं।

            उनकी दो बड़ी बेटियां हैं जिनकी भी शादी हो चुकी है और उनके भी बड़े बड़े बच्चे हैं वो भी अपने अपने ससुराल में खुश हैं।

            अपना इतना बड़ा और सुखी परिवार देख कर दोनो पति पत्नी फूले नहीं समाते।

            

            गर्मी की छुट्टियों में तो उनका घर किसी त्योहार वाले घर से कम नहीं लगता था जब सब बच्चे अपने नाना नानी और दादा दादी के घर छुट्टियां मनाने आते थे। नित नए पकवानों की खुशबू से सारा घर क्या पूरा मोहल्ला महक जाता जब जानकी जी के घर उनके हाथों के बने लड्डू, मठरी, खीर, मालपुआ, हलवे की खुशबू आती। 

            शंभू दयाल जी को भी बहुत शौक था खाने और खिलाने का

            इतने लोग होने के बावजूद भी उनके घर में जिसको जो चाहिए वो मिलता था

 दूध की जगह दूध और दही की जगह दही। बच्चे बड़े सब शौक  से खाते और खूब मजा मस्ती करते

             फलों की तो जैसे बाढ़ ही आ जाती जब सब इकट्ठा होते, शंभू दयाल जी नित नए मौसमी फल लाते कभी जामुन, फालसे, आलू बुखारा, खरबूज, तरबूज, खीरा, ककड़ी और आम और केले तो गिनकर आते जिससे कोई रह न जाए बिना खाए । एक सदस्य का एक नग (पीस) और कभी दोपहर में चाट पकौड़ी का दौर चलता तो कभी चना धानी का जो शंभु दयाल जी ताजा ही भड़भूजा के यहां से भुनवा कर लाते थे। रात को पत्ते वाली कुल्फी दिलाना तो वो कभी नहीं भूलते थे 

             उनको  देखकर सारे रिश्तेदार, पड़ोसियों को जलन होती कि कितना खुशहाल परिवार है उनका , किसी चीज की भी तो कमी नही थी उनके जीवन में । तीन तीन बेटे बहू थे तो उनको तो अपने बुढ़ापे की भी चिंता नहीं थी उन्हे।    लगता था की उनके जीवन में इतनी खुशियां हैं कि कभी किसी की नजर ना लग जाए।

             शंभू दयाल जी की नौकरी थी तब तक सब कुछ वैसा ही चलता रहा जैसा उन्होंने सोचा था। बेटे बहू खूब आदर सत्कार करते थे। दोनों को अपने घर आने की ज़िद किया करते थे

   पर उनका अपने गाँव में ही मन लगता था इसलिए वो बेटे बहू के पास नहीं जाके उन्हें ही महीने दो महीने में मिलने बुलाते रहते थे

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फैसला – नंदिनी

             रिटायरमेंट के 2 साल बाद तक भी दोनो पति पत्नी अपने पुश्तैनी घर में आराम से रह रहे थे। सुबह,शाम मंदिर जाना, भजन पूजन करना, अपने यारो दोस्तों से मिलकर गप्पे लड़ाना, घर के काम में जानकी जी का हाथ बंटाना, बस यही दिनचर्या थी उनकी।

             जानकी जी भी अभी तक सारा काम अपने हाथों से करती ।

             पर कुछ दिनों से मास्टर जी को ऊंचा सुनाई देने लगा था तो कभी शुगर ऊपर नीचे हो जाती तो  कभी कभार वो लड़खड़ाकर गिर भी जाते। कई बार अचानक बेटों को फोन करके बुलाना पड़ जाता।

             और जानकी जी के शरीर में भी अब पहले जैसा दम नही रहा उमर भी तो 60 साल से ऊपर हो चुकी थी उनकी। हाथ पैरों में बहुत दर्द रहने लगा अचानक। डॉक्टर को दिखाया तो पता लगा उनकी हड्डियां कमजोर हो गई है और इसका कोई इलाज नहीं, दवाइयां चलेगी अब हमेशा के लिए।बाकी घर का ज्यादा काम नहीं करे तो अच्छा है। 

             दोनो पति पत्नी ने सोचा अब अकेले रहने में खतरा है तो क्यों न बेटे बहुओं के पास चलते हैं , वैसे भी हमेशा बुलाते हैं

             थोड़े दिन रह कर आ जायेंगे , मन लगा तो ठीक वरना आ जायेंगे वापस।

             दोनो चले गए एक दिन अपना बोरिया बिस्तर बांध कर बड़े बेटे के पास। बेटे बहु को देखकर लगा नही कि उनको कुछ खास खुशी हुई है उनके आने से। और एक दिन तो अपनी बहू को कहते सुना  “इनकी सेवा कौन करेगा  , हम तो खुद ही अपने शरीर से लाचार हो रहे हैं, कितने दिन और रहेंगे ये लोग यहां”

इतना सुनते ही अगले दिन कुछ बहाना बनाकर वो लोग वापस अपने गांव आ गए।

पर कुछ दिन रहने के बाद जानकी जी की तबियत फिर खराब रहने लगी । अब  न चाहते हुए भी उन्हें अपने बेटों को बुलाना पड़ा बात करने के लिए कि किसके साथ रहेंगे वो।

बात शुरू करने से पहले ही बड़े बेटे ने बोला ऐसा करते हैं पर्ची निकाल लेते हैं सबके नाम की ,जिसका नाम आएगा वो इन्हे अपने साथ ले जायेगा यह सुनते ही जानकी जी तो खून के आंसू पीकर रह गई, कुछ बोलते नही बना उनसे  अब।पर मंझला बेटा इसके पक्ष में नहीं था वो बोला ये उचित नही है हम सब नौकरी वाले हैं तो 4,4महीने  तीनों रख लेंगे। 

शंभू दयाल जी और जानकी जी जिनको अपने बेटों पर इतना गर्व था , उनको समझ नही आ रहा था कि उनकी  परवरिश में आखिर कहां कमी रह गई , क्या ये दिन देखने के लिए दिया भगवान ने ये बुढ़ापा। खैर

                उन्होंने अपने पुश्तैनी मकान और चार दुकानों को बेचकर उसका पैसा अपने पास रख लिया क्युकी उनका अब अपने बेटों से विश्वास उठ चुका था। ये बात उन्होंने जानकी जी के अलावा किसी को नही बताई थी।

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चने वाला – संगीता श्रीवास्तव

                उनकी बेटियां जब भी आती उनका पूरा खर्चा वो ही उठाते थे उनके लेने देने से लेकर खाने पीने तक का। इसके अलावा महीने के 10,000रुपए और अपने  दूध का  जो उन दोनो के काम आता वो बात अलग थी कि वो दूध उनसे ज्यादा उनके बहु बेटों के काम आता। पर एक बार उनकी छोटी बेटी अपने भाई के घर आ गई थी 5 दिनो के लिए तो जैसे ही वो गई उनके जाने के बाद उनका बेटा बोला पिताजी इस बार कोमल आ गई थी तो दूध ज्यादा काम आ गया था, आपको 1000रुपए और देने हैं । ये बात सुनकर तो जैसे उनको लगा ऐसे बेटों के होने से तो अच्छा बेऔलाद होना है कम से कम तसल्ली तो होती है कि बुढ़ापे का कोई सहारा नहीं है। 

                और अपने बेटे बहु के पास रहकर तो ये बात उनके दिलों दिमाग को छलनी कर जाती कि उनके मरने के बाद जानकी जी का क्या होगा।

                कुल मिलाकर उनकी जिंदगी से सारे रंग उड़ चुके थे , जब से उन्होंने अपना गांव छोड़ा था । ये अब रोज की ही बात हो गई थी आए दिन दोनो पति पत्नी किसी न किसी बात पर अपमानित महसूस करने लगे थे।

                

                आज उनकी पोती( उनके मंझले बेटे की बेटी) की शादी थी,। और वो अभी इसी बेटे के पास रह रहे थे लेकिन उन्हें शादी के हाल तक ले जाना भी किसी ने जरूरी नही समझा क्युकी अब शायद वो अपने बच्चों के लिए मां बाप से ज्यादा बोझ बन गए थे।

                दोनो पति पत्नी अपने दुख दर्द अपनी बेटियों से बांटने लगे फोन करके । उनकी बेटियों को बहुत दुख होता पर वो भी ज्यादा कुछ कर नही सकती थी सिवाय इनको सहानुभूति देने के। बेटी को बुलाना भी लगभग बंद ही कर दिया क्युकी उनका मान सम्मान कोई नही करता वहां । भाई भाभी तो नौकरी पर जाते , पिताजी इतने मजबूत नही रहे कि उनकी आवभगत कर सकें।दोनो घुट घुट कर जी रहे थे बेटे बहु के संरक्षण में।

                 बुढ़ापे में बुजुर्गों को खाने से ज्यादा एक ऐसा इंसान चाहिए जो उनको सुने, कुछ अपनी सुनाए, उनकी देखभाल करे, पर इन सब चीजों की बहुत कमी थी उनके जीवन में। 

                 वो कई बार अकेले में सोचते क्या बुढ़ापा ऐसा भी होता है । 

                 एक दिन अचानक जानकी जी को सोते हुए ही साइलेंट अटैक आ गया और वो ऐसी सोई कि फिर उठी नही कभी भी।

                 इसके बाद शंभू दयाल जी बिलकुल टूट गए , उनको लगने लगा अब वो ज्यादा दिन नहीं जीयेंगे और उन्होंने एक कागज पर कुछ लिखा और उसको अपनी पॉकेट  डायरी में रख दिया जो हरपल उनके पास रहती थी। दो दिनों बाद वो बाथरूम में गिर गए और उनके सिर में चोट आने से बहुत खून बह गया और उनका भी देहांत हो गया। जब उनकी पॉकेट डायरी में से वो कागज मिला तो उसको पढ़कर सब चौंक गए, उसमे लिखा था

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जिद्द बेटा पाने की – मंजू तिवारी

                _ मेरे मरने के बाद मेरे अंग पास के हॉस्पिटल में दान कर दिए जाए और मेरी सारी प्रॉपर्टी मैने वृद्ध आश्रम को दान कर दी है। उनके फोन नंबर नीचे लिखे हुए हैं।

आगे लिखा

                 _मुझे लगता है जैसे मेरे बच्चों को मेरी  जरूरत नही उसी तरह मेरे पैसों की भी उन्हे कोई जरूरत नही होगी इसलिए जिनको इसकी जरूरत है वो मैने वहां दे दिए है और मैं अपने बच्चों के उज्जवल बुढ़ापे की कामना करता हूं

                 तुम्हारा अभागा बाप

                 

दोस्तों क्या मां बाप के ही  कर्तव्य होते हैं हमारे प्रति? 

हम बच्चों के कोई कर्तव्य नही उनके प्रति? आज उनका बुढ़ापा है तो कल हमारा भी  बुढ़ापा आएगा, क्या कभी सोचा है? 

नही सोचा तो सोचिए जरूर और ये तो सर्व विदित है जैसा बोयेंगे वैसा ही पायेंगे

मेरी रचना आपको कैसी लगी  कॉमेंट करके ज़रूर बताएं। कहानी को कहानी की तरह पढ़ें 

अन्यथा ना लें

धन्यवाद 

निशा जैन

2 thoughts on “क्या बुढ़ापा ऐसा भी होता है – निशा जैन: Moral Stories in Hindi”

  1. सभी ये सवाल करते हैं कि क्या माँ बाप के ही कर्तव्य होते हैं? मेरा ये सवाल है कि क्या बेटे-बहू और वो भी सिर्फ एक ( कहीं बड़े तो कहीं छोटे) के ही कर्तव्य होते हैं ?

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