इस बार मैं अपने बेटे सागर के साथ क़रीब सात साल बाद भारत आई थी. पतिदेव जी तो नहीं आ पाए थे. बेटी सागरिका को मैं घर पर ही लंदन में छोड़ आई थी, ताकि वह कम से कम अपने पापा को खाना तो समय पर खिला देगी.
पिछली बार जब मैं दिल्ली आई थी तब पिताजी कॉलेज परिसर में ही रहते थे. वे लेक्चरर थे वहां पर दो साल पहले वे सेवानिवृत्त हो कर अपने पुश्तैनी घर आगरा चले गए थे. पिताजी की तबीयत कुछ ढीली रहती थी, पर अम्मां हमेशा से ही स्वस्थ थीं. वे घर को चला रही थीं और पिताजी की देखभाल कर रही थीं.
वैसे भी उन की कौन देखरेख करता? मैं उनकी बेटी तो लंदन में बस गई थी. बेटी के ऊपर कोई जोर थोड़े ही होता है, जो उसे प्यार से, जिद कर के भारत लौट आने के लिए कहते. इस उम्र में … बेटा न होने के कारण अम्मां और पिताजी आंसू बहाने लगते और मैं भी उनके आँसुओं से द्रवित हो .. कुछ दिनों के लिए इंडिया आ जाती।
पहले जब पिताजी दिल्ली में रहते थे तब बहुत आराम रहता था. मेरी ससुराल भी दिल्ली में है. आनेजाने में कोई परेशानी नहीं होती थी. दोपहर का खाना पिताजी के साथ और शाम को ससुराल में आनाजाना लगा ही रहता था. आगरा में मुझे 3 दिन रुकना था, क्योंकि 10 दिन बाद तो हमें लंदन लौट जाना था. बहुत दिल टूट रहा था. मुझे मालूम था ये 3 दिन अच्छे नहीं कटेंगे. मैं मन ही मन रोती रहूंगी. अम्मां तो रहरह कर आंसू बहाएंगी ही और पिताजी भी बेचारे अलग दुखी होंगे.
अब इस बार मालूम हुआ कि कितनी परेशानी होती है भारत में सफर करने में. वैसे सागर को रेलगाड़ी में सफर करना बहुत अच्छा लगता था. स्टेशन पर जब गाड़ी खड़ी होती तो प्लेटफार्म पर खाने की चीजें खरीदने की उस की बहुत इच्छा होती थी. मैं उस को बहुत मुश्किल से मना कर पाती थी.
गाड़ी चलने में अभी 10 मिनट बाकी थे तभी एक महिला और उन के साथ लगभग 5-6 साल का एक लड़का गाड़ी के डब्बे में चढ़ा. कुली ने आ कर उन का सामान हमारे सामने वाली बर्थ के नीचे ठीक तरह से रख दिया. कुली सामान रख कर नीचे उतर गया. वह महिला उस के पीछेपीछे गई. उन के साथ आया लड़का वहीं उन की बर्थ पर बैठ गया.
कुली को पैसे प्लेटफार्म पर खड़े एक नवयुवक ने दिए. वह महिला उस नवयुवक से बातें कर रही थी. शायद पति होगा उसका … भाई भी हो सकता हैं… तभी गाड़ी ने सीटी दी तो महिला डब्बे में चढ़ गई.
5-7 मिनट तक वह महिला चुप रही और मैं भी खामोश ही रही. शायद हम दोनों ही सोच रही थीं कि देखें कौन बात पहले शुरू करता है.
आखिर उस महिला से नहीं रहा गया, पूछ ही बैठी, ‘‘कहां जा रही हैं आप?’’
‘‘आगरा जा रहे हैं. और आप कहां जा रही हैं?’’ मैं ने पूछा.
‘‘हम तो आप से पहले ही मथुरा में उतर जाएंगे,’’ उस ने कहा, ‘‘क्या आप विदेश में रहती हैं?’’
‘‘हां, पिछले 15 वर्षों से लंदन में रहती हूं, लेकिन आप ने कैसे जाना कि मैं विदेश में रहती हूं?’’ मैं पूछ बैठी.
‘‘आप के बोलने के तौरतरीके से कुछ ऐसा ही लगा. मैं ने देखा है कि जो भारतीय विदेशों में रहते हैं उन का बातचीत करने का ढंग ही अनोखा होता है. वे कुछ ही मिनटों में बिना कहे ही बता देते हैं कि वे भारत में नहीं रहते. आप यहां भारत- भ्रमण करवाने आयी हैं …अपने बेटे को?’’ उस ने सागर की ओर इशारा कर के कहा.
‘‘मैं तो बस घर वालों से मिलने आई थी. अम्मां और पिताजी से मिलने आगरा जा रही हूं. पहले जब वे हौजखास में रहते थे तो कम से कम मेरा भारत भ्रमण का आधा समय रेलगाड़ी में तो नहीं बीतता था,’’ मेरे लहजे में शिकायत थी.
‘‘आप के पिताजी हौजखास में कहां रहते थे?’’ उस ने उत्सुकता से पूछा.
‘‘पिताजी हौजखास “कमला नेहरू कॉलेज” के परिसर में 20 साल से अधिक रहे, पर अब सेवानिवृत्त हो कर आगरा में रह रहे हैं.’’मैंने कहा।
‘‘आप के पिताजी “ कमला नेहरू कॉलेज में थे. क्या नाम है उनका? मेरे पिताजी भी वहीं प्रोफेसर थे, पिछले बरस ही सेवानिवृत्त हुवे हैं।
‘‘उन का नाम हरी शंकर लाल है,’’ मैं ने कहा.
मेरे पिताजी का नाम सुन कर वह महिला सन्न सी रह गई. उस का चेहरा फक पड़ गया. वह अपनी बर्थ से उठ कर हमारी बर्थ पर आ गई, ‘“दीदी आप मुझे नहीं जानतीं? मैं मधु हूं,’’ उस ने धीमे से कहा. उस की वाणी भावावेश से कांप रही थी.
‘ मधु मैं ने मस्तिष्क पर जोर डालने की कोशिश की तो अचानक यह नाम बिजली की तरह मेरी स्मृति में कौंध गया
कुशाग्र की शादी मेरे से ही तय हुई थी,’’ कहते हुए मधु की आंखें छलछला उठीं.
‘ कुशाग्र’ नाम सुन कर एकबारगी मैं कांप सी गई. 10 साल पहले का हर पल मेरे समक्ष ऐसे साकार हो उठा जैसे कल की ही बात हो. पिताजी ने कुशाग्र की मृत्यु की खबर दी थी,उन का लाड़ला, मेरा अकेला चहेता छोटा भाई एक ट्रेन दुर्घटना का शिकार हो गया था. अम्मां और पिताजी की बुढ़ापे की लाठी, उन के बुढ़ापे से पहले ही टूट गई थी.
कुशाग्र ने आई.आई.टी. से ही इंजीनियरिंग की थी. पिताजी और मधु के पिता दोनों ही अच्छे मित्र थे. कुशाग्र और मधु की सगाई भी कर दी गई थी. वे दोनों एकदूसरे को चाहते भी थे. पर.. हमारे कारण शादी में देरी हो रही थी. गरमी की छुट्टियों में हमारा भारत आने का पक्का कार्यक्रम था. पर इस से पहले कि हम शादी के लिए आ पाते, कुशाग्र ही सब को छोड़ कर चला गया. हम तो शहनाई के माहौल में आने वाले थे और आए तब जब मातम मनाया जा रहा था.
मैं ने मधु के कंधे पर हाथ रख कर उस की पीठ सहलाई. सागर मेरी ओर देख रहा था कि मैं क्या कर रही हूं.
मैं ने सागर से बँटी से बात करने को कहा ।और वो दोनों ट्रेन से बाहर की ओर देखते -देखते बातों में मशगूल हो गए.
“अब पुरानी बातों को सोचने से दुखी होने का क्या फायदा, . हमारा और उस का इतना ही साथ था,’’ मैं ने सांत्वना देने की कोशिश की, ‘‘यह शुक्र करो कि वह तुम को मंझधार में छोड़ कर नहीं गया. तुम्हारा जीवन बरबाद होने से बच गया.’’
‘‘दीदी, मैं सारा जीवन उन की याद में अम्मां और पिताजी की सेवा कर के काट देती,’’ मधु कुशाग्र की मृत्यु के बाद बहुत मुश्किल से शादी कराने को राजी हुई थी. यहां तक कि अम्मां और पिताजी ने भी उस को काफी समझाया था. कुशाग्र की मृत्यु के 3 वर्ष बाद मधु की शादी हुई थी.
‘‘तुम्हारे पति आजकल मथुरा में हैं?’’ मैं ने पूछा.
‘‘हां, वे वहां तेलशोधक कारखाने में नौकरी करते हैं.’’
‘‘तुम खुश हो न, मधु???”मैं पूछ ही बैठी.
‘‘हां, बहुत खुश हूं. वे मेरा बहुत खयाल रखते हैं. बड़े अच्छे स्वभाव के हैं. मैं तो खुद ही अपने दुखों का कारण हूं. जब भी कभी कुशाग्र का ध्यान आ जाता है तो मेरा मन बहुत दुखी हो जाता है. वे बेचारे सोचसोच कर परेशान होते हैं कि उन से तो कोई गलती नहीं हो गई. सच दीदी, कुशाग्र को मैं अब तक दिल से नहीं भुला सकी,’’ मधु फूटफूट कर रोने लगी. मेरी आंखों से भी आंसू बहने लगे. कुछ देर बाद हम दोनों ने आंसू पोंछ डाले.
‘‘मुझे पिताजी से मालूम हुआ था कि चाचाचाची आगरा में हैं. मिलने की इच्छा भी होती है, पर इन से क्या कह कर उन को मिलवाऊंगी? यही सोच कर रह जाती हूं,’’ मधु बोली.
‘‘अगर मिल सको तो वे दोनों तो बहुत प्रसन्न होंगे. पिताजी के दिल को काफी चैन मिलेगा,’’ मैं ने कहा, ‘‘पर अपने पति से झूठ बोलने की गलती कभी मत करना,’’ मैं ने सुझाव दिया.
‘‘अगर कुशाग्र की मृत्यु न होती तो दीदी, आज आप मेरी ननद होतीं,’’ मधु ने आहत मन से कहा.
मैं उस की इस बात का क्या उत्तर देती. दोनों बच्चें आपस में ऐसे घुलमिल गये जैसे दोनों एक दूसरे को बहुत पहले से जानते हों।मथुरा स्टेशन भी कुछ देर में आने वाला ही था.
‘‘तुम को लेने आएंगे क्या स्टेशन पर,’’ मैं ने बात को बदलने की कोशिश करते हुवे कहा।
कहां आएंगे दीदी. गाड़ी 3 बजे मथुरा पहुंचेगी. तब वे फैक्टरी में होंगे. हां, कार भेज देंगे. घर पर भी शाम के 7 बजे से पहले नहीं आ पाते. इंजीनियरों के पास काम अधिक ही रहता है.’’
गाड़ी वृंदावन स्टेशन को तेजी से पास कर रही थी. कुछ देर में मथुरा जंक्शन के आउटर सिगनल पर गाड़ी खड़ी हो गई.
‘‘यह गाड़ी हमेशा ही यहां खड़ी हो जाती है. पर आज इसी बहाने कुछ और समय आप को देखती रहूंगी,’’ मधु उदास स्वर में बोली.
मैं कभी बंटी को देखती तो कभी मधु को. कुछ मिनटों बाद गाड़ी सरकने लगी और मथुरा जंक्शन भी आ गया.
एक कुली को मधु ने सामान उठाने के लिए कह दिया. बंटी सागर से ‘टाटा’ कर के डब्बे से नीचे उतर चुका था. सागर खिड़की के पास खड़ा बंटी को देख रहा था. सामान भी नीचे जा चुका था. मधु के विदा होने की बारी थी. वह झुकी और मेरे पांव छूने लगी. मैं ने उसे सीने से लगा लिया. हम दोनों ही अपने आंसुओं को पी गईं. फिर मधु डब्बे से नीचे उतर गई.
‘‘अच्छा दीदी, चलती हूं. ड्राइवर बाहर प्रतीक्षा कर रहा होगा. बंटी बेटा, बूआजी को नमस्ते करो,’’ मधु ने बंटी से कहा.
बंटी भी अपनी मां का आज्ञा का पालन करते हुवे मेरे पैर छुए। मैंने उसे उठा कर सीने से लगाते हुवे ढेर सारा आशीर्वाद दिया। कुछ पल को ऐसा लगा कि… कुशाग्र को गले लगाया हैं। मधु और मैंने आँखों -आँखों में एक दूसरे को “ अलविदा कहा और वह साड़ी के पल्ले से आंखों की नमी को कम करने का प्रयास करती हुई चल दी. उसमें पीछे मुड़ कर देखने का साहस नहीं था. कुछ समय बाद मथुरा जंक्शन की भीड़ में वो दोनों आंखों से ओझल हो गए.
अचानक मुझे खयाल आया कि मुझे बंटी के हाथ में कुछ रुपए दे देने चाहिए थे. अगर वक्त ही साथ देता तो बंटी मेरा भतीजा होता. पर अब क्या किया जा सकता था. पता नहीं, बंटी और मधु से इस जीवन में कभी मिलना होगा भी कि नहीं? अगर बंटी लड़के की जगह लड़की होता तो उसे अपने सागर के लिए रोक कर रख लेती. यह सोच कर मेरे होंठों पर मुसकान खेल गई.
सागर ने मुझे काफी समय बाद मुसकराते देखा था. वह मेरे हाथ से खेलने लगा, ‘‘मां, भारत में लोग अजीब ही होते हैं. मिलते बाद में हैं, पहले रिश्ता कायम कर लेते हैं. देखो, आप को उस औरत ने बंटी की बूआजी बना दिया. क्या बंटी के पिता आप के भाई लगते हैं?’’
सागर को कुशाग्र के बारे में विशेष मालूम नहीं था. कुशाग्र की मृत्यु के बाद एक साल बाद सागर पैदा हुआ था. उस का प्रश्न सुन कर मेरी आंखों से आंसू बहने लगे.
सागर घबराया कि उस ने ऐसा क्या कह दिया कि मैं रोने लगी, ‘‘मुझे माफ कर दो मां, आप नाराज क्यों हो गईं? आप हमेशा ही भारत छोड़ने से पहले जराजरा सी बात पर रोने लगती हैं.’’
मैं ने सागर को अपने सीने से लगा लिया, ‘‘नहीं बेटा, ऐसी कोई बात नहीं… जब अपनों से बिछड़ते हैं तो रोना आ ही जाता है. कुछ लोग अपने न हो कर भी अपने होते हैं. उनसे हमारा # दिल का रिश्ता होता है शायद।”
सागर शायद मेरी बात समझ ना सका कि … बंटी कैसे अपना हो सकता है? एक बार रेलगाड़ी में कुछ घंटों की मुलाकात में कोई अपनों जैसा कैसे हो जाता है, लेकिन इस के बाद उस ने मुझ से कोई प्रश्न नहीं किया और ‘मोबाइल गेम’ में खो गया.
संध्या सिन्हा
Kya story h 🤷 kuch bhi smjh nhi aaya aur adhuri bhi lg rhi h ye story….
Hum log bahut man se in kahaniyon ko padhte hain, plyashuri kahaniya daal kar hame mayus mat kijiye. Is page k admin please is baat ka dhyan de ki koi bhi kuchh bhi yahan post na kare.
भाई जो भी राइटर किरपा पूरी स्टोरी लिखने की किरपा करे
Very touching story