आज सुबह मेघा की आँख देर से खुली कारण रात उसे नींद नहीं आई थी सो सुबह के समय आँख लग गई जैसे ही वह कमरे से बाहर आई उसकी सास सुधा जी चिल्ला रहीं थीं । महारानी अभी तक सो रही हैं। आज चाय मिलने का भी ठिकाना नहीं है। कब से इन्तजार कर रहे हैं।
मेघा को सुबह उठते हो यह सब सुनना बुरा तो बहुत लगा किन्तु वह सुबह-सुबह ही अपना मूड खराब नहीं करना चाहती थी सो अनसुना कर रसोई में जकर चाय बनाने लगी। चाय सास-ससुर को देकर बच्चों के कमरे में उन्हें उठाने गई। बच्चों जल्दी उठो देर हो जाएगी। बच्चे उठते ही घडी देख बोले ओफ्फो मम्मा आज आपने इतनी देर से उठाया अब हम लेट हो जायेंगे जल्दी उठातीं न।
बातें न कर जल्दी उठ कर तैयार होओ। कहकर वह बापस किचन में जाकर बच्चों का टिफिन तैयार करने लगी। तभी निखिल उसका पति आकर बोला मेघा तुम जल्दी उठा करो पापा कब से चाय के इन्तजार में बेठे थे, वे आज पार्क भी नहीं जा पाए अब बच्चों को भो देर हो जाएगी तुम्हें सोचना चाहिए।
यह सुनते ही आज उसके तन बदन में आग लग गई। जोर से चीख पडी – सब का ठेका मैंने अकेले ही ले रखा है क्या। एक दिन जरा आँख क्या लग गई मेरी,सब सुबह से सुनाने में लगे हैं । नहीं करती मैं कुछ।किसी का भी काम नहीं करूंगी ।करो सब अपना अपना काम, सारी जिम्मेदारी मेरे अकेले की नहीं है ।
घर बच्चे, मां बाप सबके हैं, तो सब सम्हालें कहते हुए बहअपने कमरे में चली गई और भडाक से दरवाजा बन्द कर लिया। सब भौंचक्कै से एक दूसरे की ओर देख रहे थे कि कभी चिल्लाना तो दूर जोर से भी न बोलने वाली मेघा को क्या हो गया। वे उसके इस अपरिचित अंदाज से हैरान थे।निखिल माँ से बोला- माँ तुम जल्दी से बच्चों को टिफिन तैयार करदो उन्हें में बस पर छोड़ आऊंगा।
सुधा जी जल्दी से रसोई में जा टिफिन बनाने लगी फिर निखिल बच्चों के लेकर बस स्टाप पर चला गया लौटते में सोच रहा था कि आज मेघा को क्या हो गया। किननी बुरी तरह बोली, माँ को कितना बुरा लगा होगा । घर आकर सुधा जी से बोला माँ तुम केवल नाश्ता बना लो खाना में ऑफिस में ही खा लूंगा।
सुधा जी उसके हाथ में चाय-नाश्ता पकड़ाते बोलीं ये ले जाकर मेघा को दे वह सुबह से भूखी है तू भी वहीं उसी के साथ चाय पी ले उसका मन खुश हो जायेगा कहते हुए वे अपनी चाय नाश्ता लेकर अपने कमरे में चली गईं पति को चाय नाश्ता दे वे भी चाय पीने वहीं वेठ गई।
तभी रजेश जी बोले- मेघा ने चाय-नाश्ता किया।
सुधा जी बोलीं मैंने निरिवल के हाथ चाय नाश्ता आज मेघा के लिए कमरे में ही भिजवा दिया है, निखिल भी वहीं उसीके साथ पी लेगा। आज मेघा को क्या हो गया जो इस तरह बर्ताव कर रही है। आज तक तो कभी उसकी ऊँचीआवाज तक सुनाई नहीं दी।
राजेश जी बोले उसका कारण हम सब है। वह अकेली पूरे घर का बोझ उठाती है, हम सब मदद नहीं करते सिवा उस पर चिल्लाने के कि यह काम नहीं हुआ, वह काम नहीं हुआ। वह भी इंसान है थकती होगी कभी सोचा तुमने। अगर आज उसकी जगह तुम्हारी बेटी होती तो तब भी तुम उससे ऐसे ही काम करवाती क्या। कभी हमने उसकी मदद करने की सोची। कभी उससे उसकी परेशानी जाननी चाही नहीं न। क्या कभी तुमने उसकी मां बन कर उसके करीब होकर उसके दिल का हाल जानना चाहा।
सुधा जी बोली बस कीजिए मुझे मेरी गल्तीका अहसास हो गया है। अब में ही भूल सुधारुगीं, कह कर वे चाय के बर्तन समेट किचन में आ गई और दिन के खाने की तैयारी करने लगी।
उधर जब निखिल ने दरवाजा खटखटाया तो थोड़ी देर बाद मेघा ने दरवाजा खोला। वह अभी भी रो रही थी।
निखिल ने उसे शांत कराते हुए कहा मेघा पहले चाय-नाश्ता कर लो फिर बात करतें हैं। ठंडी हो जाएगी। और निखिल ने प्याला जबर जस्ती उसे पकड़ा दिया। दोनों ने चाय पी। फिर निखिल बोला में अपने कहे श्ब्दों पर शर्मिन्दा हूं मुझे तुमसे इस तरह नहीं बोलना चाहिए था, साॅरी माफ करदो मुझे। आगे से अब कभी नहीं बोलूंगा। यह सुनते ही निखिल के कन्धे पर सिर रख वह फिर फफक-फफक कर रोने लगी। निखिल ने प्यार से उसकी पीठ सहलाते हुए उसे सांत्वना दी। फिर बोला मुझे अपनी परेशानी बताओ। आज तुम्हें क्या हुआ।
वह बोली आज रात को मेरी तबियत ठीक नहीं थी सो रात को नींद नहीं आई सुबह को आँख लग गई तो क्या ये मेरा इतना बड़ा अपराध हो गया, पहले तो मम्मी जी ने इतना सुनाया, फिर बच्चे बोले और तुम भी ,मैं भी इंसान हूँ थकती नहीं क्या। किसी ने नहीं पूछा कि देर से क्यों उठी सबको लगा कि में आराम से सो रही हूँ। शादी के पन्द्रह साल हो गए तब से बिना बोले भाग ही तो रही हूँ। मेरी भी उम्र बढ़ रही है, में भी अब थकने लगी हूँ।
पर मेरी परेशानी सै किसी को कोई मतलब ही नहीं है। तुमने केवल पति होने का अधिकार ही जताया क्या कभी तुम मेरे हमदर्द बन सके। कभी तुमने मेरे मन की पीड़ा को समझा। कभी मेरे मन की बात जानने की तुम्हारी इच्छा हुई । तुम्हें ऐसा लगा कि मुझे भी कुछ चेंज की जरूरत होती है एक ही रुटीन में सुबह से शाम तक दौड़ते – दौड़ते थक जाती हूं।
तुम सब खाना खाकर अपने-अपने कमरे में अपने अपने काम में लग जाते हो कोई टीवी देख रहा है तुम लैपटाप के सामने होते हो बच्चे अपनी पाढाई में लग जाते है ।नौकरों भांति अकेली बैठ कर खाना खाती हूं कोई मुझसे पूछने वाला नहीं , खाओ तो ठीक नही खाओ तो ठीक, कितनी बार बिना खाये उठ जाती हूं जब अकेलै खाने की इच्छा नहीं होती पर किसी को मतलब नहीं कि खाया या भूखी हूं सिर्फ अपने काम के लिए मुझे आवाज दी जाती है।
थक चुकी हूँ में अब अपनी इस जिन्दगी से । कभी कभी ऐसी इच्छा होती कि मर जाऊं तो किस्सा ही खत्म । जब मेरी कोई अहमियत ही नहीं है तो किसके लिए क्यों जी रही हूँ। वो तो बच्चों की तरफ देख कर सोचती है इनका क्या होगा तुम तो दूसरी शादी कर मग्न हो जाओगे मेरे बच्चे **बस यही सोच कर कदम पीछे खींच लेती हू ।
निखिल हतप्रभ हो उसे देखे जा रहा था कि ये क्या बोल रही है कितना मन में अवसाद भरा है मैने तो इस तरह सोचा ही नहीं। शायद गलती मेरी ही है जो इन बातों पर घ्यान ही नहीं दिया। मेघा अब चुप हो जाओ ऐसी मरने मराने की बात अब कभी भूलकर भी न करना। तुम्हारी ही बदौलत ये घर सुचारू रूप चल ही नहीं रहा वल्कि दौड रहा है। में ठीक से बेफिक्र अपनी नौकरी कर पा रहा हू। बच्चे भी ठीक से पढ़ पा रहे है। मम्मी-पापा आराम से रह रहे हैं।
हाँ पर मेरा क्या ॽ मेरी इस घर में क्या अहमियत है ।इतनी भाग दौड करने के बाद भी केवल ताने उलाहने सुनती हूँ। क्यों क्या अपराध है मेरा, यही न कि कभी अपने हक है लिए आवाज नहीं उठाई । कहते हैं कि बच्चे को भी मां दूध तभी पिलाती है जब वो रोता है सो मै भी आज थक कर अपनी आवाज उठाने को मजबूर हो गई ।सबको क्या मेरी मदद नहीं करनी चाहिए तो तो मुझे भी दो पल आराम के मिल सकें।
बस मेघा अब में सब समझ गया ,अब तुम्हें शिकायत का कोई मौक़ा नहीं दूंगा चलो बाहर चलो। जैसे ही निखिल उसे बाहर ले कर आया, मम्मी-पापा बरामदे में ही बैठे थे।
पापा ने आवाज दी इधर आओ बेटा बैठो। मेघा हम लोग अपनी ग़लती समझ गये हैं। अब आज से सब काम में तुम्हारी मदद करेंगे।कल से मेरी और सुधा की सुबह की चाय सुधा ही बनायेंगी।रहीं बात बच्चों को बस तक छोड़ने लाने की वो काम अब मैं कर लिया करूंगा। छोटा मोटा बाजार काम भी मैं कर लिया करूंगा।
पानी, बिजली के बिल भरना बच्चों की फीस इस सबकी जिम्मेदारी आज से निखिल तुम्हारी है।अब रही सामान लाने की बात तो रविवार को निखिल तुम मेघा के साथ जाकर लाओगे वह अकेली नहीं लाएगी । किचन के छोटे मोटे कामों में सुधा हाथ बंटाएंगी ।इतनी मदद से मेघा को भी अपने लिए समय मिलेगा। महिने में एक बार तो अवश्य ही मेघा को लेकर बाहर जाओगे उसे भी चैन्ज की जरूरत होती है। मेघा बेटा तुम भूलकर भी मत सोचना कि हमारे जीवन में तुम्हारी अहमियत नहीं है, वो तो हमलोग कुछ ज्यादा ही स्वार्थी हो गये थे और केवल अपना ही आराम देख रहे थे तुम्हारी परेशानी को महसूस ही नहीं किया किन्तु अब ऐसा नहीं होगा।
सुधा जी ने उठकर उसके सिर पर हाथ फेरते कहा अच्छा किया मेघा जो तुमने
अपना विरोध जताकर हम सबके सोये जमीर को झकझोर दिया और हमें सही ढंग से सोचने को मजबूर कर दिया।आज से यह पूरा परिवार तुम्हारे साथ है बेटा तुम अब कभी अपने को अकेला नहीं पाओगी। हम सब तुम्हारे कसूरवार हैं और तुमसे माफी चाहते हैं।
मेघा नहीं मम्मी जी आप बडे हैं माफी न माँगे, मैं तो बस इतना ही चाहती हूं कि आप लोग मुझे ,मेरी परेशानी को भी समझें और कुछ नहीं।
हां मेघाअबसे ऐसा ही होगा।
आज का सवेरा उसके लिए बहुत ही सुखद खूबसूरत यादगार जो बन गया क्योंकि परिवार ने उसकी अहमियत को जान जो लिया था।
शिव कुमारी शुक्ला
9/2124
स्व रचित मौलिक एवं अप्रकाशित