तुमने अपने साथ लंदन जाने की बहू की टिकट क्यों बुक नहीं कराई आखिर दिक्कत क्या है तुम्हें उसे अपने साथ ले जाने में ,वह तुम्हारे बिना अकेली हो जाएगी। मनीष के पापा मनोज जी बोले। पापा कल ही कंपनी से मेल आया था मुझे परसों की मीटिंग अटेंड करनी है इसलिए मेरा जाना जरूरी है।
अगली बार आऊंगा तब देखा जाएगा। लेकिन वह तुम्हारे बिना यहाँ कैसे रहेगी? मालती जी ने भी अपने पति की हां में हां मिलाई। मां मुझसे ज्यादा बहू की जरूरत आप लोगों की थी अब रखिए ना आप अपनी संस्कारी बहू को अपने साथ। आपने ही जबरदस्ती मुझे उसके साथ बांधा है। मनीष का कहा गया एक-एक शब्द हथौड़े की तरह लगा था
बरामदे में खड़ी सीमा को। इतना तो सीमा को अपनी सुहागरात पर ही समझ में आ गया था कि यह शादी मनीष की मर्जी से नहीं हुई है जब उसने कहा था, देखो सीमा मुझे अपने रिश्ते को स्वीकार करने के लिए समय चाहिए और करवट लेकर सो गया था। उनकी शादी को एक महीना हो चुका था लेकिन सीमित वार्तालाप के अलावा उनके बीच पति-पत्नी जैसा कुछ भी नहीं था,
सीमा ने उससे पूछा भी था क्या आपकी जिंदगी में कोई और लड़की है लेकिन इस बात पर भी उसने साफ इनकार कर दिया था? सीमा ने सोचा था धीरे-धीरे उनके मन में जगह बना ही लूंगी। उसी शहर में रहने वाली मनीष की बड़ी बहन रीमा ने भी उसे अपनी भाभी को साथ ले जाने को कहा था लेकिन दो दिन बाद वह सीमा को बिना लिए ही वापस लंदन चला गया था।
सीमा के और मनीष के पिता बचपन के दोस्त थे। सीमा के पिता गांव से शहर आकर बैंक में नौकरी करने लगे थे और मनीष के पिता को शहर में कपड़े का शोरूम खुलवाने में भी उस समय उनकी आर्थिक स्थिति खराब होने की वजह से सीमा के पिता ने बहुत मदद की थी।
मनीष के पापा का व्यापार शहर में अच्छा जम गया था तो उन्होंने अपने बेटे को दसवीं के बाद बाहर ही पढ़ाया था। और वह अब लंदन की एक कंपनी में नौकरी करता है। मनीष को लगता था सीमा के पिता ने अपने अहसानो के बदले अपने दोस्त की अमीरी देखकरअपनी बेटी की शादी मनीष से करवाई है।
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अपने माता-पिता की जिद के सामने उसे झुकना पड़ा था क्योंकि उन्हें सीमा बचपन से ही बहुत पसंद थी। सीमा ने धीरे-धीरे घर की सारी जिम्मेदारी अपने सर ले ली थी। मनीष को गए हुए 6 महीने हो गए थे। इस बीच उसके माता-पिता भी सीमा को लेने दो-तीन बार आए लेकिन सीमा ने वहां जाने को साफ मना कर दिया था।
अपनी इकलौती बेटी का दुख उनसे नहीं देखा जा रहा था आखिर क्या कसूर था उसका? और मनीष के माता-पिता तो खुद को सीमा का अपराधी ही समझ बैठे थे। सीमा के घर के पास ही उसकी बचपन की सहेली मिताली की ससुराल भी थी उसके पास वह अक्सर आया जाया करती थी। मिताली को अपने पति के साथ खुश देखकर उसका भी मन करता कि काश उसका पति भी उसके साथ इसी तरह रहता।
मनीष के पिता का इसी सदमे के कारण देहांत हो गया तब मनीष 15 दिन के लिए आया था। उसकी मां की तबीयत भी अब खराब रहने लगी थी तब अपनी मां की बीमारी का बहाना बनाकर वह अपने साथ सीमा को नहीं लेकर गया था। उनका व्यापार भी अब बंद हो गया था। हां वहां से पैसे जरुर भेजता रहता था। फोन पर तो रोज ही खैर खबर भी ले लेता था। अचानक मनीष की बहन के पति की तबीयत खराब हो गई और उनकी किडनी भी बदलनी पड़ी थी जिसके चलते उनकी भी आर्थिक स्थिति बहुत खराब हो गई थी तब
उसने अपनी मां से थोड़ी सी आर्थिक सहायता मांगी।
तब उन्होंने मनीष को फोन करने के लिए सीमा से कहा तो सीमा ने अपने सारे जेवर अपनी नंद को देकर कहा कि जेवर मेरे वैसे भी किसी काम के नहीं है किसके लिए सज धज कर बैठूंगी मैं। रीमा भी अपनी भाभी की बात सुनकर रो पड़ी थी।आप उन्हें परेशान मत कीजिए अभी यह रख लो। अगले महीने वह आएंगे तब पैसे का इंतजाम हो जाएगा, सीमा इतना ही कह पाई थी।
ऑपरेशन सफलतापूर्वक हो गया था अब दामाद जी बिल्कुल ठीक हो गए थे। ठीक होने के बाद ही उन्होंने मनीष को सारी सूचना दी थी।मनीष खुद को रोक नहीं गया और वह वापस अपने देश आया तब उसे सब बातों का पता चला तो उसे बहुत दुख हुआ क्योंकि इतना कुछ हो गया था उन्होंने उसे खबर नहीं दी थी ।
मनीष अपनी बहन के पास 2 दिन रूक कर आया था कितने गुण गाए थे उसने अपनी भाभी के अपने भाई से, जीजा जी तो कहने लगे थे आज के जमाने में ऐसी बहू किसे नसीब होती है ,तेरे तो भाग खुल गए ऐसी पत्नी पा कर तुझे उसकी कदर करनी चाहिए। वह खुद भी तो देख रहा था सीमा कितने मन से माँ की सेवा करती है हर छोटी बड़ी बातों का ध्यान रखती है।
बिना किसी शिकायत के पिछले दो साल से बहुत जिम्मेदारी निभा रही है जो मेरी थी। अम्मा ने भी कम तारीफ नहीं की थी सीमा की ।।सीमा में जान बसने लगी थी उनकी। उसकी बहन को तो भगवान से कम नहीं लगती थी सीमा जिसने बिना किसी मतलब के अपने सारे गहने उसके पति के इलाज में खर्च कर दिए।
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अगर सीमा को पैसों का लालच होता तो वह यहां बिना किसी स्वार्थ के क्यों रूकती? एक दिन डाइनिंग टेबल पर मनीष का खाना लगाते हुए सीमा ने उससे कहा, दो-चार दिन के लिए दीदी के पास मां को भी छोड़ आइएगा बाबूजी की मौत के बाद घर से बाहर भी नहीं निकली है मां उनका मन भी ओर हो जाएगा।सच में पापा ने तो हीरा ही ढूंढा था मेरे लिए। मैं ही कोई कदर न कर सका। मां को ही क्यों तुम नहीं चलोगी मेरे साथ। सीमा कुछ नहीं बोली थी।
आज पहली बार मनीष ने सीमा को इतने ध्यान से देखा था उसकी नज़रें नहीं हट रही थी उसके चेहरे से। कितनी मासूम सी थी उसकी शक्ल। सीमा से नजरे मिलते ही उसने अपनी नज़रें हटा ली। और कहने लगा। तुमने अपने सारे गहने क्यों बेच दिए ,मुझे भी तो फोन करके कह सकती थी मैं अकाउंट में पैसे डलवा देता?
मुझे गहनों का क्या करना है यह सब चीज कठिन समय के लिए ही होती हैं इसलिए मैंने आपको परेशान करना सही नहीं समझा , कहते हुए सीमा रसोई में अपने काम समेटने चली गई। थोड़ी देर बाद मनीष ने रसोई में आकर कहा थोड़ा सा पानी मिलेगा।
सीमा ने मनीष को पानी दे दिया। सीमा निर्लिप्त भाव से अपना काम करती रही। मनीष ने फिर उसका हाथ पकड़ कर कहा मुझे माफ कर दो सीमा। मैं तुम्हारा गुनहगार हूं जो जी चाहे वह सजा दे सकती हो तुम मुझे। मनीष ने अपना दूसरा हाथ भी सीमा के हाथ पैर रख दिया। सीमा मनीष के गले लगकर फूट-फूट कर रोने लगी ।
मनीष ने कहा आज तुम्हे जितने आंसू बहाने हैं बहा लों अब मैं तुम्हारे होठों की मुस्कान सदा बनाए रखूं गा। मनीष ने अपनी मां के पास जाकर अपना निर्णय सुना दिया मां अब मैं नौकरी लंदन में नहीं , इसी शहर में करूंगा। नौकरी नहीं मिली तो फिर से अपना बिजनेस ही संभाल लूंगा ।
अब और नहीं भटकना मुझे पराए देश में। खुशी के मारे झरझर आंसू बहने लगे थे उसकी मां की आंखों से। तुम्हारी बाबूजी तो इसी गम में चले गए, शायद मै ही यह खुशी देखने को जिंदा थी तुम दोनों सदा खुश रहो मुझे और क्या चाहिए? आज सच में सीमा की तपस्या सफल हो गई थी। सही मायने में आज ही उसकी शादी हुई थी। आज वह बिना श्रृंगार के ही चमक रही थी।
पूजा शर्मा
स्वरचित।
betiyan.in 6th जन्मोत्सव प्रतियोगिता
कहानी-6
इतनी लंबी कठोर तपस्या । पति के पिता ने उसको बाल पन से निरंतर देखने के बाद ही पसंद किया था। शायद वे अच्छे संस्कार अपने बच्चे को नहीं दे पाए कि वह संबंधों की गरिमा का मान रख सके। दो साल के बाद बदली हुई परिस्थिति में लिये गये पति के इस निर्णय से वह निर्दोष नहीं कहा जा सकता ।
Absolutely
NICE STORY
But enough is enough!