गिरगिट – डॉ संगीता अग्रवाल : Moral stories in hindi

सोना और परेश की अर्रेंज मैरिज थी।यूं तो सोना कॉलेज ,यूनिवर्सिटी में पढ़ी लिखी लड़की थी,एक जॉब भी कर रही थी पर जब बात शादी की आयी तो उसने माँ बाप के कहे लड़के से झट शादी को हां बोल दी।

माँ बता रहीं थीं कि बड़ा कुलीन घर है,लड़का भी बहुत हैंडसम,बढ़िया जॉब कर रहा है।

शादी से पहले मिलने की बात की बात हुई पर सोना ने अपने मां बाप की पसंद पर भरोसा जताते हुए उसे खारिज कर दिया,वो प्रभावित थी इस बात से कि खुद परेश ने पहले मिलने,घूमने और साथ समय बिताने की कोई हड़बड़ी नहीं दिखाई थी।

एक सादे समारोह में उन दोनो की शादी हो गई थी,सब कुछ ठीक ठाक संपन्न हो गया था,सोना ने नोटिस किया कि परेश बड़ा गंभीर लड़का था,वो जिम्मेदारी से शादी की रस्में निभाता रहा था।कई बार उसके मन में भय उत्पन्न हो जाता कि उसने ये शादी जबरदस्ती,किसी के दबाव में आकर तो नहीं की?क्या लोग ठीक ही कहते हैं कि शादी से पहले लड़के लड़की को आपस में मिल लेना चाहिए?

सोना,इसी उहापोह में शादी की सब रस्में खामोशी से निभा रही थी,उसे मन मे डर लग रहा था अपनी जेठानियों की हंसी चुहल से जो उसके कमरे को सजा रहीं थीं।

आखिर वो वक्त आ ही गया,सजी संवरी दुल्हन बन वो सुहाग सेज पर बैठी परेश का इंतजार कर रही थी,आते ही परेश उसके साथ बहुत दोस्ताना व्यवहार करने लगा,घबराहट से उसने आंखे बंद कर रखी थीं,लेकिन परेश के  व्यवहार से वो फिर चौंकी…

वो ढेरों किस्से सुनाने लगा उसे अपने कॉलेज के,यारों दोस्तों के।उसके दोस्तों में सिर्फ लड़के ही नहीं,कई लड़कियां भी थीं और वो रस लेकर एक एक छोटी बात सोना को सुना रहा था,यहां तक की कितनो के उसने फोटो भी दिखाए सोना को,वो खुद को हँसने खिलखिलाने से न रोक पा रही थी।

कोई इतना हंसमुख हो सकता है,वो देख रही थी और मन ही मन गर्व कर रही थी अपने पेरेंट्स की पसंद पर की उन्होंने इतना अच्छा जीवनसाथी उसके लिए चुना है।

अब धीरे धीरे परेश उसे अपनी एक खास गर्ल फ्रेंड के बारे में भी बताने लगा।कभी उसके मन में जलन होती तो कभी उसे लगता कि वाकई में वो है ही इतना स्मार्ट,खुशनुमा कि हर कोई उससे दोस्ती करना चाहेगा।

अब तक वो परेश से काफी खुल चुकी थी और बिना हिचक उसकी बातें पूछ रही थी।

तो आपने अपनी स्पेशल गर्ल फ्रेंड से ही शादी क्यों नहीं की?सोना ने अचानक परेश से प्रश्न किया।

मुझे बाद में पता चला कि उसके तो मेरे जैसे न जाने कितने ब्वॉय फ्रेंड्स हैं…वो खिलखिलाते हुए बोला,तब मैंने सोचा,शादी तो अरेंज ही करनी चाहिए,आपके पेरेंट्स आपके लिए सबसे सही सोचते हैं।

सोना एक पल परेश को गौर से देखने लगी,कितने उच्च विचार हैं इसके,कितना सप्ष्टवादी है,ये चाहे तो ये बातें मुझसे छुपा भी सकता था पर कितनी ईमानदारी से इसने मुझे सब बताया।उसके मन में परेश के लिए इज्जत और प्यार भर गया।

अरे बाबा!क्या सोचने लगीं?वो हंसा ,मेरा किसी से कोई चक्कर नहीं है अब।

अचानक वो सोना से बोला:”अब तुम भी तो अपने बारे में कुछ बताओ।”

सोना खुद में सिमट गई और बोली:”मेरी जिन्दगी में तो ऐसा कुछ भी नहीं।”

परेश “अरे जाओ! बेबकूफ न बनाओ,बताओ न प्लीज..कोई तो होगा ही..”

सोना: “सच में,जब कुछ है ही नहीं तो क्या बताऊं,उसे जैसे खुद पर शर्म आ रही थी,बहुत सोचने के बाद भी कुछ न बता पाई वो।”

परेश को ये अविश्वसनीय सा लगा ,उसने जोर देकर कहा:”इतने साल कॉलेज रहीं,जॉब की,क्या किसी से बात ही न की?”

दलेना को अब खुद में जैसे कमी सी दिखने लगी,उसने शर्माते हुए परेश को बताया:”जब मैं टेंथ क्लास में थी न,तब एक लड़का मुझे छिप कर देखा करता था और एक बार उसने मुझे पत्र भी लिखा और उसमें गुलाब का फूल भी भेजा ,फिर उसकी खूब पिटाई हुई।”

परेश:”फिर बाद में कब तक चला ये सब?”

सोना:”अरे चलना क्या था,मैंने थोड़े ही कोई जबाव दिया,बस वो ऐसे करता था।”

परेश की पकड़ सोना के हाथ पर तेज होती जा रही थी,वो सहम सी गयी,अरे दर्द हो रहा है,”छोड़िए मेरा हाथ,दर्द कर रहा है,उसे आश्चर्य था अचानक उसे क्या हुआ,आप क्यों ऐसा कर रहे हैं मेरे साथ?” वो बोली।

परेश:”अरे तुम लड़कियों को अच्छे से जानता हूँ मैं,इसी तरह लड़कों को भोली बनके फंसा लेती हो”,ये कहता वो गुस्से से कमरे से बाहर हो गया।

उधर बेचारी सोना अवाक,मुंह उठाये उस दरवाजे को सारी रात तकती रही जहां से परेश गुस्से से निकला था।अब इन्हें क्या हुआ?क्या मैंने कुछ गलत कर दिया इन्हें बता कर?

सारी रात,सोना ने सिसकते हुए बिताई,क्या क्या सोचा था और क्या हो गया?खुद परेश अपने रोमांस के किस्से चटकारे ले लेकर सुना रहा था तो सही है,उसे उनपर हंसना भी पड़ेगा,वाहवाही भी करनी होगी और बदले में वो कुछ न बोले तो गंवार,बेवकूफ कहलाती,सिर्फ इसी डर से उसने एक किस्सा जो हकीकत कब हुआ था,उसे ये भी अब ठीक से याद नहीं था,उसे उसका पति बर्दाश्त नहीं कर सका।इतनी तेज़ी से तो गिरगिट भी रंग नहीं बदलता जितनी तेजी से परेश ने बदला था।वो बहुत शॉक्ड थी उसकी प्रतिक्रिया पर।

तो क्या अब उसे परेश की नाराजगी झेलनी पड़ेगी? उस अपराध की सजा भुगतनी पड़ेगी जो उसने कभी किया ही नहीं? वो सोचते सोचते सो गई।

सुबह जब उसकी आंख खुली,वो कमरे में अकेली थी,उसे बहुत गुस्सा आया,उसने सोचा कि वो रोएगी नहीं,न ही परेश से अपनी बात की माफी मांगेगी।अब जमाना बदल गया है,लड़कियां बिना किसी जुर्म के सजा नहीं भुगतेंगी।

तैयार होकर वो कमरे से बाहर जा रही थी तो परेश उसके पास आया,वो झट उससे बोली,सुनिए!आज नीचे डाइनिंग टेबल पर आपके मम्मी पापा से पूछती हूं,आपकी शादी आपकी  स्पेशल गर्ल फ्रेंड से क्यों नहीं करवाई,उसके शोक में आप सारी रात कमरे में नहीं आए?

परेश चौंका बुरी तरह…क्या गजब करती हो,दिमाग फिर गया तुम्हारा?वो तो मुझे ताजी हवा खानी थी थोड़ी…सॉरी!तुम्हें इंतजार करना पड़ा,आगे से ध्यान रखूंगा।

सोना मुस्कराई मन में…है पूरा गिरगिट ही!!लेकिन बच्चू ! अगर तू गिरगिट तो मैं भी छिपकली हूं।

डॉ संगीता अग्रवाल

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