देख कलावती…. गुच्छे में आम लगा है…. ध्यान रखना कोई तोड़ ना पाए… तृषा के इस वाक्य से कलावती खुश नहीं थी… वो शायद भाँप गई थी कहीं ना कहीं अप्रत्यक्ष रूप से मालकिन मुझे ही आम ना तोड़ने की सख्त हिदायत दी हैं….!
बड़बोली , अल्हड़ , बेबाक कलावती ने उस वक्त इतना ही तो कहा था …अरे आंटी मेरे अलावा और कौन आता है यहां ….और यदि मुझे आम तोड़ना ही होगा ना तो इतनी सफाई से तोड़ लूंगी कि किसी को पता भी नहीं चलेगा ….! इस बार कलावती की बातें तृषा को पसंद नहीं आई थी….।
तभी दो-तीन दिनों के बाद आम के गुच्छों में से दो-तीन आम कम दिख रहे थे …..चूँकि तृषा ने ही वो आम का पेड़ लगाया था और एक बच्चे के भाँति उसकी देखरेख की थी… इसलिए उसे आम के फल के प्रति विशेष उत्सुकता या लगाव था…।
कलावती के आते ही तृषा ने कहा …अरे देख ना कलावती , इसमें से आम कोई तोड़ लिया… मेरे इतना ध्यान देने के बाद भी चोर मुझसे ज्यादा सजग निकला…। कलावती भी आश्चर्य से देखते हुए बोली… हां आंटी ,… सच में ,… और फिर तृषा की बातों को नजर अंदाज करती हुई अपने काम में लग गई…।
तृषा बार-बार सोच रही थी , कलावती ने ही तो कहा था.. यदि मुझे तोड़ना ही होगा तो इतनी सफाई से तोड़ लूंगी कि किसी को पता भी नहीं चलेगा …कलावती के इन्हीं बातों ने खुद कलावती को शक के दायरे में खड़ा कर दिया था…।
हालांकि तृषा ने कभी प्रत्यक्ष रूप से कलावती से कुछ कहा नहीं …तृषा जानती थी कलावती चोर तो नहीं है… हां थोड़ी अल्हड़ है , मस्त मौला टाइप की …..यदि खाने का मन हो तो उसे तोड़ने से कोई रोक नहीं सकता…. शायद इसीलिए मैं भी कलावती के सामने उन आमों की इतनी अहमियत देती थी ताकि……
” कहीं बेचारे मेरे आम कलावती के मस्त मौला मिजाज का शिकार न बन जाए “…।
पर लगता है कलावती ने सफाई से अपना काम निपटा दिया है और मुझे भनक तक नहीं लगी… काम की मजबूरी ने तृषा को चुप रहने पर मजबूर कर दिया…।
…… कुछ दिनों के बाद……..
आम ले लो…. मीठे मीठे आम…. ठेले वाले की आवाज सुनते ही बगान में झाड़ू लगाते हुए कलावती ने झाड़ू नीचे फेंककर बोली…… भैया आम कैसे दिए……? 150 रुपए किलो ….₹50 का देंगे क्या….? दो आ जाएगा क्या …..? कलावती ने आम दिखाकर पूछा ….! ठेले वाले ने मुस्कुरा कर जवाब दिया …ये बड़ा है एक ही आधा किलो होगा…. कलावती को कुछ सोचते देखकर ठेले वाले ने दो छोटे पिचके से (खराब) आम देते हुए कहा…. ये ले लो , आ जाएगा ₹50 में…..!
तृषा अंदर जाली नुमा दरवाजे से सभी गतिविधियों को देख रही थी …मन ही मन सोच भी रही थी इसका लालच तो देखो …घर में चावल नहीं है खाने को , अभी ही मुझसे ₹200 मांग रही थी…. चावल खरीदने के लिए और आम खाकर अपने शौक पूरे करने जा रही है….. एक हम लोग हैं जो सोचते हैं अभी मार्केट में नया-नया है थोड़ा सस्ता हो जाएगा तब खरीदेंगे …..! तभी अचानक कलावती ने कुछ कहा , तृषा बहुत अच्छे से सुन तो नहीं पाई बस अपने बारे में आंटी जी ही कहते हुए सुन पाई थी…।
ठेले वाले से एक ताजा, बड़ा सा आम लेकर कलावती अंदर आई… तृषा अनजान बनते हुए पूछी …बड़ा देर लगा दी कलावती झाड़ू लगाने में… आंटी देखिए मैं आम खरीदी हूं ….!नल में धोकर तृषा को आम देती हुई कलावती बोली….।
देखिए ना आंटी जी.. मीठा है ना…?
अरे तू मुझे क्यों दे रही है …? तू खा ले , घर ले जा …तेरे बच्चे खाएंगे…।
अरे नहीं आंटी , ये तो आम मैंने आपके लिए ही खरीदा है… आंटी आपको आम बहुत पसंद है ना… वो पेड़ से तो कोई चुरा कर ले गया… आपको बहुत दुख हुआ ना…
एक बात बोलूं आंटी ….ये खाने पीने वाली चीज को लोग मौका मिलते ही तोड़ लेते हैं ….इसमें दुखी मत हुआ कीजिए ….अब देखिए ना …वो जो अमरूद में आपके लिए लाती हूं ना कभी-कभी ….वो भी तो किसी के घर के पेड़ से ही तोड़ती हूं ना… कह कर मस्ती भरे अंदाज में कलावती खिलखिला कर हंस पड़ी….।
उसकी निस्वार्थ , शुद्ध खिलखिलाहट हंसी कुछ समय के लिए सारे तनाव दूर कर मत अल्हड़ बेबाकी होने के सारे सबूत पेश कर रहे थे…. वरना ऐसा कौन होता जिसके घर में खाने को चावल ना हो , वो इतने महंगे आम खरीदेगा वो भी आंटी जी (मालकिन) के लिए…..अब ये तो तय हो गया था कि वो आम कलावती ने तो नहीं तोड़े होंगे…।
धन्य है तु कलावती …..तृषा के मुख से निकला …मैं तो हर रोज तुझसे कुछ ना कुछ सिखती रहती हूं…. अब क्या हो गया आंटी जी…? कुछ नहीं ….कभी भी मेरे किसी बात का बुरा लगे तो मुझे माफ कर देना कलावती…।
क्या है ना कभी-कभी हमारा अनदेखा , अनजाना विश्वास…. जब हम दो ही है तो तीसरा कौन …? जैसी मिथक धारणा भी गलत हो जाती हैं…. अपनी सोच पर शर्मिंदगी महसूस करते हुए तृषा ने कहा…।
आपकी ना इतनी बड़ी-बड़ी बातें मेरी समझ में नहीं आती …पढ़ी-लिखी नहीं हूं ना आंटी …..एक बात और मेरे पल्ले नहीं पड़ा ….आखिर वो आम तोड़ा किसने….? जब हम दोनों ही हैं घर में …..वो कुछ और बोलती अब तो तृषा को ही इस बारे में बात करने से शर्मिंदगी महसूस हो रही थी…।
अब तू बस भी कर कलावती… खाने की चीज है कोई भी तोड़कर खा लिया होगा ….कलावती की ही बात तृषा ने दोहराई…।
समय बीतता गया ….अचानक एक दिन कलावती काम पर नहीं आई ….तृषा ने फोन किया… फोन कलावती के पति ने उठाया … उसने बताया …वो उठ नहीं पा रही है… शायद लकवा मार दिया है….
क्या….? हॉस्पिटल नहीं ले गए…? ये कब हुआ ….? फोन करके मुझे बताया क्यों नहीं….? ऐसे ना जाने कितने प्रश्नों की बौछार कर दी तृषा ने…!
उसके पति ने बड़े इत्मीनान से जवाब दिया …हमारे गांव में ही एक व्यक्ति लकवा का दवाई देते हैं…. तीन खुराक के बाद ठीक होने की गारंटी बोले हैं ….मालिश भी हो रहा है ….एक दो हफ्ता लगेगा फिर आपके घर काम पर जाएगी कलावती… इतना बोलकर उसने फोन काट दिया…।
इधर तृषा बेचैन थी …आजकल अच्छी-अच्छी दवाइयां आ गई है लकवा की …सही समय पर उपचार हो तब ना ….तृषा ने बिना देर किए पति तरुण को फोन किया..!
अपनी कार से तृषा और तरुण कलावती के घर के लिए निकल गए… रास्ते में फल खरीदते हुए गए जिसमें आम और सेव थे….!
काफी नाजुक हालत थी कलावती की…. लकवा के अलावा न जाने कुछ तो और बात थी… मुंह से झाग भी निकल रहे थे …कलावती अच्छे से बात भी नहीं कर पा रही थी …फल के लिफाफे को देखते हुए कुछ बोलने की कोशिश की कलावती ने ….आम की ओर इशारा की …वो …मैं…..
तृषा ने चुप रहने का संकेत किया… वो कहना चाहती थी…. मैं जानती हूं कलावती… सब कुछ जानती हूं ….तुझे बताने की जरूरत नहीं है…. वो आम तूने ही तोड़े थे ….
” समय , परिस्थिति और दिल के रिश्तों के लिए कई बार हमें सब कुछ जानते हुए भी अंजान बने रहना चाहिए ….किसी की गलतियों , कमियों को अनजान बनकर भी नजर अंदाज किया जा सकता है “
कलावती आश्चर्य से तृषा की ओर देखे जा रही थी…. जैसे पूछ रही हो… आपको किसने बताया…?
ठेले वाले ने…. तूने उस दिन आम खरीदते वक्त ठेले वाले से शायद बताया था… और तू उसे किसी से ना बताने को कहना भूल गई थी ….हंसते हुए तृषा ने जल्दी से कलावती और उसके पति को गाड़ी में बैठाया और अस्पताल की ओर चल दी….।
अस्पताल में भर्ती कर इलाज कराया पर महीने भर बाद इलाज के बावजूद कलावती को बचा नहीं सकी थी…।
तृषा को काम करने वाली सहायिका तो दूसरी मिल गई ..पर वो कलावती की कमी कभी पूरी नहीं हो पाई ……
इस वर्ष भी आम गुच्छों में लगा है कलावती ….पर अब तेरे समान सफाई से पार करने वाला कोई नहीं… सच में कलावती , एक भी आम कम नहीं हुए …..बहुत मन होता है कलावती आती और चुपके से एक आम चुरा लेती …… तृषा की आंखों में आंसू थे…..
क्या बात है मेमसाहब साहब सहायिका ने तृषा को भावुक होती देखकर पूछा….. कुछ नहीं कुछ रिश्ते खून के होते हैं और कुछ ” रिश्ते दिल के ” पर दिल के रिश्ते भी खून के रिश्ते से कम नहीं होते…।
( स्वरचित मौलिक सर्वाधिकार सुरक्षित और अप्रकाशित रचना )
साप्ताहिक विषय-
# दिल का रिश्ता
संध्या त्रिपाठी