जमाने की हवा ही खराब हो गई है…. कल रास्ते में बाजार जाते हुए एक बिचारी सी स्त्री दिख गई उसके दो छोटे छोटे बच्चे थे भीख मांग रही थी.. मुझे दया आ गई मैं उसके पास गया …. कुछ रुपए भी दिए फिर पूछा कुछ काम क्यों नहीं कर लेती तुम इन बच्चों को साथ में रख कर भीख मांगना सीखा रही हो कुछ तो शर्म करो …इनका गुजारा तुम्हारी भीख से कैसे होगा तो जानते हो क्या बोली….!!
रघु शाम को अपनी मित्र गोष्ठी में अपना अनुभव बता रहा था और बहुत उद्वेलित था।
क्या बोलेगी भाई यही कि आजकल काम कौन देता है ?? यही ना रवींद्र ने हसते हुए कहा।
नहीं भाई वह कहने लगी घर में पति बीमार है लकवा हो गया है भगवान का कहर टूट पड़ा है अचानक मुझ पर मेरे पति तो आपकी ही तरह ऑफिस में काम करते थे मेरे ये दोनों बच्चे अच्छे स्कूल में पढ़ने जाते थे मैं और मेरा परिवार खुश और सुखी था … लेकिन अचानक दो दिनों पहले उनकी तबियत खराब हो गई ब्लड प्रेशर हाई हो गया शरीर बुरी तरह कांपने लगा मैं अकेली रात में डॉक्टर के पास कैसे लेकर जाती जब तक पड़ोसी को जगा कर डॉक्टर के पास ले गई लकवा का असर पूरे शरीर पर हो चुका था ….. दाहिना हिस्सा काम ही नहीं कर रहा ….. जितना रुपया था और अभी मिल रहा है इलाज में लगाती जा रही हूं … सर ऐसी विपत्ति भगवान किसी को ना दे कहती फूट फूट कर रो पड़ी…!
ओह वेरी ट्रैजिक..!! वास्तव में ये तो कैलेमिटी है उस पर… अरमान काफी दुखी हो गया था सुनकर फिर तुमने क्या किया रघु.. उत्सुकता थी उसकी आवाज में।
हां भाई मैं भी बहुत दुखी हो गया था उसकी बात चीत के ढंग से वह पढ़ीलिखी सभ्य ही प्रतीत हो रही थी उसकी दुर्दशा देख कर और उसके प्यारे प्यारे मासूम बच्चों की हालत तो किसी की भी आंखों में आंसू ले आती…# ना जाने कैसा जमाना आ गया है कि एक बेबस महिला को इस स्तर पर आना पड़ रहा है ….!!
मैने कहा फिर तुम अपने पति के ऑफिस क्यों नहीं गई वे लोग इलाज के लिए रुपए की व्यवस्था जरूर कर देंगे और तुम्हारे लिए भी कोई कमाई का जरिया बता देंगे इस तरह भीख मांगना तो शोभा नहीं देता..!!
सही सलाह दी तुमने यार एकदम सही यही प्रश्न मेरे दिमाग में भी कौंध रहा था रविंद्र ने तुरंत कहा।
मेरे पूछते ही वह और ज्यादा रोने लगी .. सर वो ऑफिस वाले तो बेरहम निकले मुझे पहचानने से इंकार कर दिया उन लोगो ने …और तुरंत ही मेरे पति की नौकरी भी खत्म कर दी कहने लगे अब तुम्हारा अपाहिज पति हमारे किस काम का अब तो वह कभी ठीक ही नही होगा …. सर मुसीबत का पहाड़ मुझ पर गिर पड़ा है अब मैं इन बच्चों को पालू पति का इलाज करवाऊं या घर का ध्यान रखूं… इसीलिए तो अपने साथ ही इन मासूमों को लेकर आना मेरी मजबूरी बन गया है पड़ोसी भी कन्नी काटने लगे हैं अब सड़क पर बैठ कर भीख ना मांगू तो क्या करूं!!
#ना जाने कैसा जमाना है सर कि फिर भी लोग यहां रुकते तक नहीं भीख देना तो दूर रहा….!! वो तो आप पहले भले इंसान हैं जिनका ध्यान इधर गया और मेरी व्यथा कथा सुन रहे हैं…. उम्मीद और कृतज्ञता भरी नजरों से उसने मेरी ओर देखते हुए कहा तो मेरा दिल उसकी बेहाली और विवशता से विकल हो उठा और मैंने जितने रुपए वॉलेट में थे वे सब उसके हाथ में रख दिए ….और उसके घर का पता लेकर वापिस आ गया सोचा था इसके घर जाकर हाल चाल लेता रहूंगा और कम से कम बच्चों की शिक्षा करती रहे ऐसी व्यवस्था कर दूंगा।
बहुत प्रेरक कार्य किया भाई तूने गर्व है तुझ पर सारे दोस्त प्रशंसनीय भाव से कह उठे ।
फिर तुम उसके घर गए थे की नहीं रघु .. गोपी ने उसके आगे की घटना जानने की उत्सुकता दिखाई।
हां भाई मैने घर आकर अपनी पत्नी मेधा को सारी बात बताई तो वह तो एकदम व्याकुल हो गई कैसा जमाना आ गया है एक भली विवश मुसीबत में डूबी महिला की मदद करने में लोग उदासीनता दिख रहे हैं ऊपर से उसके दो मासूम बच्चे भी हैं घर पर अपाहिज सा लकवा ग्रस्त पति है…!!
हे भगवान किसी को दिखाई भी नहीं दे रहा है।आपकी इतनी सी मदद से उसका क्या होगा चलिए मुझे ले चलिए उसके पास मैं उसे और उसके परिवार को अपने घर यहां ले आऊंगी वह मेरी घरेलू कामों में मदद कर दिया करेगी उसके बच्चों का स्कूल और पति का इलाज जारी रह पाएगा । कम से कम इस तरह बीमार पति को निस्सहाय घर छोड़ कर भीख तो नहीं मांगना पड़ेगा.. चलिए जल्दी चलिए कहती मेधा मुझे वापिस वहीं जाने को बाध्य करने लगी।
वाह भाभीजी का दिल बहुत विशाल है नमन है भाई तुम दोनों को सभी कह उठे।
फिर क्या उसे तुम लोग अपने घर ले आए रविन्द्र ने जल्दी से पूछा।
मेधा की जिद और उस स्त्री की दयनीय दशा से मैं उस जगह फिर पहुंच गया था जहां वह भीख मांग रही थी।लेकिन जब हम वहां पहुंचे तब वह नहीं मिली।मैने आस पास वालों से पता किया पर कोई ठीक से नहीं बता पाया।हम दोनो बहुत ज्यादा चिंतित और उस महिला के साथ किसी अनहोनी की आशंका से चिंतित हो उठे पुलिस सहायता लेने की सोचने लगे तभी मुझे उस स्त्री से लिया घर का पता याद आया मैं तुरंत पत्नी के साथ वहां जा पहुंचा..!
जाकर देखा तो कई घर वहां बने हुए थे मैं हर घर में जा जा कर उस स्त्री की तलाश करने लगा ।
आखिरी घर ही बचा था और अभी तक पता नहीं चल पाया था हम दोनो बहुत श्रांत क्लांत हो गए थे लेकिन उस असहाय अबला की सहायता करने की अदम्य इच्छा हम दोनों को उसकी तलाश के लिए प्रेरित कर रही थी।
आखिरी घर का दरवाजा खटखटाते ही एक आदमी बाहर निकला और हमारे कुछ पूछने के पहले ही कह उठा क्या आप एक स्त्री की तलाश में आते है जिसके दो मासूम बच्चे और एक लकवाग्रस्त पति है।
हमने राहत की सांस ली की आक्खिर भगवान ने हमारी सुन ली और हमारी तलाश पूरी हुई।
मेधा ने बहुत जल्दी से उत्तर दिया हां हां भाई उन्हीं को ढूंढते हम यहां आए हैं क्या वे लोग अंदर हैं और वह उस आदमी को पर करते हुए घर के अंदर जाने को उतावली हो उठी।
वो लोग यहां नाही रहते साहब ना ही आपको कहीं मिलेंगे आदमी की बात सुन कर हम हतप्रभ थे ।
हां साहब वह एक पढ़ी लिखी फर्जी महिला है एक गिरोह से संबंध है उसका इस तरह का स्वांग उसने आप जैसे सभ्य भलेमानुस को ठगने के लिए रचाया था …. आपसे पहले भी कई लोग यहां आकर उसका पता पूछकर गए हैं …. !!
मैं और मेरी i पत्नी को काटो तो खून नहीं था।
इसलिए नहीं कि हमारे रुपए पानी में चले गए बल्कि इसलिए कि क्या जमाना आ गया है रुपए ऐंठने के लिए मानवीय भावनाओं को धोखा देने के लिए इस तरह का स्वांग भी रचा जा सकता है…!!
किस पर विश्वास करें किस पर नहीं किस की सहायता करें किस की नहीं..!! वास्तव में अबूझ सा यह कटु सत्य हमारे समक्ष विकराल हो खड़ा है ..! क्या पढ़ लिख कर भी कमाई का इस तरह का जरिया युवाओं को आसान लगने लगा है !! या हालात से जूझना दुष्कर हो गया हैं उनके लिए..!!
लतिका श्रीवास्तव
सच में ठगी के नये नये तरीके अपना रहे हैं लोग…
बहुत सुन्दर सामयिक कहानी..
भाषा शैली रोचक।