रिश्ते को भी रिचार्ज करना पड़ता है (भाग-5) – आरती झा आद्या : Moral stories in hindi

वह उन्हें देखते हुए मुस्कराते हुए कहती है, “क्या हो गया, सबके हाथ रुक क्यों गए। हाँ, रसोई के साथ-साथ जीवन को भी नमक मिर्च के सही अनुपात के साथ बनाना काफी महत्वपूर्ण होता है। जीवन में सामाजिक, आर्थिक और नैतिक पहलुओं को सही रूप से संतुलित रखा जाना चाहिए, क्यों नवीन गलत कह रहे हैं हम क्या?” सुचित्रा सभी को अपनी ओर देखती हुई जीवन का फलसफा बताती हुई नवीन को संबोधित करती है।

नवीन प्रत्युत्तर में कुछ नहीं कहता है। रात के खाने के बाद सब वही बैठ बातें करने लगते हैं और सुपर्णा रसोई में जाकर बर्तन की सफाई करने लगी।

“सुपर्णा.. यहाँ आ जा.. अब रसोई में क्या कर रही है।” बोलती हुई सुचित्रा रसोई में चली जाती है।

“आशा..”कमला काम करने नहीं आ रही है क्या आजकल, छुट्टी पर है क्या?” सुचित्रा अपनी बहू आशा से पूछती है।

“वो अम्मा.. कमला को हटा दिया हमने”.. आशा धीरे से अस्पष्ट आवाज में कहती है।

“अरे दादी.. तीन औरतें घर पर हैं तो काम वाली की क्या जरूरत..आप यहाँ बैठो”.. नवीन उठ कर कंधे से पकड़ दादी को बिठाता हुआ बोलता है।

“क्या मतलब हुआ इस बात का.. हम समझे नहीं”.. नवीन की ओर असमंजस के भाव से देखती हुई सुचित्रा कहती है।

“दादी… मम्मी ने कहा हम तीन औरतें मिलकर घर का काम कर लेंगी। काम करवाने के लिए किसी की जरूरत नहीं है। इसीलिए कमला को मम्मी ने हटा दिया।” नवीन बताता है।

“और उसकी जगह बिना किसी वेतन के तेरी पत्नी को मिल गई.. क्यूँ है ना।” बोलते हुए सुचित्रा का मुँह कड़वा हो गया था।

“क्या बात कर रही हो अम्मा। अपने घर का काम करने का मतलब काम वाली होना नहीं है।” सुरेंद्र बीच में कहता है।

“अच्छा तभी जब से हम आए हैं, तेरी पत्नी और बेटी बैठी हुई है और तेरी बहू चकरघिन्नी बनी हुई है, घर तो सिर्फ तेरी बहू का है ना, बाकी सब के लिए ये धर्मशाला है।” सुचित्रा कसैले मुँह से ही बोलती है।

“कल तुम चारों मिलकर घर का काम करो और हम और सुपर्णा सिनेमा जाएंगे।” सुचित्रा कहती है ।

“हम सब चलते हैं ना दादी”.. नीतू कहती है।

“सुपर्णा.. इधर सुन.. कल के सिनेमा के दो टिकट हमारे और तुम्हारे लिए मोबाइल से ले.. फिर वहाँ से हम तुम्हारे मायके जाएंगे और दोपहर का खाना वही खाएंगे.. बता देना उन्हें.. हो सकता है रात का खाना भी वही ले हम इसलिए तुम लोग इंतजार मत करना हमारा”… सुचित्रा फरमान सुना देती है।

सुनकर आशा और नीतू की आँखों में गुस्सा का भाव आ गया था और और दोनों वहाॅं से वे उठकर चली गईं। लेकिन सुपर्णा के चेहरे पर खुशी और आश्चर्य का भाव  था। वह ऑंखों से धन्यवाद कहकर सुचित्रा की ओर आदाब से हल्का सा सिर झुकाती है। उसके चेहरे पर मुस्कान थी, जो उसके खुशी को व्यक्त करने के लिए काफी था। इस मनोरंजन भरे योजना ने उसके चेहरे को खुशी और उत्साह की अभिव्यक्ति से सराबोर कर दिया था। ऐसा प्रतीत हो रहा था, मानो वह इस खास क्षण की प्रतीक्षा ही कर रही थी और नवीन वही बैठा दोनों के ऑंखों से भावों का आदान प्रदान देख रहा था।

***”

सुबह का नाश्ता कर सुचित्रा और सुपर्णा सिनेमा देखने चली गई। सिनेमा हॉल में पहुॅंचकर सुचित्रा और सुपर्णा ने अपनी सीटें ली और उत्साह से फिल्म का आनंद लेने के लिए तैयार हो गई। चारों ओर का माहौल संवेदनशील और उत्साह से भरा हुआ था। जैसे ही फिल्म शुरू हुई, उनकी आंखें स्क्रीन पर बड़े ही ध्यान से टिकी रही और वे हर पल को पूरी तरह से आनंदित होकर गुजारने लगी। उन्होंने फिल्म के हर सीन को भावनात्मक रूप से महसूस किया और उसकी कहानी में खो गई। इस अनोखे अनुभव के दौरान वे एक-दूसरे के साथ बने हुए बंधन को और भी मजबूत महसूस करने लगी। फिल्म के समापन के साथ वे उत्सुकता और आनंद से फिल्म के संवादों और दृश्यों की चर्चा करते हुए सिनेमा हॉल से बाहर निकले। यह एक यादगार और आनंदमय समय था जिसने उनकी दोस्ती को और भी अधिक मजबूती दी थी।

अपने मम्मी पापा भाई से मिलकर सुपर्णा बहुत खुश थी और पहले की तरह ही चहक रही थी। उस प्यारे लम्हें में  उसकी आँखों में खुशी की चमक थी और उसके होंठों पर मुस्कान बिखरी हुई थी। वो पहले की तरह ही चहक रही थी, जैसे कोई मस्ती से भरी बच्ची हो, जो खुशी के समुद्र में लहरा रही थीं।

“अपने लिए बोलना सीख सुपर्णा”.. घर लौटते हुए सुचित्रा कहती है।

“तुझे क्या लगता है, ये तफरी करने हम क्यों निकले हैं।” 

“ऐसे टुकुर टुकुर क्या देख रही है, वो तू ही है ना जिसने नवीन के आई लव यू कहने का इंतजार नहीं किया।” अपने कथन का उत्तर नहीं मिलने पर सुचित्रा फिर से पूछती है।

“आपको मालूम है कि, ओह माई गॉड दादी, नवीन ने आपको”…दोनों हाथों से अपने खुले लहराते बालों को समेटती हुई सुपर्णा आश्चर्य से भर गई। उसके चेहरे पर लज्जा का हल्का लाल रंग चढ़ गया था, जिसे छुपाने के लिए वो गाड़ी के बाहर देखने लगी। उसकी आंखों में हैरानी थी, उसे ऐसा लग रहा था जैसे कि उसकी कोई गलती पकड़ी गई हो।

“तेरा चेहरा हल्का गुलाबी हो गया और उसकी आँखें झुक गईं, क्यों।” सुपर्णा के चेहरे पर संकोच देख सुचित्रा पूछती है।

सुचित्रा सुपर्णा के संकोच को देखती हुई अपनी बात जारी रखती है, “बस हम ये कह रहे हैं, जैसे तूने वो निर्णय लिया, वैसे ही और भी निर्णय ले सकती है। तुझमें और नीतू में कोई अंतर नहीं है।”

***

“तब कैसा रहा तुम लोग का दिन। हमारा तो बहुत अच्छा रहा।” घर में घुसते हुए सुचित्रा बोलती है।

नीतू बिना कुछ बोले सुचित्रा की ओर ना देख सुपर्णा की ओर गुस्से से देख अपने कमरे में चली गई।

घर पर आशा ने तो कोई काम नहीं किया। सारा काम अकेले नीतू को ही करना पड़ा और वो अब तक थक कर चूर हो चुकी थी और इस बात का गुस्सा वो सुपर्णा पर उतारना चाहती थी लेकिन दादी की उपस्थिति में वो यह करने में असमर्थ थी।

सुपर्णा जब घर में प्रवेश करती है तो उसके होंठों पर खुशी की अनंत खिलखिलाहट थी, जो उसके चेहरे पर सजीवता का संदेश ला रही थी। उसकी आंखों में खुशी की बौछार थी, जो उसके उत्साह को प्रकट कर रही थी। जैसे कोई बच्चा जो अपने पसंदीदा खिलौने को पाकर हर्षित हो जाता है, उसी तरह वह भी बहुत ही उत्साहित और प्रसन्न थी। लेकिन नीतू के क्रोध को महसूस करते ही सुपर्णा का खिलखिलाता चेहरा उतर गया, मानो समंदर का पानी अचनाक किसी आशंका को महसूस कर शांत हो गया हो।

सुपर्णा हमेशा खुश खुश रहती है या यूं कहा जाए कि खुशी उसके स्वभाव में रचा बसा हुआ था, जो बिना किसी कारण भी मुखरित होता रहता है। लेकिन किसी के कुछ कहते ही वही मुखरित भावना कछुआ की भांति अपनी खोल में सिमट कर खुद को उदासी के घेरे में कैद कर लेता।

और नवीन चाय नाश्ता कर अपने कमरे में जाकर आराम करने लगता है। सुपर्णा से वो ना कोई खास बात करता है और ना ही मनुहार करता। सुचित्रा इन सब बातों पर दिन ब दिन गौर कर रही थी।

आज भी कितनी खुश थी वो। दादी आज आपके पसंद का खाना बनाऊँगी और नीतू के कहने पर कि पढ़ी लिखी भाभी होकर भी मेरा प्रोजेक्ट नहीं हुआ, फिर से चेहरे पर उदासी की परत चढ़ गई।

“सुपर्णा जरा कमरे की लाइट ऑन कर दे”.. सुचित्रा सुपर्णा को आवाज देती है।

सुपर्णा आकर लाइट ऑन कर बिना बोले जाने लगती है।

“तू भी ऑन ऑफ बटन हो गई है सुपर्णा”.. सुचित्रा उसे कमरे से बाहर जाते देख जोर से कहती है।

“जी दादी.. मैं समझी नहीं”.. सुपर्णा घूम कर दादी से कहती है।

“समझेगी, तू भी समझेगी और रात के खाने के समय और सबको भी समझाते हैं।” सुचित्रा कहती है। 

“दादी.. मम्मी जी नाराज होंगी। फ़िर नवीन भी नाराज होगा कि मेरे कारण कलह होता है।” सुपर्णा की आवाज में भय घुला हुआ था। 

“कुछ नहीं होगा। आज तू हमारी पसंद का खाना बनाने वाली थी, याद है ना।” मुस्कुराते हुए सुचित्रा कहती है। 

“जी दादी.. आपकी पसंद का ही सब कुछ बनाऊँगी।” सुपर्णा कहती है। 

“चल तब ठीक है.. हमें तो लगा था अब तू ऑफ हो गई है, कहीं हमारी पसंद भूल ना गई हो और हम अपनी पसंद के सपने देखते ही ना रह जाएं।” हँस कर सुचित्रा कहती है। 

***

“हमें तुम लोग से कुछ बातें करनी है। इसलिए खाने के बाद कोई कमरे में नहीं जाएगा।” रात के खाने के समय सुचित्रा कहती है। 

“कुछ विशेष है क्या अम्मा”.. सुरेंद्र पूछता है। 

“ऐसा ही समझ ले”.. बोलकर सुचित्रा खाना खाने में लग जाती है। 

“नवीन सबसे पहले तो तू बता, आता है, खाता है और लंबा हो जाता है। किसी को ब्याह कर भी लाया है, उसके प्रति भी तेरी कोई जिम्मेदारी है। सुपर्णा ने तो सबको खुश करने के चक्कर में मुँह में दही जमा रखा है। लेकिन तुझे भी इसकी कोई कदर नहीं है या छोड़ो मुझे क्या करना की तर्ज़ पर तू अपनी जिम्मेदारी से बचने के कोशिश रहा है।”

“और आशा तुम.. तुम्हारे साथ हम ने कभी सास की तरह व्यवहार नहीं किया क्यूँकि हमारे कई अरमान हमारी सास के चरणों में स्वाहा हो गए। हम ने सोचा हम वैसी सास नहीं बनेंगे, अपनी बहू के सारे अरमान पूरे करवाएंगे। ना तुम्हारे पढ़ने.. पहनने ओढ़ने.. आने जाने। कोई निर्णय लेने पर भी रोक नहीं लगाई हम ने। हम चाहते थे अपने पैरों पर खड़ी हो.. नौकरी करो। लेकिन तुमने कहा तुम्हें नौकरी नहीं करनी, हम ने उसका भी सम्मान नहीं किया। अरे अपनी बहू की माँ नहीं बन सकती, अच्छी सास तो बन जाती। लोग कहते हैं सास के खराब व्यवहार से तंग आई बहू अच्छी सास नहीं बन पाती है। लेकिन तुम किस बात का बदला ले रही हो अपनी बहू से। हमने कमला को फोन कर दिया है.. कल से वो काम पर आएगी।”

“तुमसे क्या कहूँ नीतू.. पढ़ना लिखना तो बेकार गया तुम्हारा। बस जो किताब में लिखा है वो रट लिया तुमने शायद.. परीक्षा में पास होने भर। माँ की गलतियों में अपना फायदा देखते हुए साथ देती रही। तुम्हारी भाभी के आने से पहले तक कॉलेज का सारा काम खुद ही करती थी ना कि उसके लिए किसी मास्टर को बुलाया हुआ था तुमने। भाभी की अच्छाई का लाभ ले रही हो तो इज्जत करना सीखो। भाभी की सहेली नहीं बन सकती तो नन्द तो बन जा अच्छी भली।”

“सुरेंद्र कभी तो घर के मुखिया की तरह भी रह लिया कर.. मूँछों पर ताव देता बाहर के ही झंझट सुलझाता रहता है। कभी घर के अंदर भी झाँक लिया कर।” 

सुचित्रा एक स्वर में सबको आईना दिखा रही थी और उन्हें उनकी जिंदगी की ऊॅंच-नीच बता रही थी।

और तुम सुपर्णा इतनी पढ़ी लिखी हो.. अच्छी भली नौकरी छोड़ कर यहाँ चली आई। हम ने सोचा चलो कोई बात नहीं प्रतिभाशाली लड़की है। यहाँ भी अच्छी नौकरी मिल जाएगी। लेकिन तुमने तो अपनी सारी प्रतिभा ऑन ऑफ बटन बनने में लगा दिया। तुम सब ने इसे ऑन ऑफ बटन बनने पर मजबूर कर दिया। सबसे ज्यादा तुमने नवीन.. दादी एक एक कर सबकी क्लास लगाती हुई बोल रही थी। 

“पर ये ऑन ऑफ बटन क्या है दादी”.. नवीन की आवाज में झल्लाहट थी। 

“बिजली का बटन होता है ना बेटा। जब इच्छा हुई ऑन कर दिया.. काम हो गया तो ऑफ कर दिया.. हँसती खिलखिलाती सुपर्ण वही हो गई है। किसी ने चार बात सुना दिया तो मन उदास हो गया तो ऑफ बटन हो गई। किसी को इससे काम लेना है तो दो चार बातें प्यार से बोल दिया.. तो ऑन हो गई”… दादी ऑन ऑफ बटन से सुपर्ण की तुलना करते हुए कहती हैं। 

“लेकिन मैंने तो इससे ऐसा करने नहीं कहा”.. नवीन अपना पक्ष रखता है। 

“सब कुछ बोला ही नहीं जाता है नवीन। एक बार भी तूने इससे नहीं बोला होगा कि नौकरी कर लो.. नहीं तो फिर से थिएटर करो। याद है ना इसकी पहली मुहब्बत निर्देशन थी और दूसरी तुम। तुमने ही बताया था ना नवीन ये हमें और इस पगली ने उससे बेवफाई की और इसकी दूसरी मुहब्बत तुम तो बेवफ़ा ही निकले, जिसने इसकी पसंद नापसंद जानते हुए भी नजरंदाज कर दिया।” सुचित्रा अपने पोते नवीन की ओर देखती हुई कहती है। 

“लेकिन अब बहुत हुआ। अब सुपर्णा ऑन ऑफ बटन की तरह जिंदगी नहीं जिएगी। कल से तुम सब पहले की तरह अपना अपना काम करोगे और नवीन कल से तू पंद्रह दिन की छुट्टी ले रहा है और जहाँ सुपर्णा चाहे वहाँ घुमाने ले जा रहा है। कोई किन्तु परंतु नहीं.. यहाँ अब पंद्रह दिन ऑन ऑफ बटन बन कर रहेगा। तुम दोनों के रिश्ते को रिचार्ज करने के लिए इससे अच्छा उपाय फिलहाल नहीं है हमारे पास और आते ही सुपर्णा नौकरी खोजो अभियान में लगने वाली हो तुम।” कहकर सुचित्रा मुस्कुराती है।

मनाली के लिए निकलते समय आँखों में खुशी के आँसू लिए जैसे ही सुपर्णा दादी के पैर छूने झुकती है.. सुचित्रा बीच में ही रोक गले लगा लेती है और कहती है.. “जा ऑन ऑफ बटन जा.. जी ले अपनी जिंदगी। 

दादी आप दादी नहीं “दादी द ग्रेट” हो.. जो बिना कुछ कहे ही सारे एहसास समझ गई”…सुपर्णा दादी के आलिंगन में दादी के कान में कहती है और दोनों फिर से पुराने दिनों की तरह खिलखिला कर हँसने लगी। 

 

समाप्त

आरती झा आद्या

दिल्ली

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