दो वर्षों से बीमार लकवा ग्रस्त पति गोवर्धन दास की दवाई खाकर अभी-अभीआंख लगी थी। भारती देवीने उन्हें सोता हुआ देख कर चैन की सांस खुदभी आराम कुर्सी पर निढाल होकर पसर गई। आखिर उनकी भी तो उमर हो चलीथी।
जब इस घर में ब्याह कर आई थी, मात्र 18 वर्ष की तो थी। तब से लेकर अब तक सब की सेवा बिना शिकवे शिकयत के करती आई है। मां ने विदाई के समय कहा था -“भारती बेटी, अब ससुराल ही तेरा असली घर है। मायके की तरफ पीठ ही रखना, ससुराल वालों की खूब सेवा करना, पर साथ में अपना ध्यान भी जरूर रखना। हां यह बात याद रखना कि जरूरत के वक्त हम हमेशा तुझे तेरे साथ खड़े मिलेंगे।”
तब से इस बात को भारती ने गांठ बांध ली। ससुराल वाले भी बहुत अच्छे लोग थे। कभी भारती को शिकायत का मौका ही नहीं दिया। किसी बात की कोई कमी नहीं और ना ही बे फालतू की रोक-टोक। सासू मां और ससुर जी, माता-पिता तुल्य, बड़ी ननद मानो एक प्यारी सी सहेली।
भारतीय दुल्हन बनकर आई, घर मेहमानोंसे भरा था। हंसी-मजाक चल रहा था। भारती से गृह प्रवेश, कलश पूजन आदि रस्में करवाई गई। 8-10 दिनों तक मेहमान रुक रहे और फिर धीरे-धीरे जाना शुरू हुए। चार कमरों वाला घर था। आंगनभी अच्छा-खासा था। छत का भी बहुत सुख था। कपड़े सुखाओ, पापड़ बड़ियां, बनाकर सुखाओ या फिर गर्मियों में टेबल फैन लगाकर चारपाई बिछा कर सो जाओ। उस समय बाद ही आनंदआता था जब कभीरात में ठंडी मस्त हवा चलती थी।
8-10 दिनों तक भारती और गोवर्धन दास मेहमानों के साथ ही रहे। उनके जाने के बाद ही उन्हें एकांत मिला। हंसी खुशी जिंदगी कटने लगी। गोवर्धन दास जी सरकारी नौकरीमें थे और उनके पिताजी फल व्यापारी थे। उम्र बढ़ने के साथ-साथ उन्होंने अपना व्यापारछोड़ दिया।
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समय बीता, भारती की गोद हरी हुई उनका बेटा अभिषेक पैदा हुआ और फिर बाद में बेटी श्रुति। जब अभिषेक दसवीं कक्षा मेंथा तब उसके दादा जी चल बसे। गोवर्धन दास जी व्यवहार के बहुत ही अच्छे इंसानथे। सबसे स्नेह करने वाले और सबकी मदद करने वाले। अपने माता-पिता का बहुत आदर करते थे। पिताजी के देहांत पर खूब रोए और बहुत दिनों तक उदास रहे। और अपनी माता जी का पहले से भी ज्यादा ध्यान रखने लगे। दोनों बच्चे उनकी जान थे और भारती उनका जीवन। उन्होंने भारतीको बहुत सम्मान औरप्यार दिया था। भारती ने कभी उनके चेहरे पर गुस्से की झलक तक नहीं देखी थी। हर समय मुस्कुराता चेहरा और वे दूसरों को भी मुस्कुराने के लिए मजबूर करदेते थे।
रोमांटिक भी बहुत थे। हर सप्ताह भारती के लिए मोगरे वाला गजरा जरूर लाते और कहते कि इसे लगाकर तुम बहुत सुंदर लगती हो। भारती शरमा कर कहती-“धत, आप भी ना।”
कभी ऑफिस से आने पर भारती दिखाई ना देती तोगाना गाते-“तू छुपी है कहां, मैं——“भारती कहती -“बच्चे बड़े हो गए हैं, कुछतो शरम करो। माताजी भी सुन रही होंगी।”
गोवर्धन दासजी जोरसे हंस पड़ते। अभिषेक भी अपने पिता की तरह हसमुख था। उसके मधुर व्यवहार से सभी खुश रहते थे। श्रुति का व्यवहार भी बहुत अच्छा था। दादी तोदोनों बच्चों की बलैया लेते थकती नहीं थी। अभिषेक इंजीनियर बन चुका था और उसकी शादी के रिश्ते आने लगे थे। श्रुति b.ed कर रही थी।
कुछ समय बाद अभिषेक का विवाह अदिति से हुआ। अदिति भी ऐसा घर परिवार पाकर निहाल थी।
अब कभी गोवर्धनदास जी गाना गाते तो भारती गुस्सा दिखाते हुए कहती,”कम से कम अब तो शर्म करो, ससुर बन गए हो बहु बेटा सुनेंगे तो क्या सोचेंगे।”
गोवर्धन दास जी हंसते हुए दूसरा गाना शुरू कर देते “ए मेरी जोहर जबीं, तुझे मालूम नहीं——”
भारती कहती -“आप नहीं सुधरेंगे”और वहां से चली जाती। इस बात पर बच्चे भी खूब हंसते थे।
श्रुति का बीएड पूरा हो चुका था। दादी ने कहा अब इसका भी ब्याह कर देना चाहिए। श्रुति ने कहा-“दादी, कुछ समय तो अपनी प्यारी भाभी के साथ रहने दो
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।”
2 साल कैसे बीत गए, पता भी ना लगा।
अदिति ने प्यारी सी गुड़िया तृषा को जन्म दिया। भारती हमेशा ईश्वर से यही प्रार्थना करती कि मेरे परिवार को सदा ऐसे ही खुश रखना और मुझे सदा सुहागन रखना। मैं अपने पति के सामने ही इस संसार से विदा हो जाऊं , ऐसीकृपा करना । अब श्रुति के लिए, उसकी तरह एक शिक्षकका रिश्ता आया, घर बार बहुत अच्छा था, सो हां कर दी गई। श्रुति का बड़े धूमधाम से विवाह संपन्न हआ। दादी बहुतखुश थी। कहने लगी अब तोमैं गंगा नहा ली, ईश्वर ने सारी इच्छाएं पूरी कर दी। एक दिन गोवर्धन को अपने पास बुलाकर बोली-“बेटा बहुत दिनोंसे कलाकंद खाने का मन हो रहा है।”
गोवर्धन जी शाम को कलाकंदले आए। दादी ने अपने हाथ से पूरे परिवार को खिलाया और खुद भी तीन-चार पीस खा लिए। रात में ऐसी चैन की नींद सोई कि सुबह जागी ही नहीं।
इस अचानक हुई घटना का गोवर्धन जी के मन पर बहुत असर पड़ा। रिटायरमेंटके बाद तो अक्सर बीमार रहने लगे। अभिषेक ने हर तरह के डॉक्टरी परीक्षण करवाए और दवाइयां दिलवाई। पर कोई फायदा नहीं। एक दिन रात में अचानक बिस्तर से उठते ही उन्हें चक्कर आया और गिर पड़े। गिरने केबाद उन्हें लकवा हो गया। खाना पीना धीरे-धीरे बहुत कम हो जाने के कारण एकदम कमजोर हो गए। मल मूत्र भी बिस्तर पर सीमित हो गया। हालत इतनी खराब हो गई थी कि जो देखे, वो रो पड़े। अभिषेक, अदिति श्रुति और उसका पति सभी उनका हाल देख कर दुखी थे।
भारती अपने पति का हाल देखकर भगवान के सामने अक्सर रो पड़ती और कहती-“इतने अच्छे इंसान को इतनी तकलीफ क्यों, जिसने हमेशा सबका ध्यान रखा, सबका आदर सम्मान किया, जरूरतमंद की मदद की, मुझे कभी कांटा चुभने जितनी तकलीफ नहीं होने दी, उसका ऐसा हाल क्यों भगवान? मेरा बस चले तो मैं उन्हें पल में ठीक कर दूं या फिर उनकी सारी तकलीफ अपने ऊपर ले लूं, पर मैं क्या करूं, सब कुछ आपके हाथ में है, उन्हें सेहतमंद कर दो भगवान।”
आज बहुत दिनों बाद दवा खाकर गोवर्धन दासजी को थोड़ी नींद आई थी। तब उन्हेंनींद में देखकर वह खुद भी आराम कुर्सी पर पसर गई थी और पुरानी यादों में खो गई थी। तभी अचानक गोवर्धन दास जी को खांसी का दौरा जैसा पड़ा। बेचारे खांसते खांसते एकदम निढाल हो गए। भारती ने एक हाथ से उनके सिर को सहारा देकर थोड़ा पानी पिलाकर उन्हें लिटा दिया।
अब भारती दौड़कर, रोती रोती घर के मंदिर में पहुंची और हाथ जोड़कर बोली-“हे ईश्वर! मेरी इस पाप से भरी प्रार्थना को क्षमा कर देना। हर स्त्री की तरह मैं भी सदा सुहागन रहना चाहती हूं और सुहागन ही मरना चाहती हूं, लेकिन अपने पति की इतनी बुरी हालत मुझसे अब
देखी नहीं जाती। अगर मैं पहले चली गई, तोइन्हें कौन संभालेगा। हालांकि आपकी दया से हमारे बच्चे बहुत अच्छे हैं, पर फिर भी जीवनसाथी जितना कौन साथ दे सकता है। इसीलिए हे प्रभु! अपने फटे हुए हृदय से मैं आपसे प्रार्थना करती हूं कि इतनी दया करो, मेरे पति अब और तकलीफ ना भोगें। उन्हें अपने चरणों में स्थान दो, और अपने पास बुला लो।”
ऐसा कहते हुए भारती का कलेजा फट रहा था और वह फूट-फूट कर रो रही थी।
स्वरचित अप्रकाशित गीता वाधवानी दिल्ली
इस आदर्श परिवारिक कहानी के लिए आपको धन्यवाद।
आपने बहुत ही अच्छे से सभी किरदारों को एक आदर्श परिवार के रूप में दिखाया जो कि हमको बहुत अच्छा लगा।