विद्यालय में सोशल साइंस पढ़ाने का लगभग बीस वर्षों का अनुभव था,शुभा को।बोरिंग समझा जाने वाला विषय ‘,इतिहास’ भी बच्चे बड़े चाव से पढ़ते थे।भूगोल में एक चैप्टर है”पापुलेशन”।इस चैप्टर में मनुष्य की आयु को विभिन्न श्रेणियों में बांटकर विशेषता बताई गई है।
नौंवी कक्षा में भूगोल के पापुलेशन चैप्टर में आने पर ,जब वयस्क और किशोर अवस्था में अंतर पढ़ाती,बच्चों की आंखों में रंगीन बल्ब जलते दिखते थे शुभा को।इस किशोर अवस्था में मनोदशा का विचलित होना सामान्य माना जाता है।बहुत सारे उथल -पुथल चलते रहतें हैं हॉर्मोंस में।विपरीत लिंग के प्रति एक स्वाभाविक आकर्षण होता है।शुभा विषय की जटिलता को सुलझाकर , व्यवहारिक उदाहरण देकर समझाती ,तो बच्चे मंत्रमुग्ध होकर सुनते।पढ़ाने की शैली में कोर्स से ज्यादा मानवीय मूल्यों को समझाना एक शिक्षक का दायित्व होता है।इस किशोर अवस्था में ही बच्चों के कोमल मन में हजारों सवाल उठते हैं,जिनके जवाब देने वाला कोई उपलब्ध नहीं होता।
तनिष्का शुभा की क्लास की ऐसी ही एक अल्हड़,मुंहफट और हंसमुख लड़की थी। संयुक्त परिवार में पली-बढ़ी तनिष्का के लिए पढ़ाई का मूल उद्देश्य बस पास होना था।मेंहदी लगाने में माहिर थी वह।एक बार प्रतियोगिता में सभी ने अपनी सहेलियों को ढूंढ़कर रख लिया था ,पहले ही मेंहदी लगाने के लिए।तनिष्का अनुपस्थित थी पिछले दिन,तो उसे कोई मिल नहीं रहा था।बिना संकोच के दौड़ती हुई आई और बोली”मिस आपको लगा दूं क्या?”उसके इस सवाल से बाकी बच्चे सकते में आ गए।शुभा मिस को मेंहदी लगाना मतलब बिल्ली के गले में घंटी बांधना।शुभा ने जब उसकी तरफ देखा ,तो उसकी हालत खराब हो गई।उसे अपनी ग़लती का अहसास हुआ।पलटकर जाने ही वाली थी तो शुभा ने कहा”रुको,जब पूछ ही लिया है,तो लगा लो।पूरे हांथ में भरकर नहीं लगाना।लो।”शुभा की रजामंदी जानकर वह मासूम बच्चे की तरह कूदने लगी थी।
कुछ महीने बाद हांथ टूटा था उसका,ठीक परीक्षा से पहले।शायद परीक्षा ना दे पाने के कारण सप्लीमेंट्री आ जाती।तब शुभा ने प्रिंसिपल से कहकर एक छोटी क्लास के बच्चे को राइटर बनवा कर दिया था।यह एक सामान्य प्रक्रिया थी,परीक्षा की।तनिष्का उस दिन से शुभा को बहुत प्यार करने लगी।दसवीं के बाद आर्ट्स लेने के कारण विद्यालय बदलना पड़ा।गले से लिपट कर खूब रोई थी,जाते समय।उस दिन उसने वादा किया था”मिस,मुझे पता है मैं बहुत होशियार नहीं हूं।मुझे कभी कोई दिक्कत होगी तो आपके पास आ जाऊंगी।मैं प्रॉमिस करती हूं,यूं पी एस सी निकालकर ही रहूंगी।”उसकी बातों में गंभीरता पहली बार दिखी शुभा को। बीच-बीच में फोन आता था। तबीयत के बारे में, विद्यालय के बारे में पूछती।
अब पास के एक आर्ट्स कॉलेज में पढ़ रही थी।यूं पी एस सी की ऑनलाइन पढ़ाई भी कर रही थी।एक दिन घर आने की बात पूछी उसने तो शुभा ने हां कहा।भरी बारिश में आई थी वह। लड्डू गोपाल के लिए लाल रंग का पोशाक बनाकर।आते ही बक बक शुरू की।शुभा ने कहा “बारिश बहुत है तनिष्का,तुम क्या बताने आई हो ,बताओ।”वह हड़बड़ा कर बोली”नहीं तो मिस,मुझे तो बस मिलना था आपसे।”
“हां -हां,मिलकर कुछ बताना भी होगा जरूर। तुम्हारी आवाज़ से ही पता चल रहा है।मन में बहुत सारे सवाल हैं।बेझिझक होकर पूछो।”शुभा के ढांढ़स बंधाते ही वह लपककर गले से लग गई।”मिस आपको कैसे पता चल गया कि मुझे कुछ बताना है ?”
शुभा ने प्यार से कहा”किशोर अवस्था अभी गई नहीं है तुम्हारी।ऊपर से दिन भर बक बक करती रहती हो।अंदर का दुख भी तो दिखता है मुझे।टीचर जो हूं।तुम बताकर मन हल्का कर लो।किसी लड़के का मसला है क्या?”
वह दंग खड़ी देख रही थी,”हां मिस,आपको पता चल गया।कैसे?आप सब जान लेतीं हैं?”शुभा ने कहा तुम्हारी टीचर हूं ना।
तनिष्का ने बड़े सधे शब्दों से बताना शुरू किया”,मिस एक लड़का है,जो मेरी पढ़ाई में मदद करता है।हमारी जाति का ही है।बड़ी मां के ससुराल पक्ष से है वह।मैं इतनी मुंहफट कि लड़के मुझसे बात करने से डरते हैं।उस लड़के में कोई खास बात है मिस।वह औरों से बिल्कुल अलग है।एम पी पी एस सी दिया है उसने।इस बार निकाल लेगा।मेरे डाउट्स क्लियर कर देता है।फोन में ही बात होती थी उससे।एक दिन मम्मी ने देख लिया।बस पीछे पड़ गई। बातचीत बंद करवा दी।मुझे दूसरे शहर भेज दिया पढ़ने।कसम ली है मुझसे कि कभी अब बात ना करूं।मिस मेरा मन उसी पर अटक गया है।क्या करूं?यह क्या विपरीत लिंग के प्रति सामान्य आकर्षण है या प्यार?बताइये ना आप।आपकी क्लास में आपके द्वारा बोला गया हर शब्द याद है मुझे।अभी व्यस्क नहीं हूं मैं।इस किशोर अवस्था के अहसास किससे कहूं।मम्मी क्यों नहीं भरोसा करती अपनी बेटी पर?मैं बहुत परेशान हूं।”
शुभा क्या जवाब दे इस कच्ची उम्र की किशोर लड़की को।इस उम्र में यह समस्या सभी के साथ तो होती है।परिवार भी सपोर्ट नहीं करता।समझाने की कोशिश भी नकारात्मक तरीके से करते हैं।इसी तरह एक दिन बच्चे विद्रोह कर देतें हैं।जिस चीज के लिए मना करो,वही करने की ठान लेतें हैं।यह बहुत संवेदनशील मामला है।एक बच्ची अपने गुरु के पास समस्या का समाधान मांगने आई है।ज़रा सी लापरवाही इसके कोमल मन को रौंद सकती है।यही सोचते हुए शुभा ने तनिष्का से पूछा”तुम्हारी प्राथमिकता अभी क्या है?पढ़ाई करना या प्रेम करना?पहले ठंडे दिमाग से सोचो।तुम्हारी मम्मी के सर पर तलवार लटक रही है।यह तलवार परिवार के तानों की है,उनकी परवरिश की है,एक अनजान भविष्य की है।मां को हमेशा अपनी बेटी के जवान होने पर डर सताता रहता है।कहीं कोई ऊंच-नीच हो गई तो,सारा दोष मां की परवरिश पर मढ़ दिया जाता है।वह खुद इस दौर से गुजर चुकी होती है।भरोसा करना तो चाहती है,पर बच्चों की स्वतंत्रता के ऐवज में उनका अपमान वह बर्दाश्त नहीं कर पातीं।कोई और उंगली उठाए उसकी संतान पर,इससे पहले वह खुद बुरी मां बनना स्वीकार कर लेती है।”
तनिष्का की आंखों से पश्चाताप के आंसू झरने लगे।उन आंसुओं में शुभा को उस लड़के के प्रति मोह की बूंदें भी दिख गई।उसे समझाते हुए लगा ही नहीं कि यह पराई है।ये बेटियां तो अलग-अलग मांओं की होतीं हैं,पर इनकी अनकही पीर एक जैसी ही होती है।
तनिष्का ने शुभा के चुप होते ही कहा”मिस उसने भी कहा है मुझसे,पढ़ाई पर फोकस करो।मेरा पी एस सी क्लियर होने दो।तुम्हें भी मेहनत करनी होगी।मैं अपने परिवार की तरफ से रिश्ता भिजवाऊंगा।शादी हम जरूर करेंगे,पर दोनों के कुछ बन जाने के बाद।मिस तब आप मेरे परिवार को मना लेंगी ना।आप यदि समझाएंगी ,तो वे मान जाएंगे।”
कितना भरोसा है इसे अपनी टीचर पर।कौन कहता है कि मैं दो बच्चों की ही मां हूं।मेरे तो बहुत सारे बच्चे हैं,जो मुझ पर इतना अधिकार रखते हैं।
शुभा की तबीयत के बारे में पूछते हुए आगे बोली वह”मिस आपको ठीक रहना ही पड़ेगा।मैं तो यू पी एस सी निकालकर ही रहूंगी।तब आपके साथ सैल्फी भी तो लेनी है।मैं अब उससे बात नहीं करती।भूल भी नहीं सकती।”
“ठीक है ,बेटा यह रिश्ता बहुत मजबूत होना चाहिए।कोई अच्छा लगे और वह अच्छा हो भी,ऐसा कम होता है।एक समय में एक ही वरदान पा सकती हो तुम।या तो शादी कर लो,या अपनी पढ़ाई पूरी करो।किसी और के लिए नहीं,बल्कि उस मां के लिए,जिसकी तमाम उम्र दांव पर लगी हुई है तुम पर।तुम्हारे द्वारा उठाया कोई भी ग़लत कदम जान ले सकता है उनकी।”
“हां समझ गई मैं मिस।मैं अपने व्यस्क होने का इंतजार करूंगी।”
जाते हुए उसके चेहरे पर संतोष दिखा ,तो शुभा की आंखें भी भर आईं।इन कच्ची उम्र की लड़कियों में बहुत बचपना होता है।प्रेम का बसंत इनके हृदय के चौखट पर आकर दस्तक देता रहता है।कब तक द्वार ना खोलें ये।इन्हें सही ग़लत का आभास करवाने के लिए गलत को सही तरीके से समझाना जरूरी है।अन्यथा मन के तरु में मुकुल आकर सूखकर ही झर जाएंगे।इस किशोर अवस्था में मन पर पड़ने वाला घाव फिर कभी सूखेगा नहीं,नासूर बनकर टीस देता रहेगा।
शुभ्रा बैनर्जी
दिल को छू गए कोमल एहसास
Absolutely