धिक्कार है ऐसे रिश्तों का – के कामेश्वरी   : Moral stories in hindi

सुजाता को बेटी वाणी ने अमेरिका से फ़ोन करके बताया था कि वह माँ बनने वाली है । सुजाता बहुत खुश हो गई थी कि वह नानी बनने वाली है । उसने ज़ोर से पुकारकर पति को भी बताया था कि आप नाना बनने वाले हैं । 

अब रोज सुबह शाम वाणी का फोन आता था और उसे क्या चाहिए इसका लिस्ट माँ को लिखवा दिया करती थी । सुजाता के पति वीरेंद्र कहते थे कि सुजाता यह क्या है वहाँ यह सब नहीं मिलते हैं क्या रोज नित नए सामानों की लिस्ट भेज देती है तुम्हारी बेटी । ऐसा लगता है कि इंडिया को अमेरिका ले जाना चाहती है । 

सुजाता कहती थी कि जाने दीजिए बच्ची है ऊपर से माँ बनने वाली है । 

सुजाता और वीरेंद्र दोनों ही बैंक में नौकरी करते थे । उनकी दो बेटियाँ हैं बड़ी बेटी वाणी अमेरिका में रहती थी और छोटी बेटी काव्या यहीं हैदराबाद में रहती थी । काव्या की शादी के समय ही सुजाता ने वी आर एस ले लिया था और उस समय आए पैसों से उसकी शादी धूमधाम से कर दी थी । 

वीरेंद्र एक साल पहले रिटायर हुए थे । वाणी की फ़रमाइशें आए दिन रहती थी इनके साथ यह भेजो और कुछ नहीं तो साल में दो बार कम से कम कोरियर भेजते हैं । 

वीरेंद्र कहते थे सुजाता हमें अपने बच्चों को परिस्थितियों के अनुसार ढालना सिखाना था । 

सुजाता हँस देती थी अभी छोटी है सीख जाएगी। उस दिन वाणी ने फोन करके बताया था कि माँ आपको यहाँ छह महीने रहना पड़ेगा और एक बात आपके दामाद सिर्फ़ आपके लिए टिकट ख़रीदेंगे । सुजाता ने कहा वाणी यह क्या कह रही है तुम्हारे पापा को यहाँ छह महीने किसके सहारे छोड़ दूँ । माँ पापा को बहन के घर पर छोड़ कर आजा कहकर फोन रख दिया । 

अब सुजाता क्या करती वाणी के पास तो जाना ही है । इसलिए काव्या को फोन करके सारी बातें बताई और कहा कि वाणी तुम पिताजी को छह महीने अपने पास रख लोगी क्या? 

उसने कहा माँ आप ऐसे कैसे कह सकतीं हैं । आप जानतीं हैं ना मेरे पास मेरी सास रहती हैं और मैं नौकरी  करते हुए इनकी देखभाल कर रही हूँ । मैं पापा को नहीं रख सकती आपको उनकी आदत मालूम है हर काम में मीन मेख निकालते हैं । 

सारी माँ मैं पापा को अपने पास नहीं रख सकती हूँ । हाँ एक उपाय है आप अपने पैसों से टिकट ख़रीद कर उन्हें क्यों नहीं अपने साथ ले जाती हैं । सुजाता को लगा बच्चों के लिए हम इतना कुछ करते हैं लेकिन उनका इस तरह का व्यवहार देख कर लगता है धिक्कार है ऐसे बच्चों का जो अपने माता-पिता के लिए कुछ नहीं कर सकते हैं । 

सुजाता ने पति से कहा कि दामाद से दोनों के लिए टिकट ख़रीदने के लिए कहना अच्छा नहीं लगता है । आपके लिए टिकट हम ख़रीद लेते हैं । 

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वीरेंद्र ने कहा सुजाता इतने पैसे खर्च करने की क्या ज़रूरत है । मैं अकेला ही रह लूँगा ।  तुम मेरी फ़िक्र मत करो । 

सुजाता ने उनकी एक नहीं सुनी और अपने सेविंग में से कुछ पैसे निकाल कर रवींद्र के लिए टिकट ख़रीद लिया । अब वाणी फोन करके कहने लगी कि छह महीने की दवाइयाँ लेकर आइए साथ ही हमारे बच्चे के लिए होमियोपैथी की दवाई भी लाइए साथ ही आप दोनों भी अपने चेकप करवा लीजिए क्योंकि यहाँ मेडिकल बहुत ही एक्सपेनेसिव है । आप लोग इंन्श्यूरेनस भी करवा कर आइए । 

उसकी बातों को सुनकर उन्होंने सब कुछ उसके कहे हिसाब से ही किया था । इन सब में उनके एक लाख से भी ज़्यादा पैसे खर्च हो गए थे । 

अब उनके जाने का समय आ गया था । एयरपोर्ट के लिए निकलने के लिए दो तीन घंटे थे कि तभी समधियों का फोन आया था कि हम देर से आपसे बात कर रहे हैं । लेकिन बेटे बहू के लिए कुछ ख़रीदारी की है हम भेज रहे हैं प्लीज़ आप ज़रूर ले कर जाइए । अब उन्हें मना नहीं कर सकते थे । इसलिए फिर से सूटकेस खोला और अपने कुछ कपड़े निकाल कर उनका सामान रख दिया था । 

किसी तरह से वे लोग हवाई जहाज़ में सवार होकर वाशिंगटन के लिए निकल गए । जैसे ही वहाँ पहुँचे तो देखा बेटी दामाद रिसीव करने के लिए आए हुए हैं । हाय हेलो के बाद सब लोग घर पहुँच गए थे ।

अब दूसरे दिन से सुजाता का काम शुरू हो गया था । उनको देखते ही वाणी ने सब काम उनके ऊपर डालकर खुद आराम करने लगी थी । सुजाता सुबह से लेकर रात तक सारे काम करती थी । इंडिया में तो कम से कम झाड़ू पोंछा बर्तन धोने के लिए तो कामवाली मिल जाती थी पर वहाँ सब कुछ मशीनों की मदद लेकर अपने हाथों से करना पड़ता है । 

रवीन्द्र ने पहले ध्यान नहीं दिया था परंतु जब उनका ध्यान सुजाता पर गया तो उन्हें लगा कि हे भगवान इतना काम वह अकेले कर रही है । 

उस दिन से रवीन्द्र सुजाता की मदद करने लगे थे । समय होते ही वीणा ने एक सुंदर से बेटे को जन्म दिया था । अब सुजाता के ज़िम्मे घर के काम के अलावा जच्चा और बच्चे की ज़िम्मेदारी भी बढ़ गई थी । 

बच्चे के आने की ख़ुशी में वाणी और पति ने अपने दोस्तों को बुलाया जिनके लिए खाना सुजाता ने बनाया । 

यह सारे काम करते करते सुजाता के पैरों में दर्द बढ़ गए और ठंड के कारण वात रोग भी बढ़ गया था । उसने अपने दर्द को किसी के सामने प्रकट नहीं किया और काम करती रही। 

एक दिन ऐसा आया कि वह बिस्तर पर से उठ नहीं पाई थी । उसने वीणा से कहा कि वीणा मेरे जोड़ों और घुटनों में तकलीफ़ बढ़ गई है यहाँ किसी डॉक्टर से सलाह लेते हैं । 

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वीणा कहने लगी थी कि इसीलिए मैं आप लोगों को इंडिया में ही सब कुछ टेस्ट करवाकर आने के लिए कहा था । यहाँ के डॉक्टर इमीडियट नहीं देखते हैं माँ । इंडिया के डॉक्टर को फोन करके पूछिए वे क्या कहते हैं जानिए कोई दवाई मँगवानी पड़ी तो मैं मँगवा दूँगी । 

सुजाता ने कहा कि वाणी मैंने वहाँ के डॉक्टर से फोन पर पूछ लिया है बेटा उनका कहना है कि बिना पेशेंट को देखे दवाई नहीं दे सकते हैं । 

वीणा ने बड़बड़ाते हुए ही अमेरिका में डॉक्टर से अपांइंटमेंट लिया जो एक हफ़्ते बाद मिला था ।

वाणी सुजाता को लेकर डॉक्टर के पास गई । डॉक्टर ने बताया कि ठंड के कारण उनके जोड़ों का दर्द बहुत बढ़ गया है इसलिए एक हफ़्ता उन्हें बेड रेस्ट दो उसके बाद भी वे ज़्यादा काम नहीं कर सकती हैं ।

वाणी और पति को ग़ुस्सा आ गया था कि अपने काम के लिए इन्हें बुलाया है और यहाँ उलटा हो रहा है । किसी तरह वाणी ने एक सप्ताह अपने घर का काम किया और फिर माँ से कहा कि माँ तीन महीने ही बचे हैं । अब तू धीरे-धीरे सारे काम कर ले माँ मुझसे नहीं हो रहा है । सुजाता कहती रही थी कि मुझसे नहीं होगा पर वह बिना सुने चली गई थी ।

रवीन्द्र ने वाणी की बातें सुन ली थी और दूसरे दिन सुबह वे वाणी के पास गए और कहा कि वाणी मैंने हमारे टिकट प्रीपोन कर लिया है परसों ही हमारी फ़्लाइट है हम इंडिया जा रहे हैं। पिता की बात सुनकर वाणी सकते में आ गई थी । इंडिया जाने की बात सुनते ही सुजाता के चेहरे पर चमक आ गई थी । 

वाणी के मना करने पर भी रवीन्द्र अपनी पत्नी को लेकर इंडिया आ गए थे । यहाँ के डॉक्टर ने बताया था कि ठंड की वजह से उनका वातरोग बढ़ गया है और कुछ नहीं है । 

सुजाता को ठीक होने में तीन महीने लग गए थे । इसी बीच वाणी ने फोन करके कहा कि माँ आप अचानक मुझे और मेरे बच्चे को छोड़कर चले गए थे इसलिए मैंने अपनी सास को यहाँ बुला लिया है । वे अगले महीने निकल कर आ रही हैं ।  मैं आपको एक लिस्ट भेज रही हूँ प्लीज़ वह सामान उनके घर पहुँचा देना ताकि वे यहाँ ला सके । 

सुजाता ने कहा कि देख वाणी अब तक हमने अपनी हैसियत से ज़्यादा पैसे खर्च कर दिए हैं । हमारे पास सिर्फ़ हमारा पेंशन ही है जो महीने में एक बार आता है । अबसे तुम्हें किसी भी चीज की ज़रूरत है तो ससुराल में पैसे भेज दो वे लोग ख़रीद देंगे । रवीन्द्र ने फोन हाथ में लेकर कहा देखो बेटा अपने बच्चों को खुद सँभालने की क्षमता रखो । मैं और तुम्हारी माँ भी नौकरी करते थे लेकिन हमने अपने बच्चों को खुद ही पाल पोसकर बड़ा किया है । तुम लोग भी करो अपने आप सीख जाओगे । 

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रवीन्द्र ने सुजाता से कहा कि यही बात तुमने पहले ही कह दिया होता तो आज यह नौबत नहीं आती थी कोई बात नहीं है अब तो कह दिया है ।

रवीन्द्र और सुजाता ने सोच लिया था कि धिक्कार है ऐसे बच्चों पर जिनके लिए हमने अपना सब कुछ न्योछावर दिया था । आज हमारी आँखें खुल गई हैं । हम अपनी ज़िंदगी अपने तरीक़े से जिएँगे । 

उसी समय रवीन्द्र के दोस्त ने फोन किया था कि हम सब ट्रिप पर जा रहे हैं चलोगे क्या? उन्होंने ज़ोर शोर से हाँ कह दिया था और सुजाता के साथ मिलकर जाने की तैयारी करने लगे थे ।

के कामेश्वरी

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