कुछ दिनो से विनय जी अपने कमरे मे चुपचाप गुमसुम से बिस्तर पर लेटे रह्ते हैं घरवालों से कोई खास बातचीत नही होती।विनय जी का परिवार एक सुखद परिवार हैं दो बेटे बहू पोते पोतिया, एक बेटी जिसका ब्याह बहुत ही अच्छे घर मे हुआ हैं दामाद भी बेटे की तरह उनसे प्यार करते हैं
बहुये भी बेटी की तरह उनका ख्याल रखते हैं फिर इस तनाव का क्या कारण हैं विनय जी की पत्नी भी सोच सोच कर परेशान हो रही है,कितनी बार कोशिश की विनय जी से बात करने की लेकिन वह किसी से कुछ भी नही कह रहे।
आज मन्दिर से आते समय विनय जी के एक दोस्त मिल गए उनके बारे मे पूछताछ करने लगे”कैसी तबियत हैं विनय भैया की ,विनय भैया और रमेश भैया मे बहुत अच्छी दोस्ती थी साथ मे अक्सर पार्क मे बैठा करते थे दोनो नौकरी से रिटायर थे तो उनकी आपस मे बहुत बनती थी
दोनो एक दुसरे की मानसिक स्थितियो को समझते थे रमेश भैया के अचानक हार्ट अटेक से मृत्यू हो जाने पर विनय भैया को काफी दुख पहुंचा हैं उस दिन पार्क मे चुपचाप गुमसुम से बैठे थे आंखो मे आंसू छलछला रहे थे उस दिन के बाद पार्क आना ही बन्द हो गया,अच्छा भाभी चलता हुँ विनय भैया को मेरा प्रणाम कहिएगा”
विनय जी की पत्नी यह सब सुनकर समझ गई थी विनय जी के तनाव का कारण लेकिन वह तो विनय जी को बहुत ही साहसी व्यक्तित्व के रुप मे पहचानती हैं इस जीवन मे ऐसे उतार चढ़ाव न जाने कितनी बार आए हैं उन्होने लोगो को हिम्मत दी हैं कई बार समझाया हैं और आज खुद इस तनाव मे जी रहे हैं रमेश भाई साहब का जाना उनका मन शायद स्वीकार नही कर रहा ,उन्हे इस दुख से बहार निकालना ही होगा।
विनय जी का नाश्ता लेकर उनकी धर्म पत्नी कमरे मे प्रवेश की विनय जी चुपचाप कुर्सी पर बैठे थे उन्हे सिर्फ एक रोटी खाई और कहा ले जाओ और मन नही हैं”
“एक बात कहुँ आपसे रमेश भैया का जाना बहुत ही दुखद हैं हम सबको बहुत दुख हुआ हैं लेकिन आपका इस तरह से हर समय दुखी रहना सभी को तनाव दे रहा हैं आप खुद भी तनाव मे रह रहे हैं इस तरह से आप बिमार हो जाएंगे सभी बच्चे आपको इस तरह देखकर काफी तनाव मे हैं”विनय जी की पत्नी ने उन्हे समझाते हुए कहा।
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विनय जी एक छोटे बच्चे की तरह फफक के रो पडे”रमेश मेरा दोस्त था उसके बिना मुझे जिन्दगी अधुरी लगाती हैं इन दो तीन सालो मे जब से रीटायर हुआ हुँ उसी के साथ सब्जी के बाज़ार ,साथ मे चाय पीना ,पार्क मे सुबह शाम टहलना दुख सुख की सभी बाते उससे होती थी,उसके चले जाने से ऐसा लग रहा हैं जैसा मेरे जीवन का एक महत्वपुर्ण अंग मुझे अलग हो गया,अब मैं अकेला हो गया,विनय जी एक छोटे बच्चे की तरह बोले जा रहे थे जैसे उसका कोई प्यारा उससे बिछड जाने पर दुखी होते हैं।
“विनय जी यह जीवन हैं इसमे मिलना और बिछ्डड हैं यह पृकृति का नियम हैं इसे स्वीकार कर लेना चाहिये और आगे बढ़ना चाहिये,आप घर से बाहर निकालए सबसे मिलिये मन अच्छा होगा”विनय जी की पत्नी ने विनय जी को समझाते हुए कहा।
खाने की थाली को उठाते हुए विनय जी की पत्नी कुछ सोचते हुए बाहर निकल गई,विनय जी फिर से सो गए।
दुसरी सुबह विनय जी को उनकी पत्नी उठाने आई थी टहलने जाने के लिए।विनय जी राजी नही हुए फिर बार बार अनुरोध करने पर विनय जी उठे साथ मे उनकी पत्नी भी आज टहलने जा रही थी कुछ देर बाद दोनो पार्क की कुर्सी पर बैठ गए विनय जी धीरे धीरे समान्य हो रहे थे तुम रोज आओगी मेरे साथ विनय जी ने जैसे ही कहा उनकी पत्नी ने मुस्कुराते हुए कहा हाँ।
सच ही तो हैं हर मोड़ पर जब आप खुद को अकेला पाओगे आपकी जीवन साथी खड़ी मिलेगी आप का साथ देने के लिए।
आराधना सेन