जयराम आश्रम में गंगा के किनारे सीढ़ियां पर बैठी अमृता गंगा की लहरों को अपलक देख रही थी मन में विचारों का झंझावात चल रहा था । मेरी जिंदगी इन लहरों की तरह क्यों नही थी ये तो अपनी मर्ज़ी से आगे बहती जा रही हैं
मै अपनी मर्जी का जीवन क्यों नहीं जी पाई ।
मैने हमेशा अच्छा करने का प्रयास किया ,पढ़ाई में अच्छी थी एम कॉम में कॉलेज टॉप की थी , एम बी ए करना चाहती थी ,तब पापा ने कहा एक बहुत अच्छा रिश्ता है वह मेरे दोस्त अतुल खन्ना का बेटा अयान एक कंपनी में तीस लाख के पैकएज में हैदराबाद में है वह अमृता को मांग रहे हैं तुम क्या कहती हो मम्मी से पूछा था ।
मम्मा मैं अभी एम बी ए करना चाहती हूं मुझे अभी शादी नहीं करनी ।
तब उन लोगो ने मेरी पढ़ाई को अहमियत नही दी उन्हे तो अयान के पेकेज में मेरा भविष्य दिख रहा था । तुम शादी के बाद कर लेना एम बी ए सब बहुत खुश थे मेरा भाई अमन जो छोटा था उसके भविष्य की उनको चिंता थी ।अयान को मुझ से मिलाया गया देखने में सुंदर बात करने में मुझे बुरा नही लगा मैं चौबीस साल की अयान तीस के थे फिर भी हमारी शादी हो गई ।
शुरू में मुझे बहुत प्यार करता था परंतु प्यार में अपनी ही चलाता।धीरे धीरे मेरी मर्ज़ी उसकी मर्जी बनती गई उसके डॉमिनेटिंग नेचर में मैं अपना वजूद खो बैठी थी ।
जिंदगी में सब कुछ उसकी मरजी से होने लगा दो बच्चों की मां बनने के बाद भी घर और बच्चों के बारे में मेरी कोई राय कुछ मायने नहीं रखती थी ।
बच्चे बड़े हो रहे थे उनको भी लगने लगा मां केवल उनकी सेवा उनकी जरूरतें पूरी करने के लिए हैं । शुभी और शुभम दोनों के साथ पापा का वही तरीका रहता ।
बच्चो को क्या पढ़ना है किस कैरियर में जाना है सब अयान ही तय करते ।
बच्चे मायूस होकर मुझसे कहते आप पापा को कहो मुझे अपने मन से सब्जेक्ट लेने है उनकी मर्जी से नही
पढ़ना तो मुझे है पर ये बात अयान को समझाना बहुत मुश्किल होता था ।
धीरे धीरे मेरी अहमियत बच्चों के लिए भी नही रह गई , तभी तो मेरा बेटा शुभम मुझे कुछ नहीं समझता ।
शुभम ने ट्रिपल आई आई टी से बी टेक किया था वह एम एस करने अमेरिका जाना चाहता था उसके दोस्त भी ट्राई कर रहे थे , परन्तु पापा अपने लाडले को विदेश नही भेजना चाहते थे ।
शुभी ने कहा मम्मा आप पापा से कहिए भाई को जाने दे ।तो केसे शुभम बोला ओह मम्मा वोह क्या बोलेंगी शी इस गुड फॉर नथिंग ।
उसके ये शब्द कई दिनों तक मेरे दिल में कचोटते रहे
मुझे लगा शायद अब मेरा कोई वजूद नहीं है मेरी परिवार को कोई अहमियत नही है मैं बस महज एक नौकरानी हूं जो सबकी जरूरतें पूरी करती हूं ।
मैने निर्णय कर लिया अब कुछ दिनों के लिए मुझे अपनी जिंदगी अपने लिए शान्ति के साथ जीना है अगर मेरी अहमियत तुम्हे नही समझ में आती मिस्टर खन्ना तो मैं भी अब तुम लोगो से दूर रहना चाहती हूं।
अपने मोबाइल से हरिद्वार के टिकिट करवा कर अपनी व्यवस्था जयराम आश्रम में करके आ गई ।
अयान ऑफिस में थे बच्चों को अपने कमरे के बाहर कौन जा रहा कौन आ रहा कोई खबर नहीं ।
मैने अपना ट्राली बैग लिया और घर के बाहर आ गई एक ऑटो लेकर स्टेशन पहुंच गई ।
अयान मैं सकून चाहती हूं मैं अपने को ढूंढना चाहती हूं आखिर तुम लोगो के लिए मैं कौन हूं ? तुम्हे बता रही हूं बच्चो को नही बताया मेरी ट्रेन चल दी है तुम्हारा घर तुम्हे मुबारक हो अपना खयाल रखना ।
जिंदगी एक बार मिलती है सबको अपनी जिंदगी मेंअपने अच्छे बुरे फेसले लेने का हक मिलना चाहिए चाहे बच्चे हो या मैं !
अमृता
ट्रेन के चलते ही मैने मोबाइल को स्विच ऑफ कर दिया अब मैं कोई बाद विवाद नही करना चाहती थी । मुझे पता था कि वह मुझे अपनी मर्जी से जाने नही देगा ।आज तीन दिन हो गए पर क्या चैन मिला ? क्यों बार बार मोबाइल ऑन करने का मन करता है ।
जो लहरे मुझे स्वतंत्र अपनी मर्जी से बहती लग रही थी आज क्यों लगता है ये समय की धारा के साथ बह रही है अस्तित्व तो पानी का है लहरों का नही ।
मैने मोबाइल का स्विच ऑन किया देखा अयान शुभी शुभम सभी की कितनी काल पड़ी है ।अनायास शुभी को काल कर दी ।
मम्मा आप कहा हो ?पापा मम्मा का फोन सब एक साथ फोन पर बोल रहे थे . सॉरी मम्मा हम लोगो ने आपको बहुत हर्ट किया ,तभी अयान ने फोन ले लिया अपना वही अंदाज अरे तुम कहा हो ये कोई तरीका है बता कर जाती हम लोग कितने परेशान है ।
किसके लिए ?
तुम्हारे लिए तुम नही जानती हम लोगों को तुम्हारी कितनी चिंता है कहते हुए अयान का गला भर आया था ।
अपना पता बताओ मैं आ रहा हूं ।
लहरों की तरह मेरा भी कोई अस्तित्व नहीं होता मैं भी इनकी तरह बहती रहती । अस्तित्व के लिए पता बता दिया ।
पूजा मिश्रा