अंजना जब से अपनी ननद के घर से लौटी है नई नवेली बहू नव्या की तारीफ करते नहीं थक रही हैं। छोटी बुआ की बहू नव्या बड़ी सुंदर है और जितनी सुंदर है उतनी गुणी भी है, व्यवहार तो पूछो मत एक – एक गरमा गरम फुल्के थाली में लाकर परोसती थी …..और तो और …मेरी चप्पल को अपने पल्लू से पोछ कर मुझे पहनाई।
सासू माँ द्वारा नव्या की तारीफ सुन सुन कर रोमा थक चुकी थी। क्या माँ जी ….! साड़ी के पल्लू से कोई चप्पल पोछता है क्या…?? उसे कोई कपड़ा नहीं मिला क्या ….?? रोमा ने चुटकी ली…! तिरछी नजर से बहू को देख अंजना चुप हो गई…।
दरअसल रोमा की सास की एक आदत थी अपनी बहू के सामने किसी और की बहू की जमकर तारीफ करना, उनकी बातों से ऐसा लगता था जैसे उनको छोड़ कर सबको बहुत अच्छी बहू मिली है।
पढ़ी-लिखी रोमा घर की खुशहाली के लिए हर संभव प्रयास करती थी… एक जिम्मेदार बहू की भूमिका बखूबी निभा रही थी।
रोमा की बस एक यही आदत थी कि वह जो भी बात होती मुंह पर बोल देती थी, पीठ पीछे बुराई करने की उसकी आदत नहीं थी इसीलिए कभी-कभी लोग उसे तेजतर्रार जैसे शब्दों से भी विभूषित किया करते थे।
अभी कल की ही तो बात थी चाची जी रोमा की सासू माँ से बोल रही थी कि …मेरी बहू मेरे पीठ पीछे मेरी ही चुगली अपने मायके में करती है मैंने अपने कानों से सुना है ….उस पर सासू माँ का जवाब …अरे सब की बहू ऐसी ही होती हैं….। जब रोमा ने अपने कान से यह बात सुनी तो उसे बहुत बुरा लगा वो सोची… काश… सासू माँ बोल पातीं …मेरी बहू वैसी नहीं है, वो जो भी बोलना होता है मुंह पर बोलती है …पीठ पीछे नहीं …पर सासू माँ अपनी बहू की तारीफ कैसे कर सकती थी…।
कुछ दिनों के बाद छोटी बुआ अपनी बहू नव्या के साथ अंजना के घर आ पहुंची …आते ही बोली …भाभी मैं अपनी बहू को घुमाने अपने मायके लेकर आई हूं ताकि वो भी रोमा से मिले और अपनी जेठानी से कुछ तौर तरीके सीखे …! अरे सीखना क्या है समझदार है तुम्हारी बहू अंजना ने नव्या की तारीफ करते हुए कहा…।
रोमा नई बहू नव्या को देखते ही खुश होते हुए बोली… अरे वाह नव्या अच्छा है तुम आ गई.. मैंने तुम्हारी बहुत तारीफ सुनी है अब देख भी लूंगी …मेरी तारीफ…?? किस बात की भाभी…?? नव्या ने आश्चर्य से पूछा …! अच्छा चलो पहले खाना खाते हैं भूख लगी होगी फिर बातें करेंगे ….! ऐसा बोलकर रोमा रसोई की ओर बढ़ी …रोमा के साथ नव्या भी रसोई में गई…. रसोई में जाते ही नव्या ने कहा …भाभी मुझे ज्यादा खाना बनाने नहीं आता है …मैं हमेशा बाहर रही …पढ़ाई , जॉब …तो ज्यादा समय भी नहीं मिला और भाभी मेरी विशेष रूचि भी नहीं है खाना बनाने में… वो तो अब निखिल के लिए शौक से गूगल में सर्च कर कर के सीख रही हूं…।
अरे नव्या पर मम्मी जी तो बहुत तारीफ कर रही थी तुम्हारे गरमा गरम फुल्के रोटियों की…. जो तुमने बना कर खिलाया था मम्मी जी को….!
भाभी वो तो अंजना मामी का बड़प्पन है जो टेढ़ी-मेढ़ी रोटी को भी फुल्के का नाम दिया ….! अब रोमा को समझते देर ना लगी कि मम्मी जी ऐसे ही तारीफ कर रही थी..। उनकी आदतों का ही एक हिस्सा है कि हर चीज दूसरों की ही अच्छी लगती है… चाहे वह बहू ही क्यों ना हो…।
क्या सासूमाँ कहीं इनसिक्योर तो नहीं है …शायद इसीलिए तो ऐसा नहीं करती हैं कि दूसरों की बहू की ज्यादा तारीफ करूंगी तो मेरी बहू दूसरों की सुनकर , देखकर और ज्यादा अच्छा बनने की कोशिश करेगी… !
या फिर मुझे नीचा दिखाने के लिए दूसरों की ज्यादा तारीफ तो नहीं करती….। खैर…..!!
डाइनिंग टेबल पर बैठते ही अंजना के चेहरे पर थोड़ा डर तो था ही… कहीं खाना बनाने वाली बात यहां पर शुरू ना हो जाए… मैंने रोमा से नव्या की बेवजह इतनी तारीफ जो की है….! इधर उधर की बातों के बीच खाने की तारीफ भी हो रही थी.. बातों बातों में नव्या ने खुद ही कह दिया …भाभी मुझे खाना बनाना तो ज्यादा नहीं आता… पर खाने की बहुत शौकीन हूं और आपका बनाया खाना मुझे बहुत पसंद आया…।
अरे थैंक यू नव्या ….पर तुम्हारा भी…. सामने से तारीफ करना स्पष्ट बातें करना …मुझे भी बहुत पसंद आया …और ये काम करना सबके बस की बात नहीं… इसके लिए बहुत बड़ा दिल होना चाहिए….।
चोर की दाढ़ी में तिनका …अंजना समझ चुकी थी कि.. रोमा का संकेत मेरी तरफ है …अब अंजना का झूठ भी पकड़ा चुका था अतः अंजना ने बड़े दूरदर्शिता से काम लेते हुए कहा…
हाँ बहू रोमा वाकई में …मैं तारीफ करने में थोड़ी कंजूस हूं …!
अरे नहीं मम्मी… आप तो बहुत तारीफ करती हैं …अब देखिए ना .. आपने नव्या की कितनी तारीफ की थी , भले ही उसे रोटी बनाना अच्छे से नहीं आता पर उसकी भी आपने तारीफ की थी ….।
आज रोमा ने बातों बातों में अपनी बात कहनी चाहिए… रहा सवाल मेरी तारीफ करने की …तो वो मैं जानती ही हूं …कि आपको पता है कि मैं आपकी बहुत अच्छी बहू हूं…! बस आप मेरे मुंह पर मेरी तारीफ नहीं करती…।
मौके की नजाकत को देखते हुए छोटी बुआ ने बात संभालना चाहा…ताकि मामला ज्यादा ना बढ़ पाए… उन्होंने तुरंत कहा…हां रोमा भाभी हमेशा तुम्हारी तारीफ करती हैं…। जी बुआ जी …पर कभी-कभी ना सामने.. अच्छा को अच्छा बोलने से और भी हौसला बढ़ जाता है… और जैसी भी हूं अब तो बहू मैं ही हूं.. कभी तो मेरा भी मन होता है ना कि सासू माँ मेरी या मेरे काम की प्रशंसा करें…। मुझ में लाख कमी हो… पर यदि एक भी अच्छाई हो तो जैसे कमी की आलोचना होती है ..वैसे ही अच्छाई की तारीफ भी तो होनी चाहिए…।
मैं समझ गई रोमा…मैंने शायद तुम्हारी भावनाओं को समझने में देर कर दी ..या जानबूझकर समझना ही नहीं चाहा ….मुझे माफ कर दो बहू…!
पर एक बात याद रखना जिस तरह बुराई नहीं छुपता …ठीक उसी तरह अच्छाई भी सामने आने में देर हो सकता है पर छिप नहीं सकता …वो सबके सामने आएगा ही….।
सच में साथियों रिश्तो की मजबूती के लिए समय-समय पर एक दूसरे की अच्छे कामों के लिए प्रशंसा.. और गलत कामों के लिए सुझाव व समझाइश आवश्यक है …. ।
प्रशंसा एक ऐसी औषधि है जो मृत होते रिश्तो में एक नया जीवन का संचार करती है अतः रिश्ता कोई भी हो , प्रशंसा करने में कभी भी कंजूसी ना करें …चाहे बहू की ही प्रशंसा क्यों ना हो…।
# बेटियां जन्मदिवस प्रतियोगिता (पांचवी कहानी)
( स्वरचित मौलिक और सर्वाधिकार सुरक्षित रचना)
संध्या त्रिपाठी