हर लड़की की तरह मेरी कहानी की नताशा का भी एक सपना होता था, जैसे उसे कोई बहुत प्यार करे, उसकी तारीफ़ करे, उसके लिए मर मिटने की बातें करे, चांद तारें ला ना पाए, तो भी कोई बात नहीं, कभी कभी उसे खुश करने के लिए ऐसी बातें किया करे, उसे सरप्राइज़ दे, उसे गिफ्ट दे, उसका पति उसे बहुत प्यार करे, उसके लिए दीवानगी की हर हदें पार कर जाए,
जैसा फ़िल्मों में होता हैं, जैसे शाहरुख खान की दीवानगी और जैसे अनुपमा का अनुज। मगर जिंदगी कोई फिल्म नहीं हैं, यह एक सच्चाई हैं, जिसको साथ रखकर हमें जीना पड़ता हैं। एक दिन नताशा की कॉलेज की सहेली सुषमा जिसकी शादी बैंगलोर में हुई थी और यहां मुंबई वह अपनी फैमिली को मिलने के लिए कुछ दिन आई थी, तो आज सुषमा वक्त निकालकर नताशा से भी मिलने उसके घर आती हैं, वैसे सुषमा एक अच्छी psychologist भी हैं, इसलिए वह सब की बात अच्छे से समझ जाती हैं और सब को अच्छे से समझा भी देती हैं।
नताशा वैसे सुषमा से कुछ भी नहीं छुपाती थी, मगर आज नताशा की बातें सुनकर सुषमा को लगा, कि कुछ तो ऐसा हैं, जो अपने अंदर नताशा ने दबाए रखा हैं, वह कुछ तो छुपा रही हैं, इसलिए सुषमा के बहुत पूछने पर फ़िर बातों बातों में नताशा ने अपने मन की उलझन के बारे में सुषमा को बताया, कि ” नवीन हर वक्त अपने काम में ही उलझा रहता हैं,
लेकिन मैं चाहती थी, कि मेरा पति मुझे प्यार से भी ज़्यादा प्यार करे, लेकिन यहां तो सब उल्टा ही हो रहा हैं, नवीन का ध्यान मुझ से ज्यादा अपने काम पर ही लगा रहता हैं, नवीन को तो ज़िंदगी में बहुत आगे बढ़ना हैं, नवीन को मैं क्या करती हूं, क्या पहनती हूं, मेरी तरफ़ उसका तो जैसे कभी ध्यान ही नहीं जाता,
लेकिन हा, अगर कभी मैं बीमार हो जाऊं या मुझे कोई भी तकलीफ हो तो वह मुझे तुरंत डॉक्टर के पास ले जाता और खुद मेरी दवाई का खयाल रखता, वैसे तो मुझे किसी भी चीज़ की तकलीफ नहीं पहुँचने देता, मैं अपनी जिंदगी जैसे चाहे जी सकती, कहीं पर आने जाने की भी रोक टोक नहीं, कभी कभी मुझ को लगता कि नवीन मुझे बहुत प्यार करता हैं,
और कभी लगता कि नवीन का मेरी तरफ ध्यान ही नहीं, इन सब बातों की वजह से मैं अपने पति को अच्छे से समझ ही नहीं पा रही, मेरी तो समझ मैं कुछ नहीं आ रहा, नवीन मुझ से प्यार करता भी हैं या नहीं, मैं खुश हूं भी या नहीं ? तब नताशा को समझाते हुए सुषमा ने कहा, कि ” तुम जैसा सोच रही हो, वैसा बिलकुल भी नहीं, नवीन भी तुमसे उतना ही प्यार करता होगा,
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जितना की तुम नवीन से करती हो, मगर वो कह नहीं पाता होगा, मैंने एकसर देखा हैं, कि एक पति पर बहुत सारी ज़िम्मेदारियां होती हैं, हर पत्नी को खासकर अपने पति से उस वक्त प्यार की आशा मत रखनी चाहिए, जब वह अपनी ज़िंदगी से लड़ रहा हो, जब वह अपनी ज़िंदगी के बहुत ही मुश्किल दौर से गुज़र रहा हो,
या तो वह बहुत परेशानी में हो, या तो वह अंदर से बिलकुल टूट चुका हो, कभी कभी तुम्हारे लिए बहुत सारा प्यार होते हुए भी वह जता नही पाते, क्योंकि यह भी हो सकता हैं, कि वह अपने घर में सब को खुश देखना चाहता हो, सब की ज़रूरत पूरी करने में कभी कभी वह अपने आप को भी भूल जाता हो,
अपनी ज़िंदगी की गाड़ी को पटरी पर लाने के लिए वह टूट चुका होता हैं, उस से यह कभी भी शिकायत भी मत करना कि उसके लिए तुम्हारा प्यार पहले जैसा नहीं रहा, बल्कि यह सोचना की उसके हालात भी तो पहले जैसे नहीं रहे, सब कुछ पहले जैसा हो जाए, इसीलिए तो वह अपने हालात से आज भी लड़ रहा हैं,
नहीं तो मर नही गया होता वह अब तक हार मान कर, कभी कभी आप जिस इंसान से प्यार करते हो, वह इंसान भी आप से उतना ही प्यार करता हैं, लेकिन यह जिंदगी हैं मेरे दोस्त, यह कोई tv सीरियल या मूवी नहीं चल रही, जिसमें हीरो और हीरोइन को प्यार के अलावा और कुछ दिखता नहीं,
असल ज़िंदगी में प्यार के अलावा बहुत सारी ज़िम्मेदारियां हीरो और हीरोइन को निभानी पड़ती हैं, और अगर वह दोनों हर ज़िम्मेदारियों को आसानी से निभा पाए, तो पिक्चर हिट हो जाती हैं और अगर निभा नहीं पाते, तो रोज़ के झगड़े और आख़िर में कई लोग जुड़ा भी हो जाते हैं, उस वक्त अपने पति में अपने लिए प्यार तलाश ने की बजाय, अपने पति से प्यार बनाए रखे, उन्हें प्यार दे, उन्हें ज़िंदगी में आगे बढ़ने का हौंसला दे, हिम्मत दे और तुम यह तभी कर पाओगे, जब तुम्हें अपने प्यार पर यकीन होगा। ”
तब नताशा अपने बीते दिनों को याद करते हुए सुषमा को कहती हैं, कि ” शादी के कुछ साल बाद ही नवीन के पापा गुज़र गए थे और नवीन घर में उनका सब से बड़ा बेटा था, अब घर की हर ज़िम्मेदारी उसके कंधों पर आ गई थी, घर का खर्चा, हमारे दो बेटों की पढ़ाई का खर्चा, मां की दवाई, उनके घुटनों के ऑपरेशन का खर्चा, बीच बीच में मेरा बीमार होना,
नवीन ने हम सब का कितना खयाल रखा हैं, यह तो मैंने आज तक सोचा ही नहीं, नवीन की दोनों बहनों की पढ़ाई भी चल रही थी, पढ़ाई के बाद नवीन ने ही अपनी दो बहनों की शादी करवाई, उनको अच्छे से बिदा किया, बड़ा भाई होने का हर फर्ज़ अच्छे से निभाया, दोनों बहनों को पापा के ना होने का एहसास तक नही होने दिया,
यहां तक कि आज तक वह मेरे साथ साथ अपनी बहनों का भी अच्छे से खयाल रखते आए हैं, हर तीज त्यौहार पर सब के लिए उपहार लेकर ही आते, बहन के घर भी किसी भी त्यौहार पर मिठाई न भेजी हो, ऐसा तो हो ही नही सकता, बीच में कोरोना की वजह से ऑफिस के साथ साथ सब काम छूट गया था,
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उसके बाद उन्होंने, अपने बलबूते पर नया बिज़नेस शुरु किया, कभी भी आराम से बैठे ही नहीं, आज यहां तो कल वहां, भागते ही रहते, इतना सब कुछ करने का बाद उन्होंने मुझ से कभी कोई शिकायत नहीं की, मैं जो भी बोलु चुपचाप सुन लेते फिर मुस्कुराकर चले जाते, मैं जब चीड़ सी जाती, तब उनको कितना भला बुरा सुनाया करती,
तब भी वह चुप रहते, मेरी हर बात को हसीं में ताल देते, मैं भी कितनी पागल हूं, जिस इंसान पर इतनी सारी ज़िम्मेदारियों का बोझ हो, वह भला प्यार के बारे में कैसे और कब सोचे ? हमें ही उनको समझना पड़ेगा और अपने आपको समझाना पड़ेगा, कि यह कोई मूवी या सीरियल नहीं, असल ज़िंदगी हैं। “
कहते हुए नताशा हंसने लगी, नताशा ने अपनी दोस्त सुषमा का बहुत बहुत शुक्रिया किया, उसे यह सब बातें समझाने के लिए, अब नताशा को अपने नवीन पर और भी ज्यादा प्यार आने लगा, नताशा नवीन का खायल और भी अच्छे से रखने लगी।
तो दोस्तों, कभी कभी ज़िंदगी में हमें अपनों का प्यार पाने के लिए उसे अच्छे से समझने की भी जरूरत रहती हैं और यह भी याद रखना, कि हर किसी के लिए ज़िम्मेदारी और प्यार दोनों को एक साथ निभाना कभी कभी मुश्किल हो जाता हैं।
स्वरचित
#ज़िम्मेदारी और प्यार
Bela…