दास्तान इश्क़ की (भाग -9)- अनु माथुर : Moral stories in hindi

अब तक आपने पढ़ा –

राधिका पूजा के लिए आदित्य के घर आती है…. वहाँ वो वीर प्रताप जी रुपाली और राघव से मिलती है…

अब आगे….

राघव आदित्य को आ कर बताता है कि राधिका चली गयी…. आदित्य  कुर्सी पर सिर टिकाए बस हाँ बोलता है….

क्या हुआ….???

कुछ नही ….

आज घनश्याम दास जी से मिलना है याद है ना

हाँ…..मैं आता हूँ रेडी हो कर  कहते हुए आदित्य उठा और रेडी होने चला गया

बाहर वीर प्रताप जी और रुपाली बैठे हुए बातें कर रहे थे

रुपाली ने वीर प्रताप जी को बताया कि राधिका अभी तैयार नही है इस शादी के लिए

“हाँ कैसे होगी आदित्य ने सही नही किया.. थोड़ा समय देना होगा तब शायद सब ठीक हो जाए “

हाँ आप सही कह रहे है …. लेकिन राधिका के आने से घर में रौनक हो गयी थी “

“अब हमें भी चलना चाहिए ” वीर प्रताप जी ने कहा

तभी आदित्य और राघव भी आ गए..

आप दोनों कहीं जा रहे हैं तो हमें भी रास्ते में छोड़ दें

जी … आदित्य ने कहा और सब बाहर आ कर गाड़ी में बैठ कर चले गए

उधर रास्ते में भुवन की गाड़ी के आगे जो गाड़ी थी आधे रास्ते पर पहुँची ही थी कि उसकी गाड़ी अचानक रुक गयी ,…पीछे वाली भी सारी गाडियाँ रुक गयी… भुवन ने आगे वाली गाड़ी के

ड्राइवर को फोन किया

“क्या हुआ विजय गाड़ी क्यों रोक दी” ?

“सर पत्थर का ढ़ेर है ऊँचा सा पूरे रास्ते पर..

“अच्छा तो रास्ता साफ करो लेकिन देख कर

जी सर कह कर विजय अपनी गाड़ी में बैठे हुए आदमी को लेकर उतर गया

तभी गाड़ियों के चारों तरफ धुआँ फैलने लगा… भुवन ने देखा तो उसे खतरे का अंदेशा हुआ जब तक वो कुछ समझता और करता धुआँ बहुत फैल चुका था…

ये क्या हो रहा देवेंद्र जी ने पूछा ?

सर आप बैठे रहे मैं देखता हूँ  भुवन ने अपने नाक पर रुमाल रखा गाड़ी का दरवाज़ा खोला.,….

जैसे ही भुवन ने दरवाज़ा खोला दो तीन लोग मास्क लगाए आए उन्होंने भुवन को एक तरफ धक्का दिया……भुवन कुछ करता इससे पहले एक आदमी ने उसके दोनो हाथों को पीछे किया और बांध दिया…. गाड़ी का दरवाज़ा खुलने से सारा धुआँ गाड़ी के अंदर आ गया राधिका ने देखा तो   दुपट्टे से अपनी नाक को ढका… और ड्राइवर को दरवाज़ा बन्द करने को बोला

ड्राइवर ने हाथ बढ़ा कर दरवाज़ा बंद करने कि कोशिश की तो एक और आदमी ने उसके दूसरी तरफ का दरवाज़ा खोला और 

उसे बाहर निकाल कर  खुद ड्रिविंग सीट पर बैठ गया….. इस वक़्त सब बेबस थे…. देवेंद्र जी और शीतल की आँखें हल्के- हल्के बंद हो रही थी कुछ ऐसा ही हाल राधिका का भी था . . .

ड्राइविंग सीट पर बैठे हुए आदमी ने गाड़ी को पीछे किया और वहाँ से निकाल कर आगे ले गया……. राधिका ने अपनी

अधखुली आँखों से देखा तो चारों तरफ धुआँ दिखाई दे रहा था…… उसने अपना मोबाइल खोला वो कोई नंबर डायल करती  लेकिन तब तक वो बेहोश हो गयी थी और उसका मोबाइल उसके हाथ से गिर गया

सारे लोग जो भी गाड़ी में थे उनकी मदद करने उतरे लेकिन एक एक करके  वहीं बेहोश हो गए…. लगभग एक घंटे बाद वो गाड़ी एक घर के सामने आ कर रुकी…. उन्होंने राधिका, देवेंद्र जी और शीतल को गाड़ी से बहार निकाला ……. और एक कमरे में कुर्सी पर ले जाकर रस्सी से बाँध दिया

उस आदमी ने किसी को फोन लगाया….

उधर से एक ही रिंग में  फोन उठा लिया….

सर काम हो गया वो तीनों मेरे कब्ज़े में है

शाबाश शेरा…. तुमसे यही उमीद थी हम पहुँच रहे है थोड़ी देर

जी सर …

रोड़ पर बेहोश हुए आदित्य के गार्ड्स को धीरे – धीरे होश आ रहा था…… भुवन को जब हल्का सा होश आया तो उसके सिर में बहुत तेज़ दर्द हुआ वो अपना सिर पकड़ते हुए लड़खड़ते हुए उठा…

उसने अपनी पॉकेट से फोन निकाला और आदित्य को फोन लगाया,.. आदित्य उस वक़्त घनश्याम दास जी के साथ मीटिंग में व्यस्त था…उसका फोन वाइब्रेट कर रहा था  उसने जब  देखा कि भुवन का फोन है तो…. मीटिंग रोक कर बोला  हम अभी आते है

वो मीटिंग रूम से बाहर चला गया

हाँ बोलो भुवन

भुवन ने लड़खड़ाती हुयी आवाज़ में कहा – सर वो ठाकुराइन, देवेंद्र जी और शीतल जी को ले गए

क्या कहा… ले गए कौन ले गया ??? तुम सब क्या कर रहे थे… आदित्य ने चिल्लाते हुए कहा

भुवन ने कहा सर इतना धुआँ था कि कुछ दिख नही रहा था

आदित्य के चिल्लाने की आवाज़ सुनकर राघव भी बाहर आ गया

उसने इशारे से पूछा क्या हुआ?

तुम हो कहाँ ?

सर रायपुर के आधे रास्ते पर है

तुम वहीं रुको हम आते है

चलो राघव..

राघव ने मीटिंग को वहीं ख़तम करने को बोला

और आदित्य के साथ गाड़ी में बैठ गया आदित्य जितनी तेज़ गाड़ी चला सकता था चला रहा था राघव ने  गार्ड्स को फोन करके आने को कहा

एक घंटे बाद सब उसी जगह पर थे जहाँ से राधिका को वो लोग ले गए थे

आदित्य और राघव गाड़ी से उतरे….. भुवन दौड़ कर गाड़ी के पास आया और बोला – हमें माफ़ कर दीजिए सर ऐसा हो जायेगा हमें पता नहीं था

आदित्य बहुत गुस्से में था

राघव ने कहा – क्या हुआ था?

सर वो रास्ते पर किसी ने पत्थर डाल दिए विजय ने देखा गाड़ी खोलकर बस उसी वक़्त इतना धुआँ हो गया कुछ दिखायी नही दे रहा था फिर हमें कुछ याद नहीं

मैं उठा तो आपको फोन लगाया सर हमें माफ कर दीजिए राघव ने भुवन के कंधे पर हाथ रखा

एक पुराने से घर के सामने दो तीन गाडियाँ आ कर रुकी जहाँ राधिका को रखा था…. राधिका, देवेंद्र जी और शीतल को होश आ गया था….कमरे में हल्की सी रोशनी थी  राधिका ने देखा उनके हाथ पैर बंधे हुए हैं आप दोनों  ठीक हैं ना ???

हाँ लाडो बस सिर भारी हो रहा है….

राधिका हाथों को छुड़ाने की कोशिश करने लगी….

ये सब किसने किया  है और क्यों? एक बार मेरे हाथ खोल दो फिर मैं बताती हूँ इनको

खोल देंगें पहले जान पहचान तो कर लें… दूसरी तरफ से आवाज़ आती हुयी सुनायी दी…

कौन हो आप और हमें क्यों पकड़ा है ?

ओम ठाकुर….. देवेंद्र जी ने जब आते हुए शक़्स की तरफ देखा तो बोले

प्रणाम भाईसाहब… विक्रम ने भी उनके पैर छुए  देवेंद्र जी ने अपने पैर पीछे कर लिए…

भाभी के भी पैर छुओ.. विक्रम ने राधिका के भी पैर छुए और बोला प्रणाम भाभी

कौन है आप?

अरे…. आपको किसी ने नही बताया होगा हम उदय भाईसाहब के छोटे भाई ओम ठाकुर है  आपके चाचा ससुर  और ये आपका देवर विक्रम

हमारी कोई शादी नही हुयी है और ये क्या रिश्ता बता रहे है आप

शादी नही हुयी है तो आप पूजा में क्या करने गयी थी??

वो तो हम… कहते कहते राधिका रुक गयी

क्या???

कुछ नही…. हाथ पैर खोलें मेरे

विक्रम ….बहुरानी कुछ मांग रहीं हैं चलो खोल दो इनको

विक्रम ने राधिका के हाथ खोले फिर उसके पैर खोल दिए जैसे ही उसने राधिका के पैरों से रस्सी को अलग किया राधिका ने एक ज़ोर की लात उसे मारी..

विक्रम थोड़ा दूर जा कर गिरा… राधिका फुर्ती से उसके पास गयी उसने एक बार फिर पैर, से उसके पेट पर मारा विक्रम की चीख निकल गयी

बहुरानी…. ओम ठाकुर चिल्लाए

तब तक राधिका ने विक्रम को कॉलर से पकड़ कर उठाया

खबरदार ओम ठाकुर खड़े रहो अपनी जगह पर वरना इतना मारूँगी इसे कि अपने पैरो पर खड़ा नही हो पायेगा और जितने भी लोग हैं बाहर तुम्हारे बुलाओ सबको 

ओम ठाकुर ने कहा अरे बहुरानी हम तो बस

चुप एकदम बुलाओ अपने आदमियों को

ओम ठाकुर ने आवाज़ दी आ जाओ सब अंदर

ताऊजी आप और माँ मेरे पीछे आ जाइए

देवेंद्र जी और शीतल उसके पीछे आ गए

चाबी फेको गाड़ी की….

एक आदमी ने गाड़ी की चाबी फेकी

चलो गाड़ी तक लेकर जाओ इनको और वापस आओ राधिका ने उस चाबी देने वाले आदमी से कहा

ताऊजी आप माँ को गाड़ी में बैठाइये और गाड़ी स्टार्ट कीजिए

लाडो आप

मैं आ जाऊँगी आप जल्दी करें

देवेंद्र जी शीतल को लेकर गाड़ी की तरफ बढ़ गए

देवेंद्र जी ने शीतल को गाड़ी में बैठाया और गाड़ी स्टार्ट कर दी  वो आदमी वापस आ कर सबके साथ खड़ा हो गया….राधिका ने देखा तो कमरे के दरवाज़े तक विक्रम के साथ आयी और उसे ज़ोर का धक्का दिया विक्रम अंदर की तरफ गिरा ओम ठाकुर ने उसे उठाया

राधिका ने बाहर से दरवाज़ा   बंद किया और भाग कर गाड़ी में बैठ गयी

देवेंद्र जी और शीतल ने राहत की सांस ली

आप ठीक हैं ना लाडो

हाँ ताऊजी हम ठीक है आप जल्दी से गाड़ी की स्पीड तेज़ कीजिए

लेकिन जाना किस तरफ है लाडो हमें पता नही है और ये कौन, सी जगह है

ताऊजी आप बस गाड़ी चलाते रहिए बाक़ी हम अभी फोन में देख कर बताते हैं

राधिका ने देखा तो उसका फोन नही था देवेंद्र जी और शीतल का फोन भी नही था…

ताऊजी अभी कहीं ना कहीं कुछ लिखा हुआ दीखेगा तो पता चल जायेगा आप फिल्हाल चलाइए गाड़ी….

कहानी का ये भाग आपको पसंद आया होगा  !!

अगला भाग

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धन्यवाद

स्वरचित

कल्पनिक कहानी

अनु माथुर

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