बहू तुम मायके जा रही हो तो …वो लाल वाली साड़ी पहन लेना …. और हाँ अपने सोने के गहने भी लेते जाना ….पर मम्मी…. मैं तो वहीं की हूं…. सब मुझे जानते ही हैं….और सब को ये भी पता है…. कि मेरा ससुराल अच्छा है… फिर ये सब दिखाने की क्या जरूरत है…??
अरे ये दिखाने विखाने वाली बात छोड़ो…. वो भाई बहनों के लिए कुछ बना लेना… उन्हें जो पसंद हो… खाली हाथ अच्छा नहीं लगता जाने में…।
नई नई बहू स्नेहा …सोच रही थी मेरा मायका… और जाना भी मुझे है…. पर मम्मी जी कितनी उत्सुक हैं…..! वो अपने मायके जाती होंगी तो क्या हाल होता होगा….
स्नेहा ने सीधे सासू मां से प्रश्न कर ही डाला ….मम्मी जी आप भी इतनी तैयारी से मायके जाती हैं…..?
अचानक पूछे गए स्नेहा के इस प्रश्न से मालती थोड़ी देर चुप रही …फिर मुस्कुराते हुए ना में सिर हिला दिया…
मालती ने सिर्फ इतना ही कहा.. काफी दिनों से मैं मायके नहीं गई हूं…। क्यों मम्मी मन नहीं करता क्या वहां जाने का…..?? जहां आपका बचपन बीता है ….!
मालती ने जिम्मेदारियों के ऊपर सारा कारण थोप कर टाल दिया…।
देखिए मम्मी जी…..अब मैं आ गई हूं ना ….मैं यहां सब संभाल लूंगी …आप आराम से दो-चार दिन के लिए जा सकती हैं ….सारे जहां घूमने का मजा बहुत अलग होता है और मायके का अलग….. स्नेहा ने मम्मी जी से अनजान बनते हुए उनके भावनाओं को समझने की कोशिश की….।
उसे शादी से पहले ही विशाल (पति) ने बातों-बातों में बता दिया था कि मम्मी मामा के घर नहीं जाती हैं… और स्नेहा ने उसी समय सोच लिया था …जो भी हो वो पूरी कोशिश करेगी कि सासु मां और उनके मायके के संबंध सुधर सकें….।
स्नेहा के कुरेदने के बाद मालती थोड़ी भावुक तो हुई ….पर चुप रहना ही बेहतर समझा… बस इतना ही बोल पाई थी ….मेरे जाने से वहां भी तो खुशी होनी चाहिए ना ….आत्मसम्मान नाम की भी कोई चीज होती है…।
बिल्कुल मम्मी जी….आत्म सम्मान से समझौता बिल्कुल नहीं होना चाहिए …..पर कभी-कभी गलतफहमियां भी आत्मसम्मान के चारों और अपना परत चढ़ा देती हैं…।
खैर छोड़िए ना ….वो तो मेरी माँ बोल रही थीं… हमारे तरफ एक ऐसी मान्यता है कि …..सासूमाँ के मायके जाने से बहुत शुभ होता है ….स्नेहा ने मौका देखकर चौका मारा….।
ऐसा है तो तुम विशाल के साथ चली जाओ ….अरे नहीं मम्मी …वहां मैं आपके बिना नहीं जाऊंगी …अपना निर्णय सुना स्नेहा जल्दी जल्दी काम निपटाने लगी…।
मालती मन ही मन सोच रही थी ….तुझे कैसे बताऊं बहू ….औरतें कितनी भी बड़ी या बुढ़ी हो जाए ….मायका और मायके वालों से एक अलग ही आकर्षण होता है ……क्या मेरा मन नहीं करता…… पर अब इतने दिन हो गए हैं वहां से भी कोई नहीं आया है… ना ही कोई बुलाया ….यहीं पास में ही तो मायका है मेरा ….फिर भी….।
मम्मी जी…तैयार हो जाइए आज चलते हैं …स्नेहा ने आग्रह करने की बजाय ….आदेशात्मक रूप से कहा… कहां चलना है बहू….? आज मामा के घर चलेंगे …..प्लीज मना मत कीजिएगा ….मेरी खातिर…. प्लीज मम्मी जी….।
जैसे ही मालती ने स्नेहा की ओर आश्चर्य से देखा ….स्नेहा ने हां में सिर हिला दिया…. पर बहू ….!! ….पर वर …कुछ नहीं मम्मी जी ….जो कुछ होगा… मेरी जिम्मेदारी …..आप चलिए तो….
दिल तो मालती का भी यही चाहता था …जाने का… पर शायद इतना फोर्स किसी ने किया ही नहीं था ….कहीं बहू के सामने अपमान हो गया तो ….अरे नहीं ..नहीं ..शायद नहीं जाना चाहिए …ओह…हे भगवान मैं कुछ निर्णय क्यों नहीं ले पा रही हूं….
क्या हुआ मालती ….? विश्वनाथ जी (मालती के पति) ने मालती के कंधे पर हाथ रखते हुए पूछा ….कुछ नहीं… मालती कुछ बोलती उससे पहले ही विश्वनाथ जी ने कहा… स्नेहा समझदार है…पढ़ी लिखी है …मालती कभी-कभी हमें ना बच्चों की भी सुननी चाहिए ….और सम्मान अपमान बहू के सामने …..अरे बहु कोई पराई थोड़ी ना है ….एक बार बहू की बात मान…. जिद छोड़ कर तो देखो….।
शायद यही तो मालती भी चाहती थी झट रसोई में जाकर… बहू सवेरे नाश्ते में जो तुमने ढोकला बनाया था ना वो बचा है क्या ….? उसे फ्राई कर लेती हूं ….भैया को बहुत पसंद है… और ये कच्ची मूंगफली भी रख लूं क्या…? इसे उबालकर हम सब भाई बहन बहुत खाते थे…।
ठीक है मम्मी जी …मालती की उत्सुकता और खुशी देख स्नेहा सोच रही थी ….प्लीज भगवान ऐसी खुशी मम्मी जी के मायके से लौटने के बाद भी बनाए रखिएगा….।
40 किलोमीटर की दूरी पर ही था मालती का मायका …. रास्ते से ही चहकती हुई मालती ने बताना शुरू किया ….देखो ये मेरा स्कूल था… यहां तक हम सहेलियाँ खेलने आते थे …कुछ दूर जाने पर… वो देखो बहू… मेरा कॉलेज ….स्नेहा सोच रही थी…. कितनी खुश है मम्मी जी ….शायद मम्मी जी का बचपन लौट आया …..अपने मायके के गलियारों में आने से ही…
घर के सामने कार रूकी थी…. मालती के साथ स्नेहा की भी दिल की धड़कन तेज हो गई थी… काश सब अच्छा हो ….स्नेहा इधर-उधर काॅल बेल ढूंढने लगी …तब तक मालती कॉल बेल बजा चुकी थी….।
सामने अधेड़ व्यक्ति जो काफी कमजोर दिखाई दे रहे थे मुस्कुराते हुए बोले……
अरे देखो तो मालती आई है….
वर्षों बाद भैया के मुख से अपना नाम सुन मालती भावुक हो गई …..अंदर से एक अधेड़ उम्र की महिला भी पल्लू से हाथ पोछते हुए निकलीं…. और मालती को आत्मीयता से गले लगाते हुए कहा ….अरे अंदर तो आइए…. मालती अंदर जाने को जैसे ही कदम बढ़ाई……. कमजोर से दिखने वाले व्यक्ति और कोई नहीं मालती के भाई मलय ही थे …..जिन्होंने मालती का…. 1 मिनट …कह कर हाथ पकड़ा और फुर्ती से बगल वाले घर में जाकर बोले……
. …..देखो तो मालती आई है…..
दरअसल बगल वाला घर चाचा जी का था… चाचा जी के सामने भाई मलय खुशी जाहिर करना चाहते थे ….
चाचा और चाची जी मलय और मालती को हाथ पकड़कर एक साथ देखते हुए…. वो बचपन याद करने लगे… जब मालती और मलय पूरे मोहल्ले हाथ पकड़कर साथ-साथ दौड़ा करते थे….।
लंबे अंतराल के बाद आज भी मलय और मालती बिल्कुल नन्हे बच्चे की भांति लग रहे थे…
तभी भाभी ने कहा ….अरे पहले मालती को अंदर तो आने देते… चाय पानी ….उसके बाद ….अरे नहीं चाय वाय सब बाद में …..मलय भैया मालती बहना का हाथ पकड़… अगल-बगल ……देखो ..देखो मालती आई है… देखो मालती आई है ….कहते कहते ….बिल्कुल बच्चे लग रहे थे….
मामी जी ने बड़े प्यार से कहा तुम आओ स्नेहा बहू ….ये दोनों भाई बहनों को छोड़ दो….. ये दोनों काफी दिनों बाद मिले हैं ना….।
स्नेहा बहू …मैं तुम्हारे चेहरे के संतोष… इत्मीनान और खुशी देखकर समझ गई थी…. मालती दीदी के यहां आने के पीछे की वजह तुम हो…. तुम्हारी वजह से ही लंबे अंतराल की खाई भर गई ……कहते-कहते मामी जी भी भावुक हो गई….।
अरे नहीं मामी जी ….मैं तो सिर्फ…. कहते कहते स्नेहा रुक गई …फिर बात की दिशा को मोड़ते हुए मामी जी से पूछ ही लिया …..पर मामी जी यदि दोनों भाई बहनों और आप में इतना प्यार था… तो फिर कौन सी चीज रोक रही थी इन्हें एक दूसरे से मिलाने में…..
ईगो ….अहंकार …स्नेहा …..और तुम पढ़ी लिखी समझदार बहू …..अहंकार को ऐसा मात दिया… कि प्यार भी अपनी जीत पर गर्व करने लगा…..
बस इतनी सी तो बात थी ….पर दोनों अपनी अपनी जगह अड़े हुए थे…. शायद आज दोनों के समझ में आ गया होगा कि….
प्यार नफरत से बहुत ऊंचा होता है….
और इसमें मालती ने अपने भाई मलय को पीछे छोड़ दिया …..वो प्यार दिखाने… जताने व निभाने में मलय की अपेक्षा बहुत आगे निकल गई…. शुरुआत कहीं से भी होनी चाहिए …भाई बहनों की बीच में ये दीवार कैसा ….? मैंने कई बार मलय को भी समझाने की कोशिश की थी स्नेहा…. पर मुझे सफलता नहीं मिली….
या कह लो मेरी कोशिश में वो ताकत ही नहीं थी….।
तुम सब पढ़े-लिखे युवा काफी समझदार… स्पष्टवादी… निसंकोच और चीजों के प्रति ज्यादा प्रैक्टिकल हो… हमारी अपेक्षा तुम लोगों की सोच बहुत अलग है…
अब देखो ना… तुमने कितने अच्छे ढंग से बिगड़े रिश्ते को एक नया आयाम दिया… सच में वर्षों से चली आ रही सास बहू के रिश्ते को दोस्ताना रूप देकर.. . सासू माँ के मन की भावनाओ को समझ….तुमने एक नई पहल की है….।
मैंने तो सिर्फ मां की बातों को ध्यान में रखा था मामी जी ….वो हमेशा कहती थी ….बेटा ससुराल से हमेशा लड़कियों को कुछ ना कुछ शिकायत ही रहती है…. पर एक बात का ध्यान रखना ….तुम किसी के होठों पर मुस्कुराहट व खुशी ला सकती हो …तो वो तुम्हारी सबसे बड़ी पूजा होगी…..
फिर देखना ससुराल के प्रति तुम्हारा नजरिया ही बदल जाएगा….
अनजाने में ही सही…. आज मम्मीजी और मामा जी के चेहरे पर खुशी देख कर लग रहा है… माँ ने बिल्कुल ठीक कहा था…।
साथियों रिश्तों के उतार-चढ़ाव के मेरे इस विचार पर …अपनी प्रतिक्रिया अवश्य दें… !
( स्वरचित मौलिक एवं सर्वाधिकार सुरक्षित रचना )
संध्या त्रिपाठी
बहुत ही सुन्दर रचना 👌🙏
Very nice story