महक..! मोना का आठवां महीना शुरू हो गया है, तो उसने मुझे बुलाया है… सोच रही हूं उसकी डिलीवरी तक उसके पास ही रहूं… उसकी सास का तो तुम्हें पता ही है.. कोई भी दायित्व लेना नहीं चाहती और डॉक्टर ने मोना को अभी ट्रैवल करने से मना किया है… इसलिए यहां भी वह आ नहीं सकती, तो मुझे ही जाना पड़ेगा.. कमला जी ने अपनी बहू महक से कहा
महक: ठीक है मम्मी जी… आप जाइए… दीदी को अभी सबसे ज्यादा आपकी जरूरत है… मैं यहां सब कुछ संभाल लूंगी… उसके बाद कमला जी जाने के दिन निर्धारित कर अपने बेटे स्वयं से टिकट बनवाने को कहती हैं… कमला जी जाने की तैयारी कर रही थी… जाने के ठीक 2 दिन पहले महक के साथ एक दुर्घटना हो जाती है…
वह बाथरूम में फिसल कर गिर जाती है, जिससे उसका एक हाथ और एक पैर फ्रैक्चर हो जाता है… वह अस्पताल से व्हीलचेयर में बैठकर घर आती है और स्वयं उसे घर लाते ही कहता है… मम्मी सबसे पहले आपकी टिकट कैंसिल करवानी होगी… अब तो महक ना जाने कितने दिनों बाद ठीक होगी… अभी आपका यहां होना ज्यादा जरूरी है…
कमला जी सबके सामने तो कुछ नहीं कहती, पर उन्हें मन ही मन बड़ा गुस्सा आया… लेकिन ऐसे मौके पर वह कर भी क्या सकती थी..? वह बड़े बेमन से अपनी बेटी मोना को फोन करती है और कहती है… कि मैं नहीं आ सकती क्योंकि महक ने अपनी टांगे तुड़वा ली है…
मोना: क्या..? यह सब कैसे हुआ मम्मी..? महक कैसी है..? उसे ज्यादा चोट तो नहीं आई ना..? हां हां आप वहीं रहो… मैं यहां सब कुछ संभाल लूंगी…
कमला जी सब की बातें सुनकर यह सोच रही थी कि सभी को बस महक की ही परवाह है… मैं क्या चाहती हूं..? क्या सोचती हूं..? इससे किसी को कोई मतलब नहीं… पता नहीं क्या जादू कर रखा है इस महक ने सब पर… जो बस सब इसी के बारे में सोच रहे हैं… किसी तरह मन को बहलाकर कमला जी अचानक से अपने ऊपर आए दायित्व को लेकर घर को संभालने लगी..
एक रोज वह महक के लिए नाश्ता लेकर गई और नाश्ता देते हुए उससे कहा.. लो खा लो… कहां तो इस उम्र में बहू से सेवा लूंगी कहां तो मुझे ही बहू की सेवा करनी पड़ रही है.. मेरे तो नसीब ही फूटे हैं… महक बेचारी क्या ही बोलती? बेचारी लाचार सिर्फ कमल जी के ताने सुनती… एक दिन कमला जी महक से कहती है… सुनो महक, 4 बजे पड़ोस में कथा है… मैं वहां जाऊंगी.. एक घंटे में वापस आ जाऊंगी
स्वयं उस वक्त वहीं बैठे ऑफिस जाने की तैयारी कर रहा था… वह अपनी मम्मी के इस बात को सुनकर कहता है.. पर मम्मी मैं तो ऑफिस में रहूंगा और इस बीच अगर महक को कोई जरूरत महसूस हुई तो..?
कमला जी: तो तू क्या चाहता है बेटा..? मैं पूरी दुनियादारी छोड़ बस तेरी बीवी की सेवा करूं..? हर जगह तो जाना छोड़ ही दिया है इसके चलते, अब पूजा पाठ तो कर लेने दे इस उम्र में..
स्वयं: यह क्या कह रही हो मम्मी..? आपसे महक की हालत तो छुपी नहीं है.. वह जानबूझकर तो आपके काम नहीं करवा रही ना..? स्वयं के इस बात से कमला जी वहां से उठकर चली जाती है… दिन बीतते गए और महक ठीक हो गई और वापस घर के कामों में लग गई… एक रोज़ मोना सुबह-सुबह अपने छोटी सी बच्ची को लेकर अपने मायके पहुंचती है… उसे यूं अचानक देखकर कमला जी चौक कर कहती है .. अरे बेटा तुम.? वह भी अचानक..? सब ठीक तो है ना..?
मोना: हां मम्मी सब ठीक है… वह मेरे बैंक की परीक्षा का डेट आ गया है और मुझे भोपाल जाना है.. परीक्षा के लिए.. तो भाभी ने कहा कि गुड़िया को यहां रखकर मैं चली जाऊं… इसलिए यूं अचानक आना पड़ा…
कमला जी: हां हां तू जा.. गुड़िया अपनी नानी के साथ रहेगी… तू निश्चिंत होकर परीक्षा दे…
मोना: मम्मी आप भी चल रही है मेरे साथ.. मैं अकेले नहीं जा पाऊंगी… आप चलेंगी तो मुझे साहस मिलेगी.. एक तो नया शहर ऊपर से मैं अकेली.. कैसे जाऊंगी…?
कमला जी: अगर मैं भी चलूंगी फिर गुड़िया की देखभाल कौन करेगा..?
महक: क्यों उसकी मामी भी तो रहती है ना यहां..?
कमला जी: पर तुम अकेले घर के काम और गुड़िया को कैसे संभालोगी..? बच्चा संभालना इतना भी आसान नहीं
महक: मम्मी जी काम कभी खत्म नहीं होंगे.. पर दीदी का यह मौका बार-बार नहीं आएगा और इस मौके पर हम ही उसके साथ होंगे ना..? और वैसे भी एक दिन की ही तो बात है…
फिर मोना और कमला जी चले जाते हैं…
कमला जी: हम चले तो आए मोना… पर मेरा मन घर पर ही लगा हुआ है… इस महक का क्या भरोसा..? अपना ख्याल तो रख नहीं पाती, गिर पड़कर हाथ पैर तुड़वा लेती है… पता नहीं इतनी नन्ही की बच्ची को कैसे संभालेगी..? हमें गुड़िया का दायित्व उस पर छोड़कर नहीं आना चाहिए था…
मोना: मम्मी यह कैसी बातें कर रही हो आप..? कोई जानबूझकर गिरकर अपने हाथ पैर नहीं तुड़वाता और आपको पता है आपको मेरे साथ भेजने का प्लान भी महक का ही था… जब मैंने महक को अपने परीक्षा की बात बताई तो उसने झट से कहा.. दीदी गुड़िया को मैं संभाल लूंगी… आप ना मम्मी को भी अपने साथ ले जाना… आपकी परीक्षा के बाद इन्हें थोड़ा घूमा फिरा देना.. बेचारी मेरी वजह से कब से न जाने घर में कैद हैं..? सच में उन्होंने मेरी इतनी सेवा की मैं तो खुद को बहुत कुछ किस्मत मानती हूं… जो मुझे ऐसी सास मिली… सच में मम्मी… खुश नसीब तो हम हैं जो हमें ऐसी लड़की हमारे घर के लिए मिली…
मोना जब यह सब कह रही थी कमला जी अपनी नजरे नीचे कर आंखों में आंसू लिए बैठी थी..
मोना: क्या हुआ मम्मी..?
कमला जी: बेटा जब महक का एक्सीडेंट हुआ था.. एक दिन भी बिना ताने के उसको मैंने खाना नहीं दिया.. मुझे लगता था कि जब बहू सास की सेवा करें तो यह उसका दायित्व होता है, जो सास बहू की सेवा करें तो यह सास का एहसान होता है ..जब हम अपनी बेटी के दायित्व इतने उत्सुकता के साथ ले लेते हैं… फिर उस बेटी की दायित्व लेने में क्यों हिचकिचाते हैं, जो हमारे लिए अपने परिवार को छोड़कर आई है..?
मोना: मम्मी मेरी सास की भी यही सोच है.. उनकी बेटी बीमार पड़े तो वह असली, पर मेरी बीमारी नकली… पता है मम्मी यह सिर्फ आपकी ही समस्या नहीं है… यह समस्या हम सभी की है.. हम अपनी बेटी के मोह को कभी छोड़ ही नहीं पाते और इसके चलते दूसरे की बेटी को अपने मोह के धागों में कभी लपेट नहीं पाते… जबकि उस धागे को ज्यादा सहेजना चाहिए, यह बेटी आपके दुख में पहले खड़ी होगी, क्योंकि अपनी बेटी को आने में तो वक्त लगेगा और कभी-कभी एक सेकंड की देरी भी बड़ी भयंकर हो जाती है..
कमला जी को अपनी गलती का एहसास होने लगता है और जब वह घर आती है… सबसे पहले महक को गले लगाकर कहती है.. महक… माफ कर दो मुझे.. जो तुम पर तानों की बौछार की… जब तुम्हें मेरी सबसे ज्यादा जरूरत थी बस एहसान ही जताया…
महक: हां तो यह हक बनता है आपका.. भला कौन सी सास अपनी बहू की सेवा करती है..?
कमला की महक को शर्मिंदा भरी नजरों से देखने लगी, तभी महक जोर से हंस पड़ती है और कमला जी को गले लगा कर कहती है… मम्मी जी, परेशान तो मैंने भी आपको खूब किया… वह मैंने भी अपनी हालत का थोड़ा फायदा उठाया, क्योंकि मेरे ठीक रहने पर आप अपने हाथों का बना खाना कभी नहीं खिलाती.. वैसे आपके हाथों का स्वाद को चखने के लिए मैं फिर से अपने टांगे तुड़वा सकती हूं..
कमला जी: टांगे टूटे तेरे दुश्मन के… तुझे अब मैं हमेशा ही अपने हाथों से बना कर खिलाऊंगी… इसके लिए अपनी टांगें तुड़वाने की कोई जरूरत नहीं… फिर वहां मौजूद तीनों हंसने लगती है…
धन्यवाद
#दायित्व
रोनिता कुंडु