महेश घर का सबसे छोटा बेटा था उसका दिमाग पढ़ने में कम लगता इस वजह से उसने ज्यादा पढ़ाई नही करी महेश के दो बड़े भाई थे जो पढ़ने के साथ पिताजी का व्यापार भी सम्हालने लगे
महेश को उन्होंने घर के काम की ज़िमेदारी सौंप दी बाजार से सामान लाना घर के काम मै मां का हाथ बटाना शुरू मै तो महेश को अच्छा लगता
क्योंकि भाइयों की तरह बंध कर नही रहना था
मां कई बार समझाती बेटा दुकान का काम भी सीखो कल को जिम्मेदारी कैसे उठाओगे
महेश कहता मां भाई है ना वो उठा लेंगे और घर के काम के लिए भी तो कोई चाहिए और महेश कुछ समझ नहीं रहा था
दिन गुजरते रहे भाइयों की शादी हो गई भाभियों को लगा ये मुफ्त का खाता है मेहनत हमारे पति करते है तो और ज्यादा काम कराने लगी एक दो बार मां ने टोका भी की वो भी इस घर का सदस्य ही है तो बड़ी बहू बोली मांजी हम भी तो काम करते है तो वो भी करेगा और उल्टे सीधे जवाब देने लगी
मां बेचारी क्या बोलती उन्होंने सोचा इस की भी शादी कर देते है तो शायद अपनी जिम्मेदारी समझे जैसे तैसे गरीब घर की लड़की मानसी को बहू बना लाई
मानसी के आने से जेठानी और ज्यादा मनमानी करने लगी अब उन्होंने घर की जिम्मेदारी भी मानसी पर छोड़ दी खुद अच्छे अच्छे कपड़े पहनती खूब पैसा खर्च करती मानसी जरूरी सामान के लिए भी मुंह देखती रहती उनकी पुरानी साड़ी से ही खुश हो जाती क्योंकि वो खुद गरीब घर की थी और पति कहने पर भी काम करने की तैयार नहीं था उसे जिंदगी तो काटनी थी
आज दोपहर का वक्त था भयंकर गर्मी से दिन बेहाल हो रहा था तभी मानसी की जेठानी बोली
मानसी जरा रसोई मैं जा कर मेरे लिए दही की लस्सी बना लाओ मानसी लस्सी बनाने लगी गर्मी के कारण उसका भी मन हुआ तो उसने दो ग्लास ज्यादा बना ली एक पति के लिए एक खुद के लिए जेठानी को देकर खुद पीने जा रही थी तभी जेठानी ने खिड़की से देख लिया
और गुस्से मै नीचे आकर मानसी और महेश को खरी खोटी सुनाने लगी तुमने किस से पूछकर लस्सी बनाई जानते हो दूध कितना महंगा है
तुम तो पड़े पड़े खा रहे हो दोनो के दोनो मेरे पति कितना काम करते है तब दूध और सामान सा पाता है तुम्हे रहने और खाने को मिल रहा है बही बहुत है आइंदा ध्यान रखना
मानसी की आंखों मैं आंसू आ गए उसने लस्सी को रख दिया आज पहली बार महेश को अहसास हुआ की उसके एक गलत फैसले के कारण उसकी पत्नी को सम्मान नही मिल रहा उसे अभी तक इस बात का अहसास नही हुआ था आज उसने ठान लिया की उसे फैसला लेना ही होगा अपनी पत्नी को सम्मान दिलाना उसका कर्तव्य है उसने मानसी से माफी मांगी
शाम को भाई वापस आए थे उसने अपना फैसला सुना दिया की वो भी व्यापार मैं साथ मैं काम करेगा और अब मेरी पत्नी भाभियों का काम नही करेगी सब मिलकर काम करेगी या हम अलग रसोई कर लेंगे
भाई बोले हमने मेहनत से व्यापार बढ़ाया तुम अब हिस्सा मांगने आ गए महेश बोला मैने भी तो घर की पूरी जिम्मेदारी उठाई है देख लो नही तो मुझे हिस्सा दे दो मैं अलग दुकान खोल लूंगा
अब भाई समझ गए ये नही मानने वाला हिस्सा करेंगे तो ज्यादा पैसे देने पड़ेंगे उन्होंने कहा ठीक है तुम्हे भी मुनाफे से हिस्सा मिल जाएगा
मानसी की भी रसोई अलग करवा दी मानसी ने सास ,ससुर की जिम्मेदारी खुद ले ली आज सास और मानसी दोनों खुश थी महेश की अपनी जिम्मेदारी समझ आ गई थी
एक फैसला जिंदगी बनाता भी है और बिगाड़ता भी है ये हमारे ऊपर है हम क्या फैसला लेते है सोचते हुए महेश काम पर निकल गया अब उसे भी अपनी नजर मैं अच्छा लग रहा था
स्वरचित
अंजना ठाकुर