ना जाने कैसा जमाना आ गया है –  हेमलता गुप्ता  :Moral stories in hindi

हरे राम.. हरे राम.. हरे राम.. हरे राम.. ऐसा कहते कहते अम्मा जी ने जैसे ही घर में प्रवेश किया सभी समझ गए कि आज अम्मा जी का मूड खराब हो गया है, अभी अच्छी भली  तो पार्क में गई थी सुबह-सुबह घूमने, आधा घंटा ही तो हुआ था और  आ भी  गई और उस पर पता नहीं क्यों मूड खराब हो रखा है!

विशाल की मां कुछ दिनों के लिए गांव से शहर में  विशाल और बहू रागनी के पास रहने आई थी! बेटे विशाल ने पूछा… क्या हुआ अम्मा.. ऐसी बड़बड़ाती हुई क्यों आ रही हो? तुम तो अपनी सहेलियों के साथ पार्क में योगा करने गई थी, फिर ऐसा क्या हो गया कि उस भूकंप को घर में ही साथ ले आई! अरे चुप कर तू ..न जाने कैसा जमाना आ गया है, अब तो पार्क में भी दो घड़ी चैन से नहीं बैठ सकती, मुझे तो बताने में भी शर्म आ रही है, तभी बहू ने भी हंसते हुए पूछ लिया…

अरे अम्मा बताओ तो सही.. ऐसा क्या देख कर आई हो, अम्मा की बातों में पोता पोती को भी मजा आने लगा, वे दोनों भी अम्मा को छेड़ते हुए बोलने लगे.. अरे अम्मा.. बता भी दो, ऐसा क्या हुआ पार्क में, अम्मा गुस्से में चिल्लाती हुई बोली.. आजकल की  पीढ़ी ने तो शर्म हया बिल्कुल बेच ही दी है, पहले तो छोटे-छोटे कपड़ों में घूमते हैं और फिर उनको कोई कुछ कह दे तो कहते है…

शर्म आंखों में होनी चाहिए, अरे जब तुम ऐसे कपड़े पहन पहन के अपना शरीर खुद ही दिखाओगी तो दूसरा भला क्यों नहीं देखेगा! अरे अम्मा जी बस इतनी सी बात..  अम्मा जी आजकल तो सभी ऐसे ही कपड़े पहनते हैं और हमें भी तो जमाने के हिसाब से चलना चाहिए! रागिनी के इतना कहते ही ..क्यों.. ढंग के कपड़े पहनने में शर्म आती है क्या?

शालीनता नाम की भी कोई चीज बची है या नहीं,  जिसे देखो वही शरीर दिखाता  घूम रहा है और आज तो हद ही हो गई पार्क में, एक जवान लड़का लड़की एक दूसरे के गले में हाथ डालकर बैठे थे और वहीं पर  ऐसी हरकतें कर रहे थे की बताने वालों को भी शर्म आ जाए! क्या इसे ही नया जमाना कहते हैं, 

भैया हमने तो कभी ना देखी ऐसी चीज , हम देखने वालों की आंखें शर्म से झुक गई पर इन्हें करने में शर्म  ना आई, और जब हमने उन्हें सार्वजनिक  स्थान पर यह सब करने को मना किया तो हमें  कह रहे हैं.. मंद बिजनस, मंद  बिजनेस (माइंड योर बिजनेस ) हम क्या मंदबुद्धि हैं! “ ना जाने कैसा जमाना आ गया है”

हम तो सारी औरतें उनको देखकर घर पर ही वापस आ गई! अब तो हमारे जैसे बुड्ढे बुढ़ियाओं का पार्क में जाना मुश्किल हो गया! हे भगवान कैसे अपने घर वालों की आंखों में मिर्ची झोककर ऐसे ऐसे काम कर रहे हैं, घर वाले इन पर विश्वास करके उनको बाहर भेज रहे हैं और यह ऐसे काम कर रहे हैं! हां मां.. पर सभी तो एक जैसे नहीं होते ना! हां बेटा वह तो मुझे भी पता है सभी एक जैसे नहीं होते पर जो है उनका क्या होगा..?

   हेमलता गुप्ता स्वरचित

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