‘अजय तुम्हें पता है कल सुबह सुलभा आ रही है। वह भी रौशन के सम्मान समारोह में जाना चाहती है। रौशन उसका प्यारा भतीजा जो है। और बिना बहिन बेटी के कोई शुभकाम कैसे हो सकता है।’ मालती जी ने उत्साहित होते हुए कहा। अजय ने कहा- ‘माँ यह तो बहुत खुशी की बात है। दीदी भी सम्मान समारोह में चलेगी तो रौशन भी खुश हो जाएगा।’ ममता भोजन बना रही थी, उसके कानों में इनकी बातें सुनाई पड़ रही थी।
आज वह बहुत खुश थी,कल रौशन के डॉक्टर बनने की खुशी में एक विशेष आयोजन रखा गया था। जिसमें शहर के सभी डॉक्टर्स, प्रबुद्ध व्यक्ति, इष्ट मित्र और परिवार के लोगों को बुलवाया गया था। यह आयोजन मेडिकल कॉलेज के ट्रस्टी के द्वारा आयोजित किया गया था। मालती जी की कही अगली बात ने उसका मन कसैला कर दिया, उसकी सारी खुशी रफूचक्कर हो गई, मन वितृष्णा से भर गया।
बड़ी मुश्किल से उसने घर का सारा काम निपटाया और सोने के लिए बिस्तर पर गई। मगर उसे नींद नहीं आ रही थी, रह.. रह.. कर मालती जी की कही बातें उसे याद आ रही थी। ‘अजय तुम्हें तो पता है सुलभा के बेटे विक्की की हालत, वह भी उसके साथ आ रहा है, उसे समारोह में तो ले जाया नहीं जा सकता, और उसे घर पर अकेला भी नहीं छोड़ सकते।
ऐसी हालत में घर पर किसी को तो उसके साथ रहना पड़ेगा, तुम ममता से कह देना वह घर पर रह जाएगी वैसे भी विक्की उसके साथ बहुत खुश रहता है। सुलभा इतनी दूर से समारोह के लिए आ रही है तो उसे घर पर कैसे छोड़ सकते है। अजय उस समय कुछ नहीं बोला, मगर ममता जानती थी कि कल जाने से पहले बखेड़ा खड़ा होगा और अजय यही कहेंगे कि ममता तुम घर पर रूक जाओ।
हमेशा से ऐसा ही तो होता आया है, अजय माँ की उचित अनुचित हर इच्छा को पूरी करते आए हैं, एक बार भी उन्होंने यह नहीं सोचा कि ममता के दिल पर क्या गुजरती है। ममता हर बार परिस्थिति से समझौता कर लेती। उसे माता-पिता ने ऐसे संस्कार सिखाए थे, कि वह कभी किसी के सामने कुछ नहीं कहती थी। कभी किसी का मन नहीं दु:खाती थी। हर काम व्यवस्थित तरीके से करती, कभी किसी को शिकायत का मौका नहीं देती थी।
मगर उसकी अहमियत को कभी किसी ने समझा ही नहीं। हर बार उसके काम में कमी निकाल कर मालती जी और साथ में सुलभा भी उसे जलील करती रहती थी।इसके बावजूद सुलभा की शादी के सारे काम उसने पूरे मन से किए। शादी के बाद, चार साल तक ममता की गोद हरी नहीं हुई तो भी उसे ताने सुनने पड़े। सुलभा की शादी के बाद पहले साल में उसकी गोद हरी हो गई। मगर विक्की एबनार्मल बच्चा था।
उसकी बुद्धि विकसित नहीं हो रही थी, और शरीर का विकास बराबर हो रहा था। ममता उस बच्चे को भी बहुत प्यार से रखती, वह जो कहना चाहता था उसे समझती थी। सुलभा को अपने बेटे से जरा सा भी लगाव नहीं था। एक बार ममता ने कहा कि ‘विक्की बाबा को कुछ दिन हमारे यहाँ रहने देते हैं।
‘ इसपर मालती जी ने बहुत उल्टा सीधा बोला, और ममता को बांझ कहकर अपमानित किया था। ईश्वर की कृपा से ममता को भी एक बेटा हुआ जो उसके जीवन में खुशियाँ लेकर आया। बड़े प्यार से उसका नाम रौशन रखा गया। अब ममता पर किसी बातों का कोई असर नहीं होता, उसने अपना पूरा ध्यान बच्चे के भविष्य को बनाने में केन्द्रित किया और उसका प्रयास और रौशन की मेहनत रंग लाई और वह डॉक्टर बन गया।
सोचते- सोचते ममता को नींद आ गई। वह सुबह जल्दी उठी और उसने सारे काम बहुत जल्दी-जल्दी निपटाए। आठ बजे सुलभा भी आ गई। उनका भी नाश्ता, चाय और भोजन सब काम व्यवस्थित करने के बाद वह समारोह में जाने के लिए तैयार होने लगी, १ बजे समारोह में जाना था। और सब भी जाने के लिए तैयार हो रहै थे। तभी मालती जी ने अजय को कुछ इशारा किया, ममता सब समझ रही थी, पर वह जाने के लिए तैयार होती रही।
अजय ने कहा ममता तुम क्या करोगी जाकर, सुलभा दीदी, मम्मी और मैं तो जा ही रहे हैं। फिर तुम चलोगी तो विक्की को कौन देखेगा। अभी पन्द्रह दिन तो रौशन घर पर ही रहेगा तुम उससे आराम से बात कर लेना।
ममता की सब्र का बांध टूट गया था,वह बोली – ‘क्यों? मैं क्यों न जाऊँ वहाँ पर? रौशन मेरा भी बेटा है, उसकी खुशी में शामिल होने का अधिकार मुझे भी है। आप बताइये क्या आप कभी उसके स्कूल में, कॉलेज में गए हैं?कभी अभिभावकों के लिए होने वाली मिटिंग में आप गए हैं?आपने कभी ध्यान दिया भी है कि रौशन किस तरह पढ़ाई कर रहा है?
हर जगह मैं उसके साथ थी फिर आज क्यों नहीं? आज आप मुझे बताइये कि क्या मैं इस घर में एक काम करने वाली मशीन हूँ? मेरी कुछ भावनाऐं, जज्बात, विचार हैं या नहीं? क्या मैंने किसी को कोई शिकायत का मौका दिया?इस घर में और आपके जीवन में मेरी क्या अहमियत है, मैं नहीं जानती।
पर मेरा बेटा मेरी अहमियत को समझता है और मैं उसके जीवन की इस खुशी में शामिल होने के लिए जाऊँगी। रही बात विक्की बाबा की तो उन्हें अपने साथ ले चलेंगे वे हमारे परिवार का हिस्सा है।’ अजय को या किसी को इस बात की उम्मीद नहीं थी कि ममता इस तरह जवाब देगी। उसकी बात बिल्कुल सही थी,किसी के पास कुछ जवाब नहीं था। सब निरूत्तर थे।
परिवार के सभी लोग समारोह में गए।
रौशन ने अपने वक्तव्य में अपनी सफलता के लिए ईश्वर की कृपा, गुरूवर का मार्गदर्शन, साथियों का सहयोग और पूरे परिवार के आशीर्वाद का जिक्र किया और साथ ही यह भी कहा कि मेरी सफलता में मेरी माँ ने हमेशा मुझे हौसला दिया, मेरी हर परेशानी में सम्बल का कार्य किया।इस सफलता में उनका बहुत बड़ा योगदान है। मैं सभी को नमन करता हूँ।
ममता की खुशी का ठिकाना नहीं था।
दोस्तों सर्वप्रथम तो हमें ही अपनी अहमियत को समझना चाहिए, अपने फर्ज पूरे करने के बाद भी अगर कोई हमारी अहमियत को न समझे तो उसे समझाने का साहस भी होना चाहिए।आपको यह कहानी कैसी लगी कृपया मार्गदर्शन करें।
प्रेषक-
पुष्पा जोशी
स्वरचित, मौलिक, अप्रकाशित