लो जी संभालो-शुभ्रा बैनर्जी Moral stories in hindi

स्वाति जी का छोटा सा परिवार था।छोटे से कस्बे में सबसे बड़ी दुकान थी,उनके पति गोविंद जी की।स्वाति जी अपने बेटे की शादी को लेकर बड़ी चिंतित रहतीं थीं।सिठानी सी सजी-धजी स्वाति जी गजब की खूबसूरत लगतीं थीं अब भी।अब बहू भी उन्हीं की टक्कर की चाहिए थी,जो बीस हो उनसे।गोविंद जी ने कारोबार शुरू करने में बहुत मेहनत की थी।पिछले तीन सालों से ढूंढ़ते-ढूंढ़ते अब जाकर सही लड़की मिली थी उन्हें। पढ़ी-लिखी और सुंदर पूजा उन्हें और उनके पति को एक ही नज़र में पसंद आई थीं।अब बेटे को मनाना बचा था।

बेटा (शिखर)भी फोटो देखते ही सहमत हो गया था,देखने जाने को।एक -डेढ़ घंटे का रास्ता था।पहुंचते ही स्वाति जी ने पति से कहा”देखो जी,अब बाहर वालों के सामने टोका-टाकी मत करना।तुम लड़की के पापा से बात करना,मुझे पूजा और उसकी मां से बहुत कुछ पूछना है।इकलौता बेटा है, जांच-परख कर ही ब्याहेंगे।”

गोविंद जी को पता था,अपनी पत्नी की आदत। मोल-भाव करने में माहिर थी।पैदाइशी साहूकार की तरह ग्राहकों को सामान दिखातीं और भाव बतातीं थीं।पति के कंधे से कंधा मिलाकर उन्होंने कारोबार में अपना सहयोग दिया था।

गोविंद जी पूजा के पापा,मामा और बड़े भाइयों से शादी की औपचारिकता के बारे में बात करने लगे,बैठक में।स्वाति जी को पूजा के कमरे में ले गईं उसकी मां।इकलौते बेटे के लिए मनचाही बहू पाकर मन ही मन भगवान को धन्यवाद कह रहीं थीं स्वाति जी।डर भी सता रहा था कि कहीं आते ही सर में चढ़ गई तो रिश्तेदारी में जगहंसाई हो जाएगी।बड़ी जिज्जी की दोनों बहुओं के आने के बाद से ,घर की कायापलट होते देखा था उन्होंने।बड़ी बहू को खोज कर लाईं थीं जिज्जी खुद ही।कम पढ़ी-लिखी चाहतीं थीं,

ताकि नौकरी करने की जिद ना करे।घर -परिवार संभाले। मध्यमवर्गीय परिवार से आई बड़ी बहू ने उचिच्छन मचा कर रख दिया था।छोटा बेटा अपनी पसंद की लड़की ब्याह लाया।सजातीय होने के साथ-साथ, जान-पहचान की भी थी छोटी बहू।ब्याह के बाद ऐसी पट्टी पढ़ाई बबलू को कि उसी का होकर रह गया।

स्वाति जी फूंक-फूंककर बहू ढूंढ़ रही थीं।पूजा की सादगी देखकर मुग्ध हुईं स्वाति जी ने उससे कहा”देखो पूजा,मैं पुराने जमाने की सास जैसी नहीं हूं।आजकल के तौर-तरीके समझती हूं। आधुनिक पहनावा -ओढ़ावा भी पसंद है मुझे।बस तुम परिवार के बड़ों का आदर करना।अपनी मर्यादा में रहना।ऐसी कोई पोशाक ना पहनना कि अगर -बगल से कोई आ जाए तो भद्दा लगे।मैं तो अभी भी साड़ी ही पहनतीं हूं।गुड्डू के पापा कहते तो हैं

कि सूट पहन लो,पर आजू-बाजू में बड़े ससुर और चाचा ससुर का घर है।दुकान में भी बैठना पड़ता है,तो नहीं पहनती।तुम साल भर बाद पहन सकती हो सूट।खाना सादा ही बनता है घर पर। दाल-चावल, रोटी-सब्जी,सलाद पापड़।कभी कभार बाहर से ले आता है गुड्डू।मैं तो कैसा भी खा लेतीं हूं,गुड्डू के पापा तेल -मसाले से परहेज़ करतें हैं।बड़े हैं ना ,तो हम सभी उन्हीं के मन का करतें हैं।”

अपनी होने वाली सास की आधुनिक सोच और समझदारी देखकर पूजा खुश‌ हो गई।पूजा की मां भी भगवान का शुक्रिया अदा कर रही थी।गुड्डू ने भी अकेले में पूजा से बात कर अपनी सहमति दे दी सहर्ष।

बैठक में आकर सभी ने शादी,सगाई और तिलक की औपचारिकता के बारे में विचार-विमर्श किया।बहू के हांथ में पैसे देकर स्वाति जी और गोविंद जी ने शादी पर मुहर लगा दी।लौटते समय बेटा और पापा उस घर के लोगों की व्यवहार कुशलता की तारीफ कर रहे थे।स्वाति जी ने गुड्डू से कहा”देख गुड्डू,अभी से ज्यादा पचर-पचर न बताने लगना फोन में।आजकल की जे लड़कियां बहुत होसियार होतीं हैं।ससुराल के बारे में सब पहले से जान कर तैयार होकर आतीं हैं।अपने पापा का डर बनाए रखना।

उनकी हर बात पर हामी ना भरते रहना।कुछ ना सूझे ,तो कह देना पापा से बात करें।”मम्मी की बात समझ रहा था गुड्डू,पर क्या करें?पूजा को देखकर ही दिल दे बैठा था।अब उसकी मर्जी अपनी मर्जी होगी।अपने माता-पिता का घर छोड़कर आतीं हैं बिचारी लड़कियां। सास-ससुर का मन जीतने की जुगत में ही ज़िंदगी निकल जाती है।सहमी-सहमी दिख रही थी ,पूजा जी भी।घर पहुंचते ही सबसे पहले फोन लगाकर गुड्डू ने सकुशल पहुंच जाने का संदेश दे दिया।रोज़ रात में थोड़ी देर बात कर लेता था।उनके घर की समस्याएं भी पता चल गईं थीं उसे।पहली  लड़की थी पूजा ,जो उसे इतनी पसंद आई।अब उससे एक भावनात्मक लगाव होना स्वाभाविक था।

शॉपिंग के लिए पूजा को साथ ले जाना चाहकर भी नहीं ले जा पाया था गुड्डू।पूरा परिवार गया था साथ में।स्वाति जी ने बेटे का मन पढ़कर कहा”बोल देना पूजा से,उसकी पसंद के कपड़े ही खरीदेंगें हम।तू वीडियो कॉल करके दिखाते रहना।”अपनी मां की समझदारी पर गुड्डू चकित हो गया।

सगाई की तारीख पक्की हो गई।सगाई में पूजा का बहुत मन था गाउन पहनने का।फोन लगाया स्वाति जी को उसने”मम्मी,सगाई में गाउन पहन सकती हूं क्या मैं?पूजा में साड़ी पहनूंगी,फिर रिंग सेरेमनी में गाउन पहन लूं क्या?”स्वाति जी का बेटा पास ही खड़ा था।उसके सामने मना भी नहीं कर पाईं वे।खुश होकर हां भी कह दिया।पूजा ने अपनी पसंद की गाउन की फोटो भी भेज दी।

स्वाति जी अब सोच में पड़ गईं कि पूरा परिवार रहेगा।उनके परिवार में किसी भी बहू ने गाउन नहीं पहना था अपनी सगाई में।क्या करें अब?इसी बीच गोविंद जी ने भी अपनी पत्नी से पूछा”बहू के घर फोन कर लिया है ना तुमने?सब तैयारी हो गई उनकी कि नहीं?हमारी तरफ से लगभग सौ लोग तो होंगें ही।पूजा बिटिया बहुत शालीन है वैसे तो,पर तुम भी ज़रा समझा देना।हमारे समाज में अब भी सर पर पल्लू रखकर ही रहतें हैं सगाई के अनुष्ठान में।”

अब स्वाति जी को काटो तो खून नहीं।पति को बता भी नहीं पाईं थीं अब तक कि,बहू पूजा के बाद गाउन पहनने वाली है।गाउन के साथ दुपट्टा तो रहेगा नहीं कि सर पर डाले।अब पूजा से भी कुछ नहीं कह सकती।शौक के बारे में तो बताकर ही खरीदने से पहले पूछा था उसने।गुड्डू के सामने भी बुरी सास बनना नहीं चाह रही थी।गुड्डू से कहकर पूजा को ही फोन लगवाया।”हैलो,जी मम्मी!प्रणाम।”पूजा की आवाज सुनकर स्वाति जी ने पैंतरा

बदला “पूजा बेटा,और कैसी चल रही है तैयारी? ब्यूटीशियन को बुलवा लेना पहले से।एक हफ्ता बस बचा है।ऐसे ही फोन लगवाई थी मैं।मुझे मालूम है तुम्हें कुछ समझाने की जरूरत नहीं।यहां से सौ -पचास लोग आएंगे।पचास तो घरै के रिश्तेदार हो जाएंगे।जब टीका करें तो ,सबके पांव पड़ लियो,अच्छा।तुम्हारे पापा जी बहुत गुस्सैल हैं बेटा ज़रा।बड़ों का सम्मान करते हैं वे खुद और हम सभी से आशा भी करतें हैं।”

“जी मम्मी जी,आप निश्चिंत रहिए।मैं सबके सम्मान का पूरा-पूरा ख्याल रखूंगीं।”पूजा ने आत्मविश्वास से कहकर फोन रखा।स्वाति जी चाहकर भी अब तक कह नहीं पाईं कि गाउन के साथ एक दुपट्टा ले लेना।सगाई के दिन पूरी बस भर कर लोग गए थे, रिसोर्ट।पूजा के पापा और बड़े भाइयों ने अच्छा इंतज़ाम किया था।पहले गुड्डू का तिलक हुआ।पूजा को टीका के लिए जब बुलाया गया ,तो स्वाति जी गदगद हो गईं बहू को देख।जामुनी रंग की

साड़ी में पूजा का सौंदर्य किसी अप्सरा से कम नहीं लग रहा था।टीका होते-होते रात के नौ बज गए थे।एक घंटे बाद ही अंगूठी पहनाने की प्रथ थी।अब स्वाति जी की घबराहट बढ़ने लगी।अब तो अंगूठी पहनाते समय पूजा गाउन ही पहनेगी।पति से भी कबका झूठ  ही बोल रहीं‌ थी।

जैसे ही स्टेज पर फोटोग्राफर आया ,गुड्डू नई शेरवानी में आकर खड़ा हो गया। राजकुमार से कम नहीं लग रहा था आशीष।गोविंद जी ने पूजा के भाइयों से उसे  लाने को कहा।पूजा को उसके घर वाले बड़े प्यार से लेकर आ रहे थे।स्वाति जी की बुआ सास उत्सुकता वश पीछे मुड़ -मुड़ कर देख रहीं थीं।गोविंद जी के सामने आकर स्वाति जी ने आत्मसमर्पण करते हुए कहा”देखो जी,पूजा अब गाउन पहनेगी।दुपट्टा नहीं होता उसमें।तुम संभाल लेना,अपनी बहनों और भाभियों को।”गोविंद जी ने अवाक होकर पूछा”पर तुमने तो कहा था

कि दुपट्टा रहेगा।गाउन के बारे में तो बताया ही नहीं मुझे।हमारे परिवार में आज तक किसी बहू ने कहां पहना है गाउन?अरे फोटो ही खिंचवाना था तो,अंगूठी की रस्म के बाद गाउन पहनकर खिंचवा लेते।अब अपनी बड़ी जिज्जी और दद्दा के सामने क्या कहूंगा मैं?तुम्हीं ने रायता फैलाया है,तुम्हीं संभालो।मैं तो चला।”गोविंद जी खाने की जगह चल दिए।अब स्वाति जी की हालत ऐसी थी कि मानो दिन में तारे दिखाई दे दिएं हों।वाकई में,जान बूझकर ऐसी बात छिपानी नहीं थीं पति से।

शुभ्रा बैनर्जी

#दिन में तारे दिखाई देना

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