तृप्ति कई दिनों से बहुत अनमनी सी थी। उसको सब कुछ नीरस और बोझिल सा प्रतीत होता था। उसे हरपल ऐसा लगता कि वो कि अब ज़िंदगी में कुछ नहीं बचा है। बच्चे बड़े हो गए हैं अब उनको भी उसकी ज़रूरत नहीं है पति भी अपनी नौकरी में व्यस्त हैं और वो खुद नौकरी और घर संभालते संभालते थक सी गई है। पता नहीं क्यों ना चाहते हुए भी वह औरों की ज़िंदगी से अपनी तुलना करने लगती।
उसको ऐसा लगता कि सबकी ज़िंदगी में सुकून है एक बस वो ही है जो कोल्हू के बैल की तरह कामों को पूरा करने में जुटी रहती है। ऑफिस में पूरा दिन कंप्यूटर पर आंख गड़ाए काम करती रहती है। फिर घर आकर भी गृहस्थी के कामों से चैन नहीं। बस यही सब आजकल उसके मन मस्तिष्क में गाहे बेगाहे चलता रहता था।
आज भी शाम को ऑफिस से वापिस आने पर उसका मूड ऐसा ही था। आज तो वो ऑफिस का कुछ काम घर भी लाई थी। घर के थोड़े बहुत काम निपटाने के बाद वो घर पर भी लेपटॉप लेकर बैठ गई। वैसे भी पति की कोई मीटिंग थी और बच्चे स्कूल के ट्रिप पर बाहर थे। जैसे ही वो लैपटॉप पर काम करने बैठी उसके थोड़ी देर बाद उसके मैसेज बॉक्स में कॉलेज टाइम के दोस्त आदित्य का संदेश था। वैसे तो कॉलेज समूह पर दोनों जुड़े थे पर बातचीत काफ़ी समय से नहीं हो पाई थी।
अच्छी दोस्ती थी दोनों में। दोस्ती भी इतनी पवित्र कि कभी भी दोनों में से किसी के मन में एक दूसरे के प्रति कोई दुर्भावना नहीं आई थी। उसका संदेश देखकर तृप्ति भी काम रोककर उससे संदेशों का आदान प्रदान करने लगी। बात करते करते दोनों पुराने दिन याद करने लगे। तभी एकदम आदित्य ने पूछा कि क्या उसका चाय के प्रति लगाव आज भी कॉलेज टाइम जैसा है क्योंकि कॉलेज टाइम से तृप्ति अपने गर्म चाय की प्याली के लगाव के लिए प्रसिद्ध थी।
तृप्ति खुद भी बोलती थी कि चाय सिर्फ चाय नहीं होती ये तो चाह है जो खराब मूड को भी ताज़गी से भर देती है। वैसे भी उसे चाय बहुत गर्म पीने की भी आदत थी। आदित्य कई बार मज़ाक में कहता भी था कि तृप्ति को कप में चाय ना देकर सीधे मुंह में छान देनी चाहिए। उसकी इन बातों पर तृप्ति भी खिलखिलाकर हंस देती।
आज आदित्य के पूछने पर तृप्ति कुछ जवाब ना देकर इस बात को टाल गई। काफ़ी इधर उधर की बातों के बाद आदित्य ने कहा आदित्य ने तृप्ति से विदा ली। अपने पुराने दोस्त से बात करके तृप्ति वैसे भी काफ़ी तरोताजा हो गई थी। अब उसने सब काम को बंद किया और याद करने लगी पुराने सुहाने दिनों को। पुराने दिनों को सोचते सोचते उसे याद आया कि कितना समय हो गया उसे अपनी सुकून की चाय की प्याली पिए हुए।
उसने सारा काम बंद किया और एक बड़ा कप अदरक वाली चाय बनाकर बैठ गई अपने घर की बालकनी में लगे झूले पर। चाय की एक घूंट ने ही उसे एहसास दिलाया कि खुद को मशीन बना लिया है उसने। समयचक्र आगे बढ़ता रहेगा और काम तो कभी खत्म नहीं होगा पर इसके चक्कर में जीना बंद तो नहीं किया जा सकता।
अब तो वैसे भी वो उम्र के उस पड़ाव पर है जहां बच्चे भी उस पर निर्भर नहीं हैं।अपना काम स्वयं कर सकते हैं। पति भी व्यस्त हैं। आए दिन ऑफिस के कामों से बाहर रहते हैं तो क्यों नहीं वो थोड़े दिन की छुट्टी लेकर खुद के साथ समय बिताती है।यही सब सोचकर उसने टूर और ट्रैवल एजेंसी में फोन लगाया जो कि विश्वसनीय थी। सिर्फ महिलाओं के लिए भी बाहर की यात्रा को संचालित करती थी। उसका गोवा जाने का बहुत मन था पर कभी किसी उसकी खुद की तो कभी पति की व्यस्तता इन सबमें कार्यक्रम नहीं बन पाया।
वैसे ऐसा भी नहीं था कि वो पति और बच्चों के साथ कहीं घूमी नहीं थी पर अबकी बार वो अपने हिसाब से घूमना चाहती थी। एजेंसी ने उसको एक सप्ताह का गोवा की यात्रा का कार्यक्रम भेज दिया। आज वो अपनेआपको बहुत हल्का महसूस कर रही थी। रात को पति के आने पर तृप्ति ने अपने गोवा जाने का कार्यक्रम उन्हें बताया। उसकी बातें सुनकर पहले तो पति को लगा वो मज़ाक कर रही है पर जब उसने ट्रैवल एजेंसी के साझा किए हुए संदेश को दिखाया तो वो सोच में पड़ गए।
दो दिन बाद तृप्ति को गोवा के लिए निकलना था। तृप्ति ने ऑफिस में एक सप्ताह की छुट्टी का आवेदन भी कर दिया था। अगली सुबह तृप्ति तो घर पर ही थी क्योंकि उसको जाने की पैकिंग करनी थी पर आज उसके पति निशांत भी घर पर ही थे।
आज तृप्ति की सुबह आंख खुलने से पहले ही वो उसके लिए चाय लेकर हाज़िर थे जबकि वो खुद चाय नहीं पीते थे। उनकी वजह से तृप्ति ने भी चाय पीनी बहुत कम कर दी थी। तृप्ति के लिए ये सब आश्चर्य की बात थी क्योंकि आज से उसको अगर ऑफिस जाने में देर भी हो रही होती तब भी निशांत एक ग्लास पानी भी खुद लेकर नहीं पीते थे। चाय पीते पीते निशांत ने तृप्ति को कहा कि ऐसे गोवा जाने की क्या ज़रूरत है।
अगले महीने उसका काम थोड़ा कम है फिर सब लोग एक साथ चलेंगे। पति की ये बात सुनकर तृप्ति ने बहुत ही ठहराव के साथ बोलना शुरू किया कि ज़िंदगी के कुछ पल वो अपने हिसाब से जीना चाहती है। वो इस बात को मानती है कि हालांकि वो घरेलू औरतों की तुलना में घर की चार दीवारी में कैद नहीं है पर उसने आजतक बहुत समझौते किए हैं। उसने निशांत को कहा कि आप याद कीजिए कि आपने कभी अपने ऑफिस में होने वाली कोई पार्टी घर या बच्चों की वजह से छोड़ी है। मैंने तो पार्टी क्या जब भी उन्नति की बात आई तब वो भी इसलिए नहीं लिया कि कार्यभार बढ़ जायेगा तो मैं परिवार पर ध्यान नहीं दे पाऊंगी।
हम दोनों की शिक्षा समान थी जब हम दोनों ने नौकरी शुरू की थी तो दोनों समान पद पर और वेतन पर थे पर आज मैं ज्यादा आगे नहीं बढ़ पाई और आप काफ़ी आगे बढ़ गए। कहीं बाहर घूमने गए तो मैंने अपनी पसंद भूलकर आपकी और बच्चों की पसंद को अपनाया। अपनी पसंद का खाना खाए हुए भी मुझे कितना समय हो गया? मैं यह सब आज इसलिए नहीं कह रही हूं कि मुझे आपके साथ कोई प्रतिस्पर्धा है या मैं नौकरी में आगे नहीं बढ़ पाई इसका मुझे कोई दुख है। जो भी मुझे मिला मैं उसमें खुश हूं। आप प्रगति की राह पर आगे बढ़े उससे मुझे भी सम्मान मिला। वैसे भी पति पत्नि तो एक दूसरे के पूरक होते हैं पर अब कुछ पल मैं अपने हिसाब से जीना चाहती हूं। मैं फिर से अपने अंदर की मुस्कराती खिलखिलाती तृप्ति से मिलना चाहती हूं। जिसे चाट पकोड़ी और टपरी की कुल्हड़ वाली चाय बहुत पसंद थी। बारिश की खुश्बू बहुत पसंद थी।
आज उसकी ये बातें निशांत बहुत ध्यान से सुन रहे थे। वो देख रहे थे चाय का कुल्हड़ और बारिश की खुश्बू कहते हुए तृप्ति के चेहरे पर कैसे मासूम बच्चे जैसे भाव थे।
ये सब देखते हुए और मन ही मन कुछ सोचते हुए वो बोले मुझे माफ कर दो।जीवन में पैसे और कामयाबी के पीछे भागते भागते मैं ये भूल गया था कि जीवन की छोटी छोटी खुशियां अनमोल होती हैं। मेरी देखा देखी बच्चे भी इस राह पर चल पड़े थे। अब तुम्हें कोई भी अपनी मनमर्ज़ी करने से नहीं रोकेगा। तुम बिना किसी चिंता के गोवा जाओगी। मैं ऑफिस से छुट्टी लूंगा और बच्चों और घर का ख्याल रखूंगा।
अभी दोनों ये बातें ही कर रहे थे तभी घंटी बजी। तृप्ति को याद आया कि आज तो बच्चों को स्कूल ट्रिप से वापिस आना था। आज जब तृप्ति की जगह निशांत ने दरवाज़ा खोला तो दोनों बच्चे हैरान रह गए क्योंकि ऐसे मौकों पर तृप्ति ही छुट्टी लेकर घर पर रुकती थी। दोनों बच्चे असमंजस की स्थिति में घर के अंदर घुसे तब उन्होंने बैग और अपनी मां के कुछ कपड़े रखे देखे। उनकी हालात समझते हुए निशांत ने कहा कि मां कुछ दिन के लिए घूमने जा रही है। अब उन तीनों को कुछ दिन घर संभालना है। पूरी बात जानने के बाद उन्होंने खासकर बेटी ने भी तृप्ति के फैसले का स्वागत किया। दोनों बच्चे हंसते हुए तृप्ति के गले लगते हुए बोले जा सिमरन जी ले अपनी ज़िंदगी। आज तृप्ति अपनेआपको बहुत हल्का महसूस कर रही थी। एक प्याली चाय ने फिर से उसको सुकून से भर दिया था।
दोस्तों कैसी लगी मेरी कहानी? आज बहुत गंभीर ना लिखकर एक छोटे से किस्से को कहानी में पिरोने की कोशिश की हैl कई बार एक सुकून भरी गर्म चाय की प्याली बड़े से बड़े तनाव हटा देती है। माना की वक्त बदल रहा है पर आज भी स्त्री के हिस्से में पुरुष से ज्यादा समझौते आते हैं। जिसका उसे कोई शिकवा भी नहीं है पर समयचक्र के साथ अपने हिस्से की खुशियों बटोरने का हक़ उसको भी है।
डा. पारुल अग्रवाल,
नोएडा
Really a very good story which fits in life of most of us.
Keep it up👌
nice story