नई नवेली बहुरानी गरिमा सास विमला जी के लिए चाय लेकर आई ही थी कि उसे देखते ही विमला जी बिफर पड़ीं और वहीं से बैठे-बैठे बड़ी बहू नीला को आवाज देते हुए कहा, “- यह क्या है नीला बहू! तुमने मुझे कप में चाय क्यों भिजवाई? तुम्हें पता है ना कि मैं कांच के गिलास में चाय पीती हूँ, फिर भी तुमने यह दुमछल्ले वाला कप भिजवा दिया!!”
उनकी ठसकदार आवाज सुनते ही नीला सिर का पल्लू संभालते हुए तेज कदमों से विमला जी के लिए चाय का गिलास लेकर आ पहुंची। भस्म कर देने वाली आग्नेय दृष्टि उस पर डालते हुए विमला जी ने वाग्बाण छोड़ा,”- अब रहने दो यह नौटंकी! मुझे नहीं चाहिए चाय!”
नीला ने क्षमा मांगते हुए अनुनय भरे स्वर में कहा,” पी लीजिए माँ जी! गलती हो गई! आगे से मैं बिल्कुल ध्यान रखूंगी। अभी गरिमा नई है ना तो इसे पता नहीं चला और यह आपके लिए कप में चाय लेकर आ गई।”
“-अरे यह तो नई है पर तुम तो सालों से इस घर में हो! क्या तुम्हारी अकल पर भी पत्थर पड़ गए थे! सीधे-सीधे कहो ना कि सास जी का जंजाल हो गई है तुम लोगों के लिए…” विष वमन करते हुए विमला जी ने चाय का ग्लास थाम लिया।
नीला चैन की सांस लेते हुए वापस रसोई की तरफ चल दी और उसके पीछे-पीछे गरिमा भी रसोई में पहुंच गई। उसने आतंकित स्वर में फुसफुसाते हुए नीला से कहा..
“- यह क्या था भाभी! मां जी को अगर सीमा पर भेज दिया जाए ना तो आधे दुश्मन तो उनके वाग्बाणों से ही धराशायी हो जाएंगे।”
नीला ने बड़ी कठिनता से अपनी मुस्कान रोकी और नकली गुस्सा दिखाते हुए गरिमा को आंखें दिखाईं। गरिमा ने भी हंस कर कान पकड़ लिए। नीला बड़ी फुर्ती से सारे काम निपटाना लगी। साथ में गरिमा भी उसकी मदद करती जा रही थी और उसके काम के तौर तरीके देखकर सीखने का भी प्रयत्न कर रही थी। जल्दी ही दोनों ने मिलकर रसोई का काम निपटा लिया। दोनों भाइयों ( नीला और गरिमा के पति) को नाश्ता करा कर उनका टिफिन भी पैक करके दे दिया। दोनों भाई अपने-अपने काम पर निकल गए। तब तक विमला जी भी नहा धोकर पूजा पर बैठ चुकी थी, जिसमें उन्हें प्रतिदिन लगभग एक घंटा लगता था।
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निश्चिंत होकर दोनों देवरानी जेठानी ने थोड़ी सी चाय बनाई और और अपना अपना कप लेकर आकर बालकनी में बैठ गईं।
गरिमा ने थोड़े चिंतित स्वर में कहा, “- भाभी, पता नहीं आपके भीतर कितना धैर्य है! आप कैसे माँ जी का इतना गुस्सा झेलते हुए काम करती हैं, जबकि आपके सारे काम इतनी परफेक्ट होते हैं! मैं तो और भी अनाड़ी हूँ! पता नहीं मेरा क्या होगा! क्या माँजी शुरू से ही ऐसी हैं?”
शांत और धीर गंभीर स्वभाव की नीला उसकी मासूम बातों पर मुस्कुरा पड़ी- ” तुम्हें पता है गरिमा.. जब यह दोनों भाई छोटे थे तभी ससुर जी गुजर गए थे! ससुराल वालों ने उन्हें मनहूस कह कर उन्हें अलग थलग कर दिया! माँजी के मायके में बस उनके एक भाई ही थे जो आर्थिक रूप से स्वयं ही तंगी से गुजर रहे थे। ऐसे में मां जी ने जैसे तैसे लोगों के कपड़े सीकर दोनों भाइयों को पाला पोसा है। आज वे जो कुछ भी हैं केवल मां जी के त्याग और तपस्या के कारण ही है। लेकिन अकेले ही सारी विषमताएं झेलते झेलते मां जी का स्वभाव थोड़ा रूखा हो गया है मगर वह दिल की बहुत अच्छी हैं। सबके लिए उनके मन में ममता का सागर लहराता रहता है। उन्होंने जीवन में खुशियां बहुत कम देखी है ना इसलिए उनका स्वभाव थोड़ा कड़क हो गया है। इस सफेद रंग ने उनके जीवन के सारे रंग छीन लिए और अब वह स्वयं को बदल नहीं पा रही हैं। मुझे मालूम है कि वह हृदय से मुझे बहुत प्यार करती हैं लेकिन मैं जब से आई हूं मेरे साथ भी उनका व्यवहार ऊपर से ऐसा ही रहता है। ना कुछ मौज मस्ती कर सकती हूं… ना कहीं घूमने जा सकती हूं, क्योंकि वो घर से बाहर कहीं नहीं जाती ऐसे में उन्हें अकेले छोड़कर जाना मेरे लिए भी संभव नहीं हो पाता। लेकिन मेरा बहुत ध्यान भी रखती हैं। मुझे आइसक्रीम पसंद है तो बेटों से आइसक्रीम मंगवा कर चुपके से फ्रिज में रख देती हैं! कोई भी मौका होता है तो चुन चुन कर मेरे लिए साड़ियां और गहने मंगवाती हैं। मैं सब कुछ समझती हूं गरिमा लेकिन उनके व्यवहार में कैसे बदलाव लाऊं, यह समझ नहीं पा रही हूं। “
गरिमा ने हौले से नीला का हाथ दबाते हुए कहा, “-आप चिंता मत करो भाभी! अब मैं आ गई हूं ना कुछ ना कुछ रास्ता तो निकल ही लूंगी! मां जी अगर नारियल समान है तो उनके अंदर जो स्नेह की धार है, उसका रसास्वादन तो करके ही रहूंगी। चलो आज दोपहर में आप तैयार रहना… आज हम तीनों बाहर घूमने चलेंगे…आप, मैं और मां जी! थोड़ी बहुत शॉपिंग करेंगे और कुछ खा पी कर आएंगे! जैसे जीवन से कुछ खुशी के पल चुराने का अधिकार सभी को है.. वैसे ही मुझको भी, आपको भी और मां जी को भी है…..”
“तेरा दिमाग तो ठिकाने पर है.. क्या अनाप-शनाप बोल रही है..” नीला ने चिहुंक कर कहा तो गरिमा बाई आंख दबाकर मुस्कुरा पड़ी।
तभी मां जी की पूजा की घंटी बज उठी! दोनों बहुएं हड़बड़ा कर उठ गईं। गरिमा ने फुसफुसाते हुए कहा, “-भाभी, आप माँजी को नाश्ता करवाओ.. मैं बस 15 मिनट में आई और अगर इस बीच मां जी मेरे बारे में पूछें तो बोल देना नहाने गई हूं।”…. इससे पहले कि नीला कुछ बोल पाती गरिमा स्कूटी की चाबी लेकर यह जा और वह जा!
गनीमत था कि नीला ने विमला जी के सामने नाश्ते की थाली रखी ही थी कि उनके भाई का फोन आ गया। माँजी ने बातें करते हुए धीरे-धीरे नाश्ता करना शुरू कर दिया। जब तक उनका नाश्ता खत्म हुआ तब तक घर के पिछले दरवाजे से गरिमा अंदर आ गई। उसके हाथ में एक पैकेट था। उसने होठों पर उंगली रखते हुए नीला को चुप रहने का इशारा किया। उसने पैकेट को सोफे के कुशन के पीछे छुपा कर रख दिया।
सुबह के 11:00 चुके थे गरिमा और नीला दोनों नहा धोकर तैयार हो गए। गरिमा ने सोफे से पैकेट उठाया और उसमें से हल्के आसमानी रंग की साड़ी निकाली। साड़ी लेकर वह विमला जी के पास पहुंची और बड़े मनुहार से साड़ी उनके कंधे पर ओढ़ाते हुए कहा,”- माँजी, आज आप यह साड़ी पहनो ना प्लीज!”
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विमला जी ऐसे चौंकीं जैसे हजार बिच्छुओं ने एक साथ डंक मार दिया हो!
“- तेरी हिम्मत कैसे हुई मुझ पर रंगीन साड़ी रखने की!मैं सफेद साड़ी पहनती हूं और हमेशा वही पहनूंगी। उन्होंने साड़ी झटक कर जमीन पर फेंक दी। गरिमा एक पल को तो स्तब्ध रह गई। फिर उसने जमीन पर पड़ी हुई साड़ी उठाई और विमला जी के कंधे से झूल गई,”- माँजी, बस आप आज मेरे लिए पहन लो! चलो मैं आपको पहनाती हूं।”
विमला जी बड़बड़ाती भुनभुनाती रही लेकिन गरिमा उनको जबरदस्ती खींचकर उनके कमरे में लेकर चली गई और वहां जाकर उनके ना ना करते भी उनको वह साड़ी पहना डाली, और मुस्कुराते हुए उनके कमरे से निकल गई….विमला जी अभी भी बड़बड़ा रही थी लेकिन नीला ने उनके कमरे के खुले दरवाजे से देखा कि वह आईने में स्वयं को आड़ी तिरछी होकर निहारती भी जा रही थी। गरिमा ने आकर पैकेट में से पर्ल का एक हल्का सा सेट निकला और जाकर विमलाजी को पहनाने लगी। विमला जी ने फिर गरिमा को झिड़का “-यह क्या कर रही है मुझे नहीं पहनना ये अंट शंट! हट परे!”
गरिमा ने जबरदस्ती नेकलेस उनके गले में डाल दिया और उनको आईने की तरफ मोड़कर कहा, “देखिए न माँजी, इतना अच्छा तो लग रहा है… बस आज मेरे लिए पहन लीजिए…”
आईने की तरफ देखते ही विमला जी की आंखों में हल्की सी चमक आ गई पर उन्होंने ऊपर से कहा,”- चल आज पहन लेती हूं फिर ऐसे जिद ना करना कभी! यह न समझ कि तेरे कहने में आ जाऊंगी बार बार! “
मुस्कुराते हुए गरिमा विमला जी का हाथ पकड़ कर बाहर ले आई और बाहर खड़ी कार में बैठा दिया! नीला ने झटपट दरवाजे में ताला लगाया। गरिमा ने कार स्टार्ट की और कार दौड़ पड़ी बगल वाले माॅल की तरफ! विमला जी ने खिङकी का कांच थोड़ा नीचे कर लिया और आंखें मूंद कर चेहरे पर ठंडी हवा लेने लगी।
माॅल पहुंच कर गरिमा ने गाड़ी रोकी और अनुनय भरे स्वर में विमलाजी से कहा,”- माँजी हम यहां आए हैं …प्लीज आप यहां मत डांटना! घर चल के फिर आपको जितना डांटना हो, आप हम दोनों को डांट लेना! अभी चलो हमारे साथ!”
विमला जी के चेहरे पर झिझक साफ दिखाई दे रही थी, फिर भी मन मार कर उन दोनों के साथ चली गई। वहां की चकाचौंध देखकर वह अचंभित सी डोल रही थी। फिर उन्होंने बड़े मन से सबके लिए कुछ ना कुछ लिया। गरिमा ने कहा,”- माँजी, आपका फोन बहुत पुराना हो गया है…चलिए आपके लिए नया फोन लेते हैं।”…….बाल सुलभ उत्साह झलक गया विमला जी के चेहरे पर मगर फिर स्वयं को रोकते हुए उन्होंने कहा,”-अरे मैं क्या करूंगी नया फोन लेकर… मेरा काम तो पुराने फोन से चल ही जाता है।” लेकिन गरिमा ने फिर भी एक स्मार्टफोन उनके लिए ले ही लिया। उनके चेहरे पर खिली प्यारी सी मुस्कान दोनों बहुओं से छिपी न रह सकी। माल से बाहर निकलते ही गरिमा ने कहा,”-चलो गोलगप्पे खाते हैं…”
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आशा के अनुरूप ही विमला देवी ने तुरंत विरोध किया, “-ज्यादा चटखारे लेने की कोई जरूरत नहीं है। अब चलो घर।”
मगर गरिमा उन्हें खींचते हुए गोलगप्पे के स्टॉल तक ले ही आई। गोलगप्पे वाले ने सभी को गोलगप्पे दिए तो गरिमा ने गोलगप्पा उठाकर प्यार से विमला जी के मुंह में ठूंस दिया। थोड़ा पानी बहकर उनकी ठुड्डी से टपकने लगा। दोनों बहुएं हंस पड़ी। और मजा तो तब आया जब गोलगप्पा खत्म होने के बाद विमलाजी ने अपना प्लेट गोलगप्पे वाले की तरफ फिर से हौले से बढ़ा दिया।
तीनों की सवारी अब वापस घर की तरफ दौड़ रही थी। घर पहुंचते ही विमला जी ने फरमाइश की, “-अरे मुझे तो थका दिया इस बित्ते भर की छोकरी ने। जरा सी चाय बना दे अब नीला बहू! इस मौज-मस्ती में घर को मत भूल जाना! और वह नया वाला टी सेट निकालने का मन हो तो निकाल लो, उसमें पी लेना! तुम लोग का दिल रखने के लिए आज मैं भी उसमें पी लूंगी, पर याद रखना कल से मैं अपने वाले गिलास में ही पियूंगी।”
नील की आंखें हैरत से फैल गईं। विमला जी में यह सुखद बदलाव देखकर उसने भी मुस्कुराते हुए कहा, “- जी माँजी!”
और दोनों बहुएं किचन में पहुंच गईं। किचन में पहुंचते ही गरिमा ने दबी हुई मुस्कुराहट के साथ कहा, “-देखा ना भाभी.. चीजें कठिन जरूर है मगर असंभव नहीं! धीरे-धीरे सब कुछ ठीक हो जाएगा।”
नीला ने गरिमा को खींचकर गले से लगा लिया,”- इतने प्यारे से दिन के लिए बहुत-बहुत शुक्रिया गरिमा! आज कितने दिनों के बाद लगा कि जिंदगी जी है। ”
अचानक दोनों की नजर सोफे पर बैठी विमला जी पर पड़ी जो “कांटों से खींच के यह आँचल…” की धुन गुनगुनाते हुए नए फोन से सेल्फी लेने का प्रयत्न कर रही थीं! दोनों बहुएं एक दूसरे की ओर देखकर खिलखिला पड़ीं।
निभा राजीव “निर्वी”
सिंदरी, धनबाद, झारखंड
स्वरचित और मौलिक रचना
बहुत अच्छी और लीक से हटकर कहानी
बहुत ही बढिया कहानी लगी. रुखे स्वभाव को प्रेम से जीता जाय तो निश्चित ही उसका मन अवश्य बदलता है.
सुंदर रचना। आप बधाई के पात्र हैं
बहुत ही शानदार रचना