क्या पापा… सुबह सुबह खटर पटर की आवाज लगा रखी है स्टोर रूम में..???
रात के चार बज रहे है ….. सबकी नींद खराब कर दी…..
कर क्या कर रहे है आप यहां ??
बतायेंगे…. ??
झल्लाता हुआ बेटा राजीव अपने पिता कैलाशजी से बोला….. जिनकी उमर यही कोई 75 वर्ष के आस पास रही होगी…..
पास में ही आँख मलती बहू मालती भी खड़ी थी ……
रात के चार य़ा सुबह के चार बज रहे है बिटवा ??
तेरी उमर में तो हम चार बजे उठकर लोटा लेकर चले ज़ाते थे खेतों में……..
लौटते बखत ट्यूबवेल में डुबकी भी मार आते थे……
स्टोर रूम में कुछ ढूंढते हुए एनक ऊपर की ओर किये कैलाशजी बोले….
पापा……
प्रवचन बंद करिये ….
अपने समय की बात बार बार आप करना नहीं अब से आप ……
वो पिछवाड़े पर मक्खियां मार मार शौच करना……
रात को बैंड वालों के बाजे जैसा मच्छरों का सुरीला गाना सुनना ……
वो ही बखत ……
राजीव गुस्से में बोला….. नींद आँखों में भरी थी उसके…..
प्रवचन तो तुझे जब तक ज़िन्दा हूँ सुनने ही पड़ेंगे ……
एक बार चला जाऊँगा अपने कान्हा के पास तो खटर पटर भी बंद हो जायेगी…… तब तक तो झेलना ही पड़ेगा…..
कैलाश जी अभी भी कुछ खोजबीन में लगे थे…….
पास में खड़ी बहूरानी ने टोहनी मारते हुए पति राजीव से इशारा किया….
पूछो तो सही कर क्या रहे है यहां….??
पापा… होली की दो दिन की ही छुट्टी मिली है मुझे ….
चैन से सोने भी नहीं दे रहे आप….
पूरा सामान इधर का उधर कर दिया है…….
क्या ढूंढ रहे है आप…..
गुस्से में राजीव बोला….
बहू…
पिछली साल…. होली पर कई गुलाल के पैकेट बच गये थे …..
तू तो फेंक रही थी…….
पर मैने सारे उठाकर एक हरी सी पन्नी में संजोकर इलास्टिक लगाकर रख दिये थे स्टोर रूम में…….
ढूंढ रहा हूँ वो हरी पन्नी…
मिल ही नहीं रही….
अभी सब संगी साथी आते होंगे रंग खेलने…..
तूने देखे हो तो बता दे…..
कैलाश जी अभी भी सामानों की ओर देख रहे थे….. और बोले जा रहे थे ……
दोनों बेटे बहू ने यह सुन अपने माथे पर हाथ रख लिया….
पापा….
आप वो बचे कुचे रंग खोज रहे है …..
राजीव बोला….
तू बचे कुचे कह रहा…. उन रंगो की वजह से पूरी रात नींद नहीं आयी तेरे बाप को…….
इधर से उधर घूमता रहा चकरघिन्नी सा …….
जब भोर हो गयी तो आ गया खोजने ……
ह्द कर दी पापा आपने भी ……
मैं बहुत सारे रंग ले आया हुआ बाजार से….
अब रहने भी दीजिये उस हरी पन्नी को……
राजीव बोला….
चुप कर …..
पुरानी चीजें क्या फेंक दी जायें ….
वो भी तो पैसे से ही आयेँ थे रंग…..
कैलाश जी के माथे से पसीना आने लगा था पर वो हरी रंग की पन्नी मिलने का नाम नहीं ले रही थी ….
तभी बहूरानी मालती बोली….
पापा जी……
वो देखिये……हरी पन्नी….
वही होगी….. शायद…..
कहां बहू…….??
कैलाश जी के कदम लड़खड़ा गये थे उत्सुकता में………
वो पापा जी…
वो देखिये लोहे की बाल्टी के पास….
बहू मालती ने आगे बढ़ वो हरी पन्नी उठाकर कैलाश जी के हाथों में थमा दी…..
कैलाश जी की आँखों में वो हरी पन्नी देख चमक आ गयी…
खुश रह बहू तू ….
कैलाश जी बोले……
अब तो मिल गयी पापा….
अब तो सो ले हम …. अब कोई खटर पटर मत करियेगा …..
राजीव और बहू मालती अपने कमरे की ओर जाने को मुड़े ….
कैलाश जी कुछ ना बोले….
उस हरी पन्नी को निहारते रहे….
उसे अपने गालों के पास ला चूमते रहे…..
उनकी आँखों से झरझर आंसू बह रहे थे ….
जब खुद को संभाल ना पायें कैलाश जी तो ड्रम का सहारा ले वहीं जमीन पर बैठ गये……
ड्रम की आवाज सुन राजीव और मालती पीछे की ओर मुड़े ….
कैलाश जी को रोता हुआ देख वो घबरा गये…
जल्दी से कैलाश जी के पास आकर जमीन पर बैठ गये…..
क्या हुआ पापा??
रो क्यूँ रहे है ….??
अच्छा कर लीजिये खटर पटर ….
कुछ नहीं कहूँगा ……
पर रोईये मत….. त्योहार का दिन है ……
राजीव बोला……
अब तो क्या तीज,,,क्या त्योहार बिटवा,,,,…..
सुमन (पत्नी) जब से इस दुनिया से विदा हुई है तब से कोई दिन नहीं जाता कि आँख गीली ना हो….
जानती है बहू…
क्या पापा जी…..
पिछली होली पर ये हरी पन्नी पता नहीं क्या सोचकर संभाल कर रखी थी …. अगले महीने ही तेरी सास, मेरी सुमन छोड़कर चली गयी मुझे…….
ये जो हरी पन्नी है इसमें ही गुलाबी रंग का गुलाल लिए तेरी सास पूरे घर में डोल रही थी पिछली होली को….
बस मौका देख रही थी कि कब अपने बुढ़ऊँ को रंग दूँ…… बूढ़ी हो गयी थी पर मन बिलकुल अपने मुन्ना जैसा था उसका….
तुम दोनों जब बाहर सबको रंग लगाने चले गये…. चुपचाप से पीछे से आकर रंग लगाकर ही मानी मेरी सुमन….. ऐसे हंस रही थी ….. मानों खजाना मिल गया हो उसे….. एक तरफ छोटी बच्ची सी थी दूसरी तरफ गृहस्थी संभालने में इतनी गंभीर , गूढ़ , परिपक्व …….
ऐसा लगता है उसके जाने के बाद जी नहीं रहा बस सांसे चल रही है….. तुम लोगों को दुख न हो तो अकेले ही रो लेता हूँ……
ये हरी पन्नी मुझे मेरी सुमन का एहसास करा रही है …. लग रहा फिर आयेगी वो चुपके से पन्नी से रंग लेकर लगा देगी मुझे……
कैलाश जी बोलते हुए कंपकंपा रहे थे….
ओह पापा… इतना दर्द होता है जीवनसाथी के जाने का… मैं तो आपका दर्द समझ ही नहीं पाया…… मुझे माफ कर दो पापा…. आप पर चिल्ला और पड़ा ….
बहू मालती की आँखों से भी आंसू बह रहे थे ….
चलो पापा…. उठो…. गर्मागर्म चाय हो जायें … कल जो गुजिया बनायी है वो भी ले आना मालती पापा की फेवरेट है ….
राजीव बोला…
बिटवा तू सो ले जाके….. तेरी नींद खराब कर दी मैने….
कैलाश जी थोड़ा उदास से बोला…
हां खराब तो कर दी है पापा…… अब आपको अकेला रोने के लिए छोड़कर चला जाऊँ सोने…… ऐसा तो नहीं कर सकता मैं ….
चलिये आज मिलकर होली खेलेंगे बचपन वाली…..
कैलाश जी को उठाकर बेड पर बैठाया राजीव ने…
दोनों बाप बेटे ने चाय का लुत्फ उठाया… ज़मकर होली खेली….
उस रात से कैलाश जी की खाट बरामदे में कर दी गयी… जिससे पता चलता रहे जब कैलाश जी उठे य़ा परेशान हो तो… राजीव उन्ही के पास सोने लगा है ज्यादातर …….
कभी भी अपने बड़ों को अकेला ना छोड़े… बुढ़ापे में वैसे ही नींद कम आती है … रात में शांति होने पर अपनों की याद ज्यादा सताती है उन्हे …. जो कई बार घातक भी हो सकती है …..
जय श्री राधे….
मौलिक अप्रकाशित
मीनाक्षी सिंह
आगरा
Right 👍▶️ thanks
V nice story,heart touching
This story is good for youth
भई वाह मजा आ गया कहानी पढ़ कर मीनाक्षी मैडम हां आंखे भी भीगी और गला भी रुंधा और हो भी कयो नहीं हमारी भी उम्र 63 हो रही है न जाने किस मोड़ पर जिंदगी की शाम हो जाए पर आप ने बहुत अच्छा संदेश दिया हैं आभार
Ji apka bahut bahut abhar 😊😊🙏
Bahut sunder rachna hai