“आयुष यह तुम क्या कह रहे हो…अब तुमने अपने लिए लड़की भी पसंद कर लिया… तुम्हें इस घर की अपनी खानदान की इज्जत बिल्कुल भी नहीं है क्या?? तुम्हारे इस कदम से तुम्हारे दादा-दादी और बड़े पापा और बड़ी मम्मी पर क्या असर पड़ेगा यह तुमने सोचा है और तुम्हारे भाई बहनों पर….!!!
बिल्कुल भी नहीं मैं बिल्कुल भी इजाजत नहीं दूंगी ….तुम्हें नौकरी करने के लिए बाहर भेजा था बेटा, शादी करने के लिए थोड़े ही!!!”शैला गुस्से में चिल्ला रही थी।
“ पर मां मेरी बात तो सुनो ..!”
“ पर वर कुछ नहीं… बस छुट्टी में तुम घर आओ… तुम्हारी शादी की बात चल रही है। जो लड़की हम सब पसंद करेंगे उसी से तुम्हारी शादी होगी!”
“पर मां मेरी बात तो सुनो….!” आयुष फिर से गिड़गिड़ाया लेकिन शैला सुनने को तैयार ही नहीं थी।
वह गुस्से में फिर से बोली
“इस खानदान की शान यह नहीं है आयुष…तुम्हें तो पता है…तुम्हारे दादा जी अपने उसूल के कितने पक्के हैं…तुम समझने की कोशिश करो बेटा…हमारे घर में कोई और जात या फिर ऐसी वैसी लड़की नहीं आ सकती…बचपना छोड़ दो…!”
“पर मां…,अब आयुष थोड़ा नाराज हो गया।
उसने आगे कहा…मां यह मेरी जिंदगी का सवाल है…अगर मेरी शादी होगी तो बस रुपाली से ….नहीं तो…!”
“नहीं तो क्या…!”आयुष ने फोन रख दिया।
शैला अवाक होकर अपने मोबाइल को देखती रही…फिर गुमसुम सी अपने पलंग पर बैठ गई।
थोड़ी देर बाद शैला के पति रमन कमरे में आए तो शैला को उदास देख कर उससे पूछा
“क्या बात है शैला… उदास क्यों हो?”
“क्या बताऊँ…!!”शैला सुबकते हुए सारी बात बता दी।
उसने आगे कहा”बाबूजी क्या कहेंगे बिना घर खानदान की बहू ले आया…क्या इज्ज़त रह जाएगी हमारी।”
पहले तो रमन जी यह सुनकर नाराज हुए फिर उन्होंने कहा
“कौन है यह लड़की…क्या करती है…?”
“साथ में काम करती है और शायद जात भी अलग है…!”
“अच्छा तो बरखुरदार लव मैरिज करेंगे…पर निकल आए हैं…बाकी बच्चों का खयाल भी नहीं किया…सबकी शादी होगी कैसे?
अभी बात करता हूँ…आने दो छुट्टियों में…!”
“सुनिए जी,दशहरे में तो द़ो महीने बाकी हैं… कहीं कुछ उंचनीच कर लिया तो मुश्किल…!ऐसा करते हैं हम चलते हैं…आयुष के पास…उसे समझा बुझा कर आते हैं।”
“ठीक कह रही हो तुम शैला।आज ही बाबूजी को बता देता हूँ।”
“शैला बहू,यह फोटो भी ले जाओ।बहुत ही ऊंचा खानदान है…पैसे वाले हैं ये लोग…हमारे आयुष की तो किस्मत ही बदल जाएगी।
कुंडली भी मिल रहे हैं।अगर आयुष को पसंद आ गई तो हम यहां शादी फाइनल कर देंगे।”
बाबूजी बहुत खुश होकर शैला से बोल रहे थे।
बाबूजी की बात सुनकर शैला और रमन दोनों के होश उड़ गए। बड़ी मुश्किल से शैला ने बाबूजी से फोटो लेते हुए कहा
“जी बाबूजी, हम पहुंच कर ही बात कर लेते हैं।”
“ बहुत अच्छा रहेगा उसे हां करवा कर ही आना।”
“ जी बाबूजी!”
शैला कार में बैठने के बाद फोटो खोलकर देखने लगी।
“राजसी..”जैसा नाम था वैसी ही खूबसूरत और धनाढ्य परिवार की बेटी।
इससे तो वह मिल चुकी है…मंदिर में…।जब उसे देखने के बहाने वह मंदिर गई थी।
महंगे हीरे के सेट और मेकअप में लदी फदी राजसी सिर्फ न उसके बल्कि पूरे घर के दिल में बस गई थी।
पता नहीं ये आयुष किसे पसंद कर लिया है…!काश वह भी इसे पसंद कर ले और शादी के लिए हाँ कर दे।”
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“मम्मी पापा आपलोग यहां अचानक?”आयुष ने उन दोनों को सामने अपने घर में देखकर आश्चर्य से बोला।
आइए पापा…मम्मी!”
आयुष उन्हें भीतर लिवाकर अपने ड्राइंग रूम में बैठाते हुए कहा
“मैं फटाफट चाय ले आता हूँ…चाय पीकर आपलोग तैयार हो जाइएगा।”
जबतक दोनों नहाकर तैयार हो गए तबतक आयुष ने अपनी मेड से नाश्ता बनवा लिया था।
नाश्ता करते हुए आयुष ने कहा”मैं तो अस्पताल के लिए निकल जाऊंगा। आपलोगों के लिए ड्राइवर भेज दूंगा।
आपलोग अकेले घर में क्या कीजिएगा.. घूम लीजिए।”
“बेटा तुमसे बात करना है।”शैला ने तटस्थ होकर कहा
तुम्हारे दादाजी ने तुम्हारे लिए लड़की पसंद की है वह हमलोगों को भी पसंद है।बस तुम पहले फोटो देख लो।”
“मां,मैंने तो पहले ही क्लियर कर दिया था ना…मेरी जिंदगी में बस रुपाली ही है और कोई नहीं…आप समझ क्यों नहीं रहीं हैं…!”आयुष की आँखें डबडबा गईं।
“पर बेटा तुम्हें हम सब का,अपने घर का, इस खानदान के बारे में सोचना चाहिए।”
“ ऐसी लड़की से शादी करके क्या फायदा जिसके साथ मेरा मन ही ना जुड़ा हो, चाहे वह कितने भी बड़े खानदान के हो कितनी भी खूबसूरत हो या कितनी भी अच्छी।
एक बार तुम रूपाली से मिल लो फिर अगर तुम्हें वह नहीं पसंद आएगी तो मैं ना बोल दूंगा लेकिन शादी तो मैं नहीं कर पाऊंगा …क्योंकि मैं अपने कारण और आपके कारण किसी और लड़की की जिंदगी बर्बाद नहीं करना चाहता।”
बेटे का जवाब पाकर शैला निरुत्तर हो गई।
आयुष अस्पताल के लिए निकल गया। जिस अस्पताल में आयुष डॉक्टर था उसी में रूपाली भी डॉक्टर थी।
दोनों साथ में ही पढ़े थे। धीरे-धीरे दोनों में प्यार हो गया और शादी करने के लिए दोनों तैयार हों गए।
रूपाली के पिता रमन कुमार सिन्हा एक वकील थे और मां सरकारी स्कूल में टीचर। एक साधारण मध्यमवर्गीय परिवार था। आयुष के अस्पताल जाने के बाद रमन कुमार रमन जी ने शैला से कहा
”यह रुपाली का पिता हमारे खानदान में कैसे शादी कर सकता है? इसके पास देने को तो कुछ भी नहीं है!
सारी पूंजी तो इसमें अपनी बेटी पर लगा दी होगी डॉक्टर बनाने में और आगे क्या देगा !
हमारी क्या इज्जत रह जाएगी?”
दोपहर में लंच के बाद शैला और रमन दोनों घूमने के लिए निकल गए। आयुष ने गाड़ी और ड्राइवर दोनों भेज दिया था।
मंदिर में दर्शन करते हुए ना जाने शैला का पैर कैसे लड़खड़ा गया ।
वह सीढ़ियों से अचानक ही लुढ़कती हुई नीचे गिर गई ।
उनके पैरों में काफी चोट आ गई । यह देखकर के पति रमन हडबढ़ा गए।
आयुष भी हड़बड़ा गया। शैला को इमीडिएट अस्पताल में भर्ती कर दिया गया।
शैला के पांव में फ्रैक्चर तो नहीं था लेकिन अंदर तक क्रैंप आ चुका था जिसके कारण शैला चलने फिरने में पूरी तरह से लाचार हो गई।
एक दिन शैला अस्पताल में थी तभी आयुष ने वहां मौजूद अपने सहकर्मी डॉक्टर से परिचय कराते हुए कहा
“ मां इनसे मिलो यह है रुपाली सिन्हा मेरी दोस्त।”
“नमस्ते आंटी!, रूपाली में हाथ जोड़कर नमस्ते किया।
“ नमस्ते बेटा! शैला ने भी नमस्ते का जवाब दिया। उसने गौर से रूपाली को देखा
आंखों में चश्मा, बालों में पोनीटेल, आंखों में काजल, माथे पर छोटी सी काली बिंदी बिना किसी मेकअप के भी रूपाली का चेहरा चमक रहा था क्योंकि उसकी अपनी चमक थी, अंदरूनी चमक। अपने कामयाबी की, अपनी उपलब्धि की।
उसने शैला को सांत्वना देते हुए कहा
“आप बहुत जल्दी ठीक हो जाएंगी आंटी, टेंशन मत लीजिए।”
“हां बेटा !”रूपाली ही उनका इलाज भी कर रही थी।
न जाने क्यों रुपाली राजसी के आगे फीकी लगती थी।
शैला उसे हजम ही नहीं कर पा रही थी।
शैला को जल्दी ही अस्पताल से छुट्टी मिल गई।
बेटा डॉक्टर था और इस अस्पताल में काम भी करता था इसलिए उसे छुट्टी तो मिल गई।
अब आयुष उन्हें लेकर घर आ गया ।अभी उसकी उसका पैर भी ठीक नहीं था।
वह पूरी तरह से खाने पीने पर अपने मेड पर ही निर्भर थी जो उससे बिल्कुल भी पसंद नहीं आ रहा था।
रूपाली उससे फोन पर बात करती रहती थी।
एक दिन झल्लाकर शैला ने रुपाली से कहा “पता नहीं मेरा पर कब ठीक होगा! मेड के हाथ का खाना खाकर तो मेरा दिमाग खराब हो गया है…!”
उसी दिन से रूपाली शैला के लिए सब्जी,कभी खाना कभी नाश्ता बनाकर लाने लगी।
वह घर आने के बाद उसे बहुत प्यार से खिलाती भी थी।
आयुष ने रूपाली से कहा
“ रूपाली,मेरी मां की देखभाल करना तुम्हारी जिम्मेदारी है ।उनको खुश रखना तुम्हारी जिम्मेदारी है ।”
रूपाली हंसते हुए बोली
“मैं समझती हूं, तुम्हारे मां पापा मेरी जिम्मेदारी है इसलिए तो मैं मां की पसंद की सब्जियां लेकर आती हूं ।”
रूपाली एक दिन गुड़ की खीर बनाकर ले आई।
“यह तुम्हें किसने बताया कि मुझे गुड़ की खीर पसंद है?”
“आयुष ने बताया था आंटी!”
“आंटी मत बोलो मां बोलो । मुझे अपने आयुष की पसंद पर मुझे बहुत ही ज्यादा गर्व है।
मुझे अपना बेटा ही बहुत ज्यादा पसंद है ।
उसने मुझे गहरे अंधकार से बाहर निकाला है ।
बेटा, मुझे माफ कर दो।मैं का़ंच को सोना समझ बैठी थी।”
“यह तो हर घर का नियम है, मेरे पापा भी आयुष को देखने और मिलने के बाद ही तैयार हुए थे।”रुपाली बोली।
ठीक होकर घर लौटने के बाद शैला ने अपने ससुर से कहा
“ मैंने अपने बेटे के लिए बहुत ही अच्छी लड़की देख ली है।
उसे न खानदान की जरूरत है और ना पैसे की।
वह लड़की ही अपने आप में गुणों की खान है।
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प्रेषिका–सीमा प्रियदर्शिनी सहाय
मौलिक और अप्रकाशित रचना
#बेटियाँ 6वीं जन्मोत्सव
(कहानी-1)