रिषा के बच्चो का नामकरण है। वह अपने दोनो बच्चों को लिये बैठी है। घर में काफी चहल पहल है। इतने में रिषा की मां आई और बोली रिषा ईष्वर की कृपा से तुमको दोगुनी खुषी मिली है। अपने एक बच्चे को अपनी बहन को दे दो, वह अकेली है उसको सहारा हो जायेगा। रिषा ने अपने दोनो बच्चों को भींच कर कहा अम्मा जो मेरे साथ हुआ मै इनके साथ नहीं होने दूगीं। मुझे पता है थोडी मुश्किल होगी पर दोनो को मै अपने साथ ही रखूगी।
बहन चाहे तो यहां रह सकती है। रिषा ने सिर उठा के देखा तो सामने बहन खडी थी। उसे लगा बहन को बुरा न लगा हो तो वह बहन से माफी मांगने लगी और बोली कि बहन मै नहीं चाहती कि मेरी बच्चे भी मेरी ही मनः स्थिति से गुजरें। क्योंकि बच्चा अपने मां बाप के पास रहता है तो अपने आप को ज्यादा सुरक्षित महसूस करता है। बहन ने रिषा को गले लगाते हुये कहा माफी की क्या जरूरत है तुम कहो या न कहो बच्चे मेरे पास नहीं भी रहेंगे तो मेरे बच्चे रहेंगें। कहते हुये दोनों बहने अपना पिछला वक्त सोचने लगी।
रिशा का अपने बहनों में चैथे नम्बर पर थी। गोल मटोल सुन्दर सी रिषा। रिषा की मां दो बहने और चार भाई थे। रिषा कि मां अपने भाई बहनेां में सबसे बडी थीं उनके बाद उनकी बहन और फिर भाई। रिषा के जन्म तक उसके ननिहाल में उसकी मां के भाई बहनों में उसकी मों के अलावा किसी और का ब्याह नहीं हुआ था। रिषा की मौासी का ब्याह नहीं करना चाहती थी इसलिये अपनी बहन से कहकर उन्होने रिषा को गोद ले लिया था।
रिषा की मौसी किसी भी प्रकार की नौकरी नहीं करती थी लेकिन घर में खेत खलिहान होने के कारण जरूरत के किसी सामान के लिये कमीं नही थी। बधी आय न होने के कारण रिषा की मौसी कभी नरम कभी गरम वाले हालात मै रिषा को पाल रहीं थी। इधर रिषा के मां बाप ने भी बेटी को देने के बाद उसके लिये ज्यादा सोच विचार करने की जरूरत नहीं समझी।
रिषा के स्कूल जाने की उम्र हो चली थी गांव में अच्छे स्कूल न होने के काण मौसी ने रिषा की पढाई के लिये रिषा को अपनी बहन के घर छोड दिया। लेकिन बेटी की जिम्मेदारी अभी भी अच्छे से निभा रहीं थी। लेकिन गांव के खुले बडे घर में पली बडी रिषा अपना तालमेल इस छोटे से घर में बैठा नहीं पा रही थी। जैसा हर बच्चे का अपने मां बाप से लगाव होता है वह लगाव रिषा कर उसकी मौसी के साथ था। वह वक्त से पहले ही समझदार बनती जां रही थी बचपन की चंचलता ने समय से पहले ही उसे समझदार बना दिया था। हर छुट्टी में उसे गांव जाना पसन्द था।
कुछ सालों में मामाओं की शादी हुई उनके अपने बच्चे हुये तो उन बच्चों का अपने मां बाप से लाड और मां बाप का बच्चों से लगाव रिषा को अपने अन्दर कमी का एहसास दिलाता था।
हालात ने उसे भले ही अन्र्तमुखी बना दिया था लेकिन अपनी मौसी के लिये उसने अच्छी पढाई की, अच्छी नौकरी की। लेकिन आज अपने बच्चों के लिये उसने सब कुछ छोड कर बच्चों के लिये एक फैसला लिया।
डा. इरफाना बेगम