अब दुनिया के सामने रोकर मत दिखा – बीना शर्मा  : Moral stories in hindi

“मम्मी तुम हमें छोड़कर क्यों चली गई?” कहते हुए मीना की बहू पलक कुछ देर पहले ही स्वर्गवासी हुई सास के पास बैठकर जोर-जोर से रो रही थी पत्नी की बात सुनकर उसका पति पंकज गुस्से में बोला” खबरदार जो मम्मी के लिए एक भी आंसू बहाया तो..… सबके सामने इस तरह रोकर अपने  प्यार का दिखावा मत करो”पलक के पास उस वक्त पंकज  की बुआ शारदा  भी बैठी थी पंकज की बात सुनकर वह पंकज से बोली” बेटा तू बहु से ऐसे क्यों कह रहा है इसकी सास तो इससे बिल्कुल बेटी की तरह प्यार करती थी इसके उठने से पहले ही घर की साफ सफाई और खाना वगैरह सब बना कर रख देती थी

ताकि बहू को काम  करने में कोई परेशानी ना हो पिछली बार जब सर्दियों की छुट्टियो  मे मैं कुछ दिनों के लिए  यहां रहकर गई थी तब मैंने देखा था भाभी जब हमें खाना परोसती थी तो इसे भी अपने हाथ से खाना परोस कर दे देती थी और जब कभी यह बीमार पड़ती तो तब तक यह पूरी तरह से ठीक ना हो जाती खुद इसकी सेवा करती थी बिस्तर में बैठे बैठे ही इसको अपने हाथ से सलाद और खाना खिलाती थी सास का इतना प्यार पाकर तो यह इसकी मम्मी के द्वारा अपनी मायके बुलाने पर कभी कभी अपने मायके जाने से भी इंकार कर देती थी बेटा जब सास इतना प्यार करेगी तो बहु तो उसे याद करके रोएगी ही तू क्यों बहू पर गुस्सा हो रहा है मेरी तो  यह बात समझ से परे है?….

         “बुआ जी मम्मी तो इसे बहुत प्यार करती थी परंतु ,पता है इसने मम्मी के साथ क्या किया?”कुछ दिनों पहले जब मम्मी के लकवा मार गया था और उनके शरीर के आधे हिस्से ने काम करना बिल्कुल बंद कर दिया था तब मैं मम्मी को तुरंत अस्पताल लेकर गया था वहां पर डॉक्टर ने मम्मी का बहुत अच्छा इलाज किया परंतु ,काफी दिन तक अस्पताल में बेहतर इलाज करने के बाद भी जब मम्मी पूरी तरह से ठीक ना हो पाई तब डॉक्टर ने मुझसे कहा था कि हमने अपनी तरफ से पूरी कोशिश कर ली इन्हें पूर्ण रूप से स्वस्थ करने की बेहतर इलाज करके।हमने इन्हें जिंदा तो बचा लिया

लेकिन शरीर के आधे हिस्से पर लकवा मारने के कारण अब तुम्हारी मम्मी पूरी तरह से कभी ठीक ना हो पाएंगी ना ही अपने हाथ पैरों से चल पाएंगी और ना ही घर का कुछ काम कर पाएंगी अब इनके पास जिंदा रहने के लिए ज्यादा वक्त भी नहीं बचा है इसलिए तुम इन्हें घर ले जाओ और इनकी अच्छी तरह से सेवा करो ताकि यह खुशी-खुशी अपनों के सामने इस दुनिया से विदा हो सकें। “

      डॉक्टर की बात सुनकर मैं मम्मी को घर ले आया तो मम्मी की हालत देखकर उन पर तरस खाकर उनकी सेवा करने की बजाय यह मुझसे बोली”ऐसी  हालत में तुम मम्मी को घर लेकर आ गए इन के बस की चलना फिरना भी नहीं है ऐसे में कौन इनकी सेवा करेगा? मेरे बस की इनकी सेवा करनी नहीं है या तो तुम इन्हें दोबारा अस्पताल छोड़कर आ जाओ नहीं तो इनकी सेवा के लिए एक नौकरानी रख लो।”

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     इसकी बात सुनकर मैं आश्चर्यचकित रह गया था जिस सास ने इसे हमेशा अपनी बेटी की तरह माना वह उनके बारे में इस तरह से बोल रही थी और फिर मेरे पास इतना पैसा भी नहीं था कि मैं मम्मी को दोबारा अस्पताल में एडमिट कर दूं या फिर इनकी सेवा के लिए 24 घंटे काम करने वाली एक नौकरानी रख लूं इसे पता होने के बावजूद भी कि मैं एक प्राइवेट कंपनी में काम करता हूं और मेरे पास इतने पैसे भी नहीं है जब मैंने प्यार से इसे समझाना चाहा तो यह गुस्से में बोली”यदि तुम्हारे पास कोई रास्ता नहीं है तो तुम खुद अपनी मां की सेवा करो मैं  किसी के पॉटी और पेशाब के कपड़े साफ नहीं करूंगी मुझे घिन आती है ऐसा करने से ……

    इसकी बात सुनकर मेरा मन दुखी हो गया था मुझे अच्छी तरह से याद था जब बचपन में मैं अपने कपड़े गंदे कर देता था तब मम्मी मुझे डांटने की बजाय प्यार से मेरे कपड़े साफ कर देती थी और एक बार जब इसके उल्टी दस्त लग गए थे तब इसके भी कपड़े खराब हो गए थे तब मम्मी ने यह कहकर की मैंने बचपन में अपने बेटे के कपड़े भी तो साफ़ किए थे यदि बहू के साफ कर दूंगी तो क्या हो जाएगा?” बहू भी तो मेरे लिए बेटी के जैसी ही है मैंने इसे बोल दिया”यदि तेरे बस की मम्मी की सेवा करनी नहीं है तो तू मत कर मैं अपनी मम्मी की सेवा खुद करूंगा।”

    यह कहकर जब मैं मम्मी के पास गया तो शायद मम्मी ने हमारी बात सुन ली थी क्योंकि उनके शरीर का आधा हिस्सा ही खराब हुआ था उनके कान और मुंह बिल्कुल ठीक काम कर रहे थे वे मुझे दुखी स्वर में बोली” बेटा मुझे या तो छत से धक्का दे दे नहीं तो एक जहर की पुड़िया लाकर दे दे तू जब 5 साल का था तभी  तेरे पापा मुझे छोड़कर चले गए थे उस वक्त लोगों के घर-घर साफ सफाई करके मैंने तेरी परवरिश की बेटा मैंने पूरी जिंदगी कमाकर खाया है अब मैं किसी पर आश्रित होकर जीना नहीं चाहती।”

    मुझे पता था उस वक्त मम्मी अपनी बहू की बात सुनकर शर्म के मारे ऐसा कह रही थी क्योंकि कोई मां नहीं चाहेगी कि उसका बेटा उसके वस्त्र साफ करें तब मैंने मम्मी को प्यार से समझाते हुए कहा “मां मैं तो हूं मैं तुम्हारी सेवा करूंगा सुबह नौकरी पर जाने से पहले तुम्हारे सब काम कर दिया करूंगा और नौकरी से आने के बाद भी तुम्हारे पास ही रहा करूंगा ताकि तुम्हारी सेवा में मुझसे कोई कमी ना हो सके मां तू बिल्कुल भी दुखी मत हो खबरदार जो आज के बाद मुझे धक्का देने या फिर जहर लाने की बात कही बचपन में तुमने भी तो हमारे कपड़े साफ किए थे यदि तुम ना होती तो मैं इस संसार में कैसे आता अपने बेटे से मां को कैसी शर्म? शर्म तो उन्हें आनी चाहिए जो अपने फर्ज से मुकर जाते हैं।”

          मेरी बात सुनकर मम्मी खामोश हो गई थी जब तक वो जीवित रही मैं खुद उनके कपड़े साफ करता था अपने हाथों से उन्हें खाना खिलाता था और दवाई देता था सुबह जब मैं मम्मी को अपने हाथों से खाना खिला रहा था तब मम्मी ने प्यार से मेरे सिर पर अपने दोनों हाथ रख और मुझे आशीर्वाद देते ही उनके प्राण निकल गए थे  यदि मेरी बातों पर विश्वास ना हो तो पूछ लो अपनी बहू से।”

       पंकज की बात सुनकर उसकी बूआ शारदा का मन बेहद दुखी हो गया था दुखी स्वर में वह पलक से बोली”जिस सास ने तुझे बेटी की तरह समझा तुमने उसके साथ ऐसा किया तुझे ऐसा करते हुए बिल्कुल भी शर्म ना आई जीते जी जो सास की सेवा न कर सकी अब उसके मरने के बाद दुनिया के सामने रोकर अब दिखावा कर रही है पंकज ठीक ही कह रहा है अब दुनिया के सामने रोकर मत दिखा “बुआ की बात सुनकर पलक शर्म के मारे पानी पानी हो गई थी अपनी शर्म छुपाने के लिए जब वह बुआ से माफी मांगने लगी तो बूआ दुखी होकर बोली”सास ने तुझे बेटी तो मान लिया था परंतु, तुमने कभी सास को मां नहीं माना होगा यदि तेरी मम्मी के साथ ऐसा हो जाता तो क्या तू उसके लिए भी ऐसे ही बोलती ? बुआ की बात सुनकर पलक शर्मिंदा हो गई थी शर्म के मारे उसके मुख से कोई बोल ना निकला था वहां पर बैठे समाज के सभी लोग उसे सम्मान की बजाय हेय की दृष्टि से देख रहे थे।

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यह हमारे समाज की एक बिल्कुल सत्य घटना है शायद कुछ पाठकों को मेरी इस रचना पर विश्वास ना आए परंतु, अब समय बदल गया है एक समय था जब सास बहू पर हुक्म चलाती थी लेकिन अब शिक्षित होने के कारण वक्त बदल गया है सास अपनी बहू को बेटी की तरह सम्मान देने लगी है उसे बेटी की तरह प्यार करने लगी है परंतु, यदि बहू भी सास को मां की तरह सम्मान और प्यार दे तो सास का जीवन भी सुखमय हो जाए और बहू को भी समाज में सम्मान मिले नहीं तो ऐसी बहू को लोग आदर की बजाय घृणा की दृष्टि से देखते हैं।

बीना शर्मा

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