आधारशिला – बालेश्वर गुप्ता: Moral stories in hindi

 सेठ रामगोपाल जी का अपने नगर में काफी नाम रहा है।मिलनसार,दानवीर रामगोपाल जी  के मन मे कभी भी ऊंच नीच का भाव भी नही रहा था।उनके दोनो बेटे अमन और देवन के एक ही परिवार में जन्म लेने और एक साथ परवरिश होने के बावजूद सोच विचारों में एक दूसरे के विपरीत थे।अमन ने अपने पिता के गुण पाये थे,

पिता के गुणों की छाप अमन पर साफ झलकती थी।कारोबार में अमन अपने पिता का हाथ भी बटाता और हर सामाजिक कार्य का निर्वहन भी करता,दूसरी ओर देवन ने हर दुर्गुण को ही अपनाया, इससे स्वाभाविक रूप में रामगोपाल जी के हृदय को चोट पहुँचती।बेबसी में कोई कुछ नही कर पाता।

       रामगोपाल जी कोई ऐसे ही सेठ नही बने थे,अपने जीवन मे हाड़ तोड़ मेहनत के बाद उन्होंने अपना व्यवसाय का कारोबार खड़ा किया था। शुरू में किराये के एक कमरे और रसोई के मकान में रहते उन्होंने जीवन संघर्ष प्रारम्भ किया था।एक छोटे से गावँ से आकर रामगोपाल जी ने पास के नगर में अपनी किस्मत आजमाने का उपक्रम किया।

अपनी मेहनत लग्न,ईमानदारी और मृदु स्वभाव के कारण उन्हें अपने व्यापार में सफलता मिलने लगी।धीरे धीरे व्यापार बढ़ता गया।दोनो बेटे अमन और देवन भी अपने पिता के व्यवसाय में लग गये। इसी बीच रामगोपाल जी ने अपनी पत्नी की अंतिम इच्छा को पूरा करने तथा अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु एक घर का निर्माण कराया।

चूंकि पत्नी गोलोकवासी हो चुकी थी,इसकारण एक कमरे में रामगोपाल जी ने अपनी पत्नी का बड़ा सा फ़ोटो लगवाया।प्रतिदिन काम पर जाने से पहले वे  अपनी पत्नी के फोटो से वार्तालाप करके ही जाते।उन्हें उस कमरे में उनकी पत्नी मौजूद है,का अहसास होता था।कभी कभी तो वे घंटो उस कमरे में अकेले बैठकर बड़बड़ाते रहते,मानो पत्नी से बात कर रहे हो।उस कमरे से रामगोपाल जी का जो अटूट बंधन बन गया था,उसे उन्होंने अपने बेटो से भी नही छुपाया।

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       ऐसे ही समय चक्र घूमता गया,रामगोपाल जी भी अपने कारोबार को अपने बेटो को सौप अपनी पत्नी के पास स्वर्ग में पहुच गये।अब पूरा व्यवसाय अमन और देवन के हाथों में था।पिछले दिनों से अमन को लग रहा था कि कार्यशील पूंजी में कमी हो रही है,बाजार से तकादे होने लगे है,समय से भुगतान नही हो पा रहा है।

अमन ने गहराई से लेखा बहियों की पड़ताल की तो पाया भारी गड़बड़ी है।कारोबार से भारी मात्रा में बिना हिसाब से पैसा निकाला गया है और निकासी जारी है।इस काम को कोई कर्मचारी नही बल्कि देवन खुद कर रहा है।अमन ने पूरा हिसाब देवन के समक्ष रख जब कोरचे के विषय मे पूछा तो वह अपने ही भाई पर बिफर पड़ा।

उसका साफ कहना था कि मालिक मैं भी हूँ, मुझसे कोई पूछने वाला कौन?ऐसी उँछखल भाषा और कारोबार के भविष्य का आंकलन कर अमन ने व्यवसाय से खुद को अलग करना ही मुनासिब समझा। अमन चुपचाप जो मिला ले कर दूसरे नगर में जाकर अपना काम नये सिरे से जमाने का प्रयत्न करने लगा।अपने पिता रामगोपाल जी के गुण अमन में थे,उन्ही गुणों के कारण उसका कारोबार जमने लगा।

     उधर देवन का व्यवसाय निरंतर घाटे में जा रहा था।उसके पिता द्वारा जमाया व्यापार और साख दोनो को देवन पलीता लगा चुका था।व्यसन पाल लिये थे,जो कमजोरी बन घुन की तरह उसे खाये जा रहे थे।एक दिन ऐसा भी आया कि समस्त व्यापार ठप्प हो गया।देवल ने पिता द्वारा अर्जित घर का भी सौदा कर दिया।

अमन को जैसे ही पता चला तो वह भौचक्का हो गया,उस घर से पिता की स्मृतियां तो जुड़ी थी ही,उसकी खुद की यादें भी कम नही थी।वह तुरंत अपने पैतृक नगर आया और देवन तथा उस खरीदार से जो उनका घर खरीदना चाहता था,संपर्क किया।उनसे खुद वह घर खरीदने की पेशकश की।

जिससे देवन ने सौदा कर दो लाख रुपये पेशगी के लिये थे,उससे उसने अपने पिता का की स्मृति का वास्ता दे तथा कोई भी पेनल्टी ले उस सौदे को निरस्त करने की प्रार्थना की।वह व्यक्ति शरीफ निकला, उसने अपने द्वारा दी गयी दो लाख रुपये की राशि वापस ले कर सौदा निरस्त कर दिया।अमन ने घर अपने नाम लिखा कर पूरा पेमेंट देवन को कर दिया।

देवन अपने भाई अमन से आंखे नही मिला पा रहा था।घर की चाबी ले अमन घर की ओर दौड़ा और जाकर उस कमरे को खोला जिसमे उसके पिता ने उनकी माँ की फ़ोटो लगाई थी,जहां उन्होंने अंतिम सांस ली थी,जहां उसके पिता उनकी माँ से मृत्युपरांत भी बाते करते रहते थे,

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उस अटूट बंधन को याद कर अमन दरवाजे पास ही सिसकने लगा।मां की तस्वीर तो अब भी दीवार पर लगी थी धूल भरी अवस्था मे।अमन ने माँ की तस्वीर उतार कर उसे अपनी कमीज से साफ कर फिर से दीवार पर लगा दिया।साथ लायी अपने पिता की तस्वीर को भी अमन ने दीवार पर मां की तस्वीर के बराबर में लगा दिया।

       भीगी आंखों से अमन एक टक अपने पिता और माँ निहार रहा था,उसे आज अपने पिता के इस कमरे से जुड़ाव का मतलब समझ आ रहा था।उसे प्रतीत हो रहा था,सामने लगी माँ पिता की तस्वीरे मात्र तस्वीरे ही नही है,बल्कि वे प्राणवान है,उसे वे आशीर्वाद दे रही हैं।अंदर कमरे में खड़ा अमन मां पिता के सानिध्य की अनुभूति ले रहा था,तो बाहर दरवाजे के पास खड़े देवन की आंसुओं की धार शायद भाइयों के स्नेह बंधन की नयी आधारशिला रख रही थी।

 बालेश्वर गुप्ता, नोयडा

मौलिक एवम अप्रकाशित

#अटूट बंधन शब्द पर आधारित कहानी:

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