एहसास-डॉक्टर संगीता अग्रवाल। Moral stories in hindi

बहू!गर्म चाय मिलेगी क्या?जल्दी दे देती तो घूमने निकल जाता।

सोती हुई रंजना के कान में अपने ससुर की आवाज़ पिघले सीसे की तरह पड़ी,वो बिस्तर में लेटी हुई कुनमुनाई और अपने पति आशीष के पास सरक आई।

ये पिताजी को भी नींद नहीं आती,सुबह पौ फटते ही चाय की तलब लग जाती है,सोने भी नहीं देते।वो बोली।

बना दो ना यार!एक कप चाय ही तो मांगते हैं वो,आशीष बोला और करवट लेकर सो गया।

भुनभुनाती हुई रंजना उठी और गैस पर चाय चढ़ा दी।

चाय पीकर बाबूजी घूमने चले गए थे लेकिन आज उन्हें अपनी पत्नी श्यामा की बहुत याद आ रही थी जो उन्हें बेड टी भी कभी बिना बिस्किट या रस के नहीं देती थी,खाली पियोगे तो तुम्हें अफारा हो जायेगा और वो मुस्करा देते।

लेकिन अब खाली चाय मिल जाए यही काफी था उनके लिए,वो बोझ बनते जा रहे थे अपने बहु बेटे पर,ऐसा उन्हें खुद महसूस हो रहा था कि उनकी उपस्थिति इस घर में अवांछनीय बनती जा रही है।

लौटते हुए वो ब्रेड ले आए थे,न्यूजपेपर भी उनके हाथ में था और कुछ फल भी ले आए थे।आते ही सब कुछ रंजना को पकड़ा दिया था उन्होंने।

जाइए!अब आप बिट्टू को स्कूल बस में बैठा आइए पिताजी!रंजना ने उनसे कहा तो वो नन्हें बिट्टू का हाथ थाम बाहर की ओर चल दिए।

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आशीष जल्दी जल्दी तैयार हो रहा था,जैसे ही रंजना ने उसे चाय पकड़ाई,वो बोला,पिताजी के होने से कितना आराम रहता है,छोटे मोटे काम करते ही रहते हैं।

खाक काम करते हैं,बुरा सा मुंह बनाकर रंजना बोली,ये बच्चे को बस में बैठा दिया,कुछ तनिक सा फल ला दिया तो बड़ा एहसान किया?कितने ही बूढ़े हो गए हों,खाना चारो वक्त थाली भरकर ही चाहिए।

कैसे बोल रही हो रंजू?बेचारे हम पर बोझ नहीं,उनकी पेंशन आ रही है,आशीष धीमी आवाज में बोला।

खुद हाथ से बनाकर देना पड़े तो पता चले तुम्हें,बस जुबान हिला देते हो तुम तो

…काम क्या होता है,कुछ पता भी है!

जब तुम्हारी जैसे कमेरी घरवाली है तो मुझे क्या जरूरत?वो हंसता हुआ नाश्ता कर तेजी से निकल गया।

तभी पिताजी आ गए थे,ला बहू!अब मेरे लिए भी नाश्ता ले आ,भूख लग आई बड़ी तेज।

रखा है वहां टेबल पर ,ले लें, रंजना रूखे स्वर में बोली, मुझे भी ऑफिस जाना है,देर हो रही है।वो कहकर चली गई।

जाते हुए फिर पिताजी की आवाज आई, बहू!जरा देखना,बाहर का दरवाजा बंद है।

रंजना बड़बड़ाई,टोकेंगे जरूर जाते हुए,कितनी बार समझाना चाहा कि जाते हुए आवाज न लगाया करें पर मजाल है जो कानो पर जूं रेंगे किसी के।

वो दरवाजा देखने गई तो बाहर देखा हल्की बूंदाबांदी शुरू हो गई थी,उसने सूखने के लिए फैले कपड़े भी हटा दिए,मन ही मन शुक्र अदा किया। बाबूजी का,ना आती इधर तो भीग  जाते सारे कपड़े।

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काम और घर की जिम्मेदारी से चिड़चिड़ी हो गई थी रंजना,वैसे दिल की इतनी भी बुरी न थी।पिताजी का हर वक्त खाना मांगना,चाय दूध की डिमांड करना उसे खल जाता और वो अनाप शनाप बोल जाती।

उस दिन घर में बच्चे के जन्मदिन की पार्टी थी,बाहर से केक,पिज्जा,कोल्ड ड्रिंक्स,स्वीट्स आ गए थे और सबने वही खाया,बेचारे पिताजी बहू के गुस्से की वजह से कुछ बोल न सके और थोड़ा बहुत टुंग टांग कर चुप रह गए।

अब एक समय नहीं खाऊंगा तो मर थोड़े ही जाऊंगा,श्यामा भी तो कितने उपवास करती थी,आज मेरा भी हो जायेगा।

रात को सब थके हुए थे,गहरी नींद सो गए लेकिन बूढ़ी आत्मा भूख से बिलबिलाती रही।उन्हें खाली पेट शुगर और बीपी की दवाई लेना भारी पड़ गया,बहरहाल बहुत गैस बन गई और  वो लगे दर्द से चिल्लाने।

काफी देर में आशीष ने उनकी आवाज सुनी,दौड़ा आया,पिताजी को झट गाड़ी में डालकर हॉस्पिटल ले गया लेकिन  वो सबको छोड़कर जा चुके थे।शायद हार्ट अटैक ही था।

रंजना,आशीष और बच्चे सकते में आ गए।कहीं बहुत गहरे मे,रंजना को ये अपराध बोध खाए जा रहा था कि उसकी लापरवाही की वजह से पिताजी की जान गई।

थोड़े दिन में सब कुछ सामान्य हो गया,आशीष दफ्तर जाने लगे,बच्चे स्कूल लेकिन रंजना आजकल  इतनी व्यस्त हो गई थी कि ऑफिस से अभी भी छुट्टी ली रखी  थी लेकिन जाना तो था ही एकाध दिन में।

जब भी आशीष से कुछ काम करने को कहती ,वो बहाने बना देता,बहुत थक गया हूं,खुद कर लो,एक मेड  और रख लो पर मुझे तंग न किया करो।

अक्सर बिट्टू की स्कूल बस छूट जाती तो कभी वो ऑफिस को लेट हो जाती,बॉस के ताने सुनने को मिलते।रंजना को दिन में तारे नज़र आने लगे थे।

जिन बाउजी के काम को वो कम समझती रही थी,आज उसे,उनकी वैल्यू समझ आ रही थी,वो छोटे छोटे काम,कितने जरूरी थे और वो हंसते मुस्कराते उन्हें कर दिया करते थे।बेचारों की एक चाय और खाना मुझे भारी लगता था…रंजना का मन ग्लानि से भर जाता।

आज उसे समझ आ रहा था की बुजुर्गों को क्यों वटवृक्ष कहा जाता है,उनके बिना पूरा घर सूना और उदास हो जाता है,उनके आशीर्वाद से कितनी बलाएं  खुद टल जाती हैं।जहां तक बात आशीष की थी वो अपने पिताजी से बिल्कुल उल्टा था,उसे घर के काम की बिलकुल आदत न थी,वो फली नहीं फोड़ता था और अपने ससुर जी की उपस्तिथि में रंजना को जरूर दिन में तारे नज़र आ रहे थे।

 

डॉक्टर संगीता अग्रवाल

वैशाली,गाजियाबाद

#दिन में तारे नज़र आना

3 thoughts on “एहसास-डॉक्टर संगीता अग्रवाल। Moral stories in hindi”

  1. ऐसी बहुओं को सिर्फ परेशानी होने से काम नहीं चलेगा, इनका अपना बेटा जब वही स्लूक करेगा तब जैसे को तैसा होगा। भगवान के घर का न्याय ऐसा होगा तभी लोग बड़े बजुर्गो की थोड़ी बहुत परवाह करेंगे।

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