औकात नहीं भूला…रश्मि झा मिश्रा : Moral stories in hindi

वह शायद भिखारी ही था… एक पैर से लंगड़ा… अपनी बैसाखी टेकता… स्टेशन पर खड़ी गाड़ियों के पास हाथ फैला रहा था… कभी एक-दो खिड़कियों पर कुछ मिल भी जाता… कभी सिक्का.… कभी रोटी… कभी सड़े गले फल… सबको झोलियों में डालता हुआ फिर दूसरी खिड़की के पास पहुंच जाता था… कुछ सभ्य लोग मुंह घुमा कर बैठ जाते थे… कुछ को नाक भी ढंकना पड़ता… और कुछ अधिक सभ्य लोग तो खिड़की ही बंद कर देते…!

 इसी तरह बैसाखी की ठक-ठक बजाता वह आगे बढ़ता जा रहा था… गाड़ी के दरवाजे के पास किसी तरह बैसाखी टिकाकर… ऊपर उठने की नाकामयाब कोशिश कर ही रहा था… की गाड़ी ने एक लंबा हॉर्न मारा… वह झटके से अपनी पकड़ बैसाखी पर बनाता उतर गया… अब शायद गाड़ी खुलने वाली थी सब हड़बड़ा कर एक साथ दरवाजे की तरफ भागे… वह एक बगल हो गया… खिड़की में से तभी किसी बच्चे ने एक डबल रोटी उसकी तरफ फेंक दी… वह उठाकर अपनी झोली में डालता… तभी एक मरियल सा बिल्कुल एक हड्डी का गंदा कुत्ता अपना हिस्सा मांगने उसके पास खड़ा हो गया… दो-चार बार शराफत से भूंका… भिखारी ने डबल रोटी से टुकड़ा तोड़कर उसकी तरफ फेंक दिया…!

 शाम का धुंधलका हो गया था… उस स्टेशन पर यह आखिरी गाड़ी थी… इसके बाद अगली गाड़ी कल सुबह 4:00 बजे ही आएगी… इसलिए वहां रुकना बेकार था… वह बैसाखियों के सहारे चलता हुआ स्टेशन पर ही एक दुकान के पास पहुंचा… थोड़ी ही देर में दुकान वाले ने एक बासी अखबार के साथ… दो-चार टुकड़े संतरे और बचे हुए चिप्स के पैकेट में दो बिस्कुट डालकर उसकी तरफ कर दिया… बोला “सुनो मोहन… सुना है कल हरि मंदिर में बड़े लोगों का भंडारा है… चले जाना वहां… अच्छा खाना रहेगा… कल यहां से घूमते वहां से होते जाना… ठीक है ना…!”

 मोहन हां में सर हिलाता हुआ पेपर पलटता वहां से चल दिया… दुकान पर एक महिला खड़ी थी… हंसते हुए बोली.…” वाह पेपर पढ़ रहा है यह…!”

 दुकान वाले ने कहा…” हंसिए नहीं सब पढ़ता है… अच्छा पढ़ा लिखा ग्रेजुएट है…वो तो किस्मत है…”

महिला को इससे ज्यादा जानने की इच्छा भी नहीं थी… वह अपना सामान लेकर निकल गई.…! मोहन अपनी बैसाखी टेकता एक लाइन… दूसरी लाइन… तीसरी लाइन… पार करके एक आधे फटे पॉलिथीन से ढके छत वाले फूस की झोपड़ी में घुस गया… अंदर उसकी बहन कन्नी थी.… एक फटे कंबल में लिपटी दर्द से कराह रही थी… मोहन ने जल्दी से अपनी झोली उतारी… उसमें से जो भी खाने का सामान बढ़िया था… खाने लायक… वह सब एक तरफ करने लगा… और जितना कुछ बिल्कुल ही बेकार था वह एक तरफ… जो खाने लायक हिस्सा था वह अपनी बहन कन्नी को देकर पानी लेने चला गया… लाकर उसने एक झोले से कुछ दवाई निकाली और उसे कन्नी को खिलाकर सुला दिया… फिर बाकी बचा खुद चबाने लगा… !

मोहन और कन्नी दोनों विद्यालय में पढ़ते थे… मां पिताजी मजदूरी करते थे पर बच्चों को अच्छी जिंदगी देना चाहते थे… यही सोच कर तो जल्दी ही कन्नी का ब्याह भी एक ढंग की कमाई करते मजदूर के साथ कर दिया…!

 मोहन अभी पढ़ ही रहा था… उसे पढ़ने का जुनून था… घर के काम… पिता की मदद… मजदूरी करते हुए.… अपनी पढ़ाई पूरी करना चाहता था… उसकी इतनी लगन देखकर उसके मां-बाप भी सोचते थे कि एक दिन कुछ ना कुछ जरूर बनेगा…!

 पर फिर किस्मत ने करवट ली… मां एक दिन ट्रक के नीचे आ गई… पिता से बर्दाश्त नहीं हुआ 10 दिन जाते वह भी नहर में कूद गया… डरपोक इंसान… मोहन जब भी अपने बाप के बारे में बोलता… यह बात जरूर कहता…” वह डरपोक था… किसी के बिना जिया नहीं जाता तो मर जाए… यह कौन सी बात हुई… ऐसे तो हर कोई मर ही जाए… सबको कोई ना कोई दुख होता है…!” उसे आत्महत्या शब्द से नफरत हो गई थी…!

 पिता के जाने के बाद वह पिता की जगह मजदूरी करने लगा… कुछ दिन तक तो काम और पढ़ाई सब साथ-साथ किसी तरह करता रहा… फिर दोनों में से कोई एक छोड़ने की नौबत आ गई… उस समय कन्नी आई उसने कहा…” मोहन तू पढ़ाई कर.… मैं काम करूंगी…!”

” और तेरी गृहस्थी…!”

” मोहन वो दूसरी ले आया है… मैं नहीं रहूंगी…!”

 असल में उसे मरा बच्चा पैदा हुआ था… डॉक्टर ने कहा था कि अच्छे से इलाज कराना पड़ेगा… अंदर कोई परेशानी है… नहीं तो आगे भी ऐसा ही होगा… इसलिए शराबी गरीब मजदूर दूसरी ब्याह लाया था… कन्नी विरोध नहीं कर सकी… तो वापस भाई के पास आ गई… यहां उसकी जरूरत भी थी…!

 घर-घर जाकर झाड़ू पोछा करने लगी… पर अंदर की परेशानी धीरे-धीरे बढ़ती गई… और एक समय ऐसा आया कि उसने बिस्तर पकड़ लिया… अब वह उठ भी नहीं पा रही थी… तब जाकर मोहन को सब पता चला… वह भागता हुआ बहन को लेकर अस्पताल पहुंचा… सारे जांच करने के बाद डॉक्टर ने कहा था “ऑपरेशन करना पड़ेगा…!”

” कितना खर्चा आएगा…!”

 डॉक्टर ने थोड़ा हंसते हुए कहा…” तुम्हारी औकात से बाहर है…!”

 वह परेशान होकर जहां मजदूरी करता था वहां गया… काम करना फिर शुरू करने… पर मजदूरी करके कितना कमा पाता… दिन रात मजदूरी करने लगा… इतना काम करते एक बार पैर पर गिट्टी से भरी हुई चाल गिर गई… तुरंत इलाज पाता तो शायद ठीक हो जाता… पर इलाज दवा के अभाव में वह बैसाखियों पर आ गया था… ऐसे में मजदूरी कहां मिलती… वह और मजबूर होता चला गया… उसकी मजबूरी ने उसे मजदूर से भिखारी बना दिया…!

 पर वह अभी भी हारा नहीं था… रोज अखबार लाकर उसकी एक-एक खबर बैठकर पढ़ता था… और कन्नी को भी सुनाता था… स्टेशन पर सबको उससे हमदर्दी थी… मोहन ने कन्नी को सभी मोटी मोटी लाइन सुना दी… एक जगह पढ़ कर वह हंसने लगा…कन्नी बोली…” क्या है मोहन मुझे नहीं सुनाओगे…!”

” कुछ नहीं रे… आज फिर दो लड़कों ने आत्महत्या कर ली…!”

 कन्नी भी हंस पड़ी…” क्या हमसे भी बुरी जिंदगी है किसी की मोहन… जो वह मर जाते हैं… कितना आसान है ना मरना… एक झटके में सब झंझटों से मुक्ति… हम भी मर जाएं क्या…!”

” क्या बोलती है कन्नी… हम डरपोक नहीं हैं… पता है तुझे कल मंदिर में भंडारा है… चलेगी…!”

 कन्नी मुरझाई हंसी-हंसकर बोली… “चल पाती तो क्या था… तू भी चल पाता तो तेरी पीठ पर हो लेती…!”

” कोई बात नहीं… मैं हूं ना… मैं लाऊंगा तेरे लिए भी…!”

 दूसरे दिन शाम को ठीक भंडारे के समय… सभी लोगों की भीड़ से इतर… मंदिर के दरवाजे के बाहर… भिखारियों की लाइन लगी हुई थी… मोहन भी उसमें एक था… उसने अपनी पत्तल के बगल में एक पत्तल और डाल के रखा था… मोहन का मन खाने में बिल्कुल नहीं लग रहा था… उसे जल्दी से खाना लेकर कन्नी के पास जो जाना था… वह खाना जल्दी-जल्दी खत्म कर पत्तल का खाना झोले में डालकर जाने लगा तो पता चला..… आज कंबल भी बंटेगा थोड़ी देर में… इतनी देर सब्र कैसे हो… जल्दी-जल्दी बैसाखी टेकता झोपड़ी में पहुंच… खाना निकाल कर कन्नी के आगे रख कर बोला…” तेरी कंबल फट गई है ना… आज मंदिर में कंबल भी बंट रहा है… जाता हूं फिर से… लेकर आऊंगा…!”

 कन्नी चिल्लाई…” अब मत जाओ अंधेरा हो गया है…!”

” अरे नहीं कन्नी ठंड आने वाली है… बड़े लोग हैं बढ़िया कंबल मिलेगा…!”

 मोहन नहीं रुका बैसाखी टेकता मंदिर पहुंच गया… कंबल बहुत सुंदर था देखकर उसका मन खुश हो गया… वाह मेहनत सफल हुई… कंबल उठा मोहन हड़बड़ी में रोड क्रॉस करते गाड़ी से टकरा गया… बैसाखी दूर उछल गई… कंबल वहीं पास में पड़ा रहा…!

 तुरंत ही भंडारे से निकलते कितने ही लोग आ जा रहे थे… खबर उस बड़े आदमी तक भी पहुंची जिसने भंडारा करवाया था…” नहीं ऐसा नहीं होना चाहिए… मेरे पुण्य के काम में कोई आहत हो गया… उसे जल्दी अच्छे अस्पताल ले जाओ… उसका इलाज मैं कराऊंगा…!”

 मोहन को उठाकर सबसे बढ़िया अस्पताल में भर्ती कराया गया… चोट तो अधिक नहीं आई थी पर पैर की चोट और गहरी हो गई थी… अमीर आदमी खुद आया उसे देखने…मोहन के पास आकर बोला…” देखो भाई… चिंता मत करो तुम पूरी तरह ठीक होकर ही यहां से जाओगे…!”

 मोहन की आंखों में आंसू आ गए बोला…” सर अगर आप मेरा इलाज करवा रहे हैं… तो मेरी बहन का इलाज भी करवा दीजिए… मैं पढ़ा लिखा हूं अगर ठीक हो गया तो आपका कर्ज उतार दूंगा…!”

 वह अमीर आदमी आश्चर्यचकित हुआ… एक भिखारी कर्ज उतारने की बात कर रहा है… वह प्रभावित हुआ बोला…” ठीक है भाई… कहां है तुम्हारी बहन उसका भी इलाज हो जाएगा…!”

 उसने अपना वादा निभाया… कन्नी का भी इलाज करवाया गया… सारा खर्च उसी ने उठाया… कुछ दिनों में मोहन भी चलने लग गया था… एक दिन चलते-चलते अस्पताल में घूम रहा था… वहां कुछ कर्मचारी खड़े थे और ठेकेदार शायद उन्हें डांट लगा रहा था… कोई हिसाब की गड़बड़ी थी… मोहन ने खड़े-खड़े उसकी मदद कर दी… अगले कुछ दिनों तक जब तक वह अस्पताल में रहा उसकी कुछ ना कुछ हिसाब किताब में मदद करता रहा… वहां से डिस्चार्ज होने से पहले ही ठेकेदार ने उसे काम पर रख लिया…!

 दोनों भाई-बहन अब पूरी तरह ठीक हो गए थे… मोहन को काम मिल गया था… पर मोहन अमीर आदमी का उपकार नहीं भूला था… एक दिन पता लगाते बहन के साथ उसके पास पहुंचा… पैर छूकर उसे प्रणाम किया और बार-बार उसका धन्यवाद किया… अमीर आदमी उससे पहले ही प्रभावित था… उसकी सारी बातों से खुश होकर उसने अपने ही पास उसे काम पर रख लिया… अब मोहन के दिन बदल चुके थे…!”

 दस साल लगभग बीत गए…एक भला आदमी अपने पूरे परिवार के साथ तीर्थ यात्रा करने जा रहा था… उसकी पत्नी एक स्वस्थ बच्चा… बहन बहनोई उनके दो बच्चे… इतना बड़ा कुनबा था… सब ट्रेन के आरक्षित बोगी में यात्रा कर रहे थे…!

 खिड़की के बाहर एक भिखारी बैसाखी टेकता आया… वह भीड़ से टकराकर गिरने ही वाला था… कि भले आदमी ने उसे थाम लिया… वह भला आदमी और कोई नहीं मोहन था… उसने भिखारी की यथासंभव मदद की फिर वापस अपनी बर्थ पर आ गया… वह अपनी औकात नहीं भूला था…!

स्वलिखित मौलिक अप्रकाशित

रश्मि झा मिश्रा

यह कहानी सभी को पसंद नहीं आएगी… यह मैं जानती हूं… जैसी कहानी इस मंच पर लिखी जाती है यह उससे अलग है… जैसे मेरी “तीन बेटों की अम्मा” भी बहुत लोगों को पसंद नहीं आई थी… जिनको पसंद नहीं आई उनसे मैं माफी चाहती हूं… जिन्हें मेरी यह कहानी भी पसंद ना आए… मैं उनसे भी माफी चाहती हूं…!

2 thoughts on “औकात नहीं भूला…रश्मि झा मिश्रा : Moral stories in hindi”

  1. Nhi ma’am sch me kahani bhut hi achii thi 🙂😇😌…. Aur bhut hi prernadayak bhi🥰…. Kuch log thodi si mushkil se hi ghabra jate hai aur aatmhatya kr apne jiwan ka ant kr dete h… Pr Mohan jaise log ki zindagi me kayi musibaten hoti hai phir bhi apne honsalon se wo har mushkil ko aasaani se paar kr jate hai….

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