मां जी अब आप ही समझाइए अपनी प्यारी पोत बहु को , शादी हुए पूरा महीना हो गया पर घर के तौर तरीके सीखी नही अभी तक। रोज़ रोज़ टोकना मुझे अच्छा नहीं लगता। कितनी बार कह चुकी हूं सुबह जल्दी उठा कर, साड़ी पहन लिया करो , अच्छे से तैयार होकर रहा करो , दादाजी, दादीजी को पसंद है पर सुनती नही…. सुलोचना अपनी सास दमयंती जी से बोली
अरे धैर्य रख बहु, थोड़ी सांस लेले…..
अभी नई नई आई है, सीख जायेगी धीरे धीरे। एक घर से दूसरे घर के तौर तरीके अपनाने में समय तो लगता है ना। और हम उससे कुछ ज्यादा ही अपेक्षाएं कर लेंगे तो वो हमे गलत समझने लगेगी और रिश्ते बनाने के बजाय बिगड़ने का डर हो जाएगा। पहले उसके मन में हमारे प्रति प्यार और विश्वास उत्पन्न होने दो , नया रिश्ता है उसको थोड़ा समय दो। उसको प्रेम और भावनाओं की आंच पर धीमे धीमे पकने दो
क्या मतलब मां जी धीरे धीरे पकने दो, कोई दाल थोड़े ना बनानी है जिसे पकाना पड़ेगा सुलोचना बड़े आश्चर्य से बोली
अरे रिश्ते भी तो परिवार रूपी रसोई का हिस्सा है
जैसे घर की रसोई में खाना तेज गैस पर बनाओ तो जल जाता है वैसे ही रिश्ते भी कोई एक दिन में नही बन जाते।
तुझे याद है जब तू नई नई आई थी तब तू भी मुझे खडूस सास समझती थी और मुझसे कम ही मतलब रखती थी पर धीरे धीरे जब हम एक दूसरे को जानने समझने लगे तब हमे एक दूसरे की अच्छाइयां पता लगी और धीरे धीरे हमारा रिश्ता कितना मजबूत हो गया
हां मां जी , और मैं तो गुस्सा होकर आपसे कई बार बात भी नही करती थी पर आप आगे से मुझे मनाती, खाना खिलाती तब मुझे लगता मेरी मां भी तो डांट देती है मुझे कई बार …… आप भी तो मेरी मां ही हैं अब से ….तब जाकर मै आपको सॉरी बोलती सुलोचना हंसते हुए बोली
समझ गई तू….. अपनी बहु को समझाने का दायित्व जैसे मेरा था वैसे ही तेरी बहु को समझाने का दायित्व अब तेरा है
चल अब जैसा मैं कहती हूं वैसा करना फिर देखना बहु तेरी बात भी मानेगी और तुझे समझेगी भी….
अगले दिन से सुलोचना ने अपनी बहु अवनि को टोकना छोड़ दिया, वो जब मन करता उठती, जैसे मन करता रहती, वैसे मन की बुरी नही थी वो पर थोड़ी ना समझ थी और सास की गलत छवि अपने मन में बनाए हुए थी।
उसे लगता यदि सास की शुरू से ही सुनना शुरू कर दिया तो वो उसे अपने हिसाब से चलाएगी इसलिए वो अपनी मन मुताबिक रहती
दमयंती जी बहुत सुलझी हुई , समझदार महिला थी या कह लो अपने परिवार के रिश्ते कैसे निभाने है, कब क्या करना है बखूबी जानती थी। परिवार के प्रति अपना दायित्व समझती भी थी और उसे निभाती भी थी
जहां सुलोचना घर की रसोई की कमान संभालती वहीं वो परिवार रूपी रसोई की रसोईया दमयंती जी थी जो रिश्तों को अपने अनुसार पकाती थी।
एक , दो हफ्ते तो अवनि को बहुत अच्छा लगा जब सासू मां ने टोकना बंद कर दिया , उससे बोलना कम कर दिया और उससे थोड़ी दूरी बना ली पर तीसरे हफ्ते वो इस घर में अपने आपको अकेला सा महसूस करने लगी । उसके और सुलोचना जी के बीच अजीब सी अदृश्य दीवार खड़ी हो गई। ना कोई कुछ बोलता ना ही कोई कुछ बताता। उसको लग रहा था कि सासू मां डांटती या टोकती थी तो प्यार भी तो करती है। और उसकी कितनी चिंता करती है बिलकुल मां की तरह
ऐसे तो मैं बिलकुल अकेली पड़ जाऊंगी। इस दीवार को गिराना पड़ेगा ….
अब वो अपने आप ही सुबह जल्दी उठती ताकि सासू मां को अच्छा लगे , अच्छे से साड़ी पहन कर तैयार होकर दादाजी दादीजी के पैर छूती और जब वो उसको ढेरों आशीष देते तो मन ही मन खुश हो जाती।
सुलोचना जी से बोली मम्मी जी सॉरी , मुझे आपका टोकना अच्छा नही लगता था पर जब आपने बात करना बंद कर दिया तो मुझे एहसास हुआ कि मेरी मां भी तो भाभी को तौर तरीके सिखाती है और कितना खुश होती है जब भाभी उनकी कही बाते मानती है और घर का माहोल भी बहुत अच्छा हो जाता है जब सब साथ हंसते बोलते हैं पर अभी दो हफ्ते से देखो कितनी चुप्पी है घर में । आप और दादी तो बात ही नही करते मुझसे । इतनी बुरी हूं क्या मैं और कहकर रोने लगी
सुलोचना ने उसे गले लगा लिया और बोली पगली तुझ से से ही तो रौनक है घर की ……पर तुझे मेरा टोकना पसंद नही था इसलिए मैने भी कहना बंद कर दिया पर बेटा मैं तो चाहती हूं कि मेरी बहु , बहु कम बेटी बनकर रहे इसलिए तुझे समझाती हूं और घर में जो चाहो करो आखिर तुम्हारा ही तो घर है। किसी तरह की कोई पाबंदी नही । पर्दा तो है ही नही ….पर दादाजी को अच्छा लगता है घर की बहु पहन ओढ़ कर , संज संवर कर रहे और अभी तू नई नई आई है इसलिए ….. और थोड़े दिनों में तू संकेत के साथ नौकरी पर चली ही जायेगी तो रहना वहां , तेरा मन करे जैसे…….
अभी साड़ी पहनकर देख कितनी सुंदर लग रही है तू और सुलोचना काले टीके लगा उसकी नजर उतारती है।
ठीक है मम्मी जी अब आप कहोगी वैसे ही रहूंगी पर आप मुझसे बोलना बंद मत करना बस
अरे बोलना तो मैने अपनी सास से ही आज तक बंद नहीं किया फिर अब तो मैं खुद ही सास हूं जो बहु की बोलती बंद करेगी न की खुद की… अवनि को छेड़ते हुए सुलोचना हंसते हुए बोली।
तभी दमयंती जी बोल पड़ी बहु तेरी सास और मुझमें भी पहले छत्तीस का आंकड़ा हुआ करता था । इसकी और मेरी बहुत नोंक झोंक होती थी पर हमने एक दूसरे से बोलना कभी बंद नहीं किया।
एक दिन पहले चाहे हम लोग एक दूसरे से कितनी ही बहस करे हों पर अगले दिन सुबह की चाय सुलोचना ही बनाती और हमेशा तेरे दादाजी और मेरे दोनो के पैर छूकर आशीर्वाद लेती थी और हमारी सुलह हो जाती थी।
और दूसरा हमने गुस्से में खाना खाना कभी नही छोड़ा क्युकी अन्न का अपमान मुझे बिलकुल बर्दाश्त नहीं और ये भूल तुम भी कभी मत करना। बहु अपने अनुभव और गलतियों से जो मैने देखा और सीखा बस वही तुम्हे समझा रही हूं। परिवार को एक सूत्र में कैसे बांधकर रखना है ये समझाने का दायित्व मेरा था जो मैने तेरी सास को सिखाया और उसने भी एक बहु के रूप में अपना दायित्व हमेशा पूरा किया है कभी मेरे परिवार पर आंच तक आने नही दी है। अब तेरी सास अपना दायित्व निभा रही है तो तुझे भी एक बेटी बनकर उसका साथ देना है। दोनों अपना अपना दायित्व भली भांति निभाओगी तभी तो वो एक अच्छी सास और तू अच्छी बहु बन पाएगी
जी दादी ….अवनि ने सहमति मे सिर हिलाया
बहु हमेशा भावनाओं और संवादों का आदान प्रदान होता रहना चाहिए ताकि रिश्तों में कोई दीवार बन ही न पाए।
अगले दो तीन दिन अवनि का मुंह फिर सूजा था ।उसकी अपने पति संकेत से किसी बात पर लड़ाई हो गई थी और दोनो आपस में बिना बोले ही सारे काम कर रहे थे। अवनि ने संकेत की पसंद का खाना बनाया पर बिना कुछ बोले उसे परोस दिया
संकेत ने भी बड़े शौक से खाना खाया पर तारीफ के दो शब्द नहीं बोले
दमयंती और सुलोचना जी सब देख रही थी और समझ भी रही थी
सुलोचना जी ने संकेत को और दमयंती जी ने अवनि को अलग अलग ले जाकर समझाना शुरू किया
“तुम दोनो की शक्ल से लग रहा है किसी बात पर मन मुटाव चल रहा है दोनो का । ये तुम्हारे आपस की बात है तो पूछूंगी नही पर बड़े होने के नाते समझाने का मेरा दायित्व बनता है इसलिए सुनो…. बेटा जब दो अलग लोग होंगे तो दोनो के विचार भी अलग ही होंगे। ये जरूरी नहीं जो तुम सोचो वो ही सामने वाला भी सोचे । छोटी मोटी तकरार तो हर प्यार वाले रिश्ते में चलती है। रूठना मनाना नही होगा तो फिर रिश्ते में मिठास नही रहती पर ये ध्यान रखना मनमुटाव हद से ज्यादा नहीं होना चाहिए कहीं इसके चलते रिश्ते में खटास आ जाए और फिर मुश्किल बढ़ जाए । इसलिए समय रहते रूठे हुए को मना लेने में भलाई है और फिर अंग्रेजी का एक शब्द सॉरी तो इसके लिए काफी है बस सॉरी बोलो और कमाल देखो।”
अवनी और संकेत ने मां और दादी की बातों पर विचार किया और अपनी अपनी गलती का एहसास भी किया फिर दोनो ने एक दूसरे को सॉरी बोल अपना अपना प्यार जता दिया
( दोनो मन ही मन सोच रहे थे अरे वाह दादी और मां ने बिगड़ती बात बना ली आज तो)
समय के साथ साथ सुलोचना जी और अवनि का रिश्ता मजबूत होता गया और समय समय पर दमयंती जी के अनुभव के मसाले ने उनके रिश्तों का जायका बढ़ा दिया। कभी कोई गलती होती या बात बिगड़ने का डर रहता , दमयंती जी सबको अच्छे से समझाती और वो सबकी आदरणीय भी थी तो कोई उनकी बात टालता नही था।
आज दमयंती जी और उनके पति नही रहे और अवनि भी अपने पति के साथ नौकरी वाली जगह पर रहती है। सुलोचना जी अपने पति के साथ अपने गांव के पुश्तैनी मकान में रहती है पर अवनि अभी भी अपनी सासू मां के रीति रिवाजों का पालन बखूबी करती है ।अपने बहु होने का दायित्व पूरी तरह निभाती है। जब अपने गांव जाती है तो पूरे गांव में उन सास बहू की जोड़ी को एक आदर्श सास बहू जोड़ी के रूप में देखते हैं
दोस्तों हमे लगता है हमारी दादी और नानी पुराने जमाने की हो गई तो उनसे सलाह क्यों लेनी पर हमे ये भूलना नही चाहिए कि अनुभव का मसाला जो उनके पास है वो किसी परिवार के रिश्तों को खूबसूरत बनाने में बहुत अहम भूमिका निभाता है इसलिए थोड़ा समय निकाल कर दादी नानी के पास बैठकर रिश्तों का ज्ञान लेते रहना चाहिए। उनकी कहानियां सिर्फ दिल बहलाने के लिए नही होती बल्कि उनमें सीख छिपी होती है।
हमारे बूढ़े बुजुर्ग अपना दायित्व कभी डांट फटकार ,या कभी प्यार से निभाएं तो हमे उनसे नाराज़ नहीं होना चाहिए बल्कि जिंदगी कैसे जी जाए ये उनसे सीखना चाहिए
यदि आप मेरे विचारों से सहमत हैं तो कृपया कॉमेंट करके मेरा उत्साहवर्धन करना नही भूलें
धन्यवाद
निशा जैन
बिल्कुल सही
दादी नानी ही तो रिश्तों की जान होती है, पर आज कल लोग रिश्तों को कम हैसियत को महत्व देते हैं फिर तोड़ फोड़ करने वाले रिश्तेदार अच्छा होता देख नहीं सकते ।