बुआ… बताओ ना मेरे लिए क्या लाई हो..? जल्दी बताओ.. मैंने आपसे जो बैट बॉल की बोला था वह लेकर आई हो..? 7 साल का रोहन बुआ के आते ही उनका बैग खोलकर उसमें अपने लिए कुछ ढूंढने लगा! बुआ जब भी घर आती.. रोहन बुआ को देखकर ऐसे ही मचल जाता और अपनी फरमाइश बुआ से पूरी करवाता था! बेटा… बुआ को 2 मिनट सांस तो लेने दे.. देख बुआ तेरे लिए बैट बॉल भी लेकर आई है और खूब सारी चॉकलेट भी!
अब तो खुश..! रोहन की मम्मी ने रोहन से कहा! नंदिनी बुआ का इकलौता भतीजा था रोहन… जो 7 साल का था! अभी 1 साल पहले ही नंदिनी इस घर से विदा होकर अपने संपन्न ससुराल में गई थी! विदा होते समय नंदनी को ऐसा लग रहा था जैसे कोई मां अपने बच्चे को छोड़कर जा रही हो! जब नंदिनी 16 वर्ष की थी तभी उसके भाई की शादी हो गई थी और भाई की शादी के 2 साल बाद ही उनके यहां रोहन का जन्म हुआ!
नंदिनी तब तक 18 वर्ष की हो गई थी और वह रोहन को अपनी जान से ज्यादा चाहती थी! उसने रोहन की सारी जिम्मेदारी अपने ऊपर ले रखी थी, क्योंकि उसे बच्चों से विशेष लगाव था और यह तो बात उसकी अपने भतीजे की थी! वह उसे नहलाना, धुलाना खिलाना, अपने साथ हर जगह ले जाना और अपने साथ ही चिपका कर सुलाती थी!
दोनों बुआ भतीजे एक दूसरे के बिना रह ही नहीं पाते थे! नंदिनी के भाई भाभी भी दोनों को देखकर बहुत खुश होते थे, सभी कहते.. जब नंदिनी भतीजे से इतना प्यार करती है तो पता नहीं अपनी संतान होने पर क्या करेगी..! खैर वह दिन भी आ गया.. नंदिनी की शादी के 2 वर्ष बाद बहुत सुंदर चांद जैसे बेटे ने जन्म लिया, अब नंदिनी का सारा दिन उसी में निकल जाता था, किंतु फिर भी भतीजे को याद करने में कोई कमी नहीं आई! रोहन अगर हल्का सा भी बीमार हो जाता तो वह यहां ससुराल में बेचैन हो जाती और उससे मिलने के लिए तड़प उठती!
नंदिनी की सास को उसका मायके से ज्यादा मोह पसंद नहीं था, लेकिन नंदिनी तो अपने दिल के हाथों मजबूर थी, उसके लिए आज भी उसका भतीजा रोहन सबसे अहम था! वह जब भी कभी मेले में या बाजार जाती, रोहन के लिए कोई ना कोई सामान जरूर इकट्ठा करके रखती और जब भी मायके जाने का मौका पड़ता वह रोहन को दे देती और वह उसे देखकर बहुत खुश हो जाता और बुआ के चिपक जाता और फिर कहता… बुआ.. आप हर बार मुझे छोड़कर क्यों चली जाती हो, आप हमारे साथ ही रहो ना…
आपको पता है मुझे आपके बिना बिल्कुल अच्छा नहीं लगता, तब नंदिनी का भाई भी कहता… हां लाडो… तेरे जाने से तो घर की रौनक ही चली गई, लेकिन क्या करें.. बेटी को विदा करना भी तो इस जमाने का दस्तूर है और नंदिनी ऐसी बातों से बहुत खुश हो जाती! उसके भाई भाभी ने भी कभी उसे नंद की तरह न समझा बल्कि हमेशा एक बेटी से भी बढ़कर माना था! नंदिनी की सास नंदिनी के बेटे को धीरे-धीरे नंदिनी के खिलाफ भड़काने लगी! वह उसे हर समय कहती देख तेरी मां को…
तुझसे ज्यादा चिंता तो अपने भतीजे की रहती है, निहाल.. नंदिनी का बेटा, अभी बच्चा ही तो था, अपनी दादी की बातों का असर बहुत जल्दी होने लगा! जब भी नंदिनी कभी भतीजे के लिए कुछ लेती तो तुरंत बोल पड़ता.. हां हां.. आप मुझसे थोड़ी प्यार करती हो, आप तो सिर्फ रोहन भैया को प्यार करती हो, नंदिनी उसे बहुत समझाती, किंतु मां से ज्यादा असर उस पर दादी की बातों का होता था, वह अपनी मां से दूर और दादी के करीब होता चला गया, और एक समय ऐसा आया जब निहाल अपनी मां के बिल्कुल ही खिलाफ हो गया!
धीरे-धीरे समय बीत गया.. भतीजा बड़ी कंपनी में पद स्थापित हो गया और कुछ सालों बाद निहाल भी एक अच्छी कंपनी में लग गया! समय के साथ दोनों की शादियां हो गई और रोहन और निहाल दोनों ही बड़े शहरों में जाकर बस गए! बुआ अपने बेटे की बेरुखी से दिन-ब-दिन बीमार होती चली गई ,लेकिन बेटे को उससे कोई फर्क नहीं पड़ता! नंदिनी ने कई बार कहा की…
बेटा मुझे अपने साथ लेजा पर वह तो अपनी मां से नफरत करता था अतः कैसे ले जाता! अपने पिता की मृत्यु के समय कुछ दिनों के लिए आया था किंतु एक बार भी यह नहीं सोचा कि अब अकेली बीमार मां कैसे रहेगी! फिर एक दिन रोहन आया और अपनी बुआ को हमेशा के लिए अपने साथ मुंबई ले गया और वहां बुआ का बढ़िया से बढ़िया इलाज कराया! बुआ रोहन के बच्चों के साथ बहुत खुश रहती, किंतु रह रह कर उसे अपने बेटे की बेरुखी भी याद आती और वह उसे याद कर अक्सर रोने लग जाती!
कुछ समय बाद बुआ का भी देहांत हो गया और नफरत का मारा निहाल उस समय भी अंतिम दर्शन के लिए तक नहीं आया! अंतिम क्रिया की सारी रस्में आखिरकार रोहन को करनी पड़ी! रोहन भी तो नंदनी को अपनी मां के समान मानता था! कैसी विडंबना है… बेटे के होते हुए भी सारी रस्में भतीजा निभा रहा था! और नंदिनी पता नहीं किन कर्मों की सजा भुगतती हुई इस संसार से चली गई ! और उस दादी को क्या सुकून मिला होगा जब उसने एक बेटे को अपनी ही मां के खिलाफ कर दिया! क्या अपने भतीजे से लगाव ही बुआ की इस हालात का जिम्मेदार था!
हेमलता गुप्ता स्वरचित
कहानी #खिलाफ