ताखा पर सगुनी काकी का फोटो… ब्लैक एंड व्हाइट.. वो भी बड़े दयनीय हालत में … बगल में एक डिभरी रखी हुई…..हल्की सी मुस्कुराहट के साथ अनिला ने फोटो उठाया और अपनी ओढ़नी से पोछने लगी….!
आज उसे ताखा शब्द का अर्थ भली-भांति समझ में आ गया था…
आज पहली बार ही तो गांव आई थी अनिला …..वो भी भैया भाभी के साथ… यदि भतीजे आरव का जनेऊ संस्कार ना होता और गृह धाम में कुल देवी देवताओं के पूजा की परंपरा ना होती तो शायद भैया भाभी ही कभी पैत्रिक गांव सांकीपुर ना आते…. तो अनिला के आने का तो प्रश्न नहीं उठता …..वैसे भी भतीजे के जनेऊ में बुआ का होना जरूरी था….!
सगुनी काकी की फोटो निहारते निहारते अनिला सोच रही थी …एक ही बार तो आपसे मिली थी काकी…. वैसे माँ बाबूजी से आपके बारे में सुना था बहुत कुछ या कह लें सब कुछ…..
छोटे से गांव सांकीपुर में बाबा दादी के ना रहने के बाद और मेरे मां बाबूजी के नौकरी के सिलसिले में शहर आ जाने के बाद वहां की जगह जमीन, खेती बाड़ी, घर जिसकी…. काकी आपके माता पिता ने परिवार के सदस्य की तरह रहकर देखभाल की थी…।
एहसान मानना तो कोई आपसे सीखे सगुनी काकी…. अनायास ही अनिला के मुख से निकला…..
बाबूजी ने बताया था ….एक बार गांव में कुछ दबंग लोगों ने आप जैसे कई निर्धन परिवारों को गाँव से निकल जाने का आदेश दिया था …क्योंकि आपके पास उस गाँव में अपनी कोई जमीन नहीं थी ….उस वक्त बाबा दादी ने आप लोगों के नाम से अपने जमीन का कुछ हिस्सा लिख दिया था , ताकि आप लोगों को गाँव से निकाला ना जा सके ….उस समय आप काफी छोटी थी काकी….. तब आपके माता-पिता ने ” फैसला ” किया कि मरते दम तक इस घर को अपना समझ कर सेवा करेंगे और उन्होंने ऐसा किया भी ….और वो आपको भी हमारे परिवार का साथ न छोड़ने की सलाह दी थी…।
और सगुनी काकी आपने भी अपने जीवन में इस घर के लिए शायद बाबा दादी द्वारा किए एहसान का बदला चुकाने के लिए एक महत्वपूर्ण ” फैसला ” लिया कि आप ऐसे व्यक्ति के साथ शादी करेंगी जो यहीं आकर रहे …जिससे इस घर की देखभाल हो सके …पर आपकी वो तलाश अंतिम सांस तक तलाश ही बनकर रह गई…।
लंबी सांस लेते हुए अनिला ने दुपट्टे से एक बार और फोटो को साफ किया ….आज अनिला को वो घटना भी याद आ ही गई …जब अनिला वंश को लेकर मायके आई थी ….उस समय सगुनी काकी भी यहां डॉक्टर को दिखाने आई थी …डॉक्टर तो एक बहाना था , दरअसल उन्हें मुझसे मिलना था …मेरे माँ बाबूजी के न रहने के बाद सगुनी काकी वंश की नानी बन पूरा दायित्व निभाने की कोशिश करती थीं…. भले ही फोन से ही क्यों ना हो…..
……. और फिर उस दिन…..
मारीये दा जाने से मार दा….. तोहनिये तो एगो लइका पैदा करे हऊ जइसे……हमरे जमाने में लोगन पांच पांच लइकन बच्चन के तैय्यार करके ताखा पर टांग देत रहीन… तोहन तो जैइसे बदमाशी करते ना रहू….( मार दो जान से ही मार दो तुम ही लोग तो बच्चे पैदा किए हो हमारे जमाने में जैसे…. लोग पांच-पांच बच्चों को तैयार करके ताखा (अलमारी)में टांग देते थे तुम लोग तो बदमाशी करते ही नहीं थे…!
गुस्से से अनिला के हाथों से झटके से वंश को छुड़ाती हुई सगुनी काकी ने कहा था … और काकी भी भावुक हो गई थी…. तब शायद अनिला को ताखा क्या है मालूम भी न था..।
दरअसल अनिला बड़े दिनों की छुट्टियों में मायके आई हुई थी …भाभी के बच्चों और वंश के उम्र में कोई विशेष अंतर नहीं था हमउम्र बच्चे साथ-साथ खेलते , लड़ाई झगड़ा भी करते …पर उस दिन एक जैकेट को लेकर वंश ने जिद ही पकड़ ली थी.. मुझे यही वाला जैकेट चाहिए ..वो जैकेट भतीजा आरव का था.. जिसे जन्मदिन पर उसके नाना के घर से उपहार स्वरूप उसे दिया गया था और आरव भी पहली बार उसे पहन रहा था आरव भी जैकेट देने को तैयार नहीं था और वंश को तो बस वही जैकेट चाहिए …. बात बढ़ती गई प्यार से अनिला और सगुनी काकी ने वंश को बहुत समझाने की कोशिश की … और दूसरा मंगवाने का वादा भी किया … तरह-तरह के प्रलोभन भी दिए गए ….पर वंश पर तो जैसे भूत सवार हो गया था , बस वही जैकेट लेना है तो लेना है….!
इधर आरव भी अपने दोनों हाथों से कसकर जैकेट को पकड़ कर रखा था ताकि कोई छीन ना ले …आखिर वो भी तो बच्चा ही था …हालांकि भाभी ने आरव को भी समझाया दे दो बेटा वंश को …पर बच्चे तो बच्चे….
हालात पर काबू पाना अनिला के वश के बाहर होता जा रहा था …अनिला को मायके में कभी-कभी इन चीजों से अपमान जैसा महसूस होता था…. बस फिर क्या था एक जोरदार थप्पड़ जड़ दिया वंश के गाल पर… और खुद भी रोने लगी थी… इस बीच सगुनी काकी ने भी बहुत समझाने की कोशिश की…।
वंश को थप्पड़ पड़ते ही पास खड़े आरव जो मजबूती से जैकेट पड़ा था पास आकर डरा सहमा धीरे से बोला…. मत मालो (मारो ) बुआ ….दे दो .. और जैकेट वंश को पकड़ाने लगा… पर वंश मार खाकर और जोर-जोर से चिल्ला चिल्ला कर रोने लगा था…!
आज अनिला ने फैसला किया जब तक वंश बड़ा व समझदार नहीं हो जाता वो मायके नहीं आएगी….
बात आई गई और मामला शांत हो गया …कुछ दिनों बाद अनिला अपने घर चली आई….. घर आकर अनिला ने सूटकेस खोला तो उसमें वो जैकेट रखा हुआ था ….शायद भाभी ने बिन बताए रख दिया था और एक कागज में एक मैसेज लिखा था ….अनिला आरव ने जैकेट वंश को देने का आग्रह किया है…. और सॉरी बोला है उस दिन वंश का वह जोरदार थप्पड़ खाना… इससे शायद नन्हे आरव को भी आत्मग्लानि हो रही थी….!
भतीजे के प्रति प्यार में अनिला मन मसोस कर रह गई …एक प्यारी सी चुम्मी के साथ झप्पी लेने को… !
आई भैया …….भाई की आवाज सुनकर अनीला ने कहा …और वो सपनों की दुनिया से बाहर निकली…
जनेऊ का कार्यक्रम दो दिन दिनों तक चला …धोती कुर्ते में आरव बहुत आकर्षक लग रहा था , वंश कई बार धोती और आरव की तारीफ कर चुका था…।
आते समय भाई को गांव के चाचा जी से बातें करते हुए अनिला ने सुना ……इस घर की मरम्मत करवा दीजिएगा मैं पैसे भेजता हूं… और छुट्टी लेकर समय-समय पर आता रहूंगा ….माँ बाबूजी के अलावा बाबा दादी और सबसे ज्यादा सगुनी काकी की यादें इस घर से जुड़ी है…. और हां इस कोठी का नाम ” सुगनी निवास ” होगा…।
सगुनी काकी के इस घर के प्रति समर्पण भरे फैसले की बदौलत ही आज हम पैतृक घर जमीन के स्वामित्व प्राप्त कर पाए हैं …..वरना मजबूरी व देखरेख के अभाव में उसी समय बेचने का मन माँ बाबूजी ने बना लिया था…।
हम आज फक्र से कह सकते हैं हमारे गांव में हमारी जड़े अभी भी मौजूद व मजबूत हैं….।
पैतृक गांव से जुड़ने की खुशी के मध्य आरव ने भी चुटकी ली …अरे वंश आज मेरी धोती के लिए रोएगा नहीं कि ….मुझे भी यही वाली धोती चाहिए और सभी मुस्कुरा दिए…!
साप्ताहिक विषय # फैसला
( स्वरचित मौलिक सर्वाधिकार सुरक्षित और अप्रकाशित रचना )
संध्या त्रिपाठी