गुनाह- डॉक्टर संगीता अग्रवाल : Moral Stories in Hindi

सारे मंसूरपुर गांव में मास्टर साहब दीनानाथ जी की उदारता, विद्वता के चर्चे थे।वो सिर्फ एक अच्छे टीचर ही

नहीं ,बहुत अच्छे इंसान भी थे।जो भी गरीब, लाचार आता द्वारे पर उसे शिक्षा,भोजन,वस्त्र सब से नवाजते,

मजाल है कोई खाली हाथ चला जाए।उनकी संतान रघु,सीता और विनायक तीनों ही बहुत संस्कारी

थे,हालांकि अब उनकी पत्नी नहीं थी,किसी बीमारी में चल बसी थीं वो लेकिन बेटी सीता ने दोनो भाइयों और

घर को सुचारू रूप से संभाल हुआ था।

प्रारंभिक शिक्षा के बाद छोटे बेटे विनायक ने जिद की कि वो शहर पढ़ने जायेगा।भले ही दीनानाथ जी इसके

लिए मानसिक रूप से तैयार नहीं थे पर सबके जोर देने पर वो राजी हो गए।

दिनोदिन सफलता की सीढ़ी चढ़ता विनायक जल्दी ही बहुत सफल शिक्षक बन गया।दीनानाथ जी का सीना

गर्व से फूल जाता जब उसकी ख्याति उनके कान तक आती।वो एक प्रतिष्ठित स्कूल में गणित का अध्यापक

तो था ही ,साथ ही उसका ट्यूशन इंस्टीट्यूट “एक्सीलेंट कोचिंग”ने पूरे शहर में धूम मचा रखी थी।

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दीनानाथ जब भी बेटे से मिलते,उसे अपने पुराने आदर्शों पर कायम रहने की सलाह देते।वहीं पड़ोस में रहने

वाले रहीम काका का बेटा अकरम भी शहर में आके ट्यूशन करने लगा,जैसे विनायक ने इतनी उन्नति की

है,कुछ तो मैं भी कर ही लूंगा।फिर दीनानाथ जी का आशीर्वाद और सहयोग तो था ही उस पर।

विनायक के कोचिंग इंस्टीट्यूट में शिक्षक बढ़ने लगे,वो कंप्टीटिव एग्जाम्स की तैयारी भी कराने लगा

था।बच्चों की बढ़ती भीड़ से वो जल्दी ही बहुत अमीर होने लगा था।जितना अधिक पैसा उसके पास आता,वो

उतने ही छोटे दिल का मालिक बनने लगा।

किसी पर फीस जमा करने के लिए नहीं होती तो वो बेदर्दी से उसे बाहर कर देता,कोई रियायत न देता, जबकि

उसके पिता ऐसे बिलकुल नहीं थे।जो कुछ दो चार लोग अकरम से ट्यूशन पढ़ते,उन्हें भी छल से अपनी तरफ

खींच लेता।जब अकरम को इसका आभास हुआ,उसने दीनानाथ जी के सामने अपनी समस्या रखी और

विनायक को समझाने के लिए कहा उनसे।

दीनानाथ जी ने खुद विनायक से जाकर कहा,तू ऐसे कैसे अपने भाई जैसे पड़ोसी का गला काट सकता है

जबकी मेरे ये संस्कार नहीं। इतना कमाने के बाद भी तेरी हपस बढ़ती ही जा रही है।

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पिताजी!घोड़ा घास से यारी करेगा तो खायेगा क्या?जब लोगों को हमारे यहां अच्छी पढ़ाई मिलती है तभी तो

वो आते हैं,अकरम को अपना स्तर बढ़ाना चाहिए न की मुझसे चिढ़ना चाहिए।

वो चिढ़ नहीं रहा,सिर्फ प्रार्थना कर रहा है,अगर तुम घी में तर खा रहे हो तो रूखी सूखी उसे भी खाने दो,उसकी

थाली पर लात तो मत मारो।एकाध ट्यूशन वो भी कर ले तो तुम्हारा क्या बिगड़ेगा?

विनायक ने अपने पिता की भी न सुनी और ये कहकर कि बिजनेस में ये सब चलता है,बात रफा दफा कर दी।

गांव से एक गरीब आदमी जो दीनानाथ का दोस्त भी था,अपने मेधावी बेटे रंजन को विनायक के ट्यूशन

इंस्टीट्यूट से पढ़वाना चाहता था,उसे मेडिकल में एडमिशन चाहिए था लेकिन विनायक के यहां की भारी

फीस सुनकर उसका मुंह सूख गया।

दीनानाथ ने फिर एक असफल कोशिश की,विनायक को मनाने की पर उसके कान पर जूं न रेंगी।

बेटा!रंजन एक साधारण सपेरे का बेटा है,कल को तुम्हारी कृपा से डॉक्टर बन सकता है,ऐसा न करो प्लीज!

पर विनायक तैयार न हुआ,वो अपने बढ़ते परिवार,पत्नी,बच्चे का हवाला देने लगा और दीनानाथ गुस्से में

उसका घर छोड़ गांव आ गए।

समय बीतता चला गया।विनायक बहुत बड़ा आदमी बन चुका था,उसका इकलौता बेटा रक्षित एक

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मनमौजी,फक्कड़ तबियत का लड़का था,पिता की अकूत संपत्ति को ठिकाने लगाने वाला भी तो कोई होना

चाहिए,शायद इसीलिए वो खूब घूमता फिरता और यार दोस्तों से घिरा रहता।

एक बार जंगल में शिकार खेलने गया था कुछ दोस्तों के साथ और उसे भयंकर जहरीले सांप ने काट लिया।

विनायक को खबर हुई तो उसे सांप सूंघ गया,उसने डॉक्टरों की फौज लगा दी लेकिन सब लाचार थे,जहर

ज्यादा असर कर चुका था। उसी शहर में डॉक्टर रंजन भी था जिसे विनायक ने कभी पढ़ाने से मना किया

था।जब उसने ये बात देखी,झट अपने पिता को बुला लिया जो बड़े बड़े सांप के जहर उतारने में माहिर थे।

पहले पहल तो उसके पिता खूब हंसे,बहुत गले काटता था सब लोगों के उम्र भर,आज खुद उसकी बारी आई

है,भगवान आज उसे ठग लेगा,अपना बेटा जायेगा तो पता चलेगा किसी की जिंदगी खराब करना क्या होता

है,पर उसका अंतर्मन उसे धिक्कारने लगा,बेचारे दीनानाथ जी तो कितने भले इंसान हैं,आखिर है तो वो उनका

पोता ही,उसे बचाने चलता हूं।

बूढ़ा रात को ही चलकर विनायक की कोठी पहुंचा,वहां मातम का माहौल था,उसने मुंह छुपा रखा था,विनायक

से अनुमति ली और उसके बेटे रक्षित का उपचार शुरू किया। सुबह होने वाली थी और रक्षित ने आंखें खोल

दी,बूढ़ा चुपचाप खिसकने लगा।

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विनायक ने उसका रास्ता रोकते अश्रपूरित निगाहों से कहा,”बाबा!अपना इनाम तो लेते जाओ।”

“बस एक वचन दो मुझे,अपनी उन्नति के नशे में किसी जरूरतमंद का कभी गला नहीं काटोगे तुम,भगवान का

दिया सब कुछ है तुम पर अगर ये बात और सीख लो तो सोने पर सुहागा हो जाएगा।”

“आप हैं कौन?” वो आश्चर्य से बोला।

लेकिन वो बूढ़ा तेज कदमों से बाहर निकल गया ये कहता हुआ,”तुम्हारे पिता के सद्कर्म ने तुम्हारे बेटे की जान

बचा ली है,बस ये समझ लो।”

डॉक्टर संगीता अग्रवाल

वैशाली,गाजियाबाद

#गला काटना

2 thoughts on “गुनाह- डॉक्टर संगीता अग्रवाल : Moral Stories in Hindi”

  1. Aap ne tho Munshi Premchand ki kahani ko he thode twist ke sath daal diya…Plz avoid doing that….U write well…Dont copy!!

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