नेहा के पापा सरकारी महकमे में.. उच्च पदस्थ अधिकारी थे… उनका घर.. लेकिन किसी बड़े शहर में न होकर… एक छोटे कस्बे में था… जहां उच्च शिक्षा की… बेहतर सुविधाएं.. उपलब्ध नहीं थी….।
अपनी 12वीं की परीक्षा संपन्न करने के बाद.. आगे की पढ़ाई जारी रखने के लिए… नेहा को घर से हॉस्टल भेजना पड़ा…!
नेहा पढ़ने में बहुत होनहार थी… जल्द ही एक बढ़िया कॉलेज और हॉस्टल रूम… सारी सुविधाओं की व्यवस्था कर… उसके पापा ने… उसे बाहर भेज दिया…।
कुछ दिनों तक तो सब ठीक था… नेहा मन लगाकर पढ़ भी रही थी…. लेकिन कैंटीन का खाना उसे रास नहीं आ रहा था…. दो-तीन महीने होते-होते कितनी ही बार पेट संबंधी समस्या… तो बुखार कभी….कभी कमजोरी… इतनी परेशानी देखकर… नेहा के पापा ने उसके हॉस्टल में ही… खाना बनाने का प्रबंध कर दिया…!
सारी व्यवस्थाएं तो हो गई… लेकिन पढ़ने वाला बच्चा पढ़े भी और खाना भी बनाए… यह नेहा के लिए संभव नहीं था…. अतः पापा ने कई जगह से पता कर… एक अच्छी खाना बनाने वाली… को नेहा के लिए खाना बनाने की जिम्मेदारी दे दी….।
उसका नाम कनिका था… दिखने सुनने में भी बढ़िया थी…. उम्र भी अधिक नहीं था… वह जल्द ही नेहा से घुल मिल गई…. रोज सुबह 8:00 बजे तक आती… साफ सफाई… कपड़े.. बर्तन.. सब करके नहा के लिए बड़े प्यार से खाना बनाती… उससे पूछ पूछ कर… आज क्या खाओगी दीदी…? आज क्या बना दूं….? या कभी बिना पूछे भी… बिल्कुल मम्मी की तरह सरप्राइज खाना….
नेहा उसे कितनी बार कहती…” आप दीदी मत कहिए… मैं आपसे बड़ी थोड़े ना हूं…. नेहा ही कहिए ना…!
वह बड़े प्यार से बोलती…” नहीं दीदी… आप उम्र में भले ना बड़ी हों… पर पढ़ाई में तो मुझसे बहुत ऊपर हैं ना….!
कनिका बहुत होशियार थी… कभी भी नेहा को कोई तकलीफ ना हो… इस बात का पूरा ख्याल रखती…
धीरे-धीरे समय बीतता गया… कब नेहा के 3 साल ग्रेजुएशन के निकल गए… पता ही नहीं चला… इन 3 सालों में.. कनिका ने कभी भी बिना इमरजेंसी के छुट्टी नहीं लिया…. नेहा भले कभी घर चली गई तो अलग बात हो…. उसे घर की तरह समय पर खाना.. पानी.. कपड़े सब देने की.. पूरी जिम्मेदारी.. कनिका ने उठा रखी थी…।
नेहा पढ़ने में होनहार तो थी ही… उसने पहले ही प्रयास में सिविल सर्विसेज क्लियर कर लिया… सब बहुत खुश हुए… घर वाले… मां.. पापा.. नेहा.. पर कनिका की खुशी भी कम नहीं थी….!
विदाई का दिन था… नेहा अपनी ढेर सारी किताबों को… कई कार्टूनों में पैक करने में लगी थी.… नेहा को किताबों का बड़ा शौक रहा था… और पापा ने कभी ना नहीं कहा…. इसलिए उसके पास किताबों की दो अलमारी भरी पड़ी थी….
वह अपने किताब देख-देख कर अरेंज कर रही थी कि… कनिका आई… उसने आते ही कहा…” यह क्या दीदी जा रही हो आप…”
“हां कनिका… अब तो जाना होगा ना… कुछ दिन में तो जाॅब भी ज्वाइन करना है….!
कनिका थोड़ा सकुचाते हुए बोली…” दीदी यह किताब क्या करेंगी…!
नेहा हंस पड़ी… “किताब क्या करूंगी… ले जाऊंगी.. रखूंगी…!
” लेकिन आपकी पढ़ाई तो खत्म हो गई ना…!
“ऐसे थोड़ी होता है… पढ़ाई कभी खत्म नहीं होती…!”
“लेकिन आप क्यों पूछ रही हैं…”
कनिका धीमे से बोली…” आप मुझे किताबें देंगी…?”
” आपको… आप क्या करेंगी… किताबों का…!” नेहा आश्चर्य से बोली…
“दीदी मैं निम्मो को दूंगी.. पढ़ने के लिए….!”
“निम्मो… आपकी बेटी ना…!”
“हां दीदी…”
“लेकिन वह तो अभी बहुत छोटी है….!”
“हां दीदी… छोटी तो है… लेकिन पढ़ने में बहुत होशियार है… बिल्कुल आप ही की तरह…”
नेहा हंस पड़ी…” तो क्या अभी से यह किताबें पढेगी…!”
” नहीं दीदी… पर जब पढ़ने लायक होगी… तब अगर ना दे पाई तो… कैसे पढेगी…? मैं भी बहुत पढ़ना चाहती थी… पर किसी ने किताब ही नहीं दिया… मैं नहीं चाहती कि… जो मेरे साथ हुआ वह मेरी निम्मो के साथ हो….!”
नेहा चुप हो गई… चुपचाप अपने कार्टूनों को पैक करती रही….!
कनिका थोड़ी देर खड़ी रही… फिर जाने को हुई तो नेहा बोली….” कैसे ले जायेंगी… इतने कार्टून आप… चलिए मैं गाड़ी से छोड़ आऊं… आपके घर… ये दो साइड वाले मैंने रख लिया है… इसमें मेरे जरूरी कागज कॉपी हैं…. बाकी यह कुल मिलाकर 10 हुए… चलिए…!”
कनिका की आंखों में आंसू भर आए… टेबल पर रखी.. एक नेहा की तस्वीर उठाकर बोली..” दीदी यह भी ले लूं…!”
नेहा ने देखकर कहा…” ठीक है.. जैसी आपकी मर्जी…”
इस बात को करीब 15 से 20 साल बीत गए… नेहा बड़े ऑफिस में… बड़े पद पर बैठी… बड़ी ज़िम्मेदारियों के साथ… सब भूल चुकी थी….!
पर कनिका कुछ नहीं भूली… एक दिन कनिका निम्मो के साथ नेहा के ऑफिस पहुंची…. निम्मो से कहा…” दीदी के पांव छुओ…”
नेहा अनजान नजरों से देख ही रही थी कि.. कनिका बोली…” नहीं पहचाना दीदी… मैं कनिका… और यह मेरी बेटी निम्मो…. निम्मो ने आपकी किताबें बेकार नहीं जाने दी.… वह आपके जैसी बड़ी अफसर बन गई है… मैंने इससे कहा था… जैसे ही अफसर बनेगी.. हम सबसे पहले दीदी के पास जाएंगे… उनका आशीर्वाद लेने….!”
नेहा की आंखें खुशी से और फक्र से बड़ी हो गई… उसने आगे बढ़कर निम्मो को गले से लगा लिया… यही थी… नम्रता कुमारी… उसकी नई असिस्टेंट…!
स्वलिखित मौलिक अप्रकाशित
रश्मि झा मिश्रा