अटूट रिश्ता – संगीता अग्रवाल  : Moral stories in hindi

“क्या बात है मानसी तुम इतनी उखड़ी उखड़ी और गुमसुम क्यों रहती हो आजकल ?” हर्ष ने अपनी पत्नी से पूछा

” कुछ नहीं आप ये टिफिन लीजिए और ऑफिस जाइए !” मानसी बिना हर्ष की तरफ देखे टिफिन देती हुई बोली।

हर्ष को अजीब लगा पर अभी ऑफिस का वक़्त हो रहा था तो उसने टिफिन लिया और निकल गया ऑफिस के लिए पर उसके दिमाग में वहीं सब दौड़ रहा था पिछले कुछ समय से मानसी को हुआ क्या है पहले कितनी खुश रहती थी मैं समय नहीं दे पाता था तब भी और अब समय देना चाहता हूं तब भी उखड़ी उखड़ी रहती है। शाम को मानसी से खुल कर बात करूंगा। ये सोच फिलहाल उसने इस सोच को विराम दिया उसका ऑफिस जो आ गया था।

” आ गए आप बैठिए मैं चाय लाती हूं !” शाम को हर्ष के आते ही उसके हाथ से टिफिन लेते हुए मानसी बोली।

” दो कप चाय बना लाओ मैं ये तुम्हारे पसंद के समोसे लाया हूं दोनों साथ में खाएंगे !” हर्ष एक पैकेट पकड़ाते हुए प्यार से बोला।

” क्या बात है मानसी मुझसे कोई गलती हुई है क्या ? मानता हूं अपने प्रमोशन के चक्कर में कुछ महीने तुम पर कम ध्यान दे पाया पर अब मैं अपनी भूल सुधारना चाहता हूं!” चाय पीते हुए हर्ष बोला।

” हम्म !” मानसी ने कप रखते हुए केवल इतना कहा।

” मुझसे बात करो मानसी भले लड़ाई झगड़ा करो पर यूं खुद अकेले में ना घुटती रहो प्लीज़ !” हर्ष उसका हाथ पकड़ कर बोला।

” छोड़िए मेरा हाथ मुझे खाना बनाना है !” मानसी खड़े होते हुए बोली।

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” खाना नहीं खाना मुझे तुमसे बात करनी है !” ये बोल हर्ष ने मानसी का हाथ खींचा तो मानसी हर्ष की गोद में गिर गई। दोनों को इतने करीब आए शायद कई दिन गुजर गए थे। हर्ष ने प्यार से मानसी का चेहरा ऊपर उठाया तो मानसी की आंख भर आई और वो हर्ष से लिपट फूट फूट कर रो दी। हर्ष उसकी कमर सहलाता रहा उसे चुप करवाने का कोई प्रयत्न नहीं किया जानता था अपनी पत्नी को रोने के बाद ही वो अपने मन की बात करेगी दो साल का साथ जो था। मानसी सिसकियां ले रोती रही थोड़ी देर रोने के बाद…

” हर्ष मुझे माफ कर दो मैने तुमसे एक राज छुपाया है पर अब हिम्मत नहीं उस राज को राज रख तुम्हारे प्यार का सामना करने कि इसलिए तुमसे दूर रहती हूं !” मानसी रोते हुए बोली।

” ऐसा क्या राज है क्या तुम मुझसे प्यार नहीं करती ?” हर्ष हैरानी से पूछता है।

“ऐसा नहीं है पर तुम्हे याद है शादी के बाद अभी तुम तीन साल बच्चा नहीं चाहते थे?” मानसी ने कहा।

” हां क्योंकि मैं चाहता था कि अपने बच्चे के लिए कुछ प्लान करूं तब उसे दुनिया में लाऊं पर इसमें राज क्या है !” हर्ष अभी भी हैरान था।

” हां यही कहा था तुमने फिर धीरे धीरे तुम काम मे डूबते गए और मुझे वक़्त देना कम कर दिया तो मुझे लगा तुम्हे मुझसे प्यार ही नहीं है इसीलिए ही तुम हमारा बच्चा भी नहीं चाहते !” ये बोल मानसी ने एक बार हर्ष को देखा और निगाह झुका ली।

” पगली ऐसा कुछ नहीं था !” हर्ष उसके गाल पर प्यार से चपत लगाते बोला।

” उन दिनों मेरी एफबी पर अरुण से दोस्ती हुई वो मेरे लिए अपने काम से समय चुराता था मुझे हंसाता था मेरी बात सुनता था …मुझे उसकी दोस्ती बहुत भाने लगी । ऐसे ही एक दिन तुमसे उपेक्षित हो मैने उसे सारी बात बता दी हम दोनों की !” मानसी हर्ष से नजर चुराते हुए बोली।

” हम्म फिर…!” हर्ष को थोड़ा गुस्सा तो आ रहा था फिर भी उसने शांति से पूछा।

” तबसे वो मेरा और ज्यादा ख्याल रखने लगा या यूं कहो मेरे और करीब आने लगा मैं उसकी और तुम्हारी तुलना करने लगी तो मुझे वो तुमसे कहीं बेहतर लगा। मेरा झुकाव उसकी तरफ होने लगा मैं तुम्हारे जाने का इंतजार करने लगी कि तुम जाओ तो मैं उससे बात करूं !” मानसी ये बोल चुप हो गई और पास रखे गिलास से पानी पीने लगी।

” अब तुम्हारी दोस्ती कहां तक पहुंची ?” हर्ष ने पूछा।

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” अभी दस दिन पहले उसने मुझसे प्यार का इजहार किया और मुझे यहां से कहीं दूर ले जाने की बात की !” मानसी ये बोल रोने लगी।

” ओह…. फिर क्या सोचा है तुमने ?” हर्ष ने पूछा।

” मैं तुमसे दूर नहीं जा सकती ये दस दिन मेरे लिए दस जन्म समान गुजरे हैं मैने तबसे एफबी नहीं चलाई है ना उससे कोई बात की है पर मैं तुमसे दूर नहीं जा सकती इन दस दिनों में एहसास हुआ मुझे अरुण से मेरा रिश्ता सिर्फ कुछ कमजोर पलों की भूल है जबकि तुमसे मेरा सात जन्मों का अटूट बंधन है मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकती पर खुद को तुम्हारी गुनहगार समझ तुम्हारे करीब भी नहीं आ पा रही हूं !” मानसी ये बोल अपना चेहरा हाथों में छिपा रो दी। आज उसने हिम्मत कर अपने मन की सारी गांठे हर्ष के सामने खोल दी थी बिना अंजाम की परवाह किये ।

हर्ष बहुत देर तक मानसी की बातों को सोचता रहा फिर अचानक उसने मानसी का हाथ चेहरे से हटाया।

” क्या तुम अरुण से प्यार करती हो …क्या तुम कभी मिले हो ?” उसने पूछा।

” नहीं मैं उससे प्यार नहीं करती ना हम कभी नहीं मिले है बस कॉल और मेसेज में बात होती है आप चेक कर सकते हैं !” मानसी अपना फोन उसे देते हुए बोली।

” मुझे इस फोन से कुछ नहीं जानना जो तुम कह रही अगर सच है तो गुनहगार सिर्फ तुम नहीं मैं भी हूं तुम्हारा तुम सबसे दूर यहाँ अनजान शहर मे मेरे लिए आईं थी और मैं ही तुम्हारा साथ नहीं दे पाया ठीक से तभी तुम्हे किसी और के सहारे की जरूरत पड़ी !” हर्ष बोला।

” मुझे माफ़ कर दो हर्ष या मुझे सजा दो कोई मुझे वो भी मंजूर है !” मानसी रोते हुए उससे बोली।

” नहीं मानसी गलती हम दोनों की है तो सजा तुम अकेले क्यों झेलोगी और पगली तुम्हारी तो कोई गलती भी नहीं है एफबी पर बात करना किसी को पसंद करना गुनाह थोड़ी है । हमारा ये बंधन अटूट बंधन है उसे ये जरा सी हवा थोड़ी मिटा सकती है।” हर्ष उसे गले लगाते हुए बोला।

” पर मैं खुद को माफ़ कैसे करूंगी अगर तुम मुझे सजा नहीं दोगे ?” मानसी उसके सीने से लगी बोली।

” तुम्हे सजा चाहिए …. तो ठीक है तुम्हारी सजा यही है कि तुम तैयारी करो मुझे पापा बनाने की !” हर्ष मुस्कुराता हुआ बोला।

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मानसी ने हैरानी से सिर उठा हर्ष को देखा ।

” ये देखो मनाली के टिकट हम परसो घूमने जा रहे हैं और वापिस आकर मुझे जल्द से जल्द तुम्हारे जैसी एक गुड़िया चाहिए !” हर्ष उसका माथा चूमते बोला।

” ओह हर्ष !” मानसी ये बोल फिर से हर्ष के सीने से लग गई।

थोड़ी देर बाद उसने अपनी एफबी से अरुण को ब्लॉक करने को अपना अकाउंट खोला तो देखा अरुण ने उसे पहले से ब्लॉक किया हुआ था शायद दस दिन तक मानसी को अनुपस्थित देख उसे अपनी दाल गलती नही दिखी। मानसी ने भी इधर से उसे ब्लॉक कर दिया और उसका नंबर ब्लैक लिस्ट में डाल दिया। आज वो फिर से हर्ष के प्रति समर्पित होना चाहती थी तन से भी मन से भी।

दोस्तों सोशल मीडिया के जमाने में किसी से बात करना गलत नहीं और अगर पति पत्नी एक दूसरे से उपेक्षित हो किसी की तरफ आकर्षित है भी तो कुछ गलत कदम उठाने से पहले थोड़ा वक़्त खुद को दो किस रिश्ते की एहमियत है वो समझो जल्दबाजी में फैसला मत लो क्योकि सोशल मीडिया के रिश्ते एक भ्रमजाल भी होते है। यहां वक्त रहते मानसी ने उस भ्रमजाल से खुद को निकाल लिया अन्यथा कितनो की तो जिंदगी बर्बाद हो जाती है । वही हर्ष जैसे पतियों को भी समझना चाहिए तरक्की पाना अच्छा है पर परिवार टूट जाये उस कीमत पर नही। 

यहाँ हो सकता है मेरे कुछ पाठक दोस्त मेरी कहानी के अंत से इत्तेफाक ना रखे पर एक बार सोच कर देखिये क्या शादी जैसा अटूट बंधन इतना कच्चा होता है जिसे यूँही तोड़ दिया जाये। 

आपकी दोस्त

संगीता अग्रवाल

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