मन के खिलाफ – सुभद्रा प्रसाद  : Moral stories in hindi

आशा देवी की तबियत ठीक नहीं थी |चार दिन से उन्हें बुखार था, जो कभी उतर जाता, कभी फिर हो जाता | डाक्टर ने उन्हें देखा था और दवा भी दी थी, फिर भी वे ठीक नहीं हो पाई थी | वह अब ठीक होना भी नहीं चाहती थी | वह अपने जीवन से निराश हो चुकी थी | वह जिस वृद्धाश्रम में रहती थी, वहाँ के सभी लोग उन्हें समझा बुझाकर, खाना और दवा खिलाकर सोने चले गये थे, पर उनकी आंखों में नींद नहीं थी  | उन्हें अपना बीता जीवन याद आ रहा था | रात आगे बढ़ रही थी और उनका मन पीछे की ओर जा रहा था |

            दो बहन, दो भाई में वह सबसे छोटी थी | बीस वर्ष की उम्र में उनकी शादी मनोहरलाल के साथ हुई थी | मनोहरलाल की कपड़े की दुकान थी |दुकान बहुत बड़ी तो न थी, पर इतनी बड़ी अवश्य थी कि घर की आवश्यकताओं की पूर्ति हो जाती थी | उनका गाँव उनके शहर के पास ही था और खेती से भी सामान आ जाता था | इस तरह जीवन में ज्यादा परेशानी न थी |

मनोहरलाल अपने माता- पिता की इकलौती संतान थे |माता-पिता जबतक जीवित रहे, आशा देवी और मनोहरलाल ने उनकी उचित देखभाल की | आशा देवी के दो बेटे हुए, बड़ा आकाश और छोटा प्रकाश | उन्होंने अपने दोनों बेटों की परवरिश अच्छी तरह से की | आकाश को पढ़ाई में मन जरा कम लगता था, इसीलिए वह किसी तरह ग्रेजुएशन पूरा किया और एक प्राईवेट नौकरी करने लगा | प्रकाश इंजिनियरिंग किया और एक अच्छी कंपनी में नौकरी करने लगा |आकाश की शादी एक मध्यमवर्गीय परिवार में हुई और वह अपने माता-पिता के साथ ही रहता था |

प्रकाश दिल्ली की एक मल्टीनेशनल कंपनी में काम करता था | उसने अपने साथ काम कर रही नीलम से शादी की |आशा देवी को तो एकदम पसंद नहीं था, नीलम के साथ प्रकाश का शादी करना, परन्तु प्रकाश की जिद पर वे किसी तरह मान गई और प्रकाश की शादी नीलम से हो गई | नीलम एक पढ़ी-लिखी समझदार लड़की थी और वह आशा देवी और मनोहरलाल का सम्मान भी करती थी, पर आशा देवी उसे दिल से न अपना पाई | उन्हें हमेशा यह लगता था कि नीलम ने उनके बेटे से उनके मन के खिलाफ शादी की है |

आकाश तो अच्छी नौकरी नहीं करता था, पर प्रकाश को तो अच्छी नौकरी मिली थी |वह प्रकाश की शादी ऐसे घर में करना चाहती थी, जहाँ से उसे ढेर सारा दान, दहेज, सामान मिले,पर ऐसा हो न पाया | इसका जिम्मेवार भी वह नीलम को ही समझती थी| नीलम नौकरी करने वाली है और ज्यादा समय घर से बाहर रहती है, वह घर और परिवार का महत्व क्या समझेगी? उपर से नीलम को दो लड़की हुई |  इन सब बातों से वह नीलम से चिढ़ी रहती |  जब कभी नीलम आती, वे उससे सीधे मुंह बात नहीं करती और उसे कोई अहमियत न देती |

मनोहर लाल कभी-कभी समझाते, पर वह उनकी बात भी नहीं मानती | उनके इस मनोभाव को आकाश और उसकी पत्नी हवा देते रहते, उन्हें नीलम के खिलाफ भड़काते रहते | वे नहीं चाहते थे कि माँ के मन में उनके लिए प्रेम और अपनत्व की भावना आये, वे उसे अहमियत दें | आकाश और प्रकाश दोनों के दो – दो बच्चे हुए | आकाश के एक लड़की और एक लडका हुए और प्रकाश  को दो लडकियां हुई | प्रकाश ने दिल्ली में ही घर ले लिया और माँ के व्यवहार के कारण उसका घर आना कम होता गया |

दो साल पहले पिताजी चल बसे और प्रकाश माँ को अपने साथ ले जाना चाहता था, पर आकाश और उसकी पत्नी ने जाने नहीं दिया | दरअसल उनकी नजर पिता के पैसे, दुकान, घर और माँ के जेवर पर था और वे नहीं चाहते थे कि इसमें से प्रकाश और उसकी पत्नी को कुछ मिले | माँ ने भी  नीलम और उनकी लडकियों को दिल से नहीं अपनाया और मन से सदा उसके खिलाफ रही |आकाश के बेटे, अपने पोते शुभम पर ही जान लुटाती रही | आकाश और उसकी पत्नी माला ने भी उनके इस मनोभाव का खूब लाभ उठाया और धीरे – धीरे घर, खेत , दुकान सब  अपने नाम करवा लिये और सारे जेवर, पैसे भी हथिया लिये | आकाश अपनी प्राइवेट नौकरी छोडकर दुकान सम्भालने लगा था |

सबकुछ हथियाने के बाद माँ का महत्व उनके लिये कुछ न रहा और उनका रवैया माँ के प्रति बदलने लगा | बच्चे बडे हो गये थे और अब उन्हें दादी के देखभाल की जरूरत नहीं थी | उन्हें  दिनभर घर के कामों में लगाये रखा जाता और उनके खानपान, दवा का कोई ध्यान नही ं रखा जाता | उन्हें इस उम्र में अब आराम , उचित देखभाल और दवा की बहुत जरूरत थी, पर उन्हें तो समय पर भरपेट भोजन भी नहीं मिल पा रहा था |

बेटा – बहू के साथ- साथ अब पोता-पोती भी उनकी कोई बात नहीं सुनते और उनपर कोई ध्यान नहीं देते |वह अब घर की एक अनुपयोगी वस्तु हो गई थी, जिसकी उपस्थिति अब कोई सहन नहीं कर पा रहा था  | अब उनके पास तो कुछ बचा न था | उपर से उम्र भी हो गई थी और वे अब ज्यादा काम भी नहीं कर पाती थी |इसीलिए बहू उनसे चिढ़ती रहती और उन्हें वृद्धाश्रम भेजने की बात करती रहती |

  एकदिन  जब बारह बजे तक उन्हें बार-बार 

मांगने पर भी खाने को कुछ न मिला तो वे खुद रसोई में जाकर निकालने लगी | बहू ने देख लिया और उल्टा – सीधा बोलने लगी |इसपर उनके हाथ से प्लेट गिर गया | बस इसी बात पर बहू ने हंगामा कर दिया और उन्हें वृद्धाश्रम छोड़ कर ही दम लिया | आशा देवी रोती, कलपती, गिडगिडाती रह गई, पर किसी ने उनकी न सुनी | वह दिन और आज का दिन, आशा देवी के अंदर जीने की इच्छा ही खत्म हो गई | कोई दिन ऐसा न बीता होगा, जब उसने अपनी किस्मत पर आंसू न बहाये होंगे | जिस घर, परिवार, बच्चों के लिए उन्होंने अपनी सारी जिंदगी लगा दी,

सबकुछ सौंप दिया,अपना समझती रही, न वह घर अपना रहा, न परिवार | छह महीने हो गये थे वृद्धाश्रम में आये और इतने दिनों में मात्र दो बार आकाश उनसे मिलने आया था, वो भी तब जब उन्होंने मैनेजर साहब से बहुत आग्रह करके बुलवाया था | अब उन्हें अपने बेटे प्रकाश और बहू नीलम की बार- बार याद आती थी | वे लोग तो उसे अपने साथ ले भी जाना चाहते थे, कई बार कहा भी, पर वह नहीं गई | उसने नीलम और उसके परिवार को कभी अपना समझा ही नहीं |

कभी उसके  साथ अच्छा व्यवहार किया ही नहीं और कभी उसके अच्छे व्यवहार को अहमियत दी ही नहीं | हमेशा उसके खिलाफ रही |अब वही व्यवहार उन्हें बार-बार याद आता था और उन्हें उनलोगों की बहुत याद आती, पर उनके पास उनलोगों का न कोई मोबाइल नंबर था न पता | आकाश बताता ही नहीं था, क्योंकि वह प्रकाश से कोई संपर्क नहीं रखना चाहता था | उसे डर था कि वह मिलने पर कहीं अपने हिस्से की बात न करने लगे | 

    “काश, वह एकबार उनलोगों से मिल पाती और अपने व्यवहार के लिए माफी मांग पाती  |” आशा देवी ने सोचा और उसके आंखों से आंसू गिरने लगे |सुबह हो गई थी , पर उन्हें उठने का मन हीं नहीं कर रहा था |

        “माँ ” आशा देवी को लगा प्रकाश ने उसे पुकारा |उसकी विचारधारा भंग हुई | वह हडबडाकर इधर – उधर देखने लगी | उसे लगा  प्रकाश सामने खड़ा है | कहीं यह भ्रम तो नहीं | वह उठने का प्रयास करने लगी | 

       “प्रणाम, माँ ” प्रकाश ने उसके पैर छूते हुए कहा और बढकर उनके दोनों हाथ पकड़ लिए | “कैसी हो माँ? “

       ” बेटा ” माँ उसे सामने देखकर रोने लगी |

       ” आप यहाँ आ गई, आपकी तबियत इतनी खराब है और आपने हमें खबर भी नहीं किया, क्यों? क्या हम इस लायक भी नहीं रहे |  वो तो भला हो, मेरे दोस्त मुकेश का, जो समाज सेवा करता है और एकदिन जब यहाँ आया और तुम्हें देखा तो मुझे फोन किया |” प्रकाश ने उसे पकडकर बैठाते हुए कहा – हमें जैसे ही पता चला नीलम जिद करने लगी आपसे मिलने के लिए और मैं भी यही चाहता था |इसी से हम तुरंत चले आये|

       “आप को हमलोगों की याद नहीं आती थी ? आप हमें खबर करती, हम आपको अपने साथ ले जाते |” नीलम ने पैर छूते हुए कहा | 

        “माँ अपने बच्चों को कभी भूल सकती है क्या? याद तो सदा आती थी, पर मेरे पास कोई साधन ही नहीं था, तुमलोगों से संपर्क करने के लिए |” आशा देवी ने कहा | 

         “ठीक है, अब हम आपको लेने आये हैं  |आप हमारे साथ चलिए | हम आपका इलाज भी करवायेंगे और पूरी देखभाल करेंगे |”  नीलम ने कहा |

    “मुझे माफ कर दो बहू, मैंने तुम्हारे साथ बहुत गलत व्यवहार किया | हमेशा तुम्हारे खिलाफ सोचती और बोलती रही | कभी अपने परिवार में तुम्हें अहमियत न दी |सारी संपत्ति और जेवर भी आकाश ने रख लिए | तुमलोगों को कुछ न दे पाई | ” आशा देवी ने हाथ जोड़कर कहा | 

       “बडो़ के हाथ माफी मांगने के लिए नहीं, आशीर्वाद देने के लिए उठते हैं | हमें आशीर्वाद दिजिए और हमारे साथ चलिए |”नीलम उनका हाथ पकडकर बोली – ” हम आपको अपने साथ ले जाने आये हैं | हमें सिर्फ आपका आशीर्वाद चाहिए और कुछ नहीं | हमें अपनी सेवा का मौका दे ं |”

       “पर जाने के पहले आकाश से एकबार मिल लेती |” माँ ने धीरे से कहा | 

         ”  हम उनसे मिलकर ही आ रहे हैं और उन्हें अपने साथ ही लायें हैं |” प्रकाश थोड़ा रूककर बोला -“मैं पहले घर हीं गया था | उनसे बात की , समझाया और पूछा कि आपलोगो ने ऐसा क्यों किया? कल को आपका बेटा भी आपलोगों के साथ यही करेगा   | आपलोगों को संपत्ति और जेवर चाहिए तो आपलोग सब रख लें | मुझे कुछ हिस्सा , कुछ जेवर नहीं चाहिए | हमारे पास माँ के आशीर्वाद से सबकुछ है |आप सब रखें |मुझे सिर्फ माँ चाहिए | अगर माँ को नहीं रखना था, तो हमें खबर कर देते |हम माँ को ले जाते |” कहते हुए प्रकाश ने माँ को दोनों हाथों से पकड लिया |

       ” हमें माफ़ कर दें, माँ | हम भटक गए थे |प्रकाश की बातों ने हमारी आंखें खोल दी| हमने गलती की है |हमें सजा दिजिए  |घर चलिए |” दरवाजे के बाहर खड़े आकाश और माला अंदर आकर माँ के पैर पकड लिए और रोने लगे |

    आपलोगों ने बहुत दिनों तक माँ को अपने पास रखा |अब हम माँ को अपने साथ ले जा रहे हैं | आपलोगों का जब मन हो,आकर मिल लिजिएगा |” प्रकाश भी रोने लगा|                       ” रोओ मत बच्चों | आज तो खुशी का दिन है | मैंने अपना सबकुछ खो दिया था | रात तक मेरे पास न घर था, न परिवार, न जीने की इच्छा | जीवन में जिस नीलम को मैंने कोई अहमियत न दी,उसके खिलाफ रही, आज उसी की बदौलत मुझे मेरा घर, मेरे बच्चे, मेरा परिवार  सब वापस मिल गया | ईश्वर की कृपा सदा तुमलोगों पर बनी रहे | अब मैं शांति से मर सकूंगी | ” आशा देवी सब को गले लगाकर रोने लगी |

         “इतनी जल्दी हम तुम्हें जाने नहीं देंगे| अभी तो तुम्हें पोते- पोतियों की शादी देखनी है | उनके बच्चों को खिलाना है |” प्रकाश ने जोर से कहा और सब हंस पडे | माँ भी मुस्कुराने लगी | 

 वृद्धाश्रम के मैनेजर साहब और अन्य लोग, जो उन्हें देखकर पास आ गये थे,  खुश होकर ताली बजाने लगे |

# खिलाफ

स्वलिखित और अप्रकाशित

सुभद्रा प्रसाद

पलामू, झारखंड |

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