“तेरे तो कजरारे नयन भी बरसने के लिए भी तैयार बैठे हैं।” संगीता के इतना कहते ही मैं उससे लिपट गई और मेरी आँखों से खुशी भरी गंगा यमुना की धारा बह निकली।
“तेरे तो कजरारे नयन भी बरसने के लिए भी तैयार बैठे हैं।” ऐसा कहते ही संगीता ने मुझे आलिंगन में ले लिया और मेरी आँखों से खुशी भरी गंगा-यमुना की धारा की तरह बहने लगी। हम दोनों की मीठी मधुर मुस्कान बता रही थी कि हम दोनों ही उसकी सफलता में जो खुश हैं और फिर हम दोनों दोस्त दोस्ती के उन अमूर्त लम्हों की याद में खो गईं थी।
“क्या बात है मोहतरमा, बांदी ने ऐसा क्या कह दिया, जो आप हमें गंगा यमुना बहा कर डुबोने लग गईं।” मेरी खुशी में खुश संगीता चुहलबाजी पर उतर आई थी।
“इतने से पानी से नहीं डूबने वाली तू.. समझी”.. मैंने रूंधे गले से कहा था।
“रुक रुक मैं आती हूँ”.. कहकर संगीता मुझे कुर्सी पर बिठा कमरे से बाहर चली गई।
थोड़ी देर बाद वो हाथ में बाल्टी उठाए आ गई।
“ये क्या है?” मैंने आश्चर्य से पूछा।
ओह अब तुझे दिखना बंद हो गया क्या! अच्छा हाँ, अब तो सब तरफ अभियंता हुजूर ही दिख रहे होंगे।” संगीता मेरा मज़ाक बनाते हुए कहती है।
“चुप कर”.. बोलते हुए मेरी ऑंखों से गंगा यमुना की अविरल धारा फिर से बहने लगी थी।
“यह बाल्टी है मोहतरमा”… संगीता ने बहुत अदब से शोख मुस्कुराहट के साथ कहा।
“मुझे दिख रहा है। करेगी क्या इसका?” मैंने अपने आँसुओं को अपने हाथों से पोछते हुए झल्ला कर कहा।
“ये जो तू पानी बर्बाद कर रही है ना.. उसे बचाने की कवायद करनी है।” संगीता बाल्टी दिखाती हुई पहेलियों में मुझे उलझा रही थी।
“मतलब”… मैं रोना भूल कर घोर आश्चर्य से उसे देख रही थी।
“मतलब की माई डियर, ये जो आपकी सुराहीदार गर्दन है ना उसमें ये बाल्टी लटकाने का इरादा था मेरा, जिससे पानी की बर्बादी को रोका जा सके। लेकिन अफसोस ये नल हमारे बाल्टी लटकाने से पहले ही बंद हो गया।” बहुत ही बुरा सा मुँह बनाती हुई संगीता ने कहा।
“रुक तू आज, तेरी तो मैं खबर लेती हूँ। मेरी भावनाओं का मजाक बना कर रख दिया है तूने।” बोल कर मैं अपने स्टडी टेबल पर से लकड़ी का बड़ा वाला स्केल उठा कर उसकी ओर दौड़ी।
वो आगे आगे… मैं पीछे पीछे… पूरे घर का चक्कर लगाने के बाद भी मैं उसे पकड़ नहीं सकी थी।
“वह आगे आगे और मैं पीछे पीछे उसका पीछा कर रही थी। घर के हर कोने में भटकने के बाद भी मैं उसे पकड़ नहीं सकी थी। हर कदम पर उसका छलांग लगाना समझ से परे था।”
“तू और तेरी भावनाएँ, आज तक इजहार तो कर नहीं सकी। बस मेरे पर जोर आजमाइश कर ले तू।” बोलती हुई संगीता रसोई से निकलती मेरी माँ से जा टकराई।
“सॉरी सॉरी आंटी.. देख लीजिए अपनी बेटी को। जाने किस जन्म का बदला निकालने के लिए मुझे मारने दौड़ी रही है। अब आपके आँचल की छाँव ही मुझे बचा सकती है।” मम्मी के साड़ी के आँचल से अपने सिर को ढ़ँकती हुई संगीता कहती है।
“क्यूँ तंग कर रही है मेरी बच्ची को?” माँ ने संगीता को अपने अंक में भरते हुए कहा।
“इसे तो मैं बाद में देख लूँगी।” बोल कर मैं वही सोफ़े पर बैठ गई।
संगीता भी थक कर मेरे बगल में पसरती हुई मेरी मम्मी से कहती है, “आंटी जब से मैं आई हूँ, आप किचन में ही हैं। क्या बना रही हैं?”
“कई दिन से खांडवी बनाने की सोच रही थी बेटा”….
“क्यूँ खा कर नहीं आई है क्या?” माँ की बात पूरी होने से पहले ही मैंने संगीता से कहा।
“वर्तिका, बेटा बात करने का ये कौन तरीका है।” माँ नाराज होती हुई बोली।
“अभी तुम क्या कह रही थी संगीता। कौन सी भावना व्यक्त नहीं कर पाती है वर्तिका और किससे”.. माँ संगीता के सामने बैठती हुई पूछती है।
संगीता ने मुझे आँखों ही आँखों में चिढ़ाया कि “बता दूँ”..
“एक बार बता के तो देख, फिर मैं बताती हूँ तुझे।” मैंने भी आँखों ही आँखों में जवाब दिया।
“अरे आंटी.. आपकी बेटी कितनी शर्मीलु है, ये तो आप जानती ही हैं।” संगीता मम्मी से रुबरु होती है।
संगीता के मम्मी से रुबरु होते ही मैं मन ही मन प्रार्थना कर रही थी, “हे भगवान ये कुछ उटपटांग ना बक दे। प्लीज भगवान जी सद्बुद्धि देना इसे।”
“आपकी इस शर्मीलु बेटी के पसंदीदा अभिनेता ऋषि कपूर की फिल्म रफूचक्कर लगी है। उसी को लेकर छेड़ रही थी मैं इसे।” संगीता बात बनाने में हमेशा अव्वल रहती रही है, ये उसने फिर सिद्ध कर दिया था।
“तो जाओ तुम दोनों देख आओ। चलो मैं तुम दोनों को पहुँचा आती हूँ।” माँ ने कहा
फिर फँसी ये, कहाँ लगी है फिल्म। अब क्या कहेगी!” मुझे सोच कर ही घबराहट होने लगी।
“आज रिक्शा राइडिंग की इच्छा है। रिक्शा से ही आई हूँ और रिक्शा से ही सिनेमा हॉल तक जाएंगे, प्लीज ना आंटी” इतने नाटकीय अंदाज में उसने मम्मी से आज्ञा माॅंगती है कि मम्मी भी मना नहीं कर सकी थी।
“अभी ग्यारह बजे हैं। एक बजे वाली शो में चलते हैं।” अपनी कलाई घड़ी देखती हुई संगीता कहती है।
“आंटी चलिए मैं कॉफी बनाती हूँ और आप जरा हमारे लिए खांडवी सर्व कर दीजिए।” संगीता ने सधिकार मम्मी से कहा।
“शर्म नहीं आती तुझे अपने से बड़ों को काम बताते हुए।” मैंने संगीता को चिढ़ाया।
“पहली बात आंटी मेरी बेस्ट फ्रेंड हैं और दूसरी बात मुझे आंटी से अकेले में कुछ बात भी करनी है।” बोल कर संगीता मम्मी का हाथ पकड़ मुझे हतबुद्धि सा सोचने के लिए छोड़ रसोई में चली गई।
मेरी ऑंखों का नजरिया उस समय ऐसा था, जैसे मैं गहरी सोच में डूबी हुई हूँ या किसी खोज में जुटी हूँ, या वहाॅं कुछ महत्वपूर्ण या गुप्त सामग्री हो जिसका पता मुझे लगा हो, लेकिन मेरा दिल या दिमाग यह मानने के लिए तैयार नहीं हो।
ऐसी क्या बात करने वाली है वो, पागल लड़की है। कहीं कुछ बोल ना दे। अभी तो इश्क का पता भी नहीं है.. कहीं उससे पहले ही ये लड़की उसे बलिवेदी पर चढ़ा ना दे। एक दो बार इच्छा हुई कि चुपके से जाकर उन दोनों की बातें सुनी, लेकिन ऐसी आदत नहीं होने के कारण मन ने साथ नहीं दिया। उस समय मैं हद्द से ज्यादा आशंकित थी।
***
“क्या बात करनी थी बेटा तुम्हें”.. रसोई में जाते ही मम्मी ने संगीता से पूछा।
“कुछ नहीं आंटी.. वर्तिका की हालत देखिएगा अब आप।” उसने हँसते हुए खिड़की से मेरी हालत मम्मी को दिखाई।
“कितनी प्यारी लग रही है ना आंटी।.काश अभी कैमरा होता तो उसकी एक तस्वीर ले लेती।” संगीता कॉफी मग निकालती हुई मम्मी से बात कर रही थी।
“बिल्कुल पागल हो तुम दोनों। पिछले जन्म में बहनें रही होगी तुम दोनों। जो कसर तब बच गया होगा, अब पूरा कर रही हों।” मम्मी ने उसके गाल थपथपाते हुए प्रेम जता रही थी और इधर मेरी हालत खराब हुई जा रही थी।
थोड़ी देर में मम्मी अपने पल्लू से पसीना पोछती हुई और संगीता हाथों में ट्रे लिए आती दिखी।
“क्या कहा संगीता ने तुमसे मम्मी।” मैं दोनों को देखती एकदम से खड़ी होती हुई बोली।
मम्मी मेरी हड़बड़ाहट देख कर मेरे गाल थपथपा कर प्यार से कहती हैं, “अरे बिल्कुल बुद्धु है तू। तेरी दोस्त तुझे छेड़ रही थी और ऐसी कोई बात है भी क्या जो तू मुझे नहीं बताती।”
“आंटी हम लोग सिनेमा के बाद थोड़ी देर के लिए बाजार हो आएंगे। मुझे कुछ कपड़े लेने हैं, मेरे चाचा की बेटी की शादी तय हो गई है।” संगीता ने मुँह में खांडवी डालते हुए कहा।
“ओ.. यम्मी आंटी.. कितना ज्यादा स्वादिष्ट है। मेरे लिए एक डब्बे में दे दीजिएगा आंटी। नहीं तो ये और इसके भाई बहन कुछ बचने नहीं देंगें।” संगीता मुझे चिढ़ाती हुई दूसरी खांडवी भी मुँह में रखती हुई कहती है।
“खबरदार जो मेरे भाई बहन के बारे में कुछ कहा तुमने।” मैंने त्यौरियाँ चढ़ाते हुए कहा।
मैंने तेरे भाई बहन को तो कुछ नहीं कहा। वो मेरे भाई बहन भी हैं। मैंने उनके बारे में कहा… दिक्कत है तुझे इससे। मैं भूल ही गई थी कि तेरी संगीता मौसी से बातों में जीतना असम्भव है तो मैं चुपचाप खांडवी खाने लगी और वो पता नहीं कहाँ कहाँ की बातों से मम्मी को अवगत कराने लगी।
“ये हैं हमारी भावी कलक्टर.. गॉसिप गर्ल संगीता जी।” मैं चिढ़ी हुई सी उसकी बातों का मजाक बनाते हुए कह रही थी।
उसने मुझे घूर कर देखा और फिर मम्मी संग बातों में लग गई।
मम्मी को संगीता संग बातों में मगन देख मैं बीच में कूदती हुई दोनों से एक साथ कहा, “मेरी प्यारी माँ को क्यूँ बोर कर रही है? चल उठ कमरे में चल और मम्मी क्या तुम भी इसकी बेसिरपैर की बातों को हवा दे रही हो।
“फिर तुम्हारी बुआ ने कुछ नहीं कहा संगीता। ये तो बहुत ही आश्चर्य की बात है।” दोनों में से किसी ने मेरी बात पर ज़वाब ना देकर अपनी बात जारी रखी।
अच्छा तो ये गॉसिप की आग दोनों तरफ बराबर लगी हुई है। जब तुम दोनों की गप्पास्टिंग खत्म हो जाए तो आ जाना कमरे में।” मैं बोलती हुई धरा धर सीढ़ियाँ चढ़ती गई।
अगला भाग
बारिश का इश्क (भाग – 8 ) – आरती झा आद्या: Moral stories in hindi
आरती झा आद्या
दिल्ली