ठाकुर महेंद्र प्रताप शहर की जानी मानी हस्ती. आयरन ओर का व्यापार से खूब पैसा कमाया बड़बिल (उड़ीसा का एक शहर) में! उसी पैसे से कई तरह के बिजनेस किया. बेटा ठाकुर आशुतोष प्रताप चांदी का चम्मच ले कर पैदा हुआ. आलीशान बंगला! दो जर्मन शेफर्ड उनकी देखभाल के लिए एक नौकर. एक तरफ फलदार पेड़ों की बागवानी.
दूसरी तरफ गुलाब के अनगिनत वेराइटी. सफेद पीला गुलाबी बैगनी लिली जब एक साथ खिलते बारिश होने पर देखने वाले मंत्रमुघ हो जाते. एक छोटा सा पौंड और उसमे मछलियां. कमल के फूल. उफ्फ.. बाग के बीचों बीच झूला!!
घर के अंदर की सजावट नयनाभिराम!
टिक और काले सीसम के फर्नीचर से सुसज्जित स्वागत कक्ष !बेहद खूबसूरत कीमती काउच . कीमती पेंटिंग..
इन सारी सजावटी वस्तुओं की तरह पत्नी का भी स्थान सजावटी चलती फिरती कीमती गहनों और साड़ी से लदी गुड़िया से ज्यादा नहीं था..
बेहद खूबसूरत मध्यमवर्गीय परिवार की लड़की शालू ..
अपनी सहेली की दीदी की शादी में गई थी. सहेली ऋतु हाथ पकड़ खींचते हुए उसे भी स्टेज पर ले गई गुलाबी लहँगा एक हाथ से पकड़े एक हाथ से दुपट्टा संभालते शरमाते सकुचाते स्टेज पर चढ़ी तो कितनी माएं जिनके बेटे कुंवारे थे उनकी नजरें शालू पर गड़ गई..
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आशुतोष प्रताप लड़के के दोस्त थे. शालू उन्हे पहली नजर में हीं भा गई.
पूरी शादी आशुतोष प्रताप की नजरें शालू को तलाशती रही..
शालू के पिता बिस्कोमान में नौकरी करते थे. मां ब्यूटी पार्लर चलाती थी..
शालू का एक छोटा भाई था जो स्कूल में पढ़ रहा था.. शालू ग्रेजुएशन कर प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रही थी..
नए फैशन के अनुसार कपड़े सैंडिल बैग ये छोटे छोटे शौक थे शालू के.. अच्छी किताबे पढ़ने का शौक दिवानगी की हद तक था.. छोटा सा सुखी संतुष्ट परिवार था शालू का..
घर के हर छोटी बड़ी चीजों की खरीदारी हो या पर्व त्योहार मनाने की बात शालू की राय सर्वोपरि मानी जाती.. शालू अगर रूठ जाती तो पिता जब तक मनाते नही चैन नहीं आता.. बेटियां पिता की लाडली होती हीं हैं..
एक सप्ताह बीतते ठाकुर आशुतोष प्रताप के पिता पूरे लाव लश्कर के साथ शालू के दरवाजे पर पहुंचे.. पूरा मुहल्ला ईर्ष्या से शालू के घर की तरफ देख रहा था..
शालू के पिता शालू के भाग्य पर बहुत खुश हो रहे थे.. ऐसा रिश्ता कभी सोचा नहीं था.. अगले दिन एक बड़ी गाड़ी शालू के माता पिता को लेने उनके दरवाजे पर रुकी.. शालू का भावी ससुराल देख और लड़के को देख शालू के माता पिता भगवान को बार बार धन्यवाद दे रहे थे.. बिना दान दहेज के सिर्फ शालू की खूबसूरती पर !!शालू आशुतोष प्रताप की ब्याहता बन गई.. शादी के चर्चे बहुत समय तक रहे. ऐसी शाही शादी! उफ्फ.. बिना दान दहेज के..
शालू अपने सतरंगी सपनो के साथ अपने साजन के घर आ गई.. ऐसा घर और ऐसी साज सज्जा सिर्फ फिल्मों में देखा था आजतक..
घर में सास ससुर और पति बस तीन लोग थे बाकी नौकर दाई का फौज था..
दो दिन बीतते बीतते शालू भांप गई कि पुरुष प्रधान परिवार है ये.. औरत सिर्फ सजावटी वस्तु भर है.. सास की भी यही स्थिति थी.. आगे पढ़ने की बात बस बात तक रह गई..
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आशुतोष प्रताप ने उसकी सीमाएं तय कर दी थी.. खूबसूरत गार्डन था पर उसमे पल भर बैठने की इजाज़त नहीं थी.. सिनेमा हॉल में मूवी देखने की इजाजत नहीं थी घर में बड़ा सा टीवी लगा था.. कई दुकानों से ढूंढ ढूंढ कर अपने पसंद के कपड़े ड्रेस सैंडिल खरीदने वाली शालू अब घर में हीं साड़ियों के बहुत सारे रंग डिजाइन दुकानदार स्टाफ से भेज देता.. सिर्फ साड़ी पहनने की इजाज़त थी.. वो भी महंगी और भारी भरकम. स्टेट्स सिंबल था.
जेवर का दुकानदार नए डिजाइन के जेवर पहुंचा देता.. शालू तरह तरह के आर्टिफिशियल जेवर खरीदती थी कपड़े से मैचिंग शादी से पहले.. उसका ये शौक था.. पर अब ये गहने उसे बिलकुल लुभाते नही थे.. सोने के पिंजरे में परकटे पक्षी सा शालू रह रही थी.. शालू के घर ससुराल से हमेशा कीमती तोहफा पहुंचता रहता..
शालू को पहाड़ों झरनों और नदियों वाले स्थान पर जाने का बहुत शौक था.. वो शादी के बाद सोचती थी पति के साथ जरूर जाऊंगी..
पूरे दिन भर सर पर पल्लू रखे भारी साड़ी और जेवर से लदे शालू का दम घुटता.. पति को सिर्फ उसके शरीर की जरूरत थी. उसके सुकोमल मन की भावनाओं को रौंद कर उसके शरीर से सिर्फ मतलब रखता.. शालू सोचती मेरे पास बैठता मेरा पति बातें करता कभी मेरी पसंद नापसंद पूछता.. प्यार के दो शब्द बोलता..
अपने बराबर के हैसियत वाले के यहां किसी शादी में शालू को सब साथ ले जाते भारी साड़ी जेवर उफ्फ कितनी परेशान हो जाती शालू. साथ में तमाम हिदायते! बड़ी सोसायटी में कैसे बोलना है कितना बोलना है कैसे व्यवहार करना है..
शालू बिल्कुल पत्थर होती जा रही थी..
इसी बीच शालू मां बनने वाली थी ओ. एक रात ससुर सोए तो हमेशा के लिए सोए हीं रह गए! ठाकुर आशुतोष।प्रताप बाप बनने की खुशी और पिता की मृत्यु!! खुशी और मातम के बीच एक बेटे के बाप बन गए.. अच्छा हुआ बेटा हीं हुआ वरना शालू को कितनी जली कटी ठाकुर साहब सुनाते.. अपने बेटे को अपना व्यापार भविष्य में संभालने के सपने देखने लगे.. बेटा बेहद संवेदनशील था मां की तरह.. शालू भी बेटे को पाकर अपने गम घुटन
भरी जिंदगी से कुछ पल के लिए निकल जाती.. बेटा बिना बोले मां की व्यथा समझने लगा था. पिता जितना करीब जाने की कोशिश करते उतना कटता.. बेटा बाप की इच्छा के विरुद्ध नेशनल लॉ कॉलेज में दाखिला ले लिया!! शालू को बेटे के रूप में एक आशा की किरण नजर आती.. बेटा भी मां को दिलासा देता कुछ दिन और मां..
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बेटे ने मां को बताया कि सौम्या मेरे साथ पढ़ती है और हमदोनो प्यार करते हैं और शादी भी करना चाहते हैं.. जॉब लग जाने के बाद..
शालू का बेटा ज्यूडिशियरी सर्विस क्वालीफाई कर लिया.. सौम्या भी एक अच्छे फार्म में नौकरी करने लगी लीगल एडवाइजर के पद पर..
बेटा मां को लेने आया कोर्ट मैरिज में गवाही देने के लिए.. ठाकुर साहब के लिए इससे बड़ा आघात और क्या हो सकता था. पत्नी पर पूर्ण विश्वास था कि मेरी इच्छा के विरुद्ध एक कदम नहीं बढ़ाएगी.. शालू को पति और पुत्र में से एक को चुनना था.. शालू ने पुत्र का साथ दिया. ठाकुर साहब ने कहा दरवाजे से बाहर पैर बढ़ाया तो फिर कभी वापस नहीं आ पाओगी.. तुम्हे ये मंगल सूत्र और सिंदूर का पति के रहते परित्याग करना होगा..
शालू में न जाने कहां से इतनी हिम्मत और आत्मविश्वास आ गया था उसने मंगलसूत्र उतार कर पति के हाथों में दे दिया.. सिंदूर पोछने में हाथ कांप उठे पर बेटे ने अपने हाथों से शालू को जोर से थम लिया.…चौखट से बाहर निकल शालू आज खुल के सांस ली.. शालू आज इस अभिसप्त चहारदीवारी की घुटन गुलामी से वर्षों बाद मुक्त हुई..
सिंदूर और मंगलसूत्र की बहुत कीमत अदा की.. # हमसफर #हमकदम हमराह बनना तो दूर की बात थी अच्छा पति भी जो इंसान नही बन पाया उसके नाम का क्या सिंदूर और मंगलसूत्र…अब नही.. बेटा सही मायनों में अपना #हमसफर #चुन लिया है मुझे उसका पूरा साथ देना है ..
मन हीं मन ये प्रतिज्ञा कर लिया है मैने…कितना अंतर है दोनो बाप बेटे में पुरुष होते हुए भी बेटे ने मां की अनकही व्यथा आंखों से पढ़ ली.. और पति सप्तशदी के वचनों को यज्ञ वेदी में होम कर दिया….
✍️🙏Veena singh