जब तेरी भाभी जिम्मेदार है तो तू क्यों नहीं!!! – अमिता कुचया  : Moral stories in hindi

आज निया अपनी मां को फोन‌ तीन- चार बार लगा चुकी थी, उसे बहुत झुंझलाहट हो रही थी कि मां फोन‌ क्यों नहीं उठा रही हैं ,उसने भाभी को फोन मिलाया और भाभी ने भी फोन नहीं उठाया क्योंकि वह किचन में काम कर रही थी।अब उसकी  भाभी खाना पीना का काम करके कमरे में आई ,तब उसने फोन उठाया तो देखा कि निया दीदी के तीन‌ मिस काल थे।

उसने सोचा अब फोन मिलाऊंगी तो दीदी कहीं सो न गई हो, ग्यारह बज रहे हैं।इस कारण उसने फोन नहीं लगाया।अब अगले दिन उसने अपनी सास से पूछा -मम्मी  निया दीदी के कल तीन मिस काल थे। आपकी बात हुई कि नहीं?  तब वो बोली- “प्रीति बहू तू तो जानती है, कल रात को मोबाइल की बैटरी चली गई तो चार्ज पर लगा रहा और मैंने अभी तक न देखा। फिर निया  की मां ने पूछा-”  क्या निया का कल फोन‌ आया था?”

तब प्रीति ने कहा -” हां मम्मी जी, करीब  रात साढ़े आठ बजे फोन आया था, तब मैं किचन में काम कर रही थी जब मैं फुर्सत होकर मोबाइल देखने को करी।तब  पता चला कि दीदी इतने मिस काल हैं,मैंने सोचा इतनी रात को कहीं दीदी सो न गई हों। इसलिए फिर रात में फोन नहीं लगाया।शायद उन्हें आपसे फोन में बात करनी  हो। इसलिए अब आप फोन लगा लीजिए।

तब फोन‌ वो निया को लगाती हैं, तब कवरेज एरिया से बाहर बताता है। फिर उसकी मां ने सोचा कि चलो बाद में बात कर लूंगी।

इतने में ही उनकी बेटी अपनी ससुराल से मायके पहुंच जाती है ।तब उसकी मां हैरानी  से उसकी ओर देखती हुई कहती- अरे निया! तू  यहां अचानक कैसे!!

मां पहले तो ये बताओ कि आपका फोन कहां है? ऐसा करो कि फोन कचरे में फेंक दो।फोन  उठाना ही नहीं तो क्यों रखना, मैंने कल कितनी बार फोन‌ लगाया। आपका फोन स्विच ऑफ ही बता रहा था। और भाभी भी कहां हैं? उन्होंने भी फोन‌ न उठाया जैसे मुझसे  उन्हें कोई दुश्मनी हो। इतना सब कुछ ही एक सांस में निया बोले जा रही थी,औवह बहुत गुस्से में लग रही थी।

तब उसकी मां ने कहा-  “अरे निया चैन की सांस तो‌ ले ले। फिर आराम से सब बात बताना, उसी समय उसकी प्रीति भाभी भी उसके लिए पानी ले आई।तब वह भाभी से पूछने लगी कि भाभी मैंने आपको कितने फोन लगाए,आपने उठाए तक नहीं,ऐसा भी क्या काम••कोई मरे या जिए किसी को फर्क ही नहीं पड़ता है मां••••

इस कहानी को भी पढ़ें: 

पराई माँ – मुकेश कुमार

अरे …अरे… दीदी , ये क्या कह रही हो आप ? हमें लगा कि आप सो गई होगी इसलिए रात में परेशान नहीं किया।जब फोन आया,तो तब किचन में थी। फिर उसकी मां ने कहा – “अब तू आ गई  है तो क्या हुआ आराम से बता.

तब निया कहने लगी – मां मैं अब मैं ससुराल अपने नहीं जाने वाली , मैं बहुत परेशान हो चुकी हूं,दो दिन हाथ से काम करना पड़े तब सासुमां और नंदरानी को पता चले।

मां उनकी फरमाइश कभी खत्म ही न होती है, मां मैं परेशान हो चुकी हूं, कभी कुछ.. कभी कुछ..

 सबका अलग- अलग मन का खाना बनाते रहो, क्या पूरा दिन किचन‌ में ही लगी रहूं।सास ससुर को सादा खाना चाहिए और ननद और मेरे पति को मसालेदार चाहिए।इस तरह दो तरह का खाना ही बनाती ही रहूं, कभी कोई को कुछ चाहिए कभी कुछ, अब मैं नहीं जाने वाली।

तब मां ने सोचा कि निया का गुस्सा शांत हो जाए तो समझाऊंगी।

अब खाने का समय हुआ तो भाभी ने पूछा कि दीदी खाना लगा दूं।तब निया ने पूछा कि सब्जी क्या बनाई है।

तब प्रीति भाभी ने बताया घीया के कोफ्ते बनाए हैं।मां भी बोलीं आज प्रीति ने बड़े ही स्वादिष्ट कोफ्ते बनाए हैं।उसी समय वह बोली – मम्मी आपको को पता है न मुझे इसके नाम से ही चिढ़ है तो मेरे लिए दूसरी सब्जी बनवा दो। फिर वो पूछने लगती है भाभी फ्रिज में और क्या- क्या है ?तब उसकी भाभी कहती- दीदी भिंडी ,पनीर और गोभी  भी है।

तब निया कहती -ऐसा करो भाभी पनीर की सब्जी मेरे लिए बना दो।तब उसकी मां कहती हैं बेटा रात के खाने में पनीर बना देगी ।अभी यहीं खा लो।

उसी समय निया भाभी पर दबाव बनाकर कहती हैं मेरे लिए आप पनीर की ही बनाओ।तब खुशी- खुशी  भाभी कह देती ” हां- हां दीदी बना दे रही हूं ,कितनी देर लगना, अभी बना देती हूं। “और बनाने लगती है।इस तरह वह भाभी पर काम  बढ़ा ही देती है।

कभी कुछ कहती… कभी कुछ…

इस कहानी को भी पढ़ें: 

हां मैंने एक पिता गोद लिया है – मुकेश कुमार

फिर अगले दिन वह आराम से होकर उठती है तो चाय पीते हुए कहती हैं आज मां बड़े दिनों बाद इतनी अच्छी नींद आई।तब उसकी मां कहती- ” समय भी देखा तूने निया  ,कितने बज गये हैं,दोपहर होने  को आई है। तेरा मायका है तो क्या इतनी देर सोएगी!”

तब वह कहती -” क्या हुआ मां एक दिन मैं इतनी देर तक सो गयी तो!!!”

तभी उसकी  भाभी सासुमां से पूछती हैं- मम्मी जी खाना लगा दूं क्या ?तब निया कहती अरे भाभी! आपने इतनी जल्दी खाना बना लिया?

हां दीदी दोपहर के बारह भी तो बज रहे हैं।

तब उसकी मां कहती हैं तू देर‌ से उठे तो इसका मतलब यह नहीं है कि काम समय पर न हो।

और खाना परोस कर भाभी फ्री होती है तब निया कहती -“भाभी मेरा सलवार सूट मशीन में मत डालना ,वो हाथ से ही धुलना,  इतने पर भी उसकी भाभी कहती -जी दीदी कह करके उसके काम करती जाती है।

अब एक सप्ताह  हो चुके थे।निया न तो काम कराती ,न ही समय पर खाना पीना साथ में खाती थी ।इस तरह उसके लिए असमय पर चाय बनना और खाने के लिए अलग-अलग फरमाइश होती रहने से उसकी मां बोल पड़ी ।निया तू भाभी का हाथ क्यों नही बंटा लेती दिन भर मोबाइल में लगी रहती है।

तब वह कहती हैं – ” मां आपको परेशानी क्यों हो रही है ,जब भाभी को परेशानी नहीं तो आप क्यों बोल‌  रही हो?”इतना कहने पर उसकी मां ने कहा -“अरे तेरी भाभी है ही इतनी अच्छी कि उफ तक न कर रही है, तू भी तो जिम्मेदारी अपनी समझ, ऐसा कब तक चलेगा! कब तक तू यहां रहेगी?”

तब  वह बोली ऐसी कौन सी मां होती है जो बेटी को चैन से न रहने दें।

तब उसकी मां बोली- ” अरे निया तू कुछ ज्यादा ही नहीं बोल रही है। पहले तू तो परेशान लग रही थी ,तो  मैं कुछ न बोली पर आज यह तुझसे पूछती हूं यदि मेरी बहू जिम्मेदार हो सकती है तो तू क्यों नहीं??

इस कहानी को भी पढ़ें: 

सफ़र मे बने हमसफ़र – मुकेश कुमार

तेरे को अपने ससुराल में काम करने में इतनी परेशानी होती तो भाभी से कुछ तो सीख•••• आज तुझे भाभी इसलिए अच्छी लग रही है क्योंकि वह तेरे हिसाब से काम कर रही है,वह सबके मन का कर रही है ,तेरे भैया के हिसाब से अलग खाना बनाती है, तेरे हिसाब से भी अलग और तो और मेरे लिए सादा खाना भी बनाती है।यह तो हर औरत को अपने घर परिवार के लिए खाना अलग-अलग बनाना ही पड़ता है। पहले तेरी सास ने भी किया होगा, अब तू पहुंच गई तो क्या ये  सब करना तेरा फर्ज नहीं है।औरत का उसका असली घर उसका ससुराल ही होता है।विदाई होते ही जब देहरी लांघतीं है तो मायके की दहलीज पराई हो जाती है। मायके में बिना वजह रहना, कितने दिन यहां रहेगी।अगर पति और सास-ससुर से अनबन भी हो कुछ समझ में आता है।केवल काम की वजह से तू यहां रुकी है , तो तेरा रुकना सही नहीं है। क्या मैंने तुझे यही संस्कार दिए है कि अपने मन की करें।तुझे पर धिक्कार है,एक अपनी भाभी को देख आखिर  जिम्मेदारी से अपना घर संभाल रही हैं वैसे तू भी जिम्मेदारी से अपना घर संभाल नहीं  रही है तो मेरी परवरिश  पर धिक्कार है बेटा••••अगर तू काम और जिम्मेदारी के डर से यहां रही तो क्या तेरी भाभी को भी यही करना चाहिए ।वो भी अपने मायके में जाकर गुस्सा होकर अपनी मां  से कहें कि मुझे ससुराल नहीं जाना।ये शुक्र मनाओ तेरी भाभी तेरे जैसी नहीं है।आज तो‌ मैं हूं।तो तू रुक गई और ये निर्णय कर लिया कि तुझे ससुराल नहीं जाना।आज तो तूने ये सोच लिया ,कल के दिन क्या करेगी? ये तो 

 तेरी भाभी भैया अच्छे हैं उन्होंने उफ़ तक नहीं किया लेकिन ये सोच कब तक बैठा कर खिलाएंगे। ” 

इतनी मां की बात सुनकर निया को  रोना आता है और उसे समझ आता है कि कितनी बड़ी वह गलती कर रही है और गलती का एहसास होते ही वह  मां से कहती – ” मां तूने तो आज मेरी आंखें खोल दी। अब मैं भी भाभी की तरह जिम्मेदारी से सब काम  करुंगी।काम को  कभी बोझ नहीं समझूंगी।मां मैं कल ही अपने घर जाऊंगी। ताकि सब वहां पर खुश रहे। परिवार की खुशी से बढ़कर मेरे लिए कुछ नहीं है। और वह खुशी- खुशी घर चली जाती है।

दोस्तों – बहू ससुराल जाती है तो उस पर  काम की जिम्मेदारी बढ़ती ही है,तो क्या काम और जिम्मेदारी के डर से मायके में रहना सही है इस पर अपने सुझाव और प्रतिक्रिया अवश्य व्यक्त करें।

स्वरचित मौलिक रचना

अमिता कुचया

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!