छाया – मुकुन्द लाल : Moral stories in hindi

   जाड़े की रात थी। चारों ओर अंधेरे का साम्राज्य था। चतुर्दिक नीरवता व्याप्त थी। कड़ाके की ठंड पड़ रही थी। बर्फ की तरह ठंडी हवा बह रही थी।

   रात के दो बजे के आस-पास मेरी नींद टूट गई। कुछ देर तक मैं आंँखें बन्द करके लेटा रहा किन्तु नींद नहीं आई। तरह-तरह की बातें दिमाग पर चोट करने लगी। खीझकर अपने बिस्तर पर उठ बैठा। खैनी की डिबिया से खैनी निकाल कर मुंँह में फांक लिया।

   थोड़ी देर के बाद ही उस कमरे की खिड़की के पास बाहर थूकने के लिए गया तो अचानक ही मेरी दृष्टि अंधेरे के आवरण में लिपटी एक छाया पर पड़ी। वह छाया दांँयी-बांँयी दिशा में देखते हुए तेज कदमों से आगे बढ़ती जा रही थी।

   चारों ओर निस्तब्धता व्याप्त थी । छाया की पदचाप से परिवेश ध्वनित हो रहा था। मेरे दिमाग में प्रश्न कौंधने लगा, ‘ इतनी रात्रि में कौन हो सकता है?’

   मुझे पसीना आ गया। मैं कई प्रकार के विचारों की श्रृंखला में कैद हो गया।

   मैं तेजी से खिड़की के पास से हट गया। एक हल्का विचार मेरे दिमागी पटल पर रेंगने लगा, ” क्या यह भूत-प्रेत की लीला है?” किन्तु तुरंत इस विचार को बुद्धि ने स्वतः यह कहते हुए उसको दबोच दिया और उसने डांँट भी पिलाई, ” तुम निरा बेवकूफ़ हो, साइंस ग्रेजुएट होकर भी ऐसा सोचते हो?”

   कुछ हो, मैं खिड़की के बाहर किराये के घर से लगभग दस-पन्द्रह मीटर की दूरी पर छाया की लीला देखने की हिम्मत मैंने खो दी। फुर्ती से बिस्तर पर आकर लेट गया और कम्बल ओढ़ लिया। 

   परन्तु इस छाया पर अक्सर हफ्ते दो हफ्ते के अंतराल पर अर्द्धरात्रि में नजर पड़ ही जाती थी। जब सारी दुनिया सोती थी तो एक छाया की चहलकदमी से मेरा दिमाग बेचैन रहता था। 

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   तब उस दिन पड़ोस में मैंने इसकी चर्चा की। मोहल्ले के दो-तीन हिम्मतवर कहे जाने वाले साथियों ने कहा कि वे लोग भी छाया को देखेंगे। ऐसा कहकर वे लोग छाया देखने की प्रत्याशा में रात्रि को मेरे डेरे पर आ गए और उस समय का इंतजार करने लगे। किन्तु उस रात छाया की चहलकदमी नहीं हुई। 

उन लोगों ने मुझ पर आरोप लगाया कि मैं झूठ-मूठ की अफवाह फैला रहा हूँ । कोई छाया-वाया की चहलकदमी नहीं होती है। उन लोगों की दलील मुझे झूठा साबित कर रहे थे। मेरे लिए यह एक चुनौती थी। मेरे कहने पर शनिवार को पुनः वे लोग राजी हो गए छाया का दर्शन करने के लिए। 

   पहले ही की तरह तीनों रात में मेरे कमरे में आ गए थे दस बजते-बजते। देर रात तक इधर-उधर की बातें होती रही मोहल्ले-टोले और उस कस्बेनुमा गांव की। धीरे-धीरे उनके तीनों साथियों को नींद आने लगी। मेरे कहने पर तीनों ने अपनी-अपनी आंँखें पानी से धो ली।. ठीक दो बजने वाला ही था कि मैं निरीक्षण करने के लिए खिड़की के पास गया। अचानक मेरी नजर उस घर से दस-पंद्रह मीटर की दूरी पर  छाया पर पड़ी। मैंने इशारा से तीनों को खिड़की के पास बुलाया। कमरे का लाइट बुझा हुआ था। तीनों खिड़की के पास आए। छाया चिर-परिचित अंदाज में मार्ग से गुजर रहा था। निस्तब्ध रात्रि में उसकी पदचाप की हल्की ध्वनि सुनाई पड़ रही थी। छाया लम्बा-चौड़ा सुगठित शरीर का मालिक मालूम पड़ रहा था। तीनों के डर से पसीने छूटने लगे। उनलोगों ने कहा कि उसने ठीक ही कहा था। वे लोग तो उसकी बातों को पहले मनगढ़ंत मान रहे थे। 

   उस कस्बेनुमा गांव के मोहल्ले में अफवाह फैल गई कि कोई भूत या प्रेत रात्रि में यहांँ विचरण करता है। उस गांव में रात को भय का साम्राज्य स्थापित हो गया। लोगों ने अपने बाल-बच्चों को रात्रि में घर से बाहर निकलने पर पाबंदी लगा दी। रात होते ही लोग अपने-अपने घरों में दुबक जाते। 

   कई बार पड़ोसियों ने देखा कि घूम-फिर कर छाया अंत में गजाधर के घर के पास स्थित प्राचीन काल के खंडहर में प्रवेश कर जाती। 

   चतुर्दिक उस प्रेत की चर्चा से उस क्षेत्र का चप्पा-चप्पा भयभीत था। कई आदमियों ने  हिम्मत करके उस छाया का पीछा भी किया, किन्तु कुछ भी इस संबंध में पता लगाने में वे लोग असफल रहे। 

    मैंने प्रेतात्मा वाली बात उस दिन अपने अजीज दोस्त नवीन से की। पहले तो सुनते ही वह खामोश हो गया। क्षण-भर के बाद ही उसके चेहरे पर रहस्यमयी मुस्कान उभर आई। फिर उसने कहा, ” क्या यार!… लोग चांँद की यात्रा कर रहे हैं, मंगल पर जाने की तैयारी में लगे हुए हैं और तुम भूत-प्रेत की बातें करते हो। इन सब बातों से तुमको क्या मतलब है?… अपना काम से काम रखो… कोई होगा सिरफिरा तुम ज्यादा दिमाग इस पर खराब मत करो।” 

   नवीन छरहरा बदन का सजीला नौजवान था। हाल ही में वह बी. ए. की परीक्षा में सम्मिलित हुआ था। 

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   दूसरी बार जब मैंने इस संबंध में चर्चा छेड़ी तो वह क्रोधित हो उठा। उसने कहा कि क्या वह बेकार की ऊलजलूल बातें उससे करते रहते हो, और कोई दूसरा विषय नहीं है बातें करने के लिए। तब मैं खामोश हो गया। 

   उसकी बातों से मुझे लगने लगा कि छाया से संबंधित रहस्य की कोई न कोई जानकारी तो अवश्य ही उसके पास है। क्योंकि उसने उखड़ते हुए आगे कहा था, ” छाया!… छाया!… तुमलोग वास्तव में पढ़े-लिखे बेवकूफ़ हो… तुम्हारा भ्रम है, छाया-वाया, भूत-प्रेत ये सब बकवास है।” 

   मैं चुप हो गया था। 

    एक रात जब छाया उसके निवास के पास से गुजरा तब मैं बिना विलंब किए एक शक्तिशाली टाॅर्च लेकर उसका पीछा करने के उद्देश्य से निकल पड़ा लेकिन छाया तुरंत बगल वाली गली में मुड़ गई। जब मैं उस गली में पहुंँचा तो वहां किसी को नहीं पाया। मानों वह क्षपित हो गया या जमीन निंगल गई उसको। निराश होकर मैं डेरा लौट आया। 

  बिस्तर पर लेट गया। इस भाग-दौड़ में मेरी सांँसें धौंकनी की तरह चलने लगी। मुझे अपने-आप पर भी गुस्सा आ रहा था कि क्यों आखिर मैं उसके रहस्य से अवगत होना चाहता हूँ, लेकिन न जाने क्यों मुझ पर जुनून सवार हो गया था, मेरी जिज्ञासा जाग गई थी, उस छाया के बारे में जानने की। 

   हिम्मत करके फिर एक रात मैंने उसका पीछा किया। उसका पीछा करते-करते मैं गजाधर के घर के पास स्थित खंडहर के पास पहुंँचा। यह खंडहर कई दशकों से भुतहा खंडहर के नाम से प्रसिद्ध था और था भी उस गांव के लगभग अंतिम छोर पर। अंग्रेजी सल्तनत के समय यह किसी जमींदार की हवेली हुआ करती थी। इस हवेली में न जाने कितने निर्दोष रैयतों पर ढाये जाने वाले जुल्मों, अत्याचारों और दमन-शोषण की कहानियां दफन थी। दिन में भी लोग अपने बाल-बच्चों को वहाँ नहीं जाने की हिदायत दे रखी थी। कोई भी उस खंडहर में जाने की हिम्मत नहीं करता था। खंडहर से संबंधित अनेक दंत कथाएं भी प्रचलित थी। 

    अचानक खंडहर के बाहर से ही टाॅर्च जलाने पर मैंने देखा कि वही छाया एक युवती के आलिंगनपाश में कैद है। उसका चेहरा नहीं दिखा क्योंकि छाया की पीठ उसकी तरफ थी। वह तुरंत लौट पड़ा वहाँ से। मैं भलीभांति समझ गया कि यह भूत-प्रेत का मामला नहीं है बल्कि प्रेम-प्रसंग का मामला है। इसके साथ ही दाल में कुछ काला है। 

   दूसरी बार उस छाया को गजाधर की छत पर उसकी लड़की रेखा के साथ आलिंगनपाश में बंँधा पाया। ऐसे कारनामों से स्पष्ट हो गया कि गजाधर के अंधे होने का कोई नाजायज फायदा उठा रहा है। 

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   रेखा के परिवार में उसके अंधे पिता(गजाधर) और भाई थे। उसका भाई अपने परिवार के साथ शहर में रहता था। वह वहीं कोई नौकरी करके जीवन-यापन करता था। रेखा की मांँ वर्षों पहले गुजर चुकी थी। 

   उस दिन रेखा और छाया कहे जाने वाले युवक की पहचान कर ली जब वे प्रेमालाप कर रहे थे। मोहल्ले की बात थी। मैंने चुप्पी साध ली। चुपचाप डेरा लौट आया। 

   दो दिनों के बाद नवीन से भेंट हुई। मैंने कहा कि आजकल खूब मौज-मस्ती में डूबे  हुए हो। छाया की माया में लोग उलझे हुए हैं और छाया अपना उल्लू सीधा कर रहा है। छाया रोमांस में मशगूल है। 

   वह हंँसने लगा। उसे समझ में आ गया कि वह उसकी ओर ही इशारा करके कह रहा है। इसके बाद मैंने रात्रि की बातें बता दी जो उसने देखा था। उसने भी स्वीकार कर लिया कि छाया के रूप में वही है। 

   मैं खिलखिला कर हंँस पड़ा, फिर उसकी पीठ पर दोस्ताना हाथ मारते हुए कहा, ” इस तरह की जोखिम भरी हरकत तुम्हारे लिए ठीक नहीं है। इसमें तुम पर भूत-प्रेत के चक्कर में जानलेवा हमला भी हो सकता है। तुम्हारे लिए अच्छा होगा कि पहले सर्विस पकड़ो, स्वावलंबी बनो, फिर शादी-ब्याह या प्यार-मोहब्बत की बातें करो। ऐसे कारनामों से तुम्हारे जीवन में भटकाव आ सकता है। इसमें जो दूसरी कठिनाइयांँ है, वह अंतर्जातीय विवाह का है, उसका परिवार इसके लिए राजी होगा या नहीं, कहना मुश्किल है। इन कठिनाइयों को पार करने और चुनौतियों का मुकाबला करने के बाद ही तुम्हारी मंशा पूरी होगी। 

   भविष्य को कौन जानता है, लेकिन छाया पर से पर्दा उठ ही गया। 

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   # छठवीं बेटियाँ जन्मदिवस प्रतियोगिता 

                     तीसरी कहानी 

        स्वरचित, मौलिक एवं अप्रकाशित 

                     ©® मुकुन्द लाल 

                      हजारीबाग(झारखंड)

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