रिद्धि की सगाई हो जाने के बाद उसकी माँ नयनतारा जी उसे रोज कोई न कोई टिप्स ज़रूर देती थी।एक दिन वो बेटी को समझा रही थी कि सास को अपने पास दो दिन से अधिक बिल्कुल भी टिकने नहीं देना वरना…।तभी उसके पिता महेश बाबू बोले,” रिद्धि की माँ..ये कैसा पाठ बेटी को पढ़ा रही हो? कुछ ऐसी शिक्षा दो कि उसे ससुराल में पानी-पानी होना न पड़े।”
” हाँ-हाँ..वही तो बता रही थी।” कहते हुए वे ज़रा झेंप गई।
निश्चित तिथि पर रिद्धि का विवाह प्रकाश से हो गया जो एक साॅफ़्टवेयर इंजीनियर था और बैंगलुरु शहर में रहता था।पंद्रह दिन ससुराल में रहने के बाद वो पति संग बैंगलुरु चली आई।सप्ताह-दस दिन में उसने अपना घर भी सेट कर लिया…फिर सास- ससुर को बुलाया।बहू की व्यवहार-कुशलता देखकर दोनों बहुत खुश हुए।कुछ दिन रहकर वे बेटे-बहू को आशीर्वाद देकर वापस आ गये।
रिद्धि प्रेग्नेंट हुई तब उसकी सास ने पूछा,” कोई तकलीफ़ हो तो बताओ…मैं आ जाऊँगी।” तब वह बोली,” नहीं मम्मी जी..यहाँ सब सुविधा है…आप डिलीवरी के समय थोड़ा पहले आ जाएँगी तो…।”
” हाँ-हाँ…आ जाऊँगी…किसी प्रकार की चिंता मत करना…खुश रहना..।”
सास के ऐसे आशीर्वचनों को सुनते हुए उसके आठ महीने बीत गये और फिर नौवें में सास-ससुर आ गये तो उन्होंने उसे पलंग पर बैठा दिया।
रिद्धि ने एक बच्ची को जन्म दिया।इस शुभ अवसर पर नयनतारा जी पति संग बेटी के पास पहुंची।नातिन को देखा और समधिन को बधाई दी।छठी का फ़ंक्शन हो गया तब नयनतारा जी वापस जाने को तैयार होने लगी।दोपहर को नातिन को मालिश करते हुए बेटी से कहने लगी,” देख.. बंगलुरु शहर बहुत मंहगा है..हमारे जाने के बाद तू अपने सास-ससुर को भी विदा कर देना..।”
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रसोई से पानी का गिलास लाती हुई रिद्धि की सास ने सुना तो कमरे में आकर बड़बड़ाने लगीं।प्रकाश के पिता ने पूछा,” अजी.. क्या हुआ..क्यों अपना खून जला रही हो?” बस उन्होंने जो सुना था, उगल दिया और बोलीं,” अब बहू आकर हमें जाने को कहे..हम खुद ही अपना बोरिया-बिस्तर बाँध लेते हैं।” प्रकाश के पिता समझ गये कि बहस करने से कोई फ़ायदा नहीं है…।बहू आये तो सारी बातें स्पष्ट हो जाएँगी।
शाम की चाय लेकर प्रकाश आया…माँ का बैग तैयार देखा तो पूछ बैठा,” ये क्या माँ….कल तो रिद्धि की मम्मी जा रहीं हैं…फिर आपने क्यों…।” तब पिता ने सारी बात बताई तो सुनकर वह हा-हा करके हँसने लगा।बोला,” माँ..आप भी ना…रिद्धि को समझ नहीं पाई।मम्मी जी ने जब कहा तब रिद्धि बोली कि मम्मी…ये उनका घर है..उनका बेटा है…,मैं या आप दखल क्यों देंगे।”
” हे भगवान! मैंने न जाने क्या-क्या सोच लिया।” रिद्धि की सास अपनी सोच पर शर्मिंदा थीं।रात में खाने की टेबल पर नयनतारा जी अपनी समधन से और रिद्धि की सास अपनी बहू से नज़रें नहीं मिला पा रहीं थीं।दोनों ही पानी-पानी हो रहीं थीं।तब प्रकाश हँसते हुए बोला,” रिद्धि…तुम्हारे हाथ के पराँठे का जवाब नहीं।”
” मेरी ही तो बेटी है ना…।” तपाक-से नयनतारा जी बोलीं तो रिद्धि की सास तनकर बोलीं,” बहू तो मेरी ही है ना…।” कहते हुए उन्होंने रिद्धि को पराँठे का एक कौर खिला दिया।फिर तो घर की तीनों महिलाएँ हँस पड़ी और पुरुष एक-दूसरे को देखकर मंद-मंद मुस्कुराने लगें।
विभा गुप्ता
स्वरचित
# पानी-पानी होना