आज की मेरी कहानी की मुख्य पात्र हैं मंगला जायसवाल! अठारह साल की उम्र में जो गांव के लिहाज से ज्यादा हीं था, शादी हो गई.. थोड़ा बहुत पढ़ना लिखना सीख गई थी.. रंग रूप देने में भगवान ने पूरी उदारता दिखाई थी.. ससुराल में बूढ़े सास ससुर दो देवर एक ननद और बेहद सीधा साधा साधारण व्यक्तित्व का मालिक पति, यही परिवार था.. आर्थिक स्थिति बहुत साधारण थी..
समय गुजरता गया सास ससुर की मृत्यु हो गई उनका काम क्रिया देवर ननद की शादी और साथ में पांच बच्चों की जिम्मेदारी, मंगला परेशान हो गई.. जमीन का कुछ हिस्सा बेचकर ननद देवर की शादी की..
मंगला के रिश्ते का एक भाई कलकत्ता में काम करता था, मंगला पिछले साल मां के श्राद्ध में मायके गई थी दूर के रिश्ते के भाई से अपने पति को कलकत्ता में काम लगाने की गुजारिश की थी.. पांच पांच बच्चों की परवरिश करना मंगला के लिए बहुत मुश्किल हो रहा था.
इसलिए पति को कलकत्ता भेज दिया रिश्ते के भाई से सलाह ले कर.. कलकत्ता का पानी मंगला के पति गोवर्धन को शूट नही किया खबर आने पर मंगला बच्चों को घर पर छोड़ कलकत्ता पहुंची..
पति बुखार से बेसुध अर्ध बेहोशी की हालत में पड़ा था..
मंगला एक सप्ताह तक सरकारी हॉस्पिटल में गोवर्धन को लेकर रही..
मंगला के आंखों के सामने अपने मासूम बच्चों का चेहरा हर दम घूमते रहता था..
मंगला का भाई जिस फैक्ट्री में काम करता था उसके मालिक के घर मंगला को खाना बनाने के काम पर पंद्रह दिन के लिए लगा दिया क्योंकि खानसामा पंद्रह दिन के लिए बाहर अपने गांव गया था..
मंगला सेठ जी के यहां गई. सेठ जी का बंगला और ढेर सारे नौकर चाकर देख दंग रह गई..
मंगला के हाथ का खाना सेठ जी को पसंद आया.. धीरे धीरे मंगला सेठ जी के पेट से होकर दिल में जगह बना ली.. गोवर्धन गांव से बच्चों को कलकत्ता ले आया था.. सेठ जी की कृपा मंगला पर बहुत तेजी से बरस रही थी.. मंगला का गठिला खूबसूरत बदन अच्छे कपड़े अच्छा भोजन और बच्चों की खाने पढ़ने के समस्या से मुक्त होने से पूरा निखर आया था.. सेठ जी का कपड़े का दुकान था रेस्टोरेंट था और ब्याज पर पैसे चलाने का भी काम करते थे.. एक बेटा था जो इंग्लैंड में डॉक्टर था पत्नी विदेशी थी और वो भी डॉक्टर थी. एक बेटी थी जो डीयू में प्रोफेसर थी और उसके पति प्रशासनिक अधिकारी थे..
पति गोवर्धन घर और बच्चों की देखभाल करता और मंगला सेठ जी का घर संभालती.. क्योंकि सेठानी पैरालाइसिस के अटैक के बाद तीन साल से बिस्तर पर थी..
समय गुजरता रहा.. मंगला ने बड़े बेटे को बीए पास करते हीं सेठ जी के यहां काम पर लगा दिया. दूसरे बेटे और तीसरे नंबर की बेटी को कोटा मेडिकल कोचिंग के लिए भेज दिया..
एक बेटी और एक बेटा अभी कलकत्ता में हीं पढ़ रहे थे..
सेठ जी की पत्नी लंबी बीमारी के बाद चल बसी.. मंगला खूब सेवा की.. मंगला की खूबसूरती उम्र बढ़ने के साथ और निखर रही थी और बेचारा गोवर्धन सब समझ कर भी चुप रहता पत्नी के अहसान तले दबा हुआ.. जो पति अपने पति और पिता होने के कर्तव्य को सकुशल ढंग से नहीं निभा पाता , वो पत्नी और बच्चों के गलत सही बात पर बोलने का अधिकार खो बैठता है. वही स्थिति गोवर्धन की भी थी.. मंगला के सामने उसका व्यक्तित्व बिल्कुल गौण हो जाता अपराधबोध और कोढ़ में खाज का काम करता..
मंगला के मन की व्यथा भला कौन समझता.. बस उपर की रंगीनियां हीं सबको दिखती.. अंदर के दर्द को कौन महसूस कर पाता..
दस साल बाद मंगला का बड़ा बेटा खुद की फैक्ट्री का मालिक बन चुका था.. बेटा बेटी डॉक्टर बन चुके थे.. और सबसे छोटे बेटे ने बहन के साथ मिलकर अहमदाबाद में रेडीमेड कपड़े का बहुत बड़ा दुकान खोल चुके थे बेटी कपड़े डिजाइन करती थी..
सब कुछ आगे बढ़ रहा था पर मंगला की उम्र जैसे ठहर सी गई थी.. अपनी बहु बेटियों को बराबरी का टक्कर देती.. बेटे और बेटी सबको अपनी मां और सेठ जी के रिश्ते के बारे में पता था पर उन्होंने कभी अपनी मां को गलत नही ठहराया. बल्कि मां को बहुत मान सम्मान देते हैं. मंगला भी लोगों के तानों उलाहनो को अनदेखा कर सेठ जी को अंत समय तक नही छोड़ा..
मंगला के तन और मन पर कितने गहरे जख्म थे जिसे आजतक ना उसका पति समझ सका ना हीं उसके जानने वाले. बच्चों की भूख के खातिर मंगला ने अपनी पवित्रता को गिरवी रखा. अपने जमीर के# खिलाफ #जाकर मजबूरी में इतना कुछ किया…कितना दर्द कष्ट और अमानवीय यातना का पल होगा जब पच्चीस साल की मंगला अपने पिता के उम्र के सेठ जी के साथ..
आज मंगला के बच्चे जिन्हे दो वक्त की रोटी के लाले पड़े थे कितने लोगों के घरों का चूल्हा उनकी कृपा से जल रहा है..
मंगला अपना कर्तव्य पूरा कर चुकी है.
मंगला को आप लोग क्या नाम देना चाहेंगे कुलटा चरित्रहीन या फिर बच्चों के कारण मजबूर लाचार गरीबी अशिक्षा की मार से ग्रस्त एक औरत के बलिदान की कहानी जिसने विपरीत परिस्थितियों के #खिलाफ #जाकर अपने परिवार को समाज में पहचान दिलाया…
Veena Singh…