तमाचा
मैंने तुमसे कितनी बार कहा है पल्लवी उन गंदे बच्चों के साथ मत खेला करो और तुम हो कि मानती नहीं। माला ने अपनी बेटी पल्लवी को डांटते हुए कहा।
इस पर पल्लवी ने कहा मां आपने रागिनी को देखा नहीं है, वो बिल्कुल मेरे जैसी है, हंसती भी मेरी तरह है, मुझे प्यार भी बहुत करती है । बस उसका एक पैर खराब है मां।जरा उसकी मां को तो देखो कितनी गरीब है लेकिन फिर भी उसे मेरे स्कूल में पढ़ा रही है ,क्या हम उसकी कोई मदद नहीं कर सकते मां।
पल्लवी का इतना कहना था कि माला थोड़ा ठिठक गई और अतीत में पहुंच गई। अतीत से बाहर आते हुए माला ने कहा,ठीक है तेरे पापा से बात करती हूं ,तेरे छोटे भाई शिवम की भी पढ़ाई का खर्चा है ,यदि तेरे पापा कहेंगे तो देखते हैं। लेकिन तू अपने पापा के गुस्से को तो जानती ही हैं ना।
अगले दिन जब माला पल्लवी के साथ रागिनी के घर पहुंची तो वो निशा( रागिनी की मां) को देखते ही ठिठक गई, उस का अंदाजा सही निकला,उसे याद आई वो रात जब पल्लवी के साथ उसने एक और बेटी को जन्म दिया था ।
लेकिन उसका एक पैर जन्म से ही खराब था ।उसके पति रितेश और उसकी सास ने जोर देकर माला से कहा, कहां तक दो दो बच्चियों का बोझ उठाओगी, इस एक बच्ची को अनाथ आश्रम छोड़ आओ,और माला को मजबूरन अपनी ममता से मुंह मोड़ कर उस बच्ची को अनाथ आश्रम के पालने में छोड़ना पड़ा, जिसे उसी समय निशा ने अपने ममता के आंचल में ले लिया ।
आज माला निशा का सामना भी नहीं कर पा रही थी,लेकिन उसने जब झिझकते हुए निशा को रागिनी की परवरिश के लिए मदद करनी चाही तो अचानक रागिनी आगे आई और कहा आपको मेरी फिक्र करने की कोई जरूरत नहीं, अभी मेरी मां जिंदा है।
ऐसा कहकर रागिनी निशा से लिपट गई,तब माला को सहसा एहसास हुआ कि किसी ने बिना आवाज का एक जोरदार तमाचा उसके गाल पर रसीद दिया हो।
ऋतु गुप्ता
“बेटी का पहला हक”
मालती की पहली संतान होने वाली है और पूरा परिवार आने वाले बच्चे को लेकर बहुत उत्साहित हैं और सबसे ज्यादा उत्साहित तो मालती के ससुर हैं क्योंकि आज तक उनके घर में कई पीढियों से पहली संतान के रूप में एक बेटा ही जन्मा है,और उन्हें पूरा विश्वास है कि उनकी बहू को भी पहली संतान के रूप में बेटा ही होगा, और इसी बेचैनी में वे बरामदे में इधर से उधर घूम रहे हैं, और इसी आशा में कि उनकी बहू को बेटा ही होगा ,उन्होंने पोते की खुश खबर सुनते ही मुहल्ले में बैंड बाजे बजवा कर इस खुशखबरी को सुनाने के इरादे से बैंड बाजे वालों को बुला रखा है।
थोड़ी देर में बच्चे के पैदा होने पर जैसे ही अंदर से खबर मिलती है कि उनकी बहू को बेटा नहीं बेटी हुई है, वो बाजे वालों को विना बाजा बजवाये ही विदा कर देते हैं, जिससे आसपास मोहल्ले वालों को खुद ही पता चल जाता है कि उनके घर में बेटी आई है, और अंदर उनकी बहू मालती सोच रही है कि कैसी विडंबना है की बेटी के जन्म पर खुशियां ना मना कर हम उसके पैदा होते ही उसका पहला हक मार देते हैं और फिर ये दस्तूर शायद जिंदगी भर चलता रहता है।
ऋतु गुप्ता
खुर्जा बुलन्दशहर
उत्तर प्रदेश
“गिद्ध”
आ लाड़ो, तू भी जल्दी से रोटी खा ले,और अपनी गूंथ (चोटी)भी बनवा लें, और देख सर्दी बहुत ज्यादा है,कपड़ों से अपने को ढक कर रखना, कहीं कोई भी जगह खुली ना रह जाए, नहीं तो ना जाने कहां से ये शीतलहर घुसकर तुझे बीमार ना कर दे।
और देख लाडो ज्यादा दूर मत जाइयो खेलने के लिए, तेरे बाबा और मैं काम पर जा रहे हैं, कभी हम सांझ को तुझे ढूंढते ही फिरे जाये,सुन ली ना तूने मेरी बात….मालती ने अपनी मूक बधिर बेटी सुगंधा को ये सब बातों और इशारों से समझाया।
सुगंधा मूक बधिर जरूर थी, पर अपनी मां की सारी बातें को बखूबी समझ लेती थी, और अपने नाम सुगंधा के अनुरूप ही मालती और गोविंद स्वरूप की बगिया में फूल बनकर खुशबू फैलाती।
दोनोंजन थोड़े गरीब जरूर थे, पर खुशहाल थे, मेहनत से अपनी रोजी-रोटी चला रहे थे।
माता पिता के काम पर जाने के बाद सुगंधा भी रोज की भांति चौक की तरफ खेलने निकल पड़ी, पर उधर से गुजरते गिद्धों के एक झुंड ने उस मासूम फूल को देखा तो उनकी हवस की पिपासा जाग उठी, ऐसी भी हवस क्या कि उन्हें उस बच्ची पर जरा भी तरस ना आया, मासूम बच्ची जो बोल नहीं सकती,सुन नहीं सकती, अपना दर्द भी बयान नहीं कर सकती, उन्होंने उसे नोंच डाला, खत्म कर डाला। हैवानियत और संवेदनहीनता की सारी हदें पार कर दी और अधमरा होने की हालत में उसे फाटक के पास फेंक कर भाग गए।
उधर शाम को काम से घर लौटते ही मालती और गोविंद ने अपनी बेटी को जब घर पर नहीं देखा तो दोनों वावरे से चारों तरफ उसे ढूंढने लगे। किसी ने बताया कि फाटक के पास भीड़ लगी है,तो वे वदहवास से उसी तरफ भागे…
बेटी के मिलने पर उसकी हालत देखकर मालती बस यही बोल पाई…… गिद्धों ने मेरी फूल सी बच्ची को नोंच डाला, खत्म कर दिया उसका बचपन।उसने ईश्वर से फरियाद लगाई कि जब तक ये गिद्ध सरेआम घूम रहे हैं, तब तक या धरती पर बेटी को जन्म ना दीजौ प्रभु, तुझे इस मां की सौगंध है।
सही ही तो कहा मालती ने जब हम इन मासूमों का रक्षण नहीं कर सकते, सुरक्षित बचपन नहीं दे सकते तो क्या हम इंसान कहलाने लायक है, इंसान क्या जानवर भी इन गिद्धों से अच्छे होते हैं,हर संभव मिलकर अपने बच्चों की सुरक्षा करते हैं।सब संकट की घड़ी में एक हो जाते हैं।
अब समय आ गया है कि हम सभी मिलकर बच्चों को सुरक्षित वातावरण दे,हर जगह मां बाप साथ नहीं हो सकते , लेकिन हम जहां है वहीं से एक दूसरे के बच्चों का ध्यान रखें, उनका संरक्षण करें,हर जगह उन्हें अपनों के साथ होने का एहसास दिलायें, हमारे बच्चे भी कहीं दूसरी जगह दूसरों के संरक्षण में सुरक्षित होंगे।इन गिद्धों को पहचाने,इनका बहिष्कार कर इन्हें कड़ी से कड़ी सजा दिलायें।
ऋतु गुप्ता
खुर्जा बुलन्दशहर
उत्तर प्रदेश
ये कहानी झारखंड के एक मामूली से परिवार की एक बेटी की है। जिसने अपने हौसलों से ना सिर्फ अपनी जाति, अपने मां-बाप, अपने गांव का नाम रोशन किया बल्कि भारत का नाम भी विश्व पटल पर सुनहरे शब्दों में लिख दिया।
प्रेरक कहानी “उड़ान”
ऐ छोरी तू माने ना है,जब देखो ये मुआ धनुष बाण लिए फिरे है,आन दे तेरे बापू को आज, तेरे धनुष बाण की छुट्टी ना करवाई तो मैं तेरी दादी नही।
हर समय छोरी जब देखो आम के पेड़ों पर निशाना लगाती रहवे है ,चल माना दो चार आम तोड़ लिए पर तू है कि पूरे गांव के बालकों के आम तोड़ने का जिम्मा लिए बैठी है , तेरी मां तो सुबह ही नर्स की नौकरी के लिए निकल जावे है,तेरा बापू भी सुबह सवेरे ऑटो रिक्शा लेकर निकले हैं उसका तो न दिन का पता न रात का ,अब तुझे रोटी पानी, चूल्हा चौका सिखाने का काम मेरा ही ठहरा,और सुन छोरी जे चूल्हा चौका ही छोरियों के काम आवे है ,ये धनुष बाण ना।
ना दादी मुझे ना सीखना ये चूल्हा चौका, मुझे तो इस धनुष बाण के साथ ही कुछ करना है।और तू क्या समझे है दादी मै सबके आम यूं ही तोड़ू हूं ना ,मैं तो अपना निशाना पक्का करूं हूं ,सबके आम तोड़ कर, और मुझे तो इसमें ही आनंद आवे है मेरी प्यारी दादी।
कहकर नन्ही दीपिका उड़ चली कहीं और निशाना साधने।
जे मैं भी तो जानूं ऐसा कौन-सा काम है जो ये मुआ धनुष करें है.? दादी पीछे से आवाज लगाती रह गई।
दीपिका के माता पिता उसकी कला को तो जाने है,पर गरीबी की वजह से उसे ओलंपिक वाली धनुष बाण नहीं दिला सकते हैं। लेकिन बच्ची के हौसले बुलंद हैं, वह एक परंपरागत तरीके से बने बांस के धनुष बाण के साथ अपना अभ्यास जारी रखती है।
कहते हैं ना सच्चे हुनर को कोई नहीं दबा सकता, एक दिन उसकी दूर की चचेरी बहन तीरंदाज विद्या आती है, और उसका हौसला बढ़ाती है, और उसे टाटा तीरंदाज एकैडमी में दाखिला लेने के लिए कहती है।
टाटा एकेडमी में आकर दीपिका का हुनर कोयले से निकले हीरे की तरह निखरता ही चला जाता है और आज परिणाम सबके सामने है।
दीपिका कुमारी महतो ने हाल ही में पेरिस वर्ल्ड कप में 3 गोल्ड मेडल जीतकर इतिहास रच दिया।
2012 से शुरू हुई अपनी इस यात्रा में दीपिका कुमारी ने वर्ल्ड कप में 10 गोलड,13सिल्वर,व 5 ब्रोंज मेडल लिए है।
कॉमनवेल्थ गेम में दो गोल्ड।
एशियाई चैंपियनशिप में 1 गोल्ड, 2 सिल्वर
वर्ल्ड चैंपियनशिप में 2 सिल्वर लिए हैं
और अभी तो दीपिका कुमारी की यात्रा अनवरत जारी है, जोकि सफलता के और कई नये आयाम लिखेगी। इसलिए कहा भी गया है…
मंजिल उन्हीं को मिलती है, जिनके सपनों में जान होती है,
सिर्फ पंखों से कुछ नहीं होता,हौसलों से उड़ान होती है।
ऋतु गुप्ता
दूरदर्शन वाला प्यार
कन्नू ओ कन्नु कहां जा रहा है मायके आई सुषमा ने अपने बेटे कनिष्क को आवाज लगाते हुए पूछा तो कन्नु बोल क्या मां यहां नानी के घर भी आपकी पहरेदारी चलती रहेगी क्या ? गर्मियों की छुट्टियां हैं और यहां लाइट भी कितनी कम आती है कैसे मन लगेगा? मैं बस पड़ोस वाली तन्वी के घर जा रहा हूं चित्रहार देखना उसके यहां कम से कम बैटरी वाला टीवी तो है ना।
अभी आया ये कहकर कन्नू एक पैर पर कूदता हुआ भाग कर चित्रहार कम देखने अपनी तन्नु (तन्वी) से मिलने जा पहुंचा…
उसका नानी के यहां आने का मकसद हमेशा तन्वी से मिलना , तन्वी और साथ के सभी बच्चों के साथ आम के बाग में मौज मस्ती करना था, बर्फ वाली चुस्की खाना और गर्मियों में जब सब सो जाएं तो आईस पाइस (लुका छुप्पी) खेलना होता था।
जब कभी दोपहर में सभी बच्चे कैरम खेलते और तन्वी उसमें हार रही होती, तो वह जानबूझकर सामने से कोई गोटी ने निकलता, तन्वी को जीतने देता। तन्वी के जीतने पर उसे असीम आनंद की प्राप्ति होती।
उधर तन्वी भी कब से यह प्रार्थना कर रही थी कि हे भगवान लाइट भगा देना, जिससे कि बहाने से कन्नु घर आ सके और वो उसे चुपचाप कनखियों से देख सके। दोनों की ही किशोर उम्र थी, दोनों ही एक दूसरे को मन ही मन पसंद करने लगे थे, पर ये वो जमाना था साहब ,जहां होठों से ज्यादा आंखें बातें किया करती थी। मन के जज्बात एहसास अक्सर मन में ही छुपा कर रखे जाते थे। घर परिवार और समाज की इज्जत सर्वोपरि थी। आजकल की तरह नहीं की सरेआम प्रेम का इजहार कर दिया जाए, वैसे भी आजकल का प्रेम टिकता भी कहां है। क्योंकि उसमें वो मीठे मीठे एहसास, वो दिल से निकले जज्बात और मीठी सी चुभन कम ही पाई जाती हैं।
खैर जैसे ही कन्नु तन्नु के घर आया पहला गाना चित्रहार का दूरदर्शन पर बज उठा। धक धक करने लगा, मोरा जियारा डरने लगा…..
और सचमुच ही दोनों के दिल जोर-जोर से धक-धक कर रहे थे, डर रहे थे, लग रहा था कि जैसे कोई चोरी कर रहे हो।
तभी तन्वी की मां ने आवाज लगाई तन्नु औ तन्नु जरा उठ कर कन्नु भैया को पानी दे दे, बेचारा गर्मी में भागता आया है चित्रहार देखने देख प्यास लगी होगी। पर भैया शब्द सुनकर तन्वी को मन ही मन कोफ्त हो आई, उसे नहीं सुनना था ,नहीं सुना, नहीं उठी, चुपचाप अपना क्रोशिया चलाती रही।
तभी तन्वी की मां आई और तन्वी का कान पड़कर बोली कब से कह रही हूं कन्नु को पानी दे दे, पर चिकना घड़ा हो गई है लड़की, एक कान से सुनकर दूसरे से निकाल देती है, जरा से भी लड़कियों वाले लख्खन नहीं आए हैं…
तन्वी मन ही मन मुस्कुराई और मन ही मन बोली तो क्यूं ना ऐसे बोलो ना मम्मी… कन्नु मानो जैसे किसी ने शहद ही कानों में घोल दिया हो ,मानो मंदिर की कितनी घंटियां कन्नु कन्नु पुकार रही हों।
तन्वी दौड़कर पानी के साथ-साथ मां का बनाया रसना का शरबत भी ले आई।
पर धत तेरी की ….यह क्या हुआ लाइट आ गई, थोड़े अंधेरे में जो दोनों एक दूसरे को देख रहे थे अब कैसे देख पाएंगे क्योंकि हाँल में तो सभी छोटे बड़े लोग बैठे थे, दोनों ने कुछ नहीं कहा पर मन का हाल मन ने पढ़ लिया।
दो-तीन दिन बाद कन्नु का 12वीं और तन्वी का 10वीं का रिजल्ट आया ,दोनों ही फर्स्ट डिवीजन में पास हो गए थे, अब कन्नु को इंजीनियरिंग पढ़ने 5 साल के लिए बाहर जाना था और इस वजह से अब उसका गर्मियों में नानी के घर आना कम ही हो गया था।
तन्वी के हिस्से एक लंबा इंतजार आया और इंतजार करते-करते वो भी ग्रेजुएशन कर चुकी थी। पर कहते हैं ना की जोड़ियां तो स्वर्ग में ही बनती है,इन दोनों के लिए भी ईश्वर ने कुछ ऐसा ही खास लिखा था।
आज बरसो बाद जब तन्वी अपने ड्राइंग रूम में बैठी मटर छील रही थी, तो कोयल सी तेरी बोली……. गाना सुनकर उसकी कन्नु के साथ बिताई पुरानी यादें ताजा हो गई। तभी बाथरूम से उसका पति गाते हुए निकला, मुझे नींद ना आए मुझे चैन ना आए……
दोनों ही मुस्कुरा उठे और बरसों पुराने अपने मासूम प्रेम को याद कर हंस-हंसकर दोहरे हो गए, क्योंकि लगभग बीस बरस पहले इसे ईश्वर का आशीर्वाद कहें या चमत्कार ना जाने कैसे दोनों ही परिवारों को कन्नु और तन्नु की जोड़ी अच्छी लगी और बिन बोले ही दोनों का मासूम प्रेम पवित्र रिश्ते में बदल चुका था।अब दोनों जीवनभर के एक-दूसरे के सुख-दुख के साथी थे।
ऋतु गुप्ता
खुर्जा बुलन्दशहर
उत्तर प्रदेश
मां का शाँल
मां के गुजर जाने के 6 महीने बाद भाई की बेटी के जन्म पर पहली बार मायके जाना हुआ। सब कुछ पहले जैसा ही था, लेकिन मां नहीं थी।सभी लोग ऐसा व्यवहार कर रहे थे कि कहीं मुझे मां की कमी महसूस ना हो।
बाबूजी बिना बात हँस देते थे,भाई बार-बार इधर-उधर की बातें करता जाता था ,और भाभी तो जैसे मेरी ही खातिर में लगी थी।
लेकिन मुझे बार-बार मां की आवाज सुनाई दे रही थी। बिट्टो ये खा ले,बिट्टो वो खाले, देख तेरे लिए ही मंगवाया है, तुझे बहुत पसंद है ना। (मां मुझे प्यार से बिट्टो ही बुलाती थी)
जब कभी हम सभी अपनी बातों में मशगूल होते तो पीछे से आकर अपना शाँल मुझे उड़ा देती और कहती, इसे औढ ले नहीं तो सर्दी लग जाएगी।
मैं इन ख्यालो मे ही थी, कि इतने में भाभी आकर कहती है, दीदी ये साड़ी और यह सूट आपके लिए है, मेरी आंखें जो इतनी देर से अपने आंसुओं को अंदर ही अंदर पी रही थी कि कहीं खुशी के मौके पर आंसू न आ जाए, अपने को रोक ना सकी और आंखें नम हो गई।
मैंने भाभी से कहा भाभी मुझे तो सिर्फ मां का वो शाँल ला दो। भाभी गई और वो शाँल लाकर मुझे उड़ा दिया और बेटी को मेरी गोद मे लाकर दे दिया, और बोली अब आपको ही इसे दादी और बुआ दोनों का प्यार देना है।
शाँल में मां के स्नेह की गरमाई को महसूस करते हुए मुझे एहसास हुआ कि मां तो यही कही है मेरे पास…..
ऋतु गुप्ता
खुर्जा बुलन्दशहर
उत्तर प्रदेश
सादर धन्यवाद