रिश्ते बराबर वालों से बनाए – मंजू ओमर : Moral stories in hindi

ये क्या आंटी जी आप झाड़ू लगा रही हैं काम वाली नहीं आई क्या। अरे आप खाना भी बना रही है और कपड़े भी खुद ही फैला रही है ।तो क्या हुआ बेटा सुलोचना बोली घर के काम तो घर की महिलाओं को ही करने पड़ते हैं न।हम नहीं करेंगे तो कौन करेगा।

                अरे आप क्यों करेगी काम वाली लगाइये ।मैं आ जाऊंगी तो आपको कोई काम नहीं करने दूंगी।तो क्या तुम करोगी राधिका सुलोचना बोली,अरे नहीं आंटी जी काम वाली रखेंगे सारे कामों के लिए न आप करेगी न मैं ।

            अरे सिद्धार्थ ऊपर मैं इतने छोटे छोटे कमरे क्यों बनवा रहे हो , दोनों कमरों का एक बड़ा सा कमरा बनवाओ इस छोटे से कमरे में तो मेरा सामान भी नहीं आएगा राधिका बोली। सिद्धार्थ बोला ऊपर में दो कमरे इस लिए बनवा रहा हूं कि पारूल और निखिल भी अक्सर आते हैं तो उनके भी तो एक कमरा चाहिए रूकने के लिए। पारूल और निखिल सिद्धार्थ के बहन और बहनोई थे ।

                 दरअसल सिद्धार्थ ने राधिका को पसंद किया था शादी के लिए। दोनों साथ-साथ पढ़ते थे। पांच साल बाद आज किसी पार्टी में सिद्धार्थ और राधिका का आमना-सामना हो गया था। स्कूल के समय से ही दोनों के मन में एक दूसरे के लिए कुछ था, लेकिन जाहिर दोनों ने ही नहीं किया था ।

स्कूल के बाद फिर दोनों अलग हो गए । राधिका देखने में बहुत खुबसूरत थी । वैसे तो सिद्धार्थ भी हैंडसम पर्सनालिटी का था । सिद्धार्थ फिल्मी दुनिया की चकाचौंध से बहुत प्रभावित था ।सो इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने के बाद मुम्बई का रूख कर लिया था। सिद्धार्थ के मन में सिद्धार्थ के माता-पिता ने ही पैसे की भूख जगा दी थी कि कैसे जल्दी से जल्दी खूब पैसा कमाया जाए ।

पैसे की भूख ने सिद्धार्थ में पढ़ने लिखने की रूचि को कम कर दिया था । पैसे कमाने का आसान और जल्दी से कमाने का फिल्मी दुनिया ही नजर आया।इस तरह इंजीनियरिंग की पढ़ाई भी बहुत मुश्किल से पूरी कर पाया सिद्धार्थ।हर सेमिस्टर में उसकी बैंक लग जाती थी । ग्रेजुएशन जरूरी था तो बड़ी मुश्किल में इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी कर पाए।

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              फिर सिद्धार्थ ने मुम्बई का रूख किया तो सात साल तक इधर-उधर भटकते रहे कुछ न हो पाया । थोड़ा लिखने का शौक था तो विज्ञापन वगैरह लिखने का काम मिला लेकिन सैलरी कुछ ज्यादा नहीं थी । मुम्बई में रहना मुश्किल हो रहा था। इसी बीच करोना आ गया और सबकों अपनी नौकरी छोड़ कर भागना पड़ा ।

सिद्धार्थ भी करोना से पीड़ित हो गये इस तरह वापिस घर आ गए । इसी बीच राधिका भी कहीं नौकरी पर थी वो भी वापस आ गई । दोनों एक ही शहर में थे तो किसी पार्टी में दोनों की मुलाकात हो गई।और फिर बार बार होने लगी दोनों का पुराना इश्क जाग गया। दोनों शादी को तैयार हो गए ।

                  राधिका एक पैसे वाले घर की लड़की थी । उसकी मम्मी डाक्टर थी और पापा भी , राधिका की बहन भी डाक्टर थी बहनोई भी राधिका के मम्मी के साथ ही काम पर थे ।और इधर सिद्धार्थ के पापा बैंक में क्लर्क थे ।और राधिका गाड़ी बंगले वाली थी ।

                  दोनों के स्टेटस मे काफी अंतर था । लेकिन सिद्धार्थ और राधिका को समझ में नहीं आ रहा था।अब राधिका धीरे धीरे घर आने लगी । सिद्धार्थ पूरी तरह राधिका के प्रेम में पड़कर पागल हो गया था। सुलोचना ने कहा इतने पैसे वाले घर की लड़की है कैसे अजेस्ट होगी इस घर में ।तो राधिका बोली नहीं आंटी जी मैं सब अजेस्ट कर लूंगी आप परेशान न हों ।

आप सब काम के लिए काम वाली लगाइये न ,न मैं काम करूंगी न आप करिए ,मैं और सिद्धार्थ दोनों मिलकर नौकरी करेंगे तो सब आसानी से हो जाएगा। लेकिन करोना की वजह से सिद्धार्थ की जांब चली गई थी और राधिका भी कुछ नहीं कर रही थी और सिद्धार्थ के पापा भी रिटायर हो गए थे। सिद्धार्थ के पापा का काफी पैसा बेटी की शादी में और कुछ घर बनाने में लग गए थे ।जो भी सुनता सभी सुलोचना को मना कर रहे थे कि ऐसी बेमेल शादी न करें न ही तो परेशान हो जाओगी ,

लेकिन बेटे के आगे किसी की नहीं चली । फिर राधिका के घर वाले काफी पैसे वाले थे तो सिद्धार्थ के पापा ने सोचा कि अच्छा खासा दहेज मिल जाएगा । राधिका के पापा तो इस शादी के बारे में कुछ नहीं कर रहे थै लेकिन मम्मी थोड़ा तैयार नहीं थी राधिका की जिद पर वो तैयार तो हुई सोचा सिद्धार्थ को घर जमाई बना लेंगे। और फिर इस तरह से शादी हो गई ।

           शादी के कुछ समय तो सब ठीक रहा सिद्धार्थ को वहीं अपना पुराना काम घर से करने को मिल गया।दो महीने के बाद फिर वही घर की किचकिच। सुलोचना ने हर काम वाली को तो लगा लिया लेकिन उनके काम कर जाने के बाद भी घर में काम होते हैं । राधिका कमरे से बाहर ही नहीं आती थी उसे चाय बनाना भी नहीं आता था

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वो कभी किचन में कोई काम करने कभी गई ही नहीं।काम के लिए झिकझिक होने लगी जबकि राधिका की ग़लती नही थी उसने तो पहले ही सब बता दिया था। फिर राधिका सिद्धार्थ से कभी दस हजार कभी बीस हजार रूपए मागती घूमने फिरने शापिंग करने को अब इतने पैसे वो कहां से देता इतनी तो तनख्वाह भी नहीं थी।एक बार दे भी दिया तो हर समय वो मांगती और राधिका की कोई नौकरी भी नहीं थी अभी तक।

               और फिर नतीजा ये हुआ कि बड़ी मुश्किल से छै महीने निकले और राधिका मायके जाकर बैठ गई कि अब मुझे नहीं रहना सिद्धार्थ के साथ। फिर वही तू-तू मैं-मैं।और आखिरी में कोर्ट में तलाक़ का केस लगा दिया।जज ने भी कह दिया कि जबतक शादी के एक साल नहीं हो जाता तलाक़ नहीं हो सकता।और फिर साल भर बाद केस फाइल हुआ और दोनों का तलाक हो गया।

           यही नतीजा होता है अपने बराबर शादी न करने का जब इश्क का भूत उतरता है तो सब आटे दाल का भाव समझ आ जाता है । बच्चों को भी चाहिए कि यदि बड़े कुछ समझा रहे हैं तो दिमाग से काम लें अच्छा ही समझा रहे होंगे अपनी जिद से दुनिया भर की परेशानी और टेंशन इंसान खुद पाल लेता है ।

दोस्तों कहनी कैसी लगी अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करें ।

मंजू ओमर

झांसी उत्तर प्रदेश

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