दिवाकर जी ने एक बार फिर करवट बदली,और सोने की कोशिश थी,लेकिन उनकी कोशिश पूरी तरह से नाकाम रही,लेकिन देखा जाय तो बिस्तर पर लेटे लेटे वे पूरी रात करबटें ही तो बदलते रहे थे.
नींद उनसे किसी जिद्दी बच्चे की तरह रूंठी हुई थी .समझ नही पा रहे थे कि नींद न आने का कारण स्थान परिवर्तन है या मन में में उठता पत्नी मानसी की यादों का रेला .
मन स्वतः ही अतीत के गलियारे की तरफ़ निकल गया,जब बरेली में अपने घर में थे तो पत्नी मानसी से बोलते बतियाते कब नींद की आग़ोश में चले जाते उन्हें स्वयम् ही पता नही चलता.नीद भी इतनी गहरी आती कि मानसी कभी कभी तो प्यार से उनको कुम्भकरण तक की उपाधि दे डालती ,सुबह होने पर भी नींद मानसी की मीठी सी झिड़की से ही खुलती, क्यों कि मानसी के द्वारा बना गई अदरक, इलायची वालीं चाय की सुगंध जब उनके नथुनों में भर जाती तो वे झट-पट फ्रेश होकर पलंग पर ही बैठ जाते और फिर वहीं पर बैठ कर ही वे दोनों चाय का आनंद लेते .पीते पीते वे मानसी की तरफ़ ऐसी मन्त्र मुग्ध नज़रों से देखते मानो कह रहे हों कि,तुम्हारे हाथ की बनाई गई इस सुगंधित चाय का कोई जवाब नहीं .मानसी उन्हें अपनी ओर इस तरह ताक़तें देख कर लजा कर लाल हो जाती,जानती थी कि संकोची स्वभाव के दिवाकर जी शब्दों का प्रयोग करने में पूरी तरह अनाड़ी हैं,उनकी इन प्यार भरी निगाहों का मतलब वे वखूबी समझने लगी थी.
वे दोनों एक-दूसरे के प्यार में पगे जीवन का भरपूर आनंद उठा रहे थे ,बेटे नमन की शादी कर वे अपनी जिम्मेदारियां पूरी कर चुके थे .उनको रिटायर होकर ६ महीने हो रहे थे,दिवाकर जी मानसी के साथ भारत भ्रमण का प्रोग्राम मन ही मन बना चुके थे,मानसी को अपने इस प्लान की बावत बता कर वे सरप्राइज देना चाहते थे.क्योंकि नौकरी की आपाधापी फिर बेटे नमन को उच्च शिक्षा दिला कर सैटिल करने में ही उनकी आय का अधिकांश भाग खर्च हो जाता,वह तो मानसी इतनी संतुष्ट प्रवर्ती की थी कि उसने कभी भी दिवाकर जी से किसी चीज की कोई मांग व किसी तरह की कोई शिकायत नहीं की.
परिवारके सुख को ही अपना सुख माना .इसी कारण दिवाकर जी का मन कभी कभी-अपराध बोध
से भर उठता कि ३० साल के बैवाहिक जीवन में वे मानसी के मन की खुशी के लिए कुछ क्यों नहीं सोच
पाए.चलो देर आयत, दुरूस्त आयत वाली कहावत सोच कर खुद ही मुस्करा दिए.
कहते हैं कि इन्सान की किस्मत उसके जन्म के समय ही लिख दी जाती है। इन्सान सोचता कुछ और है ,होता कुछ और है .परंतु ऊपरवाले के इन्साफ को भी कैसे गलत ठहराया जा सकता ह ,मानसी एक दिन रात को सोई तो सुबह उनकेलाख झकझोरनेके बाद भी जब नहीं उठी तो अचानक लगे इस आघात से वे हतप्रभ रह गये थ.ेकिसी तरह हिम्मत बटोरकर बेटे नमन को फोन करके इस अप्रत्याशित घटनाकी सूचना दी..दोनों बेटा व बहू फ्लाइट लेकर पंहुच गए थे,. कुछेक दिन इस अप्रत्याशित घटना से उवरने में लगे,फिर आगे के बारे में उनके बहू बेटे ने
आपस में बिचार विमर्श किया,कि अव पापाजी को यहां अकेले छोड़ कर जाना ठीक नहीं रहेगा.
सारी जरूरी क्रिया कलापों से निपटने के बाद,नमन व नीरा दिवाकर जी के काफी ना-नुकर करने के बाद भी उनका अकेलापन दूर करने के लिए उन्हें अपने साथ मुंबई ले आए थे. दिवाकर जी अपने बच्चों के साथ मुंबई आजरूर गऐ थे परन्तु उनकामन यहां रम नहीं पा रहा था.अकेले पन से पीछा यहां भी नहीं छूटा था.वहां बरेली में तो फिर भी उनके कुछ पहचान वाले व यार दोस्त थे.यहां तो उनकी किसी से जान-पहचान भी नहीं थी,और नमन व नीरा सुबह ८बजे घर से निकल कर रात ८बजे तक ही घर लौट पाते थे.
उन दोनों के ऑफिस जाने के बाद खाली घर उनको एकदम खाने को दौड़ता.कामवाली वाई आकर घर की साफ सफाई कर जाती,साथ ही उनको खाना बनाकर खिला देती.
एकाएक गला सूखने का एहसास होते ही उन्होंने पानी पीने के लिए पलंग के पास रखी साइड टेबिल की ओर हाथ बढ़ाया,टेबिल पर रखा जग खाली था,शायद नीरा जग में पानी भरना भूल गई होगी,सोच कर दबे पांव उठे रसोई में जाकर फिल्टर से पानी भरा और अपने कमरे में आकर पलंग पर बैठ कर पानी पिया.
नींद तो आ नहीं रही थी सो अब उनको चाय की तलव लगने लगी थी,बैसे चाय बनानी तो उनको आती थी‘
लेकिन रसोई घर में होती खटर पटर से कहीं नमन व नीरा की नींद न टूट जाय,इसी उहापोह में उलझे कुछ देर पलंग पर ही बैठे रहे.
सिर में कुछ भारीपन सा महसूस होने पर सोचा कुछ देर खुली हवा में ही घूम आएं.बैसे भी इन १०-१५
दिनों में वे केवल २ बार ही घर से निकले थे.एक बार बहू नीरा उनको कपड़े दिलाने मार्केट ले गई थी.
दूसरी बार बेटा नमन घर के पास बनी लाइब्रेरी दिखा लाया था,ताकि मन न लगने पर वे लाइब्रेरी में आकर मनपसंद क़िताबें पढ कर अपना मन बहला सकें.लाइब्रेरी के पास ही एक पार्क भी था नमन ने पापाजी को पार्क का भी एक चक्कर लगवा दिया था,जबकि नमन जानता था कि उनको घूमने का कोई खास शौक नहीं है.
सोचा कि चलो पार्क में जाकर कुछ देर ठंडी हवा का आनंद लिया जाय,यह सोच कर पार्क की तरफ
कदम बढ़ा दिये.घर से बाहर निकलने पर पाया, धुंधल का कुछ कुछ छंटने लगा था,सूरज आसमान में अपनी लालिमा बिखेरने की तैयारी में जुटा था.पार्क में इक्का दुक्का लोग घूम रहे थे कुछेक जॉगिंग
भी कर रहे थे.
एक खाली बैंच देख कर दिबाकर जी उस पर जाकर बैठ गये,एक तो रात भर की उचटती नींद दूसरे
पार्क में वहती ठंडी वयार ने जल्दी ही उन्हें अपनी गिरफ्त में ले लिया,अभी उनको सोते हुए कुछ ही समय
हुआ होगा कि उनको महसूस हुआ जैसे उनको कोई झकझोर रहा है.आंखें खोली तो पाया कि एक महिला जिसकी उम्र लगभग ५०- ५५के आसपास की होगी उनके ऊपर झुकी हुई थी.दिबाकर जी उसे देख कर एकदम सकपका से गए और एकदम सीधे खड़े हो गए,अरे, ये कैसा मजाक है?
उनके आंखें खोलते ही वह महिला भी हड़बड़ा गई और पीछे हट गई,,आप ठीक तो हैं न,मैने समझा आप लम्बी यात्रा पर निकल गए,कहकर खिलखिलाकर कर हंसने लगी.अब जब आप ठीक हैं तो प्लीज़ मेरा यह बैग
देखते रहियेगा,कह कर दिबाकर जी की सहमति व असहमति जाने बिना दौड़ गई.
दिबाकर जी सोचने लगे,बडी अजीब महिला है,‘‘जान न पहचान बड़े मियां सलाम‘‘ और उनको यों सोते देख कर इतना खिलखिलाकर हंसने की क्या बात थी.
तकरीबन १५ -२०मिनट के बाद वही महिला अपने रूमाल से पसीना पौछती हुई आई और दिबाकर जी के
बगल में आकर बैठ गईं.उनसेअपना बैग लिया उसमें से फ्लासक निकाला और एक कप में चाय उड़ेल कर दिबाकर जी की ओर बढ़ा दिया,साथ ही पूछा बैसे चाय तो पीते हैं न आप? चाय की तलब तो उनको कब से हो रही थी, सो सारा संकोच एक तरफ रख कर चाय का कप ले लिया,और चाय पीने लगे,साथ हीकनखियों से उस महिला की ओर भी देखते जा रहे थे.
फलासक के ढक्कन में चाय डाल कर वह खुद भी वहीं बैठ कर चाय पीने लगी
दिबाकर जी ने उस महिला की तरफ उचटती सी नजर डाली, देखा,वह ट्रैक सूट पहने हुए थी,कसी हुई काठी और खिलता हुआ गेहुंआ रंग, साथ ही चमकीली आंखें,एकदम चुस्त दुरूस्त लग रही थी.इससे पहले उन्होंने किसी महिला को बरेली में ऐसी ड्रेस पहने नहीं देखा था,उनकी पत्नी मानसी को सदैव साड़ी पहने ही देखा था.
चाय पीते-पीते वह बोलीं‘‘मेरा नाम वसुधा है, यहीं पास की उमंग सुसाइटी में रहती हूं,पास के ही एक स्कूल में पढ़ाती हूं,हर रोज इस पार्क में सैर करना मेरा नियम है, पार्क के ३-४ चक्कर लगाती हूं फिर बैठ कर चाय पीती हूं और घर चली जाती हूं.
मानसी के अलावा दिवाकर जी ने कभी किसी महिला से बातचीत नहीं की थी, सो पहले बसुधा से भी
बात करने में उन्हें संकोच साथ अनुभव हो रहा था.
लगता है आप यहां नये आए हैं ,वर्ना मैने आजतक पार्क में किसी को इस तरह सोते नहीं देखा.
दिवाकर जी यह सुन कर कुछ झेंप से गये वो क्या है कि घुटनों के दर्द के कारण अधिक घूम नहीं पाता,उन्होंने जैसे बैंच पर बैठ कर सोने के लिएं सफ़ाई सी दी.
किसी अपरिचित महिला से बातचीत का यह उनका पहला मौका था,मानसी के अलावा किसी और महिला से बातचीत उन्होंने कभी न की थी ,और तो और बहू नीरा से भी वे अभी तक कहां खुल पाए थे,किन्तु बसुधा की जिंदादिली व साफगोई ने उनको अधिक देर तक अजनवी नहीं रहने दिया.
अब जब मैं आपका नाम जान ही चुकी हूं,तोआपको आपके नाम से ही पुकारूगी,वो क्या है कि
भाईसाहब का सम्बोधन मुझे बहुतऔपचारिक सा लगता है,कह कर एक बार फिर से खिलखिलाकर कर हंस पड़ी,इस बार उनको बसुधा की खनकती हंसी बहुत प्यारी लगी, प्रतिउत्तर मेंवे भी हल्का सा मुस्करा दिये. फिर मन ही मन सोचा पत्नी मानसी के जाने के बाद शायद
आज ही मुसकराए हैं,यह कमाल शायद बसुधा थे बिंदास स्वभाव का ही था.
दिवाकर जी आश्चर्यचकित से बसुधा की तरफ देख रहे थे,मन ही मन सोच रहे थे कि कितनी जिंदादिल है यह ,वे भी अब बसुधा से कुछ कुछ खुलने लगे थे।
‘‘अ च्छा, आपके घर में कौन कौन है,‘‘ उन्होंने बसुधा से पूछा
कोई नहीं,मै अकेली हूं,पति का निधन हुए ८ साल हो चुके हैं,फिर आप इतनी खुश व जिंदादिल कैसे हैं?
अरे!मै खुद हूं न अपने लिए,मैं सिर्फ जीना ही नहीं चाहती, जिन्दा रहना चाहती हूं‘जिन्दगी हर समय पुरानी
यादों के वारे में सोच कर मन को मलिन करने का नाम नहीं है,जीना है तो ज़िंदगी में आगे बढ़ना ही पड़ता है.वर्तमान में जीना ही जीवन का असली आनंद है।वैसे भी जिन्दगी लम्बी नहीं , बड़ी होनी चाहिए,कितना जिए इससे महत्वपूर्ण यह है कि किस तरह जिए.
खुश रहने के लिए मैने ढेर सारे शौक पाल रखे हैं ।कभी मार्केट जाकर ढेर सारी ऊन खरीद कर ले आती हूं,उससे स्वेटर,मोजे, टोपे बना बना कर घर के सामने बनी झुग्गियों में बांट देती हूं इससे उन लोगों की आंखों में खुशी की जो चमक आती हैं , मेरा मन भी खुश हो जाता हैव्यस्त रहने से समय अच्छी तरह बीत जाता है और मन भी खुश रहता है.
अच्छा अब आप अपने बारे में कुछ बताइए,बसुधा ने कहा।
हां मैं यहां पास ही की सनशाइन सुसाइटी के फ्लैट नंवर ७०३मेंअपने बहू बेटे के साथ रहता हूं,पत्नी मानसी भी मेरा साथ छोड़ कर लम्बी यात्रा पर चली गई हैं.
बहू, बेटे एक मल्टीनेशनल कम्पनी में कार्यरत हैं,सुबह८ बजे घर से निकलते है,फिर रात ८ बजे तक ही लौट पाते हैं,मेड आकर घर की साफ-सफाई करती है,मुझे खाना खिलाकर चली जाती है,टी वी देखना मुझे
अधिक पसंद नहीं हैं, ख़ाली घर सारा दिन काटने को दौड़ता है.
मेरा कहा मानिए हर रोज सुबह सैर करने की आदत बना लीजिए,सैर करने से तन स्वस्थ व मन प्रफुल्लित
रहता है,और रोज यहां आने से आपके कुछेक मित्र भी बन जांयगे फिर टाइम का पता ही नहीं चलेगा.यह कह कर बसुधाअपने घर की ओर निकल गई. बसुधा के जानें के बाद दिबाकर जी काफी देर तक उसकी कही बातों को मन ही मन दोहराते रहे,बैसे कह तो ठीक ही रही थी,बीती यादों के सहारे जिंदगी नहीं काटी जा सकती. बसुधा पार्क से चली जरूर गई थी लेकिन दिबाकर के दिल दिमाग पर अपने बिचारो की गहरी छाप छोड़ गई थी.
घर पहुंचने पर दरवाजे की घंटी बजायी ,सकुचाती हुई बहू नीरा ने दरवाजा खोल दिया,
‘‘इतनी सुबह-सुबह आप कहां चले गये थे, पापाजी ‘‘,नीरा ने पूछा
पास के पार्क में चक्कर लगाने चला गया था,
अच्छा,अब आप फ्रैश हो लीजिये,तब तक मै चाय बनाती हूं,
अरे नही बहू तुम अपने आफिस जाने की तैयारी करो ,आज चाय मैं बनाता हूं
नीरा ने आश्चर्यचकित होकर उनकी तरफ देखा क्योंकि पिछले द१०-१५ दिनों से जब से यहां आये हैं ,उनके मुह से सिर्फ हां या हूं शब्द ही सुने थे,और आज वे उन दोनों के लिए चाय बनाने की कह रहे थे कुछ बात तो जरूर है,वरना एकदम चुपचाप रहने वाले पापाजी आज उन दोनों के लिए चाय बनाने की जिद ठान कर बैठे हैं. शायद पार्क में कोई हमजोली मिल गया हो?चाय पीकर बहू बेटे दोनों अपने ऑफिस के लिए निकल गया ,हां जाते जाते इतनी अच्छी चाय बनाकर पिलाने के लिए उनका धन्यवाद करना नहीं भूले,दिबाकर जी का मन आज बहुत खुश था.
लेकिन आज उनको घर काटने को नहीं दौड़ रहा था,अपना बिस्तर ठीक किया,तब तक मेड आचुकी थीअच्छी तरह घर की साफ-सफाई करवाई,अपनी पसंद का खाना बनवाया,खाकर थोड़ी देर आराम किया,फिर अपना चश्मा ठीक करबाने मार्केट निकल गये.
मार्केट में घूमते-घूमते याद आया कि कितने दिनों से उन्होंने हेयर कटिंग भी नहीं करबाई है,हेयर कटिंग करबा कर लौटे तो उनके चेहरे पर हल्की सी मुस्कुराहट थी,उन्हें याद आया कि मानसी को उनक बडे
बालों से कितनी चिड थी,घर लौटते समय उनका मन खुश था, यह सोच कर मन ही मन मुस्कुरा दिए और सोचा वे अब से सिर्फ जीऐंगे ही नहीं जिन्दा रहेंगे ,मानसी के जाने के बाद आज कितने दिनों बाद वे मुस्कुराए थे.
अब हर रोज सुबह पार्क जाने का नियम बना लिया, पार्क में बसुधा से रोज मुलाकात होती,परंतु अब पार्क में जाकर बैंच पर बैठने की बजाय वे धीरे-धीरे पार्क के २-३ चक्कर लगाने लगे,फिर बैंच पर बैठ कर बसुधा का इंतजार करते,बसुधा दौड़ लगा कर आती, फ्लासक लेकर कप में चाय उड़ेल कर उनकी ओर बढ़ा देती।चाय पीते-पीते वे दोनों थोड़ी देर गपशप करते फिर अपने अपने घर की तरफ निकल लेते.
दिबाकर ने महसूस किया कि उन्हें बसुधा के साथ की आदत पड़ती जारही है,बसुधा को भी उनके साथ समय बिताना अच्छा लगता,पिछले कई महीनों से यही सिलसिला चल रहा था.
एक दिन दिवाकर सोकर उठे तो सिर में भारीपन सा महसूस हुआ,चैक किया तो पता चला कि उनको तेज बुखार है,ऐसे में पार्क जाने का तो सवाल ही नहीं उठता था,ऑफिस जाने से पहले नमन ने डॉक्टर को दिखा कर दबा दिलवा दी थी,उन दोनों के ऑफिस में ऑडिट चल रहा थाअत:छुट्टी लेना मुमकिन नहीं था.
पूरे २ दिन हो गए थे उनको बिस्तर पर पड़े हुए,बुखार तो उतर गया था लेकिन कमजोरी अभी बाकी थी.
तीसरे दिन दोपहर को दरबाजे की घंटी बजी ,इस समय कौन होगा सोचते हुए उठे और दरबाजा खोला,सामने बसुधा खड़ी थी,बसुधा को यों अचानक अपने घर देख कर वे हैरान रह गये,फिर ध्यान आया कि परिचय देते समय खुद उन्होंने ही तो अपना फ्लैट नंबर बसुधा को बताया था.
मुझे लग ही रहा था कि तुम्हारी तबियत खराब होगी,बसुधा आते ही बोली‘‘
डॉक्टर को दिखाया ,नही दिखाया होगा,आदतन खुद ही प्रश्न कर खुद ही जबाव भी दे दिया ,पूरे दिन वह दिबाकर के साथ ही रही.इस बीच दिबाकर ने कई बार बसुधा से उसके घर जाने को कहा ,लेकिन मन ही मन बसुधा का उनकी इस तरह चिंता करना बहुत अच्छा लगरहा था.
२-३दिन आराम करने के बाद दिबाकर ने ठीक महसूस होने पर पार्क जाना शुरू कर दिया, उन्हें देखकर बसुधा के चेहरे पर उजली सी मुस्कान खिल गई.
धीरे-धीरे बसुधा व दिबाकर की पार्क में समय बिताने की अवधि वढती गई,सैर करते फिर बैंच पर बैठ करकई बार चाय पीते-पीते एक दूसरे के जीवनजीने के नजरिए के बारे में अपनी अपनी-राय एक दूसरे के सामने रखते,जबसे वे
बसुधा से जुडे थे उनके स्वभाव में काफी परिवर्तन आगया था,अब उन्हें बसुधा की बातें अच्छी लगने लगी थीं.
एक दिन दिबाकर जी जैसे ही पार्क से घर लौटे, बेटे नमन ने टोका,‘‘पापा आजकल आप पार्क में कुछ
ज्यादा समय नहीं बिताने लगे हैं‘‘जहां तक मुझे मालूम है,आपको घूमने का इतना अधिक शौक तो है नहीं,
हां तो, पार्क में ठंडी हवा चलरही होती है,लोग घूम रहे होते हैं,फिर मैं पेपर भी वहीं बैठ कर पढ़ लेता हूं, दिबाकर जीने जबाव दिया
नहीं,पापा वह बात नहीं है मेरा दोस्त बता रहा था कि आजकल आप किसी औरत के साथ…..आगे की बात नमन ने बिना कहे ही छोड़ दी.
दिबाकर ने आग्नेय नेत्रों से नमन की ओर देखा,फिर लगभग चिल्लाते हुए बोले, तुम्हें अपने दोस्त के कहे पर
विश्वास है पर अपने पापा पर नहींअब इस उम्र में क्या यही सब करने को रह गया है,कह कर तेजी से अपने कमरे की तरफ जाकर दरबाजा बन्द कर लिया.
मन बहुत खिन्न था,पूरे दिन मन में विचारों का घमासान चलता रहा,
क्या वे व बसुधा सिर्फ अच्छे दोस्त हैं? क्या उनको बसुधा के साथ जीवन की नई शुरूआत करनी चाहिए,परंतु बसुधा के मन में क्या है,कैसे पता करेंआदि,आदि.
दूसरे दिन पार्क पहुंचे तो चेहरे पर परेशानी साफ नजर आ रही थी,क्या बात है,कुछ परेशान लग रहें हो,बसुधा ने पूछा
कल मेरा बेटा हमारे, तुम्हारे रिश्ते पर सबाल उठा रहा था,तो तुमने क्या कहा, मुझे क्या कहना चाहिए था,दिबाकर ने बसुधाकी तरफ प्रश्न उछाल दिया.
मुझे नहीं पता,आज मुझे घर पर कुछ काम है सो जल्दी जाना है कह कर बसुधा अपने घर जल्दी ही चली गई.दिबाकर जी ने सोचा कहीं इस तरह का प्रश्न पूछ कर उन्होंने कोई गलती तो नहीं करदी वर्ना रोज तो घंटों बैठ कर दुनिया जहान की बातें करती थी,पता नही वह उनके बारे में न जाने क्या सोच रही होगी. कहीं बसुधा ने उनसे बातचीत करना बंद कर दिया तो?
वे घर तोआगएथे ,लेकिन मन उठ रहे बिचारों थी उठक पटक से बहुत परेशान थे.
समझ नहीं पा रहे थे कि किसी औरत से मिलने पर नमन को इतना एतराज़ क्यों है? क्या एक स्त्री, पुरूष।
सिर्फ अच्छे दोस्त नहीं हो सकते.?
परंतु अगले ही पल विचार आया कि इसमें उनके बेटे का भी क्या दोष है,इस तथाकथित समाज में इस तरह के रिश्तों को सदैव शक की निगाह से ही देखा जाता है तो क्या उन्हें अपने व बसुधा के रिश्ते को कोई नाम देकर इस उलझन को दूर कर देना चाहिए.
कुछ निर्णय नहीं ले पा रहे थे मन में उहापोह की स्थिति निरंतर बढ़ती जारही थी, क्योंकि वे बसुधा जैसी जिंदादिल व वेवाक बात करने वाली दोस्त को खोना नहीं चाहते थे.
एक दिन ऑफिस से आकर नमन ने कहा,‘‘ पापा आपसे कुछ बात करनी थी.
हां हां कहो क्या बात है
पापा मेरा प्रमोशन हो गया है,
अरे!यह तो बड़ी खुशी की बात है परंतु यह सव बताते हुए तुम इतना सकुचा क्यों रहे हो,
पापा असल में बात यह है कि मेरी कम्पनी किसी प्रोजेक्ट के सिलसिले में३-४ साल के लिए मुझे विदेश भेज रही है और नीरा भी मेरे साथ जारही है ऐसे में आपका यहां अकेले रहना व इतने बड़े फ्लैट का किराया देना मुश्किल हो जायगा,तो आपका बरेली बापिस जाना ही ठीक रहेगा।
तुम अपनी लाइफ का फैसला करो मेरा मैं खुद देख लूंगा, दिवाकर जी ने भी तुनक कर कहा,
दूसरे दिन पार्क जाते समय मन-ही-मन एक फैसला कर लिया,आज बसुधा से वे क्लीयर बात कर ही लेंगे कि बह उनके बारे में क्या
सोचती है, आखिर मालूम तो करना ही पड़ेगा कि उसके मन में क्या चल रहा है.
जैसे ही बसुधा पार्क के चक्कर लगा कर उनके बगल में आकर बैठी, विना किसी लाग लपेट के बसुधा की
तरफ देख कर कहा,‘‘बसुधा शादी करोगी मुझसे?
शादी और तुमसे वह भी इस उम्र में,,‘‘बसुधा ने चौंकते हुए उनकी तरफ देखा
उम्र की बात छोड़ो तुम तो सिर्फ यह बताओ कि शादी करोगी या नही मुझसे,बसुधा कोई जबाव न देकर बस चुपचाप बैठ कर उनको देखती रही.
इसके बाद उन दोनों के बीच चुप्पी छा गई।पूरे ४-५ दिन हो रहे थे,वे दोनों पार्क आते,बसुधा पार्क के चक्कर लगा कर उनके पास बैठती, चाय पिलाती लेकिन पहले की तरह गपशप व बातचीत का आदान-प्रदान बन्द था, क्योंकि दोनों के मन में ही विचारों की जंग छिड़ी हुई थी.
एक दिन दिबाकर पार्क पहुंचे,२-३ चक्कर लगा कर बैंच पर आ बैठे, उनकी द्रष्टि बार बार पार्क के गेट की तरफ जाती क्योंकि बसुधा आज अभी तक पार्क में नहीं आई थी,उनको बसुधा थी कमी बेतरह खल रही थी,कयोंकि आज उनका वर्थ डे था और इसखुशी कोवे बसुधाके साथ बांटना चाहते थे,बहू बेटे को तो शायद याद भी नहीं थाकि आज उनका वर्थ डे है, पत्नी मानसी उनके इस दिन को बहुत खास बना देती थी,उनकी पसंद का खाना बना कर और भी नजाने बहुत-सी ऐसी गतिबिधियां करके वह उनको खुश खबर देती.तभी उनकी नजर पार्क के गेट की तरफ पड़ी,देखा सामने से बसुधा चली आ रही थी,उसके हाथ में आज एक गिफ्ट पैकिंग था.
रोज की तरह बसुधा ने अपना बैग व गिफ्ट पैकिट उनको थमाया और बिना कुछ बोले सैर करने निकल गई,
लौट कर आई उनके बगल में बैठते हुए बोली,‘‘हैपी वर्थ डे टूयू,‘‘हां यह गिफ्ट पैकिट तुम्हारे लिए ही है.
तो तुम्हें याद था कि आज मेरा बर्थ डे है,.
लो,उस दिन तुमने ही तो बताया था कि मानसी मेरा जन्मदिन बहुत धूमधाम से मनाती थी,गिफ्ट देखकर उनके चेहरे पर खुशी की चमक आगई.
दिबाकर ने गिफ्ट को खोलने की बहुत कोशिश की परंतु गिफ्ट पैकिंग पर लगा टेप खोल ही नही पा रहे थे.
बसुधा ने उनके हाथ से पैकिट लिया और मुस्कुराते हुए बोली, एक गिफ्ट पैक तो खुलता नहीं ,और ख्वाब देख रहे हैं शादी करने के.
इसमें तुम्हारे लिए शर्ट पैंट है, और सैर करने केलिए ट्रैक सूट ,कुर्ता पजामा पहनने वाले आदमी मुझे कतई पसंद नहीं,और पार्क में आकर बैंच पर बैठ कर सोने वाले तो विलकुल नहीं मुझे स्मार्ट पति पसंद है,कह कर आदतन खिलखिलाकर हस दी.
सो यह ट्रैक सूट पहनकर पार्क के३-४ चक्कर लगाने पड़ेंगे हर रोज ,घूमने का शौक तो है नहीं ,और मन में लड्डू फूट रहे हैं शादी करने के ,बसुधा ने मुस्कुराते हुए कहा,
बसुधा उनके बगल में आकर बैठ गई,दिबाकर ने भी कुछ नहीं कहा कुछ देर दोनों के बीच चुप्पी छायी रही,लेकिन कनखियों से दोनों एक दूसरे को देख रहे थे,एकाएक दोनों की नज़रें मिलीं तो दोनों ठहाका मारकर हंस दिये ,इस हंसी ने सारे सवालों का जबाव दे दिया था , वे दोनों ही जिन्दगी की एक नई शुरूआत करने को मन ही मन तैयार थे .
स्वरचित व मौलिक
माधुरी गुप्ता